​कर्पूरी ठाकुर को भी बेच दिए नीतीश कुमार कुर्सी के लिए 😢 नौवीं बार मुख्यमंत्री पद का शपथ लेंगे, इस बार भाजपा के साथ

पटना/नई दिल्ली : आठ बार रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नौवीं बार कुर्सी पर बैठने के लिए सज्ज हो रहे हैं। इस बार उनके बगल में राष्ट्रीय जनता दल नहीं, बल्कि पहले जिसका साथ छोड़े थे भारतीय जनता पार्टी के लोग होंगे। शेष “दूल्हा” वही, ‘सराती’ वही, ‘बाराती’ वही रहेंगी। संध्या पांच बजे शपथ लेंगे। 

सैद्धांतिक रूप से सिर्फ जनता दल के सुप्रीमो नीतीश कुमार अपनी पार्टी के नाम के आगे ‘यूनाइटेड’ लिखे हैं। अपनी कुर्सी पर चिपके रहने के लिए वे ‘डिवाइडेड’ को अधिक प्रश्रय देते हैं। प्रदेश के निर्माण के बाद आज तक जितने भी मुख्यमंत्री हुए, नीतीश कुमार से  अधिक ‘अवसरवादी’ कोई नहीं हुए। 

राजनीतिक नेताओं की बात अगर छोड़ दें तो प्रदेश के मतदाताओं का मानना है कि “नीतीश कुमार से अधिक रीढ़ की हड्डीहीन व्यक्ति कोई नहीं है। यह अलग बात है कि कांग्रेस पार्टी अपने ही लोगों के कारण धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त की, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते हैं कि राजनीतिक चरित्र में लालू यादव उनसे अधिक ऊँचे हैं।” 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यपाल राजेन्द्र वी आर्लेकर को आज सुबह अपना इस्तीफा सौंप दिया। राज्यपाल ने कुमार का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और नयी सरकार के गठन तक उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने रहने को कहा है। राज्यपाल को इस्तीफा सौंपकर राजभवन से लौटने के बाद नीतीश ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैंने आज मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।’’उन्होंने कहा कि वह ‘महागठबंधन’ से अलग होकर नया गठबंधन बनाएंगे।

यह पूछे जाने पर कि उन्होंने यह फैसला क्यों किया, नीतीश ने कहा, ‘‘अपनी पार्टी के लोगों से मिल रही राय के अनुसार मैंने आज अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हमने पूर्व के गठबंधन (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को छोड़कर नया गठबंधन बनाया था लेकिन इसमें भी स्थितियां ठीक नहीं लगी। जिस तरह के दावे एवं टिप्पणियां लोग कर रहे थे, वे पार्टी के नेताओं को खराब लगे इसलिए आज हमने (त्यागपत्र) दे दिया और हम अलग हो गए। पहले साथ रहे अन्य दल आज ही मिलकर तय करेंगे कि नयी सरकार के गठन को लेकर क्या फैसला करना है। इंतजार करिए।’’

नीतीश के इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने उनकी तुलना ‘गिरगिट’ से की और कहा कि राज्य की जनता उनके विश्वासघात को कभी माफ नहीं करेगी।उसने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ से डरे हुए हैं और इससे ध्यान भटकाने के लिए यह राजनीतिक नाटक रचा गया। 

दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में लोगों का कहना है कि विगत दिनों जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत होने की बात हुई, जो मूलतः राष्ट्रीय जनता दल की पहल थी, नितीश कुमार राजनीतिक सौदा कर लिए। दिल्ली के नेताओं के साथ वे ‘हां’ भर दिए। इधर जैसे ही कर्पूरी जी को भारत रत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया, नीतीश कुमार आर जे डी से पल्ला झाड़कर भाजपा का हाथ पकड़ लिए। यहाँ भी शर्त यही रखें नौवां मुख्यमंत्री वही बनेगे तभी वे सम्बन्ध विच्छेद करेंगे। कर्पूरी ठाकुर एक प्रतिष्ठित समाजवादी नेता थे जो 1970 के दशक में दो बार मुख्यमंत्री रहे।

