निर्वाचन आयोग कहता है cVigil से 4.24 लाख+ शिकायतें मिली, पत्रकार राव कहते हैं जब नेहरू के संज्ञान में चुनावी फर्जीवाड़ा अमरोहा में हुआ था !

नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2024 में, भारत निर्वाचन आयोग का cVIGIL ऐप लोगों के हाथों में चुनाव संहिता के उल्लंघन को चिह्नित करने के लिए एक अत्यधिक प्रभावी उपकरण के रूप में उभरा है। आम चुनाव 2024 की घोषणा के बाद से, 15 मई, 2024 तक इस ऐप के माध्यम से 4.24 लाख से अधिक शिकायतें प्राप्त हुई हैं। इनमें से 4,23,908 शिकायतों का निपटारा किया जा चुका है और शेष 409 मामले प्रक्रियाधीन हैं। लगभग 89% शिकायतों का समाधान 100 मिनट की समयसीमा के भीतर कर दिया गया, जैसा कि भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने दृढ़ता से वादा किया था।

नागरिकों ने निर्धारित समय या शोर स्तर से परे लाउडस्पीकरों के उपयोग, प्रतिबंध अवधि के दौरान प्रचार, बिना अनुमति के बैनर या पोस्टर लगाने, अनुमति सीमा से परे वाहनों की तैनाती, संपत्ति विरूपण, आग्नेयास्त्रों / धमकी का प्रदर्शन और प्रलोभनों की जांच करने में चुनावी कदाचार की जांच के लिए इस ऐप का उपयोग किया है cVIGIL एक उपयोगकर्ता के अनुकूल और संचालित करने में आसान एप्लिकेशन है, जो सतर्क नागरिकों को जिला नियंत्रण कक्ष, रिटर्निंग अधिकारी और फ्लाइंग स्क्वाड टीमों से जोड़ता है। इस ऐप का उपयोग करके, नागरिक राजनीतिक कदाचार की घटनाओं पर तुरंत मिनटों के भीतर रिपोर्ट कर सकते हैं और उन्हें रिटर्निंग अधिकारी के कार्यालय में जाने की आवश्यकता नहीं है। जैसे ही शिकायत cVIGIL ऐप पर भेजी जाएगी, शिकायतकर्ता को एक यूनिक आईडी प्राप्त होगी जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने मोबाइल पर शिकायत को ट्रैक कर सकेगा।

एक साथ काम करने वाले कारकों की त्रिमूर्ति cVIGIL को सफल बनाती है। उपयोगकर्ता तत्काल ऑडियो, फोटो या वीडियो कैप्चर करते हैं, और शिकायतों पर समयबद्ध प्रतिक्रिया के लिए “100 मिनट” की उलटी गिनती सुनिश्चित की जाती है। जैसे ही उपयोगकर्ता उल्लंघन की रिपोर्ट करने के लिए cVIGIL में अपना कैमरा चालू करता है, ऐप स्वचालित रूप से एक जियो-टैगिंग सुविधा सक्षम कर देता है। इसका मतलब यह है कि फ्लाइंग स्क्वाड रिपोर्ट किए गए उल्लंघन का सटीक स्थान जान सकते हैं, और नागरिकों द्वारा ली गई तस्वीर को अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। नागरिक गुमनाम रूप से भी शिकायतें दर्ज करा सकते हैं। दुरुपयोग को रोकने के लिए, cVIGIL ऐप में सुरक्षा संबंधी कई उपाय शामिल हैं, जिनमें भौगोलिक प्रतिबंध, रिपोर्टिंग पर समय की कमी और डुप्लिकेट या तुच्छ शिकायतों को फिल्टर करने के लिए प्रणाली शामिल हैं। यह ऐप प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने और मतदाताओं और राजनीतिक दलों की सुविधा के लिए आयोग द्वारा बनाए गए ऐप में से एक है।

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बहरहाल, वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव कहते हैं कि “अत्यंत सचेत हो गया है सुप्रीम कोर्ट लोकसभा चुनाव के विषय में। कल (17 मई 2024) को प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने निर्वाचन आयोग की एक याचिका पर गौर करने के बाद, निर्देश दिया कि मत प्रतिशत में बढ़ोतरी कैसे हो गई ? याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि ईवीएम मशीन को साधा जा रहा है।

उनके अनुसार, खैर चुनाव निष्पक्ष हो हर भारतीय चाहेगा, लोकतंत्र की नैतिक शुचिता हेतु। किन्तु इस अवसर पर परंपरा पर भी नजर डालना चाहिए। उस वक्त (1963) में संसदीय लोकतंत्र कमसिन आयु (13 साल की) था। आदर्श पुरुष जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। हालांकि उन पर शक हो गया था क्योंकि उनकी काबीना में कानून मंत्री थे अशोक सेन कोलकता वाले। तब उनके श्वसुर न्यायमूर्ति सुधीर रंजन दास भारत के प्रधान न्यायाधीश थे। मुख्य निर्वाचन अधिकारी थे श्री अशोक सेन के भाई श्री सुकुमार सेन। वे देश के प्रथम चुनाव आयुक्त थे। अर्थात सारा कुछ परिवार में सीमित था। नेहरू ही इनके नियोक्ता थे। निर्देशक भी।

राव का कहना है कि उसी दौर में उत्तर प्रदेश के कन्नौज, अमरोहा और जौनपुर में लोकसभा के उपचुनाव हो रहे थे। विपक्ष के बड़े नामी गिरामी प्रत्याशी थे। जौनपुर से भारतीय जनसंघ के पंडित दीनदयाल उपाध्याय, कन्नौज से डॉ. राममनोहर लोहिया और अमरोहा से गांधीवादी और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी। तब (27 अप्रैल 1963) अमरोहा (मुरादाबाद) में एक भयावह हादसा हुआ था।

