पूरा विश्व ‘अमन’ चाहता है और जब ‘अमन-शांति-सद्भाव’ की बात होती है तो विश्व भारत की ओर देखने लगता है, गांधी को पढ़ने-समझने लगता है : फाबिन

इंदिरापुरम (गाजियाबाद) स्थित संत थॉमस स्कूल के वार्षिक समारोह में छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ (अवकाश प्राप्त) अधिकारी और पूर्व एम्बेस्डर के.पी. फाबिन

इंदिरापुरम (गाजियाबाद) : विगत 7 नवम्बर को गाज़ियाबाद के इंदिरापुरम स्थित संत थॉमस विद्यालय में वार्षिक उत्सव था। कोई दो दशक से अधिक पुराना है यह विद्यालय। जब दिल्ली से सटे इंदिरापुरम इलाके को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में काम करने वाले मध्यम श्रेणी के लोगों के लिए आवासीय क्षेत्र बनाया जा रहा था, संत थॉमस सोसाइटी के लोगों ने सबसे पहले इस क्षेत्र में आने वाले लोगों के बच्चों के लिए शिक्षा के महत्व को सोचा – एक विद्यालय स्थापित किया गया। समयांतराल अनेक विद्यालय यहाँ आये लेकिन संत थॉमस सोसाइटी द्वारा संचालित इस विद्यालय की बात कुछ अलग है। इस विद्यालय में कला, विज्ञान, वाणिज्य, गणित, भूगोल, इतिहास, भौतिकी, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान आदि की पढ़ाई तो होती ही है; लेकिन यहाँ बच्चे को ‘मनुष्य’ से ‘इंसान’ बनने की शिक्षा दी जाती है – चाहे छात्र हों या छात्राएं । क्योंकि आज के इस बदलते समय में समाज में इंसानों की किल्लत हो रही है।

इस वार्षिक उत्सव में विद्यालय के छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, अधिकारियों, सोसाइटी के लोगों ने जो ‘थीम’ बनाया था वह था ‘NEXUS – THE MODERN ARK OF HUMANITY’ – एक बेहतरीन सोच।

यह थीम इस बात का गवाह था कि हम मनुष्य से इंसान तभी बन सकते हैं, हमारी शिक्षा में पूर्णता तभी आ सकती है, हम मानवीय तभी हो सकते हैं, समाज के प्रति अपनी वेदना और संवेदना को तभी दिखा सकते हैं जब हम अपने जीवन काल में समाज के सभी तबकों के लोगों से परस्पर जुड़े रहे। जो शिक्षा और ज्ञान हम अर्जित कर रहे हैं, उसे बांटे। दूसरों के प्रति करुणा अवश्य रखें। अगर ऐसा नहीं है तो हमारा जीवन, हमारी शिक्षा सभी व्यर्थ है। यह बात विद्यालय के शिक्षक, शिक्षिका, प्रशासन के लोग सभी बच्चों को बता रहे थे।

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इंदिरापुरम (गाजियाबाद) स्थित संत थॉमस स्कूल के वार्षिक समारोह में दीप प्रज्वलित करते भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ (अवकाश प्राप्त) अधिकारी और पूर्व एम्बेस्डर के.पी. फाबिन। साथ में चेयरमैन फ़ादर साजी अब्राहम, फादर चेरियन जोसेफ, विद्यालय के प्राचार्य वी. के. कोरियाकोज, उप-प्राचार्य रेचल रेज़ी, हेडमिस्ट्रेस विनीता वर्ग़िज

हज़ारों की संख्या में बच्चे, अभिभावक, समाज के अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे। मंच पर मुख्य अथिति थे भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ (अवकाश प्राप्त) अधिकारी और पूर्व एम्बेस्डर के.पी. फाबिन।फाबिन साहब भारतीय विदेश सेवा में सं 1964 से 2000 तक तक़रीबन 36-वर्ष विश्व के अनेकों देशों में, मसलन ईरान, ऑस्ट्रिया, श्री लंका, कनाडा, फ़िनलैंड, कतार में भारत का प्रतिनिधित्व किये हैं। इतना ही नहीं, वे विश्व के पटल पर विश्व के अनेकानेक संस्थानों में, वैश्विक कार्यक्रमों में भारत का प्रतिनिधित्व कर भारत का मान-सम्मान बढ़ाये – चाहे ऊर्जा का क्षेत्र हो, खाद्यान का क्षेत्र हो, कृषि का क्षेत्र हो। विश्व को भारत की बात बताते रहे।

