उपराष्ट्रपति उद्योगपतियों से शैक्षणिक संस्थानों को मदद करने की अपील की, काश !! किताबों के प्रकाशन की दुनिया में आने का भी न्योता देते तो देश में ‘अव्वल अभ्यर्थियों की बाढ़’ आ जाती

इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज के शताब्दी समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

नई दिल्ली: काश !! इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज के शताब्दी समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जब शैक्षणिक संस्थानों में कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) निधि से योगदान दिये जाने का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें इस मुद्दे के बारे में उद्योग के साथ बातचीत करने में खुशी होगी; उन्हें यह भी कहना चाहिए था कि देश का कॉर्पोरेट घराना भारत किताबों के प्रकाशन की दुनिया में भी अपनी सामाजिक और शैक्षिक भागीदारी निभाएं। 

उप राष्ट्रपति ने छात्रों को लोकतंत्र में सबसे बड़ा हितधारक बताया। उन्होंने उपस्थित लड़कियों को आकांक्षी बनने के लिए प्रोत्साहित करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि इसके लिए एक इकोसिस्टम का पहले ही निर्माण किया जा चुका है जहां वे अपनी प्रतिभा का पूरी तरह उपयोग कर सकती हैं और अपनी पूरी क्षमता का एहसास कर सकती हैं। उन्होंने कहा, “यह आपके लिए कुछ बड़ा और  उस तरह से सोचने का समय है जैसा आप सोचना चाहते हैं।”

ज्ञातव्य हो कि आज सरकारी क्षेत्र के कुछेक प्रकाशन गृहों को छोड़कर, जो माध्यमिक स्तर भारत के विद्यालयों में चलने वाले किताबों का प्रकाशन करते हैं (औसतन 40 फीसदी), उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पढ़ने-पढ़ाने वाले किताबों के प्रकाशन की दुनिया में किसी भी कॉर्पोरेट घरानों का सहयोग नहीं है। जबकि, निजी क्षेत्र के कॉर्पोरेट घराने भारत में विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय खोलने के क्षेत्र में भरे-पड़े हैं। 

इतना ही नहीं, सरकारी क्षेत्र की संस्थाएं जो किताबों का प्रकाशन करते हैं, वे भी देश की कुल मांग को पूरा करने में असमर्थ हैं। इसका परिणाम यह है कि सरकारी क्षेत्र के संस्थान निजी क्षेत्र से प्रकाशित करते हैं। यहाँ जिन किताबों का प्रकाशन होता है उसमें सैकड़े 70 से 80 फीसदी ये सभी निजी प्रकाशक सरकारी प्रकाशन के नाम पर खुले बाज़ार में बेचते हैं। विगत दिनों दिल्ली के दर्जनों प्रकाशन गृहों ने यह कहा कि आज भारत में प्रकाशन की दुनिया में सबसे बड़ी कमी पैसों की हैं। पैसों के आभाव में देश में किताबों के प्रकाशन पर प्रतिकूल प्रभाव पद रहा है। 

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अलावे इसके, भारत में कागजों की भी किल्लत है। उससे भी बड़ी बात यह है कि भारत में किताबों का प्रकाशन मूल्य विश्व के अन्य देशों की तुलना में कम होने के कारण यहाँ ‘नकली (पायरेटेड) किताबों का प्रकाशन अधिक मात्रा में होता है। प्रकाशकों का मानना है कि आज देश में हज़ारों शैक्षणिक संथाएं, विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक भरे-परे हैं, जहाँ पैसे का भरमार है और कॉर्पोरेट घराने के लोग ‘निवेश’ कर ‘पैसा कमा रहे हैं’, काश उनका ध्यान किताबों के प्रकाशन की ओर भी होता। 

दिल्ली के एक प्रख्यात प्रकाशक वेराइटी के संस्थापक ओम आरोड़ा कहते हैं: “भारत में जितने भी कॉरपोरेट घराने हैं, चाहे वे किसी क्षेत्र में कार्य करते हों, उन्हें देश का सबसे अव्वल अभ्यर्थी चाहिए। चाहे आईआईटी की बात है, मेडिकल की बात है, अभियंत्रण की बात है, इन कॉर्पोरेट घरानों को देश का सबसे बेहतरीन, क्रीम अभ्यर्थी की तलास होती है। मोटी – मोटी रकमों पर उन्हें खरीदते हैं। लेकिन कभी वे यह नहीं सोचते कि अगर वे देश में बेहतरीन किताबों को बाज़ार में उपलब्ध कराएँगे, किताबों के प्रकाशन की दुनिया में अपना समर्थन देंगे तो शायद देश में अव्वल आने वाले अभ्यर्थियों की संख्या कई गुना अधिक हो जाएगी।”

उपराष्ट्रपति ने कहा कि “अब समय आ गया है कि हमारा शीर्ष उद्योग जगत हमारे शैक्षणिक संस्थानों को एक रोल मॉडल के रूप में देखभाल करें। मुझे थोड़ी चिंता होती है और वह थोड़ा चिंतन का विषय भी है कि हमारे उद्योगपति विदेशी संस्थाओं को मोटा-मोटा डोनेशन देते हैं… बालिकाओं, ये डोनेशन 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सीमा तक है। मैं इसके खिलाफ नहीं हूं, पर उनको अपने देश में भी देना चाहिए।कॉरपोरेट जगत को आगे आना होगा। उन्हें एक उदाहरण के रूप में और शैक्षणिक संस्थानों, विशेषकर बालिकाओं के लिए अपने कॉरपोरेट-सामाजिक-दायित्व (सीएसआर) कोष से उदारतापूर्वक योगदान देना चाहिए। मुझे इस मुद्दे पर उद्योग जगत के साथ बातचीत करने में प्रसन्नता होगी।

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बहरहाल, श्री धनखड़ ने शिक्षा को सबसे प्रभावशाली परिवर्तन करने वाला तंत्र बताते हुए कहा कि शिक्षा ही वह परिवर्तन है जो समाज में समानता ला सकता है। लड़कियों की शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि “बालिका शिक्षा एक क्रांति है, लड़कियों की शिक्षा एक युग बदल रही है। उपराष्ट्रपति ने यह भी कहा कि प्रभावी शासन के परिणामस्वरूप, महिला सशक्तिकरण ने हमारी लड़कियों को भारत@2047 की मैराथन में प्रमुख भागीदार बनने में सक्षम बनाया है। उन्होंने कहा, “आप भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हमारी यात्रा का प्रभावशाली ढंग से नेतृत्व करेंगी। आप इसे राष्ट्रों के समुदाय के बीच शिखर पर ले जाएंगे।”

धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि ‘अमृत काल’ आशा और अपार संभावनाओं का समय है। उन्होंने कहा, “भारत पहले से ही एक वैश्विक अर्थव्यवस्था है और निवेश तथा इसके अवसरों के लिए पसंदीदा स्थान है, हमारी प्रगति बेजोड़ है और दुनिया हमारी ओर देख रही है।” अपने संबोधन में उपराष्ट्रपति ने छात्रों से यह भी आग्रह किया कि वे कभी भी असफलता से न घबराएं। उन्होंने कहा, “असफलता का डर विकास का हत्यारा है, विफलता का डर नवाचार का हत्यारा है, प्रत्येक विफलता को एक सीढ़ी के रूप में लिया जाना चाहिए।”

‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’, ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ और एलपीजी कनेक्शन के वितरण जैसी अभी हाल की पहलों का उल्लेख करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा, “इस सदी में हमारे पास एक निर्णायक क्षण है। लड़कियां भारत के विकास को परिभाषित कर रही हैं!”

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