“टेलिंग लाईज, नो पापा; ओपन योर मॉउथ – हा हा हा” : झूठ को बार-बार फैलाना ही ब्रॉन्ड मोदी की सबसे बड़ी ख़ासियत है

​जकार्ता में प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी तिलंगी उड़ाते हुए। साथ में हैं इंडोनेसिया के राष्ट्रपति श्री ​जोको विडोडो

नई दिल्ली : नरेन्द्र मोदी को अपनी ब्रॉन्डिंग के लिए अपना विज्ञापन करने और अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने के अलावा पुरखों को कोसने की ऐसी बीमारी है, जो उनसे पहले देश के किसी मुखिया की कभी नहीं रही! मोदी के व्यक्तित्व का ये सबसे ख़राब और घातक पहलू है! क्योंकि बीजेपी के नव-निर्मित मुख्यालय के अलावा देश में शायद ही कोई ऐसी योजना हो जो अपने निर्धारित वक़्त में पूरी हुई हो! भारत की सरकारी कार्यप्रणाली कई मायने में हमेशा से ही बेहद शर्मनाक रही है। मोदी-युग में भी योजनाओं के समय पर पूरा नहीं होने के सैंकड़ों उदाहरण हैं। इसीलिए जब मोदी पिछली सरकारों पर हमला करते हैं, तब वो ख़ुद अपना और अपने पद की गरिमा की खिल्ली उड़ाते हैं।

मोदी ये क्यों भूल जाते हैं कि उनके दिल्ली आने से पहले मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ काँग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल की ही सरकारें नहीं थीं, बल्कि कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, राम प्रकाश गुप्ता, कैलाश चन्द्र जोशी, वीरेन्द्र कुमार सकलेचा, सुन्दर लाल पटवा, उमा भारती, बाबू लाल गौर और शिवराज सिंह चौहान वाली भगवा सरकारें भी सत्ता में रह चुकी हैं। लिहाज़ा, पिछली सरकारों को कोसते वक़्त मोदी ये क्यों नहीं कहते कि पिछली सरकारों में बीजेपी की भी सरकारें भी शामिल हैं! मोदी का ये नहीं कहना ही वो झूठ है, जो उनके भाषणों को विज्ञापन बनाता है।

दरअसल, मोदी को मुफ़्त की वाहवाही बेहद पसन्द है। किस्मत में उन्हें ऐसे कई मेगा-प्रोजेक्ट्स का लोकार्पण करने का सौभाग्य भी मिलता रहा, जिसके लिए सारी जद्दोज़हद पिछली सरकारों ने की। मिसाल के तौर पर, 4 जून 2016 को मोदी, अफ़ग़ानिस्तान को जिस सलमा बाँध का तोहफ़ा देने गये थे, उसकी व्यावहारिकता (Feasibility) रिपोर्ट 1957 में बनी थी और निर्माण 1976 में शुरू हुआ था। इससे पहले 25 दिसम्बर 2015 को मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान के नये संसद भवन का लोकार्पण किया, उसका शिलान्यास भी अगस्त 2005 में मनमोहन सिंह ने किया था।

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जम्मू-कश्मीर को हर मौसम में सड़क मार्ग से जोड़ने वाली 10 किलोमीटर लम्बी चेनानी-नाशरी (पटनीटॉप) सुरंग का लोकार्पण मोदी ने 2 अप्रैल 2017 को किया। इस हाईटेक प्रोजेक्ट का निर्माण 2011 में शुरू हुआ। लेकिन उद्घाटन के वक़्त सारा श्रेय मोदी ने ऐसे लपक लिया, मानों ये उनकी नोटबन्दी की उपलब्धि रही हो। दूसरी ओर, मोदी राज की कार्यशैली की पोल ज़ोजीला सुरंग की योजना ने खोल दी।

हक़ीक़त ये है कि कश्मीर को लेह से जोड़ने वाली ज़ोजीला सुरंग के निर्माण को मनमोहन कैबिनेट की मंज़ूरी अक्टूबर 2013 में मिली। इसके बावजूद शिलान्यास मई 2018 में हो सका। इसी तरह, असम को अरूणाचल से जोड़ने वाले ब्रह्मपुत्र पर बने जिस सबसे लम्बे ढोला-सादिया या भूपेन हज़ारिका पुल का उद्घाटन नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2017 को किया, उसके सर्वेक्षण का काम 2003 में शुरू हुआ था। जनवरी 2009 में मनमोहन सिंह सरकार ने इस परियोजना को मंज़ूरी दी थी।

