आतिशी मार्लेना सिंह के नाम पर श्रीमती सुनीता केजरीवाल ने ही ‘ठप्पा’ लगायी, इतिहास में पहली बार ‘एक महिला दूसरी महिला के लिए रचनाकार बनी’

आतिशी मार्लेना सिंह - मुख्यमंत्री

आईटीओ चौराहा (विकास मार्ग), नई दिल्ली :  आप माने अथवा नहीं। आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी और भारतीय राजस्व सेवा की पूर्व अधिकारी श्रीमती सुनीता केजरीवाल के ‘ठप्पा’ के बाद ‘मार्क्स’ और ‘लेनिन’ के सिद्धांतों का अपने नाम में अनुसरण करने वाली आतिशी मार्लेना सिंह को दिल्ली प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में ‘उल्लास’ का माहौल बना है। आंतरिक सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री के नाम पर दो नामों पर टिक-टॉक चल रहा था। लेकिन श्रीमती केजरीवाल बार-बार मोहतरमा आतिशी के नाम पर ठप्पा लगा रही थी। 

मोहतरमा का कहना था कि ‘वर्तमान काल में जितने भी सम्मानित पुरुष नेता हैं , जो इस पद के दावेदार हो सकते हैं, के विरुद्ध आपराधिक मुकदमें हैं या फिर राजनीती में, वह भी ऐसी स्थिति में, किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। मोहतरमा तो यहाँ तक सलाह दी कि “मैं चारा घोटाला कांड के अभियुक्त जैसी मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि मेरा पति भारत के न्यायालय से पहले निर्दोष होकर दिल्ली के मतदाताओं के सामने आये, चुनाव लड़े और फिर प्रदेश के राजनीति का कमान संभाले।” 

सूत्रों के अनुसार दिल्ली के मुख्यमंत्री के नाम का चुनाव करते समय जब चारा घोटाला के मुख्य अभियुक्त और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के साथ उनकी पत्नी श्रीमती राबड़ी देवी का नाम आया, दिल्ली सल्तनत की पति-पत्नी जोड़ी मुस्कुराने लगे। श्रीमती राबड़ी देवी 25 जुलाई 1997 को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी जब लालू यादव को कारावास जाना पड़ा था। प्रदेश में राजनीतिक उठापटक के बाद भी श्रीमती राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री के रूप में तीन बार सेवा की। इतना ही नहीं, पुरुष प्रधान राज्य में प्रदेश की एकमात्र महिला रही जो प्रदेश का नेतृत्व की थी। आतिशी मार्लेना सिंह भी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री होंगी, भले उनका कार्यकाल महज कुछ महीने का हो। वैसे भाग्य को कोई नहीं बदल सकता हैं। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि दिल्ली के मतदाता कहीं इन महीनों में ही ‘आतिशी का आशिक’ न हो जाय !! 

इधर, जब मोहतरमा आतिशी के नाम पर घर में चर्चाएं हो रही थी, श्रीमती सुनीता केजरीवाल, एक महिला होने के बाद भी, अपने पति के उत्तराधिकारी के रूप में एक महिला को ही चुनी। मुस्कुराते हुए सूत्रों का कहना है कि भारत के राजनीतिक इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी जब एक दफ्तर से बाहर निकलते मुख्यमंत्री को उनकी ही पत्नी एक अन्य महिला को कुर्सी पर बैठाने के लिए सलाह दी हो। 

घर के सूत्रों के अनुसार भारत का सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देते समय इस बात का हिदायत दिया था कि वे प्रदेश के आधिकारिक क्रिया-कलापों में किसी भी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। केजरीवाल की पत्नी श्रीमती सुनीता केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा की 1993 समूह की अधिकारी रही हैं। लगभग दो दशक से अधिक समय तक आयकर विभाग में कार्य करने के बाद, खासकर जब अरविंद केजरीवाल सक्रिय राजनीति में आ गए, 2016 में स्वेच्छा से अवकाश ली थी। 

