यौ प्रधान मंत्री जी !!! अपने ‘कलाकार’ छियै, मैथिल आब मैथिली नै बजैत छथिन, अपनेक मुँह सें मैथिली सुनि मतदाता प्रसन्न भेलाह, मंच पर समूह फोटो में भी स्वयंभू ‘दरभंगा कुमार’के स्थान नहि शोधक विषय

13 नवंबर, 2024 को बिहार के दरभंगा में लगभग 12,100 करोड़ रुपये की कई विकास ​परियोजनाओं को शुरू करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

दरभंगा / पटना / नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उनके कार्यालय से जुड़े सभी आला हुकुम लोग और वे जो प्रधानमंत्री का भाषण लिखते हैं, इस बात से अवगत हैं कि बिहार के उत्तरी क्षेत्र मिथिला और उसमें भी दरिभंगा में रहने वाले लोग (अपवाद छोड़कर) अब अपने-अपने घरों में, अपने बाल-बच्चों के साथ, सम्बन्धी और परिजनों के साथ भी मैथिली भाषा में नहीं बोलते। प्रधानमंत्री यह भी जानते हैं कि मिथिला में बोलचाल की भाषा में मैथिली पर हिंदी भाषा की पकड़ मजबूत हो गई है। नरेंद्र मोदी यह भी जानते हैं कि दरभंगा के अंतिम राजा के घर में भी अब ‘संस्कृति विरासत के रूप में नहीं रही।’ साथ ही, दरभंगा के लाल किला के अंदर भी मैथिली भाषा कमजोर हो गयी है। मिथिला की संस्कृति यत्र-तत्र-सर्वत्र अपनी अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रही है । निर्जीव है, बोल नहीं सकती और लोग स्वहित के लिए उसे बाज़ार में खड़े कर दिये हैं।

इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री भले महाराजा डॉ. कामेश्वर सिंह के योगदान की चर्चा करें, वे यह भी जानते हैं कि महाराजा की मृत्यु के बाद दरभंगा राज का प्रदेश, देश की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वौद्धिक क्षेत्रों में योगदान “शून्य” है। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री यह भी जानते हैं कि नई दिल्ली के साथ-साथ देश के अन्य महत्वपूर्ण शहरों में दरभंगा राज का नामोनिशान उनके लोगों, सगे सम्बन्धियों ने समाप्त कर दिए हैं। जो बचे हैं, उसे कलकत्ता उच्च न्यायालय के सम्मानित न्यायमूर्ति समय-समय पर देखते हैं। यह सभी बातें देश के सम्मानित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जानते हैं।

अब इन प्रचुर विशेषताओं (हम इसे मिथिला और मैथिलों की कमजोरी मानते हैं) के होते प्रधान मंत्री कैसे उस अवसर को छोड़ सकते हैं जिसका आने वाले दिनों में मतदान में इस्तेमाल होने वाला है। बस क्या था अवसर का लाभ उठाते देश के प्रधानमंत्री माइक पर उवाचे: “राजा जनक, सीता मैया कविराज विद्यापति के ई पावन मिथिला भूमि के नमन करें छी। ज्ञान-धान-पान-मखान…ये समृद्ध गौरवशाली धरती पर अपने सबके अभिनंदन करे छी।”

आश्चर्य की बात तो यह है कि महाराजा, जिनकी चर्चा उन्होंने की, उनके अनुज राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के परिवार कीवर्तमान पीढ़ियों के लोग तस्वीरों में मंच के एक किलोमीटर की दूरी में भी नजर नहीं आये। जो मंच पर दिखे सभी नेता थे, जिनका मिथिला के उन्नयन, विकास में शून्य का भी योगदान नहीं रहा है। यह वे भी जानते हैं और उपस्थित गणमान्य तो जानते ही हैं। दुर्भाग्य यह है कि प्रधान मंत्री जिन जिन शब्दों से मिथिला भूमि को अलंकृत किये – ज्ञान, धान, पान – माखन – वह आज़ादी के पहले की बात थी, अब नहीं है। अब सभी ‘राजनीति’ और ‘व्यवसाय’ का अहम् हिस्सा बन गया है । अब पाग के लिए शास्त्रार्थ नहीं होता। मछलियां दक्षिण भारत से आयातित होती है क्योंकि अब मिथिला में पोखर है ही नहीं। खैर।