श्री फाबिन अपनी सेवा के दौरान विश्व में घटित कई युद्धों का भी चश्मदीद गवाह रहे। लेकिन इस वार्षिक समारोह में उन्होंने कहा कि ‘युद्ध’ किसी भी प्रकार की ‘शांति’ का निवारण नहीं है। परिवार ही नहीं, समाज ही नहीं, किसी भी राष्ट्र और विश्व में ‘शांति’ सिर्फ और सिर्फ ‘अहिंसा’ और सद्भावना’ से लाई जा सकती हैं। उनके अनुसार, मोहनदास करम चंद गांधी को जन्म लिए आज 154 वर्ष हो रहा है, साथ ही, उन्हें अंतिम सांस लिए 75-वर्ष; लेकिन आज ही नहीं, आने वाले कई दशकों तक गांधी का सिद्धांत जीवित रहेगा।

इंदिरापुरम (गाजियाबाद) स्थित संत थॉमस स्कूल के वार्षिक समारोह में रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करती छात्राएं

आज के बदलते समय में हम भले गांधी की बातों से सहमत नहीं हों, हम भले भगत सिंह की बातों को, उनकी सिद्धांतों को तबज्जो दें; लेकिन सच यही है कि गांधी की विचारधारा अमर कहेगा। वहां उपस्थित हज़ारों छात्रों और अभिभावकों, शिक्षकों को सम्बोधित करते उन्होंने कहा कि भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में महात्मा गांधी की ‘अहिंसावाद सिंद्वातों’ के आधार पर ही ‘अमन’ और ‘शांति’ कायम की जा सकती है। आज भारत ही नहीं, पूरा विश्व अमन चाहता है। और जब भी अमन की बात होती है विश्व के लोग भारत की ओर टकटकी निगाहों से देखने लगते हैं। गांधी को सुनने और समझने लगते हैं।

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उन्होंने कहा कि “आज विचारधारा भले अलग-अलग हो, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक तरीके से संघर्ष कर भारत को आज़ादी मिली थी। कुछ लोगों का तर्क था कि भगत सिंह के विचारधारा का अनुसरण करना चाहिए था। यह गलत था और आज भी गलत है । क्योंकि उन दिनों अंग्रेजों को भारतीय को गोली मारने के लिए बहुसंख्यक में भारतीय मिल गए थे और इसका ज्वलंत उदाहरण है अमृतसर कांड जो जालियांवाला कांड के रूप में जाना जाता है। वहां एक भारतीय ने ही दूसरे भारतीय पर गोली चलाये थे। आदेश अंग्रेज का था।”


इंदिरापुरम (गाजियाबाद) स्थित संत थॉमस स्कूल के वार्षिक समारोह में रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करते छात्र-छात्राएं

फाबिन का कहना था कि आज के इस वैज्ञानिक और दिन-प्रतिदिन के बदलते समय में युवाओं को आगे बढ़ने के लिए, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक दृष्टि से देश को आगे ले जाने के लिए अनेकानेक अवसर हैं और होंगे; परन्तु वहां उपस्थित छात्र-छात्राओं की ओर देखते अस्सी वर्षीय भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी ने कहा कि “आप सभी बच्चे भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए मेहनत करें। आज इस शाम आप सभी शपथ लें कि भारत के वर्तमान और भविष्य में मानवता की बुनियाद को मजबूत करेंगे। हमें अमन-शांति का मार्ग चुनना होगा क्योंकि युद्ध में सबसे अधिक बच्चे की मृत्यु होती है।”

अपने सन्देश में संत थॉमस के चेयरमैन फ़ादर साजी अब्राहम ने कहा कि ‘जूनून और उत्साह’ से हम अपने लक्ष्य को प्राप्त का सकते हैं। उन्होंने कहा कि ‘उत्साह’ का अर्थ है ‘अपने अंदर ईश्वर को रखना, यानी शांति अउ सद्भाव को रखना।”

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इंदिरापुरम (गाजियाबाद) स्थित संत थॉमस स्कूल के वार्षिक समारोह में पुरस्कृत करते फाबिन, चेयरमैन फ़ादर साजी अब्राहम, फादर चेरियन जोसेफ, विद्यालय के प्राचार्य वी. के. कोरियाकोज और अन्य

विद्यालय के शिक्षकों, छात्रों, शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के अतिरिक्त फादर चेरियन जोसेफ, विद्यालय के प्राचार्य वी. के. कोरियाकोज, उप-प्राचार्य रेचल रेज़ी, हेडमिस्ट्रेस विनीता वर्ग़िज उपस्थित थे। इस दौरान रंगारंग कार्यक्रम भी किया गया और विजेता छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत भी किया गया।

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