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उत्तर प्रदेश की मुख़्यमंत्री सुचेता कृपलानी (2 अक्टूबर, 1963 से 13 मार्च, 1967), ओड़िसा की श्रीमती नंदनी सत्पथी (14 जून 1972 से 16 दिसंबर, 1976), गोवा की श्रीमती शशिकला काकोदकर (12 अगस्त 1973 से २७ अप्रैल 1979), असं की श्रीमती अनवरा तैमूर (6 दिसंबर, 1980 से 30 जून 1981), तमिलनाडु की श्रीमती वीएन जानकी (7 जनबरी, 1988 से ३० जनवरी  1988) और जे जयललिता (24 जून 1991 – 5 दिसंबर, 2016 (बीच में कुछ-कुछ दिन कार्यालय से बाहर), उत्तर प्रदेश की मायावती (13 जून 1995 से 15 मार्च 2012 तक – बीच में कुछ माह कार्यालय से बाहर), पंजाब की श्रीमतीराजिंदर कौर भट्टल (21 नवम्बर 1996 से 12 फरबरी 1997), बिहार की श्रीमती राबड़ी देवी (25 जुलाई 1997 से 6 मार्च 2005 कुछ माह कार्यालय से बाहर), दिल्ली की श्रीमती सुषमा स्वराज (12 अक्टूबर 1998 से 3 दिसंबर 1998) और श्रीमती शिला दीक्षित (3 दिसंबर 1998 से 28 दिसंबर 2013), मध्य प्रदेश की सुश्री उमा भारती (8 दिसंबर 2003 से 23 अगस्त 2004), राजस्थान की श्रीमती वसुंधरा राजे सिंधिया (8 दिसंबर 2003 से 13 दिसंबर 2008 तक और फिर 13 दिसंबर 2013 से 17 दिसंबर 2018), पश्चिम बंगाल की सुश्री ममता बनर्जी (20 मई 2011 से लगातार), गुजरात की श्रीमती आनंदीबेन पटेल (22 मई 2014 से 7 अगस्त 2016) और जम्मू और कश्मीर की मेहबूबा मुफ़्ती (4 अप्रैल 2016 से 19 जून 2018) – अब तक बनी मुख्यमंत्रियों में ऐसा कोई भी दृष्टान्त नहीं है जिसमें किसी भी महिला का नाम या समर्थन कोई महिला की हो, वह भी मुख्यमंत्री की पत्नी। 

वैसे शैक्षिक दृष्टि से देखा जाय तो श्री ब्रह्म प्रकाश से लेकर श्री गुरुमुख निहाल सिंह, मदन लाल खुराना, साहेब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित, यहाँ तक की अरविन्द केजरीवाल सहित, दिल्ली में अब तक जितने भी मुख्यमंत्री बने हैं, उनमें आतिशी मार्लेना सिंह  शैक्षिक योग्यता सबसे अधिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षिक योग्यता के मामले में जितनी भी चर्चार्यें हुयी, खोजबीन हुआ, आतिशी मार्लेना सिंह की शैक्षिक योग्यता खुली किताब है। प्रोफेसर विजय सिंह तोमर और त्रिप्ता वाही के घर में जन्म ली आतिशी सिंह के नाम के बीच मार्लेना शब्द का सृजन इसलिए हुआ कि ज्योतिषी सहित घर के बड़े-बुजुर्गों ने उसकी भाग्य और जीवन रेखा में एक क्रांति की रेखा भी देखे। 

आतिशी मार्लेना सिंह

कहते हैं ‘मार्लेना’ शब्द का सृजन ‘मार्क्स और लेनिन का समग्र रूप है। घर के बड़े-बुजुर्ग अथवा तत्कालीन ज्योतिषी का गणित 8 जून 1981 को जन्म ली मार्लिना 17 सितम्बर 2024 को सच हो गया। यह अलग बात है कि आगामी वर्ष दिल्ली विधान सभा का चुनाव होने वाला है और आधिकारिक रूप से वह पांच महीने के लिए ही मुख्यमंत्री कार्यालय में विराजमान होंगी। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि दिल्ली की राजनीतिक इतिहास में, खासकर मुख्यमंत्री के रूप में जब लोगों की गिनती होगी, मार्लिना का नाम आठवें मुख्यमंत्री के रूप में गिना ही जायेगा। 13 सितंबर को शराब नीति मुक़दमे में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद केजरीवाल ने 15 सितंबर को मुख्यमंत्री पद छोड़ने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था, ‘अब जनता तय करे कि मैं ईमानदार हूं या बेईमान। जनता ने दाग धोया और विधानसभा चुनाव जीता तो फिर से कुर्सी पर बैठूंगा।’