तब राहुल गांधी की दादी के पिताश्री प्रधानमंत्री थे। उनके संज्ञान में ही ऐसी विधि-विरोधी, बल्कि जनद्रोही हरकत हुई थी। अप्रत्याशित, अनपेक्षित तथा अत्यन्त अवांछित थी। सत्तारूढ़ कांग्रेस के प्रत्याशी हाफिज मोहम्मद इब्राहीम का नामांकन पत्र समय सीमा बीत जाने के बाद स्वीकारा गया था। कलक्ट्रेट (जिला निर्वाचन अधिकारी कार्यालय) के दीवार पर लगी घड़ी की सुइयों को पीछे घुमा दिया गया था। इस घटना की रपट दिल्ली के दैनिकों तथा मुम्बई की मीडिया, विशेषकर अंग्रेजी साप्ताहिक “करन्ट” (28-30 अप्रैल 1963) में प्रमुखता से छपी थी। शीर्षक के हिन्दी मायने थे कि कांग्रसी उम्मीदवार के अवैध नामांकन पत्र को घड़ी घुमाकर वैध किया गया।

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राव आगे कहते हैं “चूँकि कलक्टर ही जिला निर्वाचन अधिकारी होता है, लाजिमी है कि उस पर सरकारी दबाव पड़ना सहज है। मतगणना में कलेक्टर परिवर्तन कैसे कर सकता है इस का प्रमाण लखनऊ (पूर्व) विधानसभा क्षेत्र के आम चुनाव (1974) में लौह पुरूष चन्द्रभान गुप्त जो कांग्रेस (निजलिंगप्पा) के प्रत्याशी थे, की जमानत जब्त हो जाने से मिलता है। हेमवती नन्दन बहुगुणा तब इन्दिरा-कांग्रेस के मुख्य मंत्री थे। बाद (1977) में बहुगुणा नवसृजित जनता पार्टी के लखनऊ संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार नामित हुये थे। वे समर्थन मांगने जनता पार्टी के कोषाध्यक्ष श्री चन्द्रभानु गुप्त के घर गये। छूटते ही गुप्ता जी ने पूछा कि 1974 में उनकी जमानत कैसे जब्त करायी गई थी? बहुगुणा जी ने स्वीकारा कि मतपेटियों में हेराफेरी हुई थी। दारोमदार लखनऊ के जिलाधिकारी पर था। वोटर की राय भले ही जो भी रही हो।”

तो माजरा कुछ ज्यादा घिनौना रहा 1963 के लोकसभाई उपचुनाव में। आचार्य जे.बी. कृपलानी तब संयुक्त विपक्ष के प्रत्याशी थे। सालभर पूर्व (मार्च 1962) में वे उत्तर बम्बई से रक्षा मंत्री वी.के. कृष्ण मेनन से पराजित हो चुके थे। तब जवाहरलाल नेहरू स्वयं मेनन के चुनाव अभियान में जोरदार भूमिका निभा चुके थे। उसके बाद चीन ने भारत पर आक्रमण किया था और मेनन को नेहरू ने रक्षा मंत्री पद से हटा दिया था। उधर उसी वक्त दिल्ली में कथित वामपंथियों ने खासकर कम्युनिस्टों ने, ओवरटाइम किया कि अमरोहा के क्षेत्र में भी कृपलानी को पटकनी दी जाये। नेहरू के सबसे उग्र आलोचक कृपलानी थे, लोहिया के बाद।

दिल्ली में मेनन, तेलमंत्री केशवदेव मालवीय (बस्ती के) और स्वयं नेहरू ने तय किया कि सिंचाई मंत्री तथा राज्य सभा सदस्य हाफिज मुहम्मद इब्राहिम को लोकसभा के लिए अमरोहा से लडाया जाय। कारण था कि लगभग पचास प्रतिशत मतदाता मुसलमान थे। अर्थात चोटी बनाम बोटी का नारा कारगर होगा। अतः जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामशरण का नामांकन वापस लेकर हाफिज मुहम्मद इब्राहिम का प्रस्ताव पेश हुआ। इसके लिए केन्द्रीय मंत्री और मालवीय जी दिल्ली से मोटरकार से मुरादाबाद कलक्ट्रेट पहुचे। यह सब अंतिम दिन (27 अप्रैल) को हुआ। मगर दिल्ली से मुरादाबाद वे लोग शाम तक पहुचे। तब तक चार बज चुके थे। भीड़ जा चुकी थी। उस सन्नाटे में कलक्टर ने नामांकन को दर्ज कर लिया। 

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चालाकी की कि घडी में दो बजा दिये और फोटो ले ली। विरोध हुआ पर उसे करने वाले विरोधी नेता कुछ ही थे, बात बढ नही पायी। फिर भी कलेक्टर स्वतंत्र वीर सिंह जुनेजा ने बात दबा दी। मगर मतदान में हिन्दुओं ने जमकर वोट डाला। आचार्य कृपलानी जीत गये। हाफिज साहब का मत्रीपद और राज्य सभा की मेम्बरी गई। आचार्य कृपलानी ने, लोहिया के आग्रह पर, नेहरू सरकार में अविश्वास का प्रथम प्रस्ताव लोकसभा में रखा। तब भारतीय की दैनिक औसत आय तीन आने बनाम तेरह आने वाली मशहूर बहस चली थी। सुप्रीम कोर्ट को नेहरू-कांग्रेस की ऐसी जालसाजी को भी ध्यान में रखना चाहिए।

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