आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू 👁 कल के श्री वाजपेयी जी के चहेते आज पटना में ‘फीता काटने में विशेषज्ञता प्राप्त कर रहे हैं 😢 हाय रे राजनीति

कल के श्री वाजपेयी जी के चहेते आज पटना में 'फीता काटने में विशेषज्ञता प्राप्त कर रहे हैं 😢 हाय रे राजनीति

सर्कुलर रोड (पटना) और संसद मार्ग (नई दिल्ली) : भारतीय जनता पार्टी के एक नेता के जन्म के तीन वर्ष पहले भारतीय सिनेमा घरों में यश चोपड़ा के निर्देशन में एक सिनेमा आया था । नाम था ‘वक्त’ । इस सिनेमा की कहानी थी अख्तर मिर्जा साहब की तथा संवाद था अख्तर उल-इमान साहब की । इस सिनेमा में सुनील दत्त, बलराज साहनी, राज कुमार, शशि कपूर, साधना, शर्मीला टैगोर, रहमान मुख्य कलाकार थे। यह सिनेमा भारत के छवि गृहों में 1965 में चढ़ा था। यह सिनेमा अपने आप में अकेला था उस ज़माने में। स्वाभाविक है 13 वीं फिल्मफेयर पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (राज कुमार), सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (यश चोपड़ा), सर्वश्रेष्ठ कहानी (अख्तर मिर्जा), सर्वश्रेष्ठ संवाद (अख्तर उल-इमान), सर्वश्रेष्ठ छायाकार (धर्म चोपड़ा) पुरस्कारों से अलंकृत हुए।  सर्वश्रेष्ठ फिल्म में बी.आर.चोपड़ा और सर्वश्रेस्ठ अभिनेत्री में साधना का नाम नामित हुआ था।

इस सिनेमा में अनेकों कर्णप्रिय गीत थे। उन्हीं गीतों में गीतकार साहिर लुधियानवी लिखित एक गीत था जिसमें संगीत दिया था रवि साहब और गायिका थी आशा भोसले जी। यह गीत पहाड़ी राग पर आधारित था। गीत के बोल थे : 

✍ आगे भी जाने न तू,
पीछे भी जाने न तू 
जो भी है,
बस यही एक पल है ….. 
अन्जाने सायों का
राहों में डेरा है
अन्देखी बाहों ने
हम सबको घेरा है
ये पल उजाला है
बाक़ी अंधेरा है
ये पल गँवाना न
ये पल ही तेरा है
जीनेवाले सोच ले
यही वक़्त है
कर ले पूरी आरज़ू
आगे भी …✍

इस गाना को जब भी सुनता हूँ तो सोचता हूँ कि क्या लिखा है साहिर लुधियानवी ने, क्या संगीत दिया है रवि ने, और क्या क्या आवाज दी हैं आशा भोसले ने – जीवन की वास्तविकता को शब्दों और बोल के सहारे परोस दिया। जीवन के उतार – चढाव को शब्दों और आवाज के सहारे लयबद्ध कर भूत, वर्तमान भविष्य सबको एकाकार कर दिया है। इस सिनेमा में जितने भी कलाकार काम किए थे उनकी सूची बहुत लंबी थी। शायद इसी सिनेमा के बाद बहु-सितारा सिनेमा के लिए प्रेरणा मिली होगी । #वक्त सिनेमा हिंदी भाषा के बाद में तेलगु भाषा में भी बना भाले अब्बायिलु (1969) और फिर मलयालम में कोकिलक्कम  (1981) के रूप में बना। 

कल के श्री वाजपेयी जी के चहेते आज पटना में ‘फीता काटने में विशेषज्ञता प्राप्त कर रहे हैं 😢 हाय रे राजनीति

वक्त सिनेमा और इस गीत का जिक्र यहाँ इसलिए कर रहा हूँ कि कल पटना के एक वरिष्ठ नागरिक, संवेदनशील नागरिक, शिक्षक, प्राध्यापक, पत्रकार रहे सम्मानित महानुभाव से बात कर रहा था । उनसे ज्ञान अर्जित करने की कोशिश कर रहा था कि आगामी वर्ष बिहार में विधानसभा का चुनाव होने वाला है। सत्तारूढ़ जनतादल यूनाइटेड के नीतीश कुमार भले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर कीर्तिमान स्थापित कर लिए हों  सचिन तेंदुलकर जैसा, लेकिन राजनीतिक दृष्टिकोण से उनका इस कदर कुर्सी से चिपक जाना, स्थिर हो जाना प्रगतिशील समय के लिए शुभ संकेत नहीं है।