दरभंगा में विभिन्न परियोजनाओं के शिलान्यास, उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि “हमारी सरकार देश की सेवा के लिए, लोगों के कल्याण के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रही है। सेवा की इसी भावना से यहां विकास से जुड़े 12,000 करोड़ रुपए के एक ही कार्यक्रम में 12,000 करोड़ रुपए का अलग-अलग प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास और लोकार्पण हुआ है। इसमें रोड, रेल और गैस इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े अनेक प्रोजेक्ट्स हैं। और सबसे बड़ी बात दरभंगा में एम्स का सपना साकार होने की तरफ एक बड़ा कदम उठाया गया है। दरभंगा एम्स के निर्माण से बिहार के स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा। इससे मिथिला, कोसी और तिरहुत क्षेत्र के अलावा पश्चिम बंगाल और आसपास के कई क्षेत्र के लोगों के लिए सुविधा होगी। नेपाल से आने वाले मरीज भी इस एम्स अस्पताल में इलाज करा सकेंगे। एम्स से यहां रोजगार-स्वरोजगार के अनेक नए अवसर बनेंगे। मैं दरभंगा को, मिथिला को, पूरे बिहार को इन विकास कार्यों के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूं।”

दरभंगा में प्रधानमंत्री को देखने आते लोग

प्रधानमंत्री कहते हैं कि “हमारे सांस्कृतिक समृद्धि के दर्शन यहां दरभंगा में मिथिलांचल में कदम-कदम पर होते हैं। माता सीता के संस्कार इस धरती को समृद्ध करते हैं।” परन्तु मैं नहीं समझाता हूँ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस वाहन से दरभंगा आये और मंच तक पहुंचे, गिनती से भी पांच सौ कदम चले होंगे। अगर कुछ कदम चले भी होंगे तो जिस सुरक्षा कवच में उनके कदम उठे होंगे, मिथिला की सांस्कृतिक समृद्धि दृष्टिगोचित नहीं हुआ होगा। वह तो धन्यवाद के पात्र के उनके भाषण को शब्दवद्ध करने वाले तो इस बात से वाकिफ हैं कि मिथिला में लोग ताली कब ठोकते हैं।

इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री यह भी कहते नहीं रुके कि “आपसे बात करते हुए आज मैं दरभंगा स्टेट के महाराजा कामेश्वर सिंह जी के योगदान को भी याद कर रहा हूं। आजादी के पहले और बाद में भारत के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। मेरे संसदीय क्षेत्र काशी में भी उनके कार्यों के बहुत चर्चा होती है। महाराजा कामेश्वर सिंह के समाज कार्य दरभंगा का गौरव है, हम सभी के लिए प्रेरणा है।” काश !!!! संतानहीन महाराजाधिराज के परिवार के लोग इस कदर होते तो प्रधानमंत्री उनका भी नाम लेते गर्व महसूस करते।

नरेंद्र मोदी कहते हैं कि “दिल्ली में केंद्र में मेरी सरकार और यहां बिहार में नीतीश जी की सरकार मिलकर बिहार के हर सपने को पूरा करने के लिए काम कर रही हैं। हमारी विकास और जनकल्याण योजनाओं का ज्यादा से ज्यादा लाभ बिहार के लोगों को मिले यही हमारा प्रयास है। अब प्रधान मंत्री जी को कौन कहे कि ‘जिस नीतीश कुमार का पीठ थोक रहे हैं, उनकी पार्टी की दशा भी उत्तरोत्तर वही हो रही है बिहार में (आने वाले विधान सभा चुनाव में आप भी देख लेंगे) जो कभी कांग्रेस के साथ हुई थी।

कहते भी हैं कि इतिहास खुद दुहरता है। कोई 108-साल पहले सं 1912 में बांकीपुर कांग्रेस (अविभाजित बिहार का पटना शहर) अधिवेशन में 20-वर्षीय पंडित जवाहरलाल नेहरू राजनीति में अपना “टोपी” उछाले थे और आज़ाद भारत में प्रधान मन्त्री भी बने, उसी बिहार में आज काँग्रेस पार्टी का क्रमशः नामोनिशान मिटते जा रहा था और इसके लिए जितना दोषी दिल्ली का आला-कमान है, उससे कहीं अधिक दोषी प्रदेश में पूर्व के मुख्य मन्त्रियों, नेताओं से लेकर वर्तमान के नेतागण है – जिनका ‘राजनीतिक चरित्र’ प्रदेश की राजनीति से सैकड़ों गुना “बदत्तर” है।