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मार्लिना की विद्यालयी शिक्षा पूसा रोड स्थित स्प्रिंगडेल्स स्कूल से हुई। बाद में सेंट स्टीफेंस से स्नातक करने के बाद वे उच्चतर शिक्षा के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय चली गयी। सन 2005 में शेवनिंग्स छात्रवृति पर इतिहास में स्नातकोत्तर की और फिर 2005 में रोड्स छात्रवृति पर मैग्डलीन कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की। जनवरी 2013 में, वह ‘आप’ के लिए नीति निर्माण में शामिल हो गईं, जिसकी जड़ें उस आंदोलन में हैं।

आतिशी ने कहा: ‘मैं अपने गुरु अरविंद केजरीवाल जी का धन्यवाद करती हूं, जिन्होंने मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी। मुझे बधाई मत दीजिएगा, माला मत पहनाइएगा, मेरे लिए, दिल्ली वालों के लिए दुख की घड़ी है कि चहेते मुख्यमंत्री इस्तीफा देंगे। अगर आज मैं किसी और पार्टी में होती, तो मुझे शायद चुनाव लड़ने के लिए भी टिकट नहीं मिलता।  लेकिन, मुझे अरविंद केजरीवाल ने एक फर्स्ट टाइम पॉलिटिशियन होने के बावजूद भी मुख्यमंत्री की कमान सौंपने का फैसला किया है।  दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल की अहमियत को समझती है। दिल्ली की जनता को भली भांति पता है कि अगर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे, तो यहां लोगों को मिलने वाली सभी सुविधाएं बंद हो जाएंगी। उन्हें बस में फ्री सेवा, फ्री स्वास्थ्य सुविधा, फ्री शिक्षा नहीं मिल पाएगी।  भाजपा की 22 राज्यों में सरकार है, लेकिन अभी तक वो किसी भी राज्य में इस तरह की सुविधा नहीं दे पा रही है। 

दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ राजीव रंजन नाग

दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ राजीव रंजन नाग कहते हैं कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की धोषणा के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर कयासों का दौर पिछले कुछ दिनों से चल रही थी।वस्तुतः केजरीवाल अपने उत्तराधिकारी के तौर पर एक ऐसे नाम पर विचार कर रहे हैं जो न केवल विधायकों को स्वीकार्य हों बल्कि पार्टी लिए, उनके लिए चुनौती न बने। जाहिर है आप नेतृत्व एक ऐसे प्रमुख नेता को चुनना चाहेगा जो प्रमुख मुद्दों पर पार्टी की स्थिति को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सके और पार्टी के नेताओं के बीच व्यापक स्वीकार्य हो। शीर्ष पद के लिए आप जिन कुछ नमों पर विचार कर रही थी उनमें आतिशी, सुनीता केजरीवाल, गोपाल राय और कुलदीप कुमार शामिल थे। 

नाग कहते हैं: “आतिशी मार्लेना सिंह सभी संभावित दावेदारों में एक नाम सबसे आगे थी । वह कालकाजी की विधायक और दिल्ली सरकार में मंत्री भी है। अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद से ही आतिशी अपने सरकारी दायित्व के साथ-साथ पार्टी के कामकाज में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ली। सरकार के साथ पार्टी के कार्यक्रमों की वह प्रमुख चेहरा बनी । “आप” में उनके कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो दिल्ली सरकार में पीडब्लूडी, शिक्षा, उच्च शिक्षा, योजना, बिजली और जल संसाधन जैसे 13 विभागों की मंत्री रही हैं।”