उनकी स्थिति सन 1975 में जिस कदर पटना बाढ़ में डूबी थी और बाढ़ के बाद पूरा शहर महकने लगा था, दुर्गन्धित हो गया था ‘पानी के जमाव’ के कारण; अब नीतीश कुमार की सत्ता भी महकने लगी है। लोगों को बलदाव चाहिए यह स्पष्ट दीखता है। सम्मानित महानुभाव मेरी बातों को सहर्ष स्वीकार कर रहे थे। काफी देर सुनने के बाद चुप्पी तोड़े और महाभारत में जिस कदर कृष्ण अर्जुन संवाद हुआ था, वे भी कहते हैं – दो नेता दीखते हैं : एक: नित्यानंद राय और दूसरे नन्द किशोर यादव जो विकल्प हो सकते हैं। लेकिन दोनों ‘लोथ’ हैं। 

ये भी पढ़े   "कैसे कहूँ मैं मन की बात": 'नरेंद्र' बुढ़ा दिखने लगे, कल सरकार बन रही है कल गिरने के लिए

एक को दिल्ली के संसद मार्ग से गंगा पार उजियारपुर का क्षेत्र के अलावे कुछ दीखता ही नहीं। हवाई जहाज से उतरकर नाक की सीध में सीधा उजियारपुर जाते हैं और फिर उजियारपुर से दिल्ली के लिए निकलकर हवाई जहाज से फुर्र्र हो जाते हैं। प्रदेश के अन्य लोगों, मतदाताओं चाहे उनसे भी युवा क्यों न हो, प्रदेश की भीषण समस्या ही क्यों न हो, कोई मतलब नहीं रखते। अच्छे व्यक्ति हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। जबकि दूसरे, श्री नन्द किशोर यादव, वे बाध – सिंह जैसा दहाड़ सकते हैं, कूबत भी रखते हैं, लेकिन रक्तचाप नहीं बढ़ाना चाहते। शायद सोचते हैं कि इतना दिन कट गया तो शेष दिन और काट ही लेंगे – जब मोदी है तो मुमकिन है – नारा को मन ही मन जपते। 

अगर युवा की दृष्टि से देखें तो चिराग पासवान भले रामविलास पासवान के पुत्र हैं, लेकिन अपने कुछ ही दिन की राजनीति में बहुत स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। अब यह युवक अपनी राजनीतिक शील को इतना दिन बचाकर रख सकते हैं, कहना मुश्किल है क्योंकि सत्ता में कब, कहाँ, क्या हो जायेगा, कहना मुश्किल है। ऊपर चढ़ने में राजनीतिक चरित्र सबसे पहले दाब पर लगता है, बड़े-बुजुर्ग तो यही कहते आये हैं। मैं बीच में बात काट दिया। वे तो केंद्र में मंत्री बन गए हैं इतनी अल्प आयु में। मेरी बात सुनते ही वे भड़क गए और कहते हैं ‘बड़े-बड़े महात्मनों को पहाड़ से नीचे लुढ़कते देखा हूँ विगत पचास वर्षों की पत्रकारिता जीवन में। राजनीति की लत बहुत ख़राब होती ही शिष्य। एक बार लग गयी तो चढ़ने-लुढ़कने का महत्व समाप्त हो जाता है। दृष्टान्त देखना है तो भाजपा के नेता सैयद शाहनवाज हुसैन को देखो। 

आगे भी जाने न तू, पीछे भी जाने न तू – जो भी है, बस यही एक पल है …..

कौन बनेगा करोड़पति के 12 वें श्रृंखला में इस शताब्दी के महानायक ने एक प्रश्न पूछा था कि “भारत का सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनने का रिकार्ड किसने बनाया था ?” सामने “हॉट-सीट” पर बैठे सज्जन “लाईफ-लाईन” का इस्तेमाल कर सैयद शाहनवाज हुसैन का नाम लिए। उत्तर “सही” था और सम्बंधित प्रश्न का अपेक्षित मूल्य भी जीते। चुकि उसी सप्ताह कौन बनेगा करोड़पति श्रृंखला समाप्त हो रहा था, अतः आगामी किसी श्रृंखला में एक और प्रश्न पूछे जाने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, और वह प्रश्न हो सकता है: “भारत का वह कौन सांसद थे जो तीन बार लोक सभा चुनाव जीतने के बाद, केंद्रीय मंत्रिमंडल में सबसे युवा कैबिनेट मंत्री का रिकार्ड बनाने के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का आँख का तारा होने के बावजूद राजनीतिक लाईफ-लाईन का इस्तेमाल कर एक राज्य का विधान परिषद् का सदस्य बना टाकिन राजनीति में जीवित रहें। इसे चारित्रिक प्रोन्नति कहेंगे अथवा चारित्रिक अवनति ? 