कहा जाता है कि पंडित नेहरू महज 20 वर्ष की उम्र में बैरिस्टर की उपाधि लेकर 1912 में भारत लौटे थे। वे वकालत नहीं करना चाहते थे। वे वकालत को तवज्जो न देकर देश की आजादी की मुहिम में भाग लेना बेहतर समझा। यहां अंग्रेजी हुकूमत की तानाशाही देखकर नेहरू ने सोचा कि कचहरी में एक व्यक्ति के मुकदमे की पैरवी करने के बदले संपूर्ण भारत की पैरवी करना कहीं बेहतर है। उन्हें देश की स्वतंत्रता के लिए चल रही क्रान्ति में हिस्सा लेने के लिए एक मंच की आवश्यकता थी। उन दिनों कांग्रेस एक खुले मंच में राजनीति कर रही थी। इसके चलते वे कांग्रेस के सदस्य बन गए और 1912 में प्रतिनिधि के रूप में पटना के बांकीपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। नेहरू का राजनीतिक सफर बांकीपुर कांग्रेस से ही हुआ था जो चार बार 1947, 1951, 1957 और 1962 तक देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला।

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13 नवंबर, 2024 को बिहार के दरभंगा में लगभग 12,100 करोड़ रुपये की कई विकास परियोजनाओं का शुभारम्भ

आज़ादी के बाद बिहार में लगभग 32 वर्ष तक, यानि 1972 तक अर्थात पांचवीं विधान सभा तक जब तक श्रीकृष्ण सिन्ह, दीपनारायण सिंह, विनोदानंद झा, के बी सहाय, भोला पासवान शास्त्री, हरिहर सिंह मुख्य मंत्री रहे, ठीक ठाक था। पार्टी की पकड़ मतदाताओं के साथ-साथ विकास पर भी था। लेकिन पार्टी और नेताओं की पकड़ दारोगा प्रसाद राय, केदार पांडेय और अब्दुल ग़फ़ूर के मुख्य मंत्री बनने के बाद खिसकने लगी थी। प्रदेश में अनेकानेक कारणों से सकता के प्रति आवाज उठने लगी थी। सं 1975 में जगन्नाथ मिश्र के मुख्य मंत्री बनने के साथ ही कांग्रेस समाप्ति के रास्ते पर अग्रसर हो गयी थी।जगन्नाथ मिश्र प्रदेश में मुख्य मंत्री तीन बार बने और अपने समय काल में उनसे प्रदेश को और कांग्रेस पार्टी को जितना आघात पहुंचा, शायद किसी भी कांग्रेसी नेता से नहीं हुआ होगा, मजबूती के साथ सत्ता में रही कांग्रेस संपूर्ण क्रांति, क्षेत्रीय दलों का उभार, वामपंथ का प्रभाव और कथित खेमाबंदी के कारण धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई।

आजादी के बाद बिहार में वर्ष 1952 में 276 सीटों के लिए हुए पहले विधानसभा चुनाव में 239 यानी 86.55 प्रतिशत सीटें हासिल करने वाली कांग्रेस महज 38 साल बाद 1990 में 324 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव में 71 यानी लगभग 22 प्रतिशत सीटों के आंकड़े पर ही सिमट कर रह गई। इतना ही नहीं, आने वाले वर्षों में इसके कमजोर पड़ते जनाधार को पूरे देश ने देखा। 1995 के चुनाव में तो इसकी सीट का गणित 29 सीट यानी लगभग नौ प्रतिशत सीट पर रुक गया। 2010 में 243 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज चार सीटें यानी 1.65 प्रतिशत सीट ही मिल पाई।