बिहार के राजनीतिक चिकित्सकों का मानना है कि आम तौर पर मानव शरीर में मुंह से लेकर एनस तक ‘फ़ूड केनाल’ की लम्बाई सामान्यतः ८ से 10 मीटर लम्बा होता है, लेकिन नितीश कुमार की फ़ूड (राजनीतिक भोजन) केनाल की लम्बाई उनकी अपनी शारीरिक लम्बाई से कई गुना अधिक है। प्रदेश के मतदाता प्रतिपल ‘असम्भावी जीवन’ जीते हैं। वे सोच नहीं पाते कि प्रदेश का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति कब, किस करबट बैठ जायेगा। आज प्रातः प्रदेश में जो भी राजनीतिक ड्रामा हुआ और हो रहा है तो जीवंत दृष्टान्त है नीतीश कुमार की सोच की। 

कुछ घंटे पहले तक नीतीश कुमार लालू यादव वाले राष्ट्रीय जनता दल के समर्थन से मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे थे। शाम में वे भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री कार्यालय में विराजमान होंगे। साल 2022 के अगस्त महीने में नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले एनडीए से नाता तोड़ा था और सरकार बनाई थी। सूत्रों के मुताबिक नितीश कुमार 9 वीं बार प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का शपथ लेंगे। उधर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी अपने सभी विधायकों को सोमवार तक पटना में उपस्थित रहने को कहा है। 

बहरहाल, नीतीश कुमार नौवीं बार नई सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है। अब बिहार में उनके ही नेतृत्व में भाजपा के समर्थन से नई सरकार का गठन होने जा रहा है। नई सरकार में बीजेपी से सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा डिप्टी सीएम होंगे। इस नई सरकार को जीतन राम मांझी ने भी अपना समर्थन दिया है। शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी पटना आ रहे हैं। भाजपा ने पिछड़े समाज से आने वाले सम्राट चौधरी और भूमिहार नेता विजय सिन्हा को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा। विधायकों की मीटिंग में रविवार को यह फैसला हुआ है।

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नीतीश कुमार ने पहली बार – 3 मार्च 2000, दूसरी बार – 24 नवंबर 2005, तीसरी बार – 26 नवंबर 2010, चौथी बार – 22 फरवरी 2015, पांचवी बार 20 नवंबर 2015, छठी बार – 27 जुलाई 2017, सातवीं बार – 16 नवंबर 2020, आठवीं बार – 9 अगस्त 2022 को सीएम पद की शपथ ली थी। कांग्रेस पार्टी को कटघरे में खड़ा करते हुए शनिवार को केसी त्यागी ने आरोप लगाया, “कांग्रेस के रवैये से इण्डिया गंठबंधन टूट गया है। वैसे कांग्रेस बिहार की राजनीति में अहम भूमिका में नहीं है। ये पार्टी महागठबंधन का हिस्सा ज़रूर है लेकिन बिहार की राजनीति के तीन प्रमुख दल राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी है। 

नीतीश कुमार 2013 के बाद से भाजपा, कांग्रेस या लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के साथ जाकर समय-समय अपनी सरकार बनाते रहे हैं। उन्होंने कई बार पाला बदला है। 2022 में भाजपा से अलग होने के बाद, उन्होंने 2024 के चुनावों में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ दल का संयुक्त रूप से मुकाबला करने के लिए सभी विपक्षी ताकतों को एकजुट करने की पहल की थी। उनकी ही पहल पर INDIA गठबंधन भी बनाया गया था। 

मार्च 2000 में नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए एनडीए का नेता चुना गया। उन्होंने केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 324 सदस्यीय सदन में एनडीए और सहयोगी दलों के पास 151 विधायक थे जबकि लालू प्रसाद यादव के पास 159 विधायक थे। दोनों गठबंधन बहुमत के आंकड़े यानी 163 से कम थे। सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाने के चलते नीतीश ने इस्तीफा दे दिया। महज सात दिन बाद ही वह सत्ता से बाहर हो गए। 2003 नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली समता पार्टी का पहले ही कई टुकड़ों में बंट चुके जनता दल में विलय हो गया। विलय की गई इकाई को जनता दल (यूनाइटेड) नाम मिला और राज्य में एक नई  पार्टी अस्तित्व में आई।