कभी पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय राजनीति के वर्तमान स्वरुप में “एकलौता प्रखर मुस्लिम चेहरा” के रूप में “सम्मानार्थ टोपी” पहनाने वाले, भारतीय जनता पार्टी के प्रखर प्रवक्ता के रूप में जाने जाने वाले और केंद्रीय मंत्रिमंडल के नेता के साथ ऐसा क्या हुआ जो बिहार की जनता “प्रत्यक्ष रूप से उन्हें मतदान कर संसद में भेजने से अपना मुँह मोड़ ली? ऐसा क्यों हुआ कि सैयद शाहनवाज हुसैन को राज्य सभा के स्थान पर बिहार का विधानसभा का रास्ता दिखाया गया? क्या सैयद शाहनवाज हुसैन को केंद्रीय नेतागण बिहार का भावी मुख्यमंत्री के रूप में “शिक्षण-प्रशिक्षण” देने के लिए विधान परिषद का मार्ग अपनाये हैं? क्या वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भविष्य में पदच्युत करने की कोई “मुस्लिम-नीति” का प्रयोग करने की बात सोच रही है दिल्ली का दीन दयाल उपाध्याय मार्ग? या फिर भाजपा का केंद्रीय पार्टी इस बात भय वश सैयद शाहनवाज हुसैन को देश नहीं तो प्रदेश की राजनीति में प्रवेश देकर बिहार के मुस्लिम मतदाताओं को सुरक्षित रखना चाहती हैं ? 

ये भी पढ़े   जब पटना गांधी मैदान की मिट्टी में अपने पैरों का निशान देखा, मैदान की मिट्टी और मैं दोनों फुफककर रोने लगे

अनेकानेक प्रश्न है मन में उठ रहे हैं जब से हुसैन साहब बिहार विधान परिषद की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था । वैसे दूसरे पद के लिए मुकेश सहनी ने भी अपना नामांकन पत्र दाखिल किया । नामांकन पत्र दाखिल करने के समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो उपस्थित थे ही, उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री रेणु देवी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल सहित बिहार के अन्य मंत्री, सांसद, विधायक, विधान पार्षद एवं अन्य जनप्रतिनिधि उपस्थित थे। 

कुछ तो बात है – जो इस बात का दस्तावेज है कि “सब कुछ ठीक नहीं है या तो बिहार की राजनीति में।” सैयद शाहनवाज हुसैन का राजनीतिक जीवन, या यूँ कहें की राजनीतिक तालिका अकस्मात् नीचे की ओर क्यों उन्मुख हो गयी है। हर व्यक्ति दिल्ली के राजपथ पर नाचना चाहता है – विशेषकर बिहार के नेतागण तो इसमें महारत प्राप्त किये हैं – फिर ऐसा क्या हुआ की हुसैन साहब पटना के सर्पेंटाईन रोड पर नाचने को तैयार हो गए ? कुछ तो है। वैसे आजकल हुसैन साहब शहर में, प्रदेश में ‘फीता काटने में महारत हासिल कर रहे हैं, चाहे रसोई खाना का हो या गुसलखाना का, दूकान का हो या मकान का। 

एक समय था जब हुसैन साहेब दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के बस में चढ़कर भारत के संसद में पहुंचे थे तो दिल्ली का समाचार पत्र , टीवी और संचार के अन्य माध्यमों ने इसे “हुसैन साहेब का ऐतिहासिक कारनामा” कहा। साफ़-सुथरे, सुन्दर तो हैं ही देखने में, यह उन्हें भारतीय जनता पार्टी का एक “उम्र से बड़ा मुस्लिम चेहरा” तक बना दिया। जबकि भाजपा में मुस्लिम नेताओं की किल्लत नहीं थी, और ना ही है। इन्होने देश में सबसे पहले युवा कैबिनेट मन्त्री बनने का रिकॉर्ड भी बनाया था। आज पटना से दिल्ली तक कोई अखबार, कोई टीवी, कोई सोसल मीडिया पर इस बात का उल्लेख नहीं मिल रहा है की आखिर भारत का ऐसा युवा नेता दिल्ली का राजपथ छोड़ पटना क्यों आया? हाँ, दिल्ली में डीटीसी बस पर चढ़कर संसद पहुँचते थे, यहाँ चार-पहिया वाला बहुमूल्य मोटर है। 