दरअसल, कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार के विरोध में वर्ष 1975 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार की धरती से शुरू हुई “संपूर्ण क्रांति” को दबाने के लिए वर्ष 1977 में लागू राष्ट्रपति शासन में बिहार में सातवीं विधानसभा का चुनाव कराया गया। 318 सीटों पर हुए इस चुनाव में 214 सीटें जीतने वाली जनता पार्टी ने पहली बार कांग्रेस के वर्चस्व को चुनौती दी। जनता पार्टी ने कांग्रेस के विजय रथ को महज 57 सीटों पर ही रोक दिया। इस चुनाव में निर्दलीय को 25 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) को 21 सीटें मिली थीं।

ऐसा नहीं है कि इतने खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस हमेशा के लिए धराशायी हो गई। और आज जनता दल (यूनाइटेड) यानी नीतीश कुमार ‘स्वहित’ के लिए शनैः शनैः अपनी पार्टी के लोगों को भाजपा को सौंप रहे हैं। कहते हैं पार्टी में विभाजन के बावजूद कांग्रेस के एक गुट कांग्रेस (आई) के बैनतर तले डॉ. जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व में वह वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत से फिर से उठ खड़ी हुई। 324 सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कांग्रेस (आई) को 169 सीटें मिलीं जबकि जनता दल (एस) चरण ग्रुप को 42 और भाकपा को 23 सीटें मिलीं।

कांग्रेस का कारवां यहीं नहीं रुका 1985 के चुनाव में उसने और बेहतर प्रदर्शन किया और 196 सीटों पर जीत दर्ज की वहीं लोक दल को 46 और आईएनडी को 29 सीटें मिलीं। लेकिन, इसके बाद के चुनावों में जो हुआ उसने कांग्रेस को पूरी तरह से कमजोर कर दिया और वह फिर उठ नहीं पाई। यही हश्र बाबू नीतीश कुमार का है और आने वाले दिनों में और ख़राब होने वाला है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अलावे प्रदेश का मतदाता अधिक जानता हैं। और यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो जानते ही हैं।

आज, कोई 243 सदस्यों वाली विधान सभा में 2005 में जनता दल (यु) विधायकों की संख्या 88 थी जो 2010 विधान सभा में बढ़कर 115 हुई। 2005 में सुशील मोदी (अब दिवंगत) की अगुआई में भाजपा की संख्या 55 थी जो 2010 में 91 हो गई। राष्ट्रीय जनता दल के विधायकों की संख्या 2005 में 54 थी, जो 2010 में घटकर 22 हो गई। पांच साल बाद 2015 विधान सभा में भाजपा 53 पर आ गयी, जनता दल (यु) 71 पर, कांग्रेस 27 पर और राष्ट्रीय जनता दल 80 पर पहुँच गयी। इसके अगले विधान सभा में आरजेडी 80 से 75 पर आयी, जबकि भाजपा 53 से 74 पर और जनता दल (यु) 71 से 43 पर। कांग्रेस 27 से लुढकर 19 पर पहुंची।

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा उन्ही स्थानों पर कब्ज़ा की जो नीतीश कुमार का था। इसी तरह 2019 लोक सभा में जनता दल(यु) को 17 स्थान, भाजपा को 17 स्थान, कांग्रेस को 5 और लोक जनशक्ति पार्टी को 6 स्थान मिला था। लेकिन 2024 लोक सभा में जनता दल (यु) को 12, भाजपा को 12, आरजेडी को 4, कांग्रेस को 3, एलजेआरआरवी को 5 तथा अन्य 2 स्थान पर रहे।

नीतीश​ जी अब बस करें – अगला मुख्यमंत्री भाजपा का

आतंरिक सूत्र का कहना है कि “नीतीश कुमार का पीठ ठोकना यानी ‘बस करो नीतीश’ वाली बात है। नीतीश कुमार ‘लंगड़ाकर, वैशाखी लेकर, जैसे-जैसे भारतीय राजनीतिक ओलम्पिक में कीर्तिमान बना लिए हैं। नौ बार प्रदेश के मुख्य मंत्री की कुर्सी पर विराजे। दो बार अपने अनुज मंत्री/सहयोगी पार्टी को धोखा दिए। कभी भाजपा से मुंह फुलाये तो कभी फुलल मुंह लेकर भाजपा का, प्रधानमंत्री का पैर पकड़ लिए। पेअर पकड़ने की परम्परा राजनीति में, खासकर बिहार में बहुत पुराणी है।