2005 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव के लिए पहली बार भाजपा और जदयू को चुनावी सफलता हासिल की। 243 सदस्यीय विधानसभा में इस चुनाव में भाजपा ने 55 सीटें जबकि जदयू ने 88 सीटें जीतीं। राजद के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को हराने के बाद जदयू नेता नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने। 

2009 के लोकसभा चुनाव में भी गठबंधन को बड़ी सफलता मिली। 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार में जदयू 25 और भाजपा 15 सीटों पर लड़ी। इनमें से 32 सीटों पर इस गठबंधन को सफलता मिली। भाजपा के 15 में से 12 उम्मीदवार जीतने में सफल रहे। वहीं, जदयू के 25 में से 20 उम्मीदवार जीतकर लोकसभा पहुंचे । 

साल 2010 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए। भाजपा-जदयू ने एक बार फिर एक साथ चुनाव लड़ा और जबरदस्त सफलता हासिल की। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में भाजपा-जदयू गठबंधन ने 206 सीटों पर जीत दर्ज की। जदयू ने 115 सीटें तो भाजपा ने 91 सीटें जीतीं। इस जीत के साथ नीतीश एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने। लालू यादव की पार्टी राजद को महज 22 सीट से संतोष करना पड़ा। जबकि, केंद्र की सत्ता में बैठी कांग्रेस चार सीटों पर सिमट गई। 

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले देश की राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ। दरअसल, 2014 आम चुनाव के लिए भाजपा ने अपनी चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बना दिया। इस फैसले के विरोध में नीतीश कुमार ने बिहार में भाजपा के साथ 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। जदयू अध्यक्ष शरद यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जून 2013 को एक संवाददाता सम्मेलन में गठबंधन खत्म करने की घोषणा की

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2014 में भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद भी नीतीश की पार्टी सत्ता में बनी रही। उनकी पार्टी की सरकार को राजद और कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया। लोकसभा चुनाव में इन दलों के साथ मिलकर नीतीश ने चुनाव नहीं लड़ा। उनकी पार्टी राज्य की 40 में से 38 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन जीत केवल दो सीटों पर मिली। वहीं, भाजपा ने लोजपा, रालोसपा जैसे दलों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। यह गठबंधन 31 सीटें जीतने में सफल रहा। इसमें भाजपा ने 22 सीटें, लोजपा ने छह और उपेंद्र कुशवाहा वाली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने तीन सीटें जीतीं।   

2014 में भाजपा के प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतने के बाद नीतीश ने जेडीयू की हार की जिम्मेदारी ली और जीतम राम मांझी को सीएम नियुक्त करते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मई 2014 में लालू यादव की पार्टी राजद और कांग्रेस ने जदयू का समर्थन किया और विधानसभा में बहुमत परीक्षण में सफल रहे। इस तरह से जदयू, कांग्रेस और राजद ने महागठबंधन का गठन किया।   

2014 में महागठबंधन बनाने के बाद 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में राज्य में महागठबंधन के तहत राजद ने 80 सीटों पर, जदयू ने 71 सीटों पर और कांग्रेस ने 27 सीटों पर जीत दर्ज की। उधर भाजपा महज 53 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी। इसके साथ नीतीश कुमार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री चुना गया।  

गठबंधन में राजद के महत्व से असंतुष्ट नीतीश 2016 में फिर से सुर्खियों में आये। एक बार फिर उनका झुकाव भाजपा की नोटबंदी और जीएसटी संबंधी नीतियों की ओर हुआ। जबकि गठबंधन में शामिल दलों ने इसका विरोध किया। इसी बीच सीबीआई द्वारा लालू यादव और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने के बाद उनके गठबंधन से निकलने का रास्ता बन गया।
 
नीतीश ने गठबंधन में शामिल तेजस्वी यादव का इस्तीफा मांग लिया, जिनका नाम सीबीआई के आरोपपत्र में आया था। हालांकि, लालू यादव ने इनकार कर दिया और नीतीश अपनी सियासी यात्रा में एक बार फिर भाजपा की ओर मुड़ गए। जुलाई 2017 में नीतीश कुमार ने 20 महीने पुराने महागठबंधन वाली सरकार को समाप्त करते हुए, बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में अपना इस्तीफा दे दिया। 27 जुलाई 2017 को उन्होंने फिर से भाजपा के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

