महिला सुरक्षाकर्मियों को #मासिकधर्म के समय भी ‘अवकाश’ नहीं, सेनेटरी पैड नहीं – लेकिन ‘बेटी बचाओ का नारा’

क़ुतुब मीनार

बाबूजी कहते थे कि “ठेस तभी लगेगी, जब चलोगे। गिरोगे तब, जब दौड़ोगे। कभी देखा हैं बैठे-बैठे, सोये-सोये ठेस लगते, गिरते किसी को?”

बाबूजी का यह शब्द मुझ जैसा अज्ञानी के लिए अनमोल है। धनाढ्य या फिर वे जिन्हें बपौती में संपत्ति मिलती है, मेरे बाबूजी की बात नहीं समझेंगे। अगर समझते तो दरभंगा के महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर सिंह की संपत्ति और उनका नामोनिशान इतनी जल्दी मिट्टी में नहीं मिल जाती।

बाबूजी को यह बात कहे कोई चार दशक से अधिक हो गया और उन्हें अनंत यात्रा पर निकले तीन दशक एक साल। आज ही के दिन (आज 29 सितम्बर) है, सन 2010 में माँ, बाबूजी के पास पहुँचने के लिए अनंत यात्रा पर निकली थी।

लेकिन आज अचानक बाबूजी का यह अनमोल शब्द उस समय याद आया जब महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर सिंह के नाम को, उनकी गरिमा को अपने सामर्थ्यभर यथासाध्य जीवित रखने के लिए आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम और इसी वेबसाइट का यूट्यूब चैनेल #अख़बारवाला001 के लिए एक कहानी के क्रम में दक्षिण दिल्ली के क़ुतुब मीनार स्थित दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक और शासक (1210-1236) इल्तुतमिश के दरगाह पर खड़ा था।

इल्तुतमिश का यह दरगाह कोई 787 वर्ष पुराना है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भारत सरकार का संस्कृति/पर्यटन मंत्रालय के अधीन है। इससे भी बड़ी बात यह यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट की सूची में भी अंकित है।

आश्चर्य तो यह है कि दरभंगा के महाराजाओं द्वारा निर्मित भवनों, किलों और दीवारों की हालत तो सौ साल आते-आते दम तोड़ दिया। आज इल्तुतमिश का दरगाह भले दो-फांक में टूट रहा है, लेकिन आज भी यह इतिहास जीवित है। और यही कारण है कि विश्व के लगभग सभी देशों के लोग इस ऐतिहासिक स्थल को जीते-जी देखने आते हैं।

यह अलग बात है कि भारत के स्कूली पाठ्यक्रमों में इतिहास के बहुत सारे पन्ने राजनीतिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों, पदाधिकारियों, चापलूसों, चाटुकारों के हाथों मृत्यु को प्राप्त किया और कर रहा है। लेकिन दरभंगा के महाराजाधिराज का किला या तो अपना अस्तित्व समाप्त कर दिया है या फिर सहस्त्र फांक हो गया है। बाबूजी कहते थे ‘सब प्रारब्ध का खेल है।’

पिछले ही दिन तो देश के लोग भारत का 76 वां जश्ने आज़ादी मनाये हैं। क़ुतुब मीनार के परिसर में एक कोने में बैठकर सोच रहा था कि आज़ाद भारत में जब भी किसी राजनेता की मृत्यु हुई हैं तो दूसरे राजनेता को उनके राजनीतिक जीवन में इजाफा हुआ है – इतिहास गवाह है। इसी विषय पर कहानी कर रहा था। इतिहास कहता है कि यह स्थान विश्व को ‘स्लेवरी’ और ‘स्लेव डाइनेस्टी’ का जीवंत दृष्टान्त देता है।

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दिल्ली सल्तनत में जितने भी ऐतिहासिक स्थल हैं अधिकांशतः आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इण्डिया के अधीन हैं और उन परिसरों में बिहार के पूर्व राज्य सभा के सांसद श्री आर के सिन्हा के स्वामित्व वाला SIS सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। वैसे देश में करीब छः मिलियन निजी क्षेत्र में काम करने वाले सुरक्षाकर्मी हैं। आम तौर पर इन स्थानों पर तैनात सुरक्षा कर्मियों को यह कान में फूंक दिया गया है कि मोबाईल फोन/कैमरा से तस्वीर ले सकते हैं/वीडियो भी बना सकते हैं। लेकिन उसमें आधा इंच का भी माइक नहीं लगा सकते क्योंकि यह गैर क़ानूनी है। परिसर में किसी भी प्रकार से अपनी बात रिकार्ड नहीं कर सकते, गैर क़ानूनी है। खैर !!! ‘कानून’ का तो हम बहुत ‘स्वागत’ करते हैं।