इसलिए इस बात यह तय है कि किसी भी हालत में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के कार्यालय से साढ़े तीन किलोमीटर दूर रखा जाय। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाय कि अन्य वर्षों की भांति फिर चाचा-भतीजा लपककर कुर्सी की ओर नहीं बढ़ें। इसका अर्थ यह है कि मंच पर चाहे जो भी बोलें, यथार्थ में प्रधानमंत्री और भाजपा नीतीश कुमार से अपना पिंड छुड़ाना चाहते हैं। यहाँ एक और बात है कि प्रदेश में सुशील मोदी की मृत्यु के बाद भाजपा को ‘नेता की कमी’ खलेगी। आज बिहार में भाजपा की जो भी स्थिति है उसमें सुशील मोदी का योगदान महत्वपूर्ण हैं।

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चलिए प्रधानमंत्री की भाषण की ओर बढ़ते हैं। लेकिन यहाँ उनके भाषण को लिखने वाले इस बात को उद्धृत करने में चूक गए कि महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु के विगत 62 वर्षों में संतानहीन राजा के परिवार के लोगों ने उनकी कीर्तियों को किस कदर मिट्टी पलीद कर दिए। महाराजा ने भारत के जिन जिन शैक्षिक संस्थाओं को खड़ा करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान किये, चापलूसी, चाटुकारों ने राजनीति में उन्हें पीछे ढकेलते चले गए। जिन जिन विश्वविद्यालयों के सीनेट और सिंडिकेट में ‘दरभंगा सीट’ था, आज उनके परिवारों में सोच की किल्लत के कारण सब समाप्त हो गया।

प्रधानमंत्री तो यह भी नहीं पूछे जी जिस प्रदेश के लोगों को आज से 90 वर्ष पहले मुख में आवाज देने के लिए दी इंडियन नेशन और आर्यावर्त अखबार का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया, मिथिला के लोगों के साथ-साथ, प्रदेश के राजनेताओं, अधिकारियों और सबसे महत्वपूर्ण महाराजा के परिवार के लोगों ने ही नेश्तोनाबूद कर मिट्टी में मिला दिए। कोई दो दशक पहले सैकड़ों लोगों, परिवारों को सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया गया। आज भी प्रदेश के श्रमिक न्यायालय में, निचली अदालत में, उच्च न्यायलय में कर्मचारियों का भविष्य लॉक कपडे में बंद हैं। कितने मृत्यु को प्राप्त किये, कितने मृत्यु के दरवाजे पर बैठे हैं। यह सभी बातें नितीश कुमार, जिनके पीठ थपथपाये मोदी जी, जानते हैं, लेकिन ये सभी बातें कुमार साहब अगर बताएँगे तो उनकी बदनामी ही होगी। वैसे प्रधान मंत्री न्याय और अदालत की बात किये, अगर मालुम होगा की दो दशक से मुकदमें लंबित है।

प्रधान मंत्री कहे कि कोई परिवार नहीं चाहता कि उसके घर में कोई बीमार पड़े शरीर स्वस्थ रहे इसके लिए लोग आयुर्वेद, पोषक खान-पान का महत्व लोगों को बताया जा रहा है। फिट इंडिया मूवमेंट चलाया जा रहा है। ज्यादातर सामान्य बीमारियों की वजह गंदगी, दूषित खान-पान, खराब जीवनशैली होती है। इसलिए स्वच्छ भारत अभियान, हर घर शौचालय, नल से जल जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं। ऐसे आयोजनों से शहर तो स्वच्छ बनता ही है बीमारियां फैलने की गुंजाइश भी कम होती है। बेहतर आरोग्य का हमारा चौथा कदम है-छोटे शहरों में भी इलाज की बेहतरीन सुविधाएं पहुंचाना, डॉक्टरों की कमी को दूर करना। प्रधान मंत्री ने कहा कि “आजादी के 60 सालों तक देश में सिर्फ एक ही एम्स था और वो भी दिल्ली में। हर गंभीर बीमारी के लोग दिल्ली एम्स का रुख करते थे। कांग्रेस की सरकार के समय जो चार-पांच एम्स और बनाने की घोषणा हुई उनमें कभी ठीक से इलाज ही शुरू नहीं हो पाया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि “दरभंगा एम्स से भी हर वर्ष बिहार के अनेक युवा डॉक्टर बनकर सेवा के लिए निकलेंगे। और एक महत्वपूर्ण काम हुआ है, पहले डॉक्टर बनना हो तो अंग्रेजी आना जरूरी था। अब मध्यम वर्ग गरीब परिवार के बच्चे अंग्रेजी में पढ़ाई कहां करेंगे स्कूल में, इतना पैसा कहां से लाएंगे और इसलिए हमारी सरकार ने तय किया अब डॉक्टर पढ़ना है या इंजीनियरिंग पढ़ना है, वो अपनी मातृभाषा में डॉक्टर बन सकता है, अपनी मातृभाषा में पढ़कर के इंजीनियर बन सकता है। और एक प्रकार से मेरा ये काम कर्पूरी ठाकुर जी को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि हैं, वो यही सपना हमेशा देखते थे।”