अरे, पिछली सरकारों को तो छोड़िए, आपकी सरकार की सैंकड़ों महत्वाकाँक्षी योजनाएँ या तो बेहद देरी से चल रही हैं या फिर उनकी उपलब्धि शर्मनाक है। सच्चाई तो ये है कि आपके मातहत काम कर रहे अलग-अलग मंत्रालय भी अब भी वैसे ही अड़ंगा लगाते हैं, जैसा वो पिछली सरकारों के ज़माने में होता था! ज़ाहिर है कि आप दावे चाहे जितने कर लें, लेकिन आपके राज में भी नौकरशाही का ढर्रा बिल्कुल पहले जैसा ही है। और हाँ, यदि आपको पता हो तो ज़रा देश को बताइएगा कि क्या आपसे पहले किसी सरकार ने कभी न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया था या नहीं? या फिर 70 साल में क्या ये पहला मौका है जब किसानों पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वालों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में क्रान्तिकारी इज़ाफ़ा करके किसानों को निहाल कर दिया है!
इसी तरह, प्रधानमंत्री ने उस वक़्त भी सिर्फ़ लफ़्फ़ाज़ी ही की, जब उन्होंने कहा कि “हम अमीर और ग़रीब के बीच की खाई को कम करना चाहते हैं। इसका परिणाम जल्द ही आपको दिखने लगेगा। क्योंकि पहली बार विकास न सिर्फ़ हो रहा है, बल्कि दिख भी रहा है! [इसी विकास को] ग़रीब अब आपकी आँखों में आँखें डालकर विश्वास से देख सकता है। क्योंकि मोदी ग़रीब को इस लायक बनाने के लिए काम कर रहे हैं।” अरे मोदी जी, जब आप कहते है कि अमीर-ग़रीब की खाई कम होने वाली है तब डर लगता है कि कहीं आप नीरव-मेहुल जैसे कई और दोस्तों पर भी मेहरबान ना हो जाएँ! आपको ये कौन बताएगा कि बैंकों में रखा ग़रीबों का पैसा वहाँ से दिन-दहाड़े लूटकर देश से फ़ुर्र हो जाने से ही अमीर-ग़रीब की खाई मिट नहीं रही, बल्कि और चौड़ी तथा गहरी हो रही है!

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दरअसल, नरेन्द्र मोदी की शख़्सियत में एक प्रधानमंत्री या प्रधानसेवक या चौकीदार या एक शिक्षित, समझदार और गरिमावान राजनेता का अक़्स बेहद कम है। उनमें एक विज्ञापन की ख़ूबियाँ कहीं ज़्यादा नज़र आती हैं! मोदी में वो सभी गुण हैं, जो किसी विज्ञापन में होते हैं! विज्ञापनों में जिस तरह से सच के मामूली से अंश को बेहद बढ़ा-चढ़ाकर और आकर्षक ढंग से पेश किया जाता है, वैसे ही मोदी अपनी चौतरफ़ा नाकामी पर पर्दा डालने के लिए अपने मामूली से योगदान को भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं।
मोदी भूल चुके हैं कि सच की महिमा निराली है! सच, निष्कपट होता है। सच जितना होता है, उतना ही नज़र आता है। कम-ज़्यादा नहीं। यही ब्रह्म सत्य है! सच को आप जितना बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना चाहेंगे, आपको उसमें उतना ही झूठ मिलाना पड़ेगा! झूठ को आँख बन्द करके नहीं मिलाया जा सकता। इसीलिए विज्ञापनों में किसी उत्पाद की विशेषताओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते वक़्त कई तरक़ीबें अपनायी जाती हैं। जैसे जिंगल, मॉडलिंग, संवाद, अभिनय, फ़ोटोग्राफ़ी, रोशनी, सेट वग़ैरह-वग़ैरह। ये आकर्षण परस्पर मिलकर झूठ का मेकअप या शृंगार करते हैं। झूठ को शृंगार की ज़रूरत इसलिए है, क्योंकि वो बुनियादी तौर पर कुरूप होता है!

नरेन्द्र मोदी का हरेक भाषण, सिर्फ़ उनका विज्ञापन है। बीते पाँच साल में, मोदी देश में हो या विदेश में, लेकिन शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब मोदी ने भाषणबाज़ी नहीं की। मौका जो भी हो, लेकिन उनका भाषण हमेशा चुनावी और वीर-रस से ओत-प्रोत ही रहता है। इसीलिए उन्हें हक वक़्त ‘अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनने’ की लत पड़ गयी है। जब हमेशा अपना गुणगान करने की लाचारी होगी तो हमेशा विज्ञापन की तरह सच-कम और झूठ-ज़्यादा तो बोलना ही पड़ेगा। अपनी इसी लाचारी की वजह से वो ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें फेंकूँ का ख़िताब मिला!
विज्ञापन की तरह झूठ को बार-बार फैलाना ही ब्रॉन्ड मोदी की सबसे बड़ी ख़ासियत है। काश! कोई उन्हें समझा पाता कि झूठ का मोटा पलेथन लगाकर भी सच की छोटी लोई से बड़ी रोटी नहीं बेली जा सकती! काश! कोई उन्हें बता पाता कि सार्वजनिक जीवन में विरोधियों पर हमला करने से पहले हमेशा तथ्यों को ठोक-बजाकर देख लेना चाहिए। वर्ना, आपको जितना सियासी फ़ायदा होगा, उससे कहीं ज़्यादा आप हँसी के पात्र बनेंगे। शीर्ष पदों पर बैठे लोगों के लिए व्यंग्य और मसख़रापन में मामूली फ़र्क़ ही होता है!

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