समझ में नहीं आ रहा था की देश को आज़ाद हुए 76 वर्ष हो गए और एक स्वतंत्र देश का नागरिक होने के नाते कोई 787 वर्ष पूर्व के इस परिसर में जो स्लेवरी का प्रतिक रहा है, आज भी आज़ादी का कोई मोल नहीं है। तभी सिन्हा साहब के कंपनी के SIS सुरक्षाकर्मी वहां उपस्थित हुए। उनका कहना था कि ‘यह आदेश है और वे नौकरी करते हैं।’

मैं तो ठहरा रिपोर्टर, और विगत दिनों ही सुरक्षाकर्मियों की दशा पर कहानी भी किया था ‘कर्तव्य पथ’ से। वहां उपस्थित सुरक्षा कर्मी से पूछे कि क्या आपको 30 दिनों की तनख्वाह मिलती है या 26 दिनों की?

मेरी बात सुनते ही वे अपना गर्दन नीचे कर 26 दिनों की स्वीकृति दिए और ‘स्लेव डाइनेस्टी’ के समय जो मिट्टी-पत्थर इस परिसर में फेके गए थे, इसके निर्माण के समय, उसे निहारते कहते हैं: ’26 दिन का ही मिलता है सर। कोई आवाज भी नहीं उठा सकता है। बोलने पर नौकरी चली जाएगी। यह पूछ भी नहीं सकते कि सरकार कम्पनी को एक सुरक्षाकर्मी के लिए कितना पैसा देती है? हमलोगों से कपड़ा जूता टोपी का भी पैसा लेती है कंपनी। हमलोगों को कोई छुट्टी नहीं। बीमार पड़ने पर दवा-दारू के लिए कोई भी सुविधा नहीं है। माँ-बाबूजी अगर मर भी जायेंगे तो तन्खाह काटकर ही उनका संस्कार करने जाना होगा।”

76-वर्ष आज़ादी के बाद आज दिल्ली सल्तनत ही नहीं, देश में कोई छः लाख करोड़ वाला निजी क्षेत्र का सुरक्षा व्यवस्था ‘स्लेवरी’ और ‘स्लेव डाइनेस्टी’ का जीता-जागता दृष्टान्त हैं।

वैसे भारतीय संविधान की धारा 498 के अनुसार पत्नी को भी घरेलू हिंसा (पति के विरुद्ध भी) के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करने का हक है। किसी भी महिला आरोपी को सूर्यास्त यानी शाम 6 बजे के बाद या सूर्योदय यानि सुबह 6 बजे से पहले गिरफ्तार किया जाता है तो वह भी कानून के खिलाफ है। धारा 160 के अनुसार अगर किसी महिला से पूछताछ भी करनी है तो उसके लिए एक महिला कांस्टेबल या उस महिला के परिवार के सदस्यों की मौजूदगी होना जरूरी है। इतना ही नहीं, अगर किसी महिला का उसके ऑफिस में या किसी भी कार्यस्थल पर शारीरिक उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न किया जाता है तो उत्पीड़न करने वाले आरोपी के खिलाफ महिला शिकायत दर्ज कर सकती है।

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इतना ही नहीं, अब तो लोकसभा और राज्य सभा भी महिला आरक्षण विधेयक 2023 (128वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक) यानी नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर दिया। यह विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। लेकिन यह 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू नहीं होगा। संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां) संशोधन विधेयक, 2023 को विधेयक के पारित होने के बाद आयोजित नवीनतम जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करके, परिसीमन अभ्यास पूरा होने के बाद ही लागू किया जा सकता है।

अगला परिसीमन अभ्यास, या निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का पुनर्निर्धारण, 2026 में होने वाला है। प्रभावी रूप से, इसका मतलब है कि लोकसभा में महिलाओं के कोटा का जल्द से जल्द कार्यान्वयन अगले साल के चुनावों के बजाय 2029 के आम चुनाव में हो सकता है। यानी ‘सैद्धांतिक रूप से 2029 चुनाव का आईना दिखा दिया गया है। वैसे भी महिला मतदाता भारत में कम थोड़े हैं।

इसी सोच-विचार में था ही कि वहां एक महिला सुरक्षाकर्मी दिखीं। वे भी हाँ-में-हाँ मिला रही थीं। उनके चेहरे पर भी उदासी थी। यह देखते मैं एक प्रश्न उनसे किया और पूछा: “मोहतरमा एक प्रश्न पूछें आपसे?

वे सहर्ष स्वीकारते हामी भरीं।

मैंने पूछा: “क्या जब उन्हें माहवारी का समय होता है तो उस कठिन पांच दिनों में कंपनी के तरफ से कोई सुविधा उपलब्ध है अथवा नहीं है? मसलन ‘छुट्टी की व्यवस्था, जहाँ आप काम करती हैं वहां सेनेटरी पैड की व्यवस्था? या इस परिसर में आम महिला पर्यटकों के लिए सेनेटरी पैड की व्यवस्था?”