प्रधान मंत्री कहते है: “नीतीश बाबू के नेतृत्व में बिहार ने सुशासन का जो मॉडल विकसित करके दिखाया वो अद्भुत है। बिहार को जंगल राज से मुक्ति दिलाने में उनकी भूमिका उसकी जितनी सराहना की जाए वह काम है। एनडीए की डबल इंजन की सरकार बिहार में विकास को गति देने के लिए प्रतिबद्ध है। बिहार का तेज विकास, यहां का बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर और यहां के छोटे किसानों, छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन देने से ही संभव होने वाला है। एनडीए सरकार इसी रोड मैप पर काम कर रही हैं। आज बिहार की पहचान यहां बनने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण, एयरपोर्ट, एक्सप्रेस-वे से मजबूत हो रही है। दरभंगा में उड़ान योजना के तहत एयरपोर्ट शुरू हुआ है, जिससे दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों तक सीधी उड़ान की सुविधा मिलने लगी है। बहुत जल्द यहां से रांची के लिए भी उड़ान शुरू हो जाएगी। साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए के लागत से तैयार होने वाले आमस दरभंगा एक्सप्रेस वे पर भी काम चल रहा है। आज 3,400 करोड़ रुपए की लागत से सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन के काम का शिलान्यास भी हुआ है। और घर में जैसे नल से जल आता है ना, वैसे ही नल से गैस आना शुरू हो जाएगा और वो सस्ता भी होगा। विकास का ये महायज्ञ बिहार में इंफ्रास्ट्रक्चर को एक नई ऊंचाई पर ले जा रहा है। इससे यहां पर बड़ी संख्या में रोजगार के भी अवसर भी पैदा हो रहे हैं।

प्रधानमंत्री कहते हैं: “दरभंगा के बारे में कहा जाता है- पग-पग पोखरी माच मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान।” अब प्रधानमंत्री को कैसे कहा जाय कि “जिस महामहोपाध्याय ने मिथिला का चित्रण ‘पग-पग पोखर, माँछ, मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान । विद्या, वैभव, शांति प्रतीक, सरस नगर मिथिला थींक’ इन शब्दों में किये थे, वे बहुत दूरदर्शी थे। उन्हें ज्ञात था कि आने वाले समय में मिथिला के लोग उनकी कविता को मिथिला के चौराहों पर ‘पाठ’ करके, मिथिला का गुणगान करके अपने-अपने हिस्से की मिथिला अपने नाम लिखाएँगे। मिथिला के किसी भी स्थान पर खड़े होकर मिथिला के बाबू, बबुआइन और बौआसिन लोग अगर “पग पग पोखर माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान । विद्या वैभव शांति प्रतीक, सरस नगर मिथिला थींक” कविता पाठ करते मिल जायँ, तो समझ लीजिये वे ‘सरेआम झूठ’ बोल रहे हैं। अपने-अपने हितों के रक्षार्थ वे स्थानीय लोगों को बरगला रहे हैं।

इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते हैं कि वे राजनीति में प्रवेश करने के लिए मिथिला की कविता पाठ करना प्रारम्भ कर दिए हों जो उनके अनेकानेक प्रयासों में, एक यह भी प्रयास हो। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जिस समय इस कविता की रचना हुई होगी, उस कवि के नजर में मिथिला और उसकी गरिमा अपने उत्कर्ष पर रहा होगा। मिथिला के सभी क्षेत्रों में, प्रत्येक कदम पर, प्रत्येक घरों के सामने-पीछे छोटा-बड़ा पोखर रहा होगा। तत्कालीन राजा-महाराजा-महाराजाधिराज स्थानीय लोगों के सम्मानार्थ, तत्कालीन पानी की समस्याओं के निदानार्थ अपने खर्च पर पोखर, तालाब बनबाये होंगे। यह सच भी है।

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लेकिन तकलीफ इस बात की है कि आज भी हम उसी कविता पाठ को दोहरा रहे हैं और कहते थक भी नहीं रहे है कि “पग पग पोखर माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान । विद्या वैभव शांति प्रतीक, सरस नगर मिथिला थींक” – खासकर तब जब बिहार के ग्रामीण इलाकों में शैक्षिक दर पुरुषों में 57 फीसदी और महिलाओं में 29 फीसदी है। बिहार का यह ग्रामीण इलाका, चाहे गंगा के उस पार का हो या गंगा के इस पार का। मिथिला भी इसी आकंड़े के अधीन है। पूरे प्रदेश में औसतन शैक्षिक दर 69 फीसदी है। इसमें पुरुषों के हिस्से 70 फीसदी और महिलाओं के हिस्से 53 फीसदी है। यानी दोनों के बीच आज भी 17 फीसदी का फासला है और यही 17 फीसदी का फासला, चाहे मिथिला में पंचायत का चुनाव हो, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, भागलपुर, मुंगेर, आदि शहरों में जिला परिषद् का चुनाव हो या बिहार के विधान सभा और विधान परिषद का चुनाव हो – निर्णायक होता है। ‘वे’ विजय ‘घोषित’ हो जाते हैं और ‘आप’ अपनी किस्मत को कोसते जीवन पर्यन्त ‘हार’ का सामना करते “पग-पग पोखर माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान । विद्या वैभव शांति प्रतीक, सरस नगर मिथिला थींक” कविता पाठ सुनते रहते हैं।

सबसे महत्वपूर्ब बात तो माँछ (मछली) से सम्बंधित है। माँछ की कथा-व्यथा बनारसी पान जैसी है। बनारस में पान की खेती नहीं होती, लेकिन हज़ारों-हज़ार पान की दुकानें हैं। प्रत्येक चार दुकान या चार मकान के बाद पान की दुकानें मिलेंगी। लगभग सभी किस्मों के पान यहाँ, जगन्नाथ जी, गया और कलकत्ता आदि स्थानों से आते हैं। पान का जितना बड़ा व्यावसायिक केन्द्र बनारस है, शायद उतना बड़ा केन्द्र विश्व का कोई नगर नहीं है। काशी में इसी व्यवसाय के नाम पर दो मुहल्ले बसे हुए हैं। केवल शहर के पान विक्रेता ही नहीं, बल्कि दूसरे शहरों के विक्रेता भी इस समय इस जगह पान खरीदने आते हैं।

बस इतना ही समझ लें कि आज मिथिला में माँछ का उपलब्धता जितना है वह मिथिला के दो फीसदी लोगों की आवश्यकता पूरी नहीं कर सकता। मिथिला के बाज़ारों में जो माँछ आप देख रहे हैं वह सन 1911 से पहले देश की राजधानी जिस प्रदेश में थी, वहां से और आंध्र प्रदेश से आती है। मिथिला में महज ‘ठप्पा’ लगता है। अब सोचिये खाते हैं बंगाल की – आंध्र की मछली और आज भी कविता पाठ किये हैं “पग-पग पोखर माँछ ,,,,” जब इस कविता की रचना की गयी थी माछ, पान और मखान मिथिला की शान, पहचान अवश्य थी। लेकिन समय के साथ मिथिला अपनी इस पहचान को न सिर्फ खो दिया है, बल्कि इन सभी चीजों पर अब दूसरे प्रदेशों द्वारा कब्जा भी हो गया है। इस दृष्टि से मिथिला की पहचान खतरे में है और लोग बाग़ है कि इस खतरे में भी खतरा उठाना चाहते हैं ‘मिथिला को अलग राज्य का दर्जा दो” – गजब है।