2019 के लोकसभा चुनाव में भी जदयू और भाजपा साथ लड़े। बिहार की कुल 40 सीटों में से एनडीए ने 39 सीटें जीत लीं। जहां भाजपा के 17 उम्मीदवार जीते तो जदयू के 16 प्रत्याशी विजयी हुए। इसके अलावा लोजपा ने छह सीटें जीतीं। 

2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में राज्य में भाजपा जदयू ने एक साथ चुनाव लड़ा। इस चुनाव में भाजपा ने 74 सीटों पर और जदयू ने 43 सीटों पर जीत दर्ज की। इसके साथ ही जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के साथ मिलकर सरकार बनी जिसके मुखिया नीतीश कुमार बने। वहीं, भाजपा की तरफ से तारकिशोर प्रसाद और रेणू देवी के रूप में दो उपमुख्यमंत्री बनाए गए। 

नीतीश ने बिहार में दो डिप्टी सीएम की नियुक्ति पर असंतोष के बीच भाजपा के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर आपत्ति जताई। कई मतभेदों के बाद 9 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने घोषणा की कि बिहार विधानसभा में भाजपा के साथ जदयू का गठबंधन खत्म हो गया है। उन्होंने दावा किया कि बिहार में नई सरकार, राजद और कांग्रेस सहित नौ पार्टियों का गठबंधन महागठगंधन 2.0 होगी। जदयू भाजपा से नाता तोड़कर राजद के साथ मिल गई और नीतीश फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन गए। इसके साथ ही राजद से तेजस्वी यादव राज्य के उप मुख्यमंत्री बने। 

वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव कहते हैं “राहुल गांधी ने फिर सियासी इतिहास रच डाला। चार गैरभाजपायी राज्यों में उनके पादारबिंदु पड़ते ही सोनिया-नीत महागठबंधन दरकने लगा। दरार पड़ गई। वे सब अलग हो गए। “भारत जोड़ो” यात्रा भी फिस होती दिख रही है। इस यूरेशियन पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष को शेक्सपियर की उक्ति याद आई होगी : “विपदा आती है तो अकेले नहीं, बहुसंख्या में।” 

राव कहते हैं: बिहार सरकार की हिस्सा थी कांग्रेस कल तक, आज विपक्ष में है। बंगाल की ममता बनर्जी परसों तक साथ थी, अब एकल चलने पर तत्पर हैं। राहुल गांधी के पदार्पण होते ही आम आदमी पार्टी जो दिल्ली और पंजाब में सत्तारूढ़ है, महागठबंधन में साथ थी, अब टूट गई। आज उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी आंखें तरेर दी। कहा सभी सीटें लड़ेंगे। अर्थात राहुल गांधी ने एक साथ सवा सौ लोक सभा सीटें एक झटके में गवां दीं। हुगली से गंगा तक, यमुना और सतलुज तटों को मिलाकर, सारा भूभाग ही गंवा दिया।”

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इसी तरह, पंचनद पंजाब दुखद रहा। समस्त 13 लोकसभाई सीटों पर अब भाजपा-विरोधी आम आदमी पार्टी से ही कांग्रेस की टक्कर होगी। कांग्रेस-शासित हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी का उद्गम है जो पंजाब आकर सतलुज में मिल जाती है। इसके सारे तटवर्ती संसदीय क्षेत्र भी अब राहुल की पहुंच से दूर हो गए। आम आदमी पार्टी के जबरदस्त विरोध के कारण। व्यास नदी के इलाके पंजाब कांग्रेस के कब्जे में आजादी के बाद कई दशकों तक रहे। हाल ही तक कप्तान अमरिंदर सिंह बहुत बड़े कांग्रेसी दिग्गज रहे, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के नामित मुख्यमंत्री थे। आजकल यह समस्त भूभाग आम आदमी पार्टी और भाजपाई हो गया। समीपस्थ व्यास नदी के तट पर ही कभी मुनि व्यास, देवऋषि नारद, गुरु विश्वामित्र, परशुराम, गुरु वशिष्ठ आदि ने तप किया था। उसी क्षेत्र को राहुल गांधी ने अब खो दिया।