​दिल्ली के संसद मार्ग से पटना के सर्कुलर रोड पर आपका स्वागत है

बहरहाल, पटना के रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह मानने को तैयार नहीं हैं कि कुछ तो पक रहा है बिहार की राजनीति में, देश की राजनीति में। अलबत्ता “चेहरे पर बिना किसी मुस्कान के नीतीश कुमार कहते हैं कि राजग के चारों घटक दल मिलजुल कर काम कर रहे हैं। सभी दल एकजुट होकर सरकार का सहयोग कर रहे हैं। यह भी उल्लिखित है कि 1997 में एक कार्यक्रम के दौरान शाहनवाज हुसैन का भाषण सुनकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि ये लड़का बहुत अच्छा बोलता है, अगर पार्लियामेंट में भेजेंगे तो बड़े-बड़े लोगों की छुट्टी करेगा। 1998 के लोकसभा चुनाव में जब शाहनवाज हुसैन से पूछा गया कि कहां से चुनाव लड़ोगे तो उन्होंने मजाक समझ कर कहा कि जो सबसे मुश्किल सीट हो हमें दे दीजिए, बाद में शाहनवाज को किशनगंज से आरजेडी उम्मीदवार तस्लीमुद्दीन के खिलाफ चुनाव लड़ने का मौका मिला तो हैरत में पड़ गए। शाहनवाज वो चुनाव तो हार गए, लेकिन पहले ही चुनाव में करीब ढ़ाई लाख वोट मिले।

ये भी पढ़े   आर्यावर्तइण्डियननेशन.कॉम की शुरुआत एक बहुत बड़ा कदम है

1999 में जब दोबारा चुनाव हुआ तो शाहनवाज सांसद बने और एनडीए के सरकार में राज्यमंत्री भी बने। उन्हें फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज, यूथ अफेयर, और स्पोटर्स जैसे विभाग उनके पास रहे। 2001 में उन्हें कोयला मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया। सितंबर 2001 में नागरिक उड्डयन पोर्टफोलियो के साथ एक कैबिनेट मंत्री के पद पर पदोन्नत किया गया। शाहनवाज भारत के सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री बने। 2003 से 2004 तक उन्होंने कैबिनेट मिनिस्टर के रूप में कपड़ा मंत्रालय संभाला। 2004 के आम चुनाव में हार के बाद शाहनवाज 2006 में उपचुनाव में भागलपुर सीट से जीतकर दोबारा लोकसभा पहुंचे। 2009 में भागलपुर से शाहनवाज को दोबारा जीत मिली और एक बार फिर वो लोकसभा पहुंचे, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में जब पूरे देश में मोदी की लहर थी, ऐसे वक्त पर शाहनवाज हुसैन को हार का सामना करना पड़ा और वो मात्र 4000 वोटों से चुनाव हार गए। 

साल 2024 के लोकसभा चुनावों में बिहार में बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। आज़ादी के बाद भले मुसलमानों के मतों को लेकर देश और प्रदेश में राजनीति होती रही हो, हकीकत यह है कि बिहार में लगभग 17. 7 फीसदी और अधिक मुसलमानों की ावादी होने के बाद अब्दुल गफूर को छोड़कर अब तक कोई मुस्लमान समुदाय से प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं हुआ। गफूर साहब 2 जुलाई, 1973 से 11 अप्रैल, १९७५ तक प्रदेश का मुख्यम्नत्री रहे। मार्च 1972 और 30 अप्रेल 1977 के बीच बिहार में तीन मुख्यमंत्री बने – केदार पांडे, अब्दुल गफूर और डॉ. जगन्नाथ मिश्रा। इसी कालखंड में प्रदेश दो लाटसाहब को भी देखा – दी.के.बरुआ और आर.दी. भंडारे। कहते हैं हुसैन का जन्म 12 दिसंबर 1968 को बिहार के सुपौल में सैयद नासिर हुसैन और नसीमा खातून के घर हुआ था  । उन्होंने बी.एस.एस.ई., सुपौल और आईटीआई, पूसा, दिल्ली से इंजीनियरिंग (इलेक्ट्रॉनिक्स) में डिप्लोमा किया है।

जो भी हो वक्त सिनेमा का साहिर लुधियानवी लिखित और रवि द्वारा संगीतवद्ध वक्त सिनेमा का यह गीत बहुत सटीक बैठता है पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के चहेते पर
आगे भी जाने न तू,
पीछे भी जाने न तू 
जो भी है,
बस यही एक पल है …..
 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here