इतना ही नहीं,  2013 के चुनाम में आम आदमी पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र तैयार करने में भी बड़ी भूमिका निभाई थी। अरविंद केजरीवाल का आतिशी पर विश्वास इस बात से भी स्पष्ट है कि केजरीवाल ने तिहाड़ जेल से संदेश भेजकर कहा था कि 15 अगस्त को उनकी गैरमौजूदगी में आतिशी ही झंडा फहराएंगी। यह अलग बात है उनकी सलाह को नकारते हुए उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत को झंडा फहराने के लिए अधिकृत किया। केजरीवाल की ओर से झंडा फहराने के लिए आतिशी को अधिकृत करना उनकी पार्टी में हैसियत की तरफ इशारा हैं।

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सवाल यह है कि छह फुट से अधिक ऊंचाई रखने वाले गोपाल राय के प्रति केजरीवाल का विश्वास क्यों नहीं मजबूत बन पाया? अंदर के सूत्रों का मानना है कि ‘केजरीवाल का अपने विधायकों के प्रति विश्वास की कोई कमी नहीं थी, और ना ही है, लेकिन एक पुरुष हमेशा दूसरे पुरुष से एक हाथ की दूरी अवश्य रखना चाहता है।  राजनीति में यह दूरी मानसिक रूप से अधिक होती है सत्ता के कारण।’ गोपालजी राय का विगत दिनों जब पैर में तल्किफ हुई थी, प्लास्टर लगा था, केजरीवाल कारावास से भी हालचाल पूछते थे। लेकिन अगर मंत्रिमंडल में मंत्रालय को देखें तो गोपाल राय के पास वन-पर्यावरण के साथ-साथ सामान्य प्रशासन विभाग हैं। वे जंतर-मंतर पर अण्णा हजारे के साथ आमरण अनशन के साथ केजरीवाल से जुड़े।

यह भी सच है कि वे पूर्वांचल के नेताओं में आज की तारीख में प्रमुख चेहरा हैं, लेकिन ‘वन और पर्यावरण’ मंत्रालय तथा  मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारों में तो यमुना के इस पार और यमुना के उस पार जैसा ही फासला है। अगर राजनीतिक दृष्टि से देखें तो उनकी स्थिति भाजपा के राजनाथ सिंह जैसा ही है। मंत्रालय देखें, आनंद से रहें -प्रधानमंत्री  की कुर्सी की ओर झांके भी नहीं।सूत्रों के अनुसार संजय सिंह के ऊपर यह जबाड़ेही दिया जा सकता था। लेकिन वे राज्यसभा में हैं और उनके ऊपर भी मुकदमा रहा है।  उससे भी महत्वपूर्ण ‘वे पुरुष’ हैं।  

श्री नाग आगे कहते हैं कि एक बार इस बात पर भी चर्चा हुई की किसी दलित को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया जाय। कोंडली से विधायक कुलदीप कुमार इसके सबसे मजबूत अभ्यर्थी थे। दलित को मुख्यमंत्री बनाने से उसके वोट बैंक में इजाफा तो होता ही, इसका असर भी दूरगामी होगा। अभी हरियाणा विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और नवंबर में महाराष्ट्र का चुनाव प्रस्तावित हैं। इन दोनों राज्यों में दलित मतदाता की संख्या अधिक है। इसके अलावे सुनीता केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने में कोई कानूनी अड़चन नहीं आती । सुनीता केजरीवाल अभी विधायक नहीं हैं। लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने की राह में यह बाधा नहीं आती । दरअसल मुख्यमंत्री बनने के बाद छह महीने में सदन की सदस्यता लेनी होती है। दिल्ली विधानसभा का चुनाव अगले साल फरवरी तक होना है, ऐसे में बिना विधायक बने भी सुनीता सीएम की कुर्सी पर चुनाव तक बैठ सकती हैं। परन्तु ऐसा नहीं हुआ। 

बहरहाल, दिल्ली सरकार ने 26 और 27 सितंबर को 2 दिन का विधानसभा सत्र बुलाया है। गोपाल राय ने आतिशी के नाम का ऐलान करते हुए कहा – हमने विषम परिस्थितियों में यह फैसला लिया है। केजरीवाल की ईमानदारी पर कीचड़ उछाला गया। जनता जब तक उन्हें नहीं चुनती, वे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे।

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