आज गंगातट बिहार भी गया। हमसफर नीतीश कुमार की अनुकंपा छूट गई। राहुल गांधी ने पार्टी की बधिया बैठा दी। तोड़ने में कीर्तिमान रच दिया। गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र तट से वे चले थे देश जोड़ने। राहुल के महागठबंधन से दिग्गज जुड़े थे कि सत्ता झटकेंगे तो ईडी के आतंक से तो बचेंगे। अब सब सपना हो गया। जो गैरभाजपा पार्टियां लोकसभा सीटें जीतेगी भी तो वह अपने ही पैर दिल्ली में जमाएंगी। कांग्रेस को किनारे करेंगी। खेल सब सीटों की संख्या वाला है। अगर राहुल कभी अयोध्या गए, सरयू तट देखा और रामलला के दर्शन किए बिना लौट आए तो ? उत्तर प्रदेश को 80 सीटों पर अभी इकलौती रायबरेली सीट पर मां सोनिया हैं। वह भी जाने वाली है। खुद अपनी और पितावाली अमेठी को राहुल गांधी हार चुके हैं।

याद रहे कभी 85 लोकसभाई सीटों पर (उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश साथ थे) एकाध सीट छोड़कर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के युग में कांग्रेस का पूर्ण वर्चस्व था। इस विरासत को राहुल ने गंवा दिया। अपनी अदूरदर्शिता के कारण, अक्षमता से। जीते तो भागकर सुदूर दक्षिण केरल के मुस्लिम-बहुल वायनाड से। मुस्लिम लीग के समर्थन से, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिद्वंदी को हराकर। आगामी चुनाव में कहां जाएंगे ? गठबंधन के प्रमुख दल माकपा ने राहुल को फिर केरल से प्रत्याशी बनने का विरोध कर दिया। यदि अमेठी लौटे तो निर्भर रहना पड़ेगा युवा समाजवादी अखिलेश यादव के रहमों करम पर। इसी बीच सुर्खियां थी कि अनुजा प्रियंका भी काशी से नरेंद्र मोदी को चुनौती देंगी। या फिर माँ की जगह अमेठी चुनेंगी ?

भाई-बहन को रायबरेली और अमेठी की दादा फिरोज गांधी और दादी इंदिरा गांधी वाली विरासत को संवारना चाहिए। वर्ना उत्तर प्रदेश नेहरू-वंश विहीन हो जाएगा। नरेंद्र मोदी ने कौटिल्य चाणक्य की तर्ज पर नेहरू-परिवार के लिए यूपी अब बंजर बना दिया है। ऐसा उर्वरक भाई-बहन के पास है नहीं कि दोनों सीटें उनके लिए फिर उपजाऊ बनें। भविष्य किसने जाना ?

ज्ञातव्य हो कि जनता दल से अलग होकर 1994 में जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार ने समता पार्टी की शुरुआत की। 1996 के लोकसभा चुनावों में समता पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया। समता पार्टी को इस लोकसभा चुनाव में आठ सीटों पर जीत मिली। इनमें से छह बिहार में और एक-एक उत्तर प्रदेश और ओडिशा में थी। 1998 के आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में समता पार्टी ने 12 सीटें जीतीं। इनमें बिहार से 10 और उत्तर प्रदेश से दो सीटें शामिल थीं।

बिहार के मौजूदा सियासी समीकरण पर नजर डालें तो 243 सदस्यीय विधानसभा में 79 सीटों के साथ राजद सबसे बड़ा दल है। इसके बाद भाजपा के 78 विधायक, जदयू के 45, कांग्रेस के 19, सीपीआई (एमएल) के 12, हम के 04, सीपीआई के 02, सीपीआईएम के 02 विधायक हैं।  एआईएमआईएम का एक विधायक और एक निर्दलीय विधायक है। फिलहाल नीतीश सरकार को 160 विधायकों का समर्थन हासिल

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