चच्चा अबकी बार 

पूरे मिथिला में स्थित पोखरों की संख्या को अगर तनिक बाद में अध्ययन करें तो सिर्फ दरभंगा के महाराजा के साम्राज्य में तक़रीबन 9113 पोखर और तालाब थे। इसमें दरभंगा शहर में ही 350 के आस-पास थे। आज अगर अवकाश है (वैसे मिथिला के लोग वेवजह व्यस्त होते हैं। मोबाईल पर घंटी आज बजायेंगे तो तीसरे दिन हेल्लो ट्यून सुनाई देदा) तो शहर में धूम लें और पोखरों, तालाबों की संख्या, उसकी स्थिति, उसमें दौड़ती मछलियों से, खिलते माखन से, महारों पर लगे पानों की खेती की स्थिति से अवगत हो लें। यकीन मानिए ‘भोकार’ नहीं, ‘चीत्कार’ मारकर रोने लगेंगे, अगर आखों में पानी होगा तो।

वास्तविकता यह है कि मिथिला की पहचान पर, माँछ पर, पान पर, मखान पर ग्रहण लग गया है और ‘अवसरवादी’ लोगों का हाल यह है कि दिन-रात-सुबह-शाम अपने-अपने हितों के लिए ‘पग-पग पोखर, पान , मखान ..” कविता पाठ करते थक नहीं रहे हैं। इन कविता वाचकों को शायद यह मालूम भी नहीं होगा कि पान की खेती करने के लिए दो-रस मिट्टी की जरूरत होती है। न ज्यादा पानी और न ज्यादा धूप की जरूरत होती। पानी इतना हमेशा चाहिए, ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे। यहां तो लोगों की आखों में नमी नहीं है, बेचारी मिट्टी क्या करे। यही कारण है कि कलकत्तिया पान दरभंगिया बनाकर मिथिला के बाज़ार पर अधिपत्य जमा लिया है, कब्ज़ा कर लिया है यानी ‘सुतल छी आ वियाह होईत अछि’ वाली कहावत सिद्ध हो रही है और कविता वाचक पाठ करते नहीं थक रहे हैं “पग पग पोखर माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान । विद्या वैभव शांति प्रतीक, सरस नगर मिथिला थींक” – पूरी मिथिला की सांख्यिकी आप निकालें, यहाँ दरभंगा जिले में रोज तकरीबन 8 टन मछली की खपत है, लेकिन दरभंगा ज़िले से मात्र 500 किलो तक भी मछली बाजार में नहीं पहुंच पाती है।

खैर, प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुष्मान भारत योजना से अब तक देश में 4 करोड़ से अधिक गरीब मरीजों का इलाज हो चुका है। अगर आयुष्मान भारत योजना ना होती तो इनमें से ज्यादातर लोग अस्पताल में भर्ती ही नहीं हो पाते। मुझे इस बात का संतोष है कि इनके जीवन के बहुत बड़ी चिंता एनडीए सरकार की योजना से दूर हुई। और इन गरीबों का इलाज सरकारी अस्पतालों के साथ ही प्राइवेट अस्पतालों में भी हुआ है। आयुष्मान योजना से करोड़ों परिवारों को करीब सवा लाख करोड़ रुपए की बचत हुई है, ये सवा लाख करोड़ रूपया अगर सरकार ने देने की घोषणा की होती तो महीने भर हेडलाइन पर चर्चा चली रहती कि एक योजना से देश के नागरिकों के जेब में सवा लाख करोड़ रूपए बचे हैं। चुनाव के समय मैंने आपको गारंटी दी थी कि 70 साल के ऊपर के जो बुजुर्ग हैं उन सबको भी आयुष्मान योजना के दायरे में लाया जाएगा। मैंने अपनी ये गारंटी पूरी कर दी है। बिहार में भी 70 साल से ऊपर के जितने भी बुजुर्ग हैं, परिवार की कमाई कुछ भी हो, उनके लिए मुफ्त इलाज की सुविधा शुरू हो गई है। बहुत जल्द सभी बुजुर्गों के पास आयुष्मान वय वंदना कार्ड होगा। आयुष्मान के साथ-साथ जन औषधि केंद्रों पर बहुत ही कम कीमत में दवाइयां दी जा रही हैं।

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