मेरा प्रश्न सुनते ही उनका चेहरा लाल हो गया। मुझे उम्मीद हैं ऐसी प्रश्न कोई पुरुष पत्रकार नहीं करते होंगे। वजह भी था कि पिछले दिनों जब ‘माहवारी’ पर एक कहानी कर रहा था तो कनॉट प्लेस में कुछ नवयुवतियां प्रश्नों को सुनकर ‘तिलमिलाने के जगह फक्र से कहीं कि महिलाएं स्वयं अपनी समस्याओं को समाप्त करने में आगे नहीं आती हैं। यह दुखद है।

SIS की महिला सुरक्षाकर्मी 787 साल पुराने ‘स्लेव डाइनेस्टी’ के प्रतिक चिन्ह के सामने खड़ी थीं और आज़ाद भारत में विधि-विधानों के साथ-साथ भारत के तथाकथित ‘संभ्रांतों’, ‘व्यापारियों’, व्यवसायिओं’, ‘नेताओं’, ‘अभिनेताओं’ का चेहरा दिख रहा था।

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तभी मोबाईल पर घंटी बजी। नंबर अनजान था।

हेल्लो!!! कहा ही था कि दूसरे छोड़ से आवाज आयी ‘शिवनाथ जी !!”

मैं ‘हुकुम’ शब्द से उनका अभिनन्दन किया। उनकी आवाज से उम्र का अंदाजा लग रहा था। कोई 80 वर्ष के अवश्य थे।

फिर कहते हैं: “आप शायद मुझे पहचान जायेंगे। मैं आपको नब्बे के दशक से जानता हूँ जब आपकी कहानी संडे पत्रिका में पढ़ा था। वह कहानी संडे पत्रिका का कवर था और विषय था ‘फूलन देवी’ FROM DACOIT QUEEN TO CELEBRITY आपने लिखा था: She is better known than Madhuri Dixit, attracts bigger crowds than Sri Devi, has more political clout than Maneka Gandhi, and has a higher international media profile than Medha Patekar.” मैं आपको जानता हूँ। आपसे मेरी बात भी हुई हैं।”

उनकी बातें मानस पटल पर राजधानी एक्सप्रेस जैसे दौड़ रही थी। अचानक क्षमा याचना करते प्रणाम किया। वे फोन पर ही हंसने लगे। मैं फिर क्षमा याचना किया।

वे कहते हैं: “मैं आपको फूलन देवी की उस कहानी के बाद से लगातार पढ़ते आया हूँ। आप जिन-जिन अख़बारों में काम किये जानता हूँ, पढता आया हूँ। आपकी एक कहानी ऑस्ट्रेलिया के रेडियो पर भी सुना था। फिर आपके बारे में वॉइस ऑफ़ अमेरिका, बीबीसी पर भी सुना। मेरा आशीष है आपको। आप दरभंगा के महाराजा द्वारा स्थापित अख़बार, जो कई वर्ष पहले बंद हो गया, वेबसाइट भी बनाये हैं।”

उनकी बातों को सुनकर मैं स्तब्ध था। वे भारतीय पत्रकारिता के साथ-साथ मुंबई बॉलीवुड का एक हस्ताक्षर हैं, वर्षों से। वे बॉलीवुड में अभिनेता भी नहीं हैं, अभिनेता बनाते हैं।”

फिर कहते हैं: “आपके आर्यावर्तइण्डियननेशन वेबसाइट पर अभी एक कहानी देखा हूँ । बहुत बेहतरीन लिखा है आपने। मुद्दत बाद पढ़ा हूँ ऐसी कहानी, सत्यता के उत्कर्ष की। बहुत अच्छी कहानी है। बहुत अच्छा लिखें हैं। मैं एक फिल्म निर्माता हूँ। स्वाभाविक है मैं कहानी को उस नजर से देखूंगा। यह एक बेहतरीन फिल्म स्क्रिप्ट है। इसे आप डेवेलप करें। इस कहानी से सम्बंधित अपनी नजर से उन सभी बातों को एकत्रित करें, शोध करें। आप स्क्रिप्ट लिखें। मैं सुधार दूंगा। इस पर काम करें। एक बेहतरीन फिल्म बनाएंगे।”

इल्तुतमिश के इस दरगाह पर जहाँ एक ओर आज़ादी के 76 साल बाद भी निजी क्षेत्र के सुरक्षा एजेंसियों का मालिक महिलाओं को मासिक धर्म के समय भी ‘अधर्मी’ होकर ‘अवकाश’ नहीं देते, छुट्टी नहीं देते, सेनेटरी पैड उपलब्ध नहीं कराते, वे भी बेटी बचाओ का नारा देते हैं – वहीँ दूर से कोई सत्यता को उजागर करने के लिए खुलकर लिखने को कहते हैं। ओह !!!!!

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