“किताब” पढ़ना और “ई-किताब” पढ़ना: वैसे ही जैसे प्रेयषी को स्पर्श कर अन्तःमन से गपशप करना और पर्स में रखे उनकी तस्वीर को अपनी बात बताना

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अगर इंटरनेशनल स्टैण्डर्ड बुक नम्बर (आई.एस.बी.एन.) को भारतीय प्रकाशकों का एक मापदंड माने तो भारत में तक़रीबन 19,000 से अधिक ऐसे प्रकाशक हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से किताबों के प्रकाशन में लगे हैं और 90,000 से अधिक टाइटिलों में प्रत्येक वर्ष पुस्तकों का प्रकाशन होता है।

ऐसा माना जाता है कि भारतीय पुस्तक बाजार अगले दो वर्षों में तक़रीबन 740 मिलियन रुपये का बाजार हो जायेगा और आने वाले समय में, चाहे इन्टरनेट वाला ई-किताब कितना भी अधिपत्य ज़माने की कोशिश करें, पाठकों की मानसिकता पर कितना भी कब्ज़ा ज़माने का प्रयास करे, अन्ततः पाठक अपने हाथों में किताब लेकर ही पढ़ना पसन्द करेंगे चाहे बच्चे हों, युवक- हों या बुजुर्ग।

यह भी माना जा रहा है कि इन्टरनेट के विस्तार और इन्टरनेट-बाजार जिसके माध्यम से भारत के लोग घर बैठे सूई से नमक-हल्दी तक मंगाते हैं, किताब भी एक अहम् हिस्सा हो गया है। यह अलग बात है की 18 और अधिक उम्र के लोगों की शुरूआती अभिरुचि ई-किताब की ओर अधिक है, परन्तु “मुफ्त में मिली सुविधाओं कारण ई-किताब पाठकों के मानस-पटल पर वह छाप नहीं छोड़ पता, जो एक किताब छोड़ता है।

दिल्ली के दरियागंज इलाके के एक बुजुर्ग प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता, जिन्होंने अपने जीवन के ७५ से अधिक बसंत किताबों के पन्नों को सूंघते-सूंधते, किताबों के लिए कागज़ का जी.एस.एम. निर्धारित करते, सूतली से प्लास्टिक रस्सी तक किताबों के बंडलों को बांधते, अपने कन्धों पर किताब उठाते जीवन यापन किये हैं, कहते हैं: “विज्ञानं है, समय है – परिवर्तन स्वाभाविक है। लेकिन किताबों को हाथों में लेकर पढ़ने में वही मजा है जो अपनी प्रेयसी के कन्धों पर हाथ रखकर, घंटों उनके जुल्फों को पलटते, अन्तःमन से अपने बारे में, परिवार के बारे में, बाते करने में आनन्द आता है, संतुष्टि मिलती है। ई-किताब पढ़ने में शायद वह स्पंदन नहीं होता होगा। मुझे लगता है जैसे जेब में रखे बटुआ से अपनी प्रेयषी का फोटो निकालकर झट-पट अपनी बातें सुना देना, वह भी मुफ्त में। ”

औसतन एक ‘वास्तविक पाठक’ एक सप्ताह में न्यूनतम दो किताब अवश्य पढता है – चाहे वह खरीदकर पढ़े अथवा अपने दोस्तों, सम्बन्धियों से मांगकर। इसलिए यह कभी नहीं माना जा सकता कि भारतीय पुस्तक प्रकाशन का बाज़ार खतरे में है।

संतोष कुमार मिश्रा कहते हैं: “हम तो किताब ही पढ़ते हैं। ई-किताब पसन्द नहीं है। किताब पढ़ने में आसानी होती है, कुछ जरूरी शब्द या वाक्य को अंडरलाइन कर बाद में उसे पढ़ सकते हैं, लेकिन ई-किताबें में ये सब सम्भव नहीं है। ई-किताबें पढ़ने में दिक्कतें हैं। आजकल लोग इंटरनेट पर ही किताबें पढ़ लेते हैं, क्योंकि मुफ्त में बहुत सारी किताबें उपलब्ध है।”

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इतना ही नहीं, भारतीय पुस्तक बाजार में लगे लोग, चाहे प्रकाशक हों अथवा पुस्तक विक्रेता, इस बात को मानकर चलते हैं कि भारत ही नहीं, विश्व पुस्तक बाजार में प्रत्येक वर्ष 25 से 30 फीसदी पाठकों में वृद्धि होती है। यह वृद्धि भारतीय भाषाओँ में प्रकाशित पुस्तकों के कारण तो हैं ही, अंग्रेजी पुस्तकों के प्रति पाठकों की अभिरूच अधिक होने के कारण भी है। यह अलग बात है कि विश्व बाजार में पुस्तकों के प्रकाशन मूल्यों की तुलना में, भारत में पुस्तक प्रकाशन का मूल्य काम होता है; इसलिए विदेशी लेखकों द्वारा प्रकाशित पुस्तकें भारतीय पुस्तक बाज़ार में “पायरेटेड किताबों” का अथाह समुद्र है।

मैक्मिलन पब्लिशर्स इंडिया के लेखक, इंडो-अमेरिकन चैम्बर ऑफ़ कामर्स के सदस्य और फिल्म निर्देशक यशेंद्र प्रसाद “किताब पढ़ना” पसंद करते हैं। इसी तरह भारत संचार निगम लिमिटेड में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत अमर यादव भी किताब पढ़ना पसंद करते हैं। उनका कहना है कि वे ई-किताब भी पढ़े, परन्तु पढ़ने में उन्हें वह महसूस नहीं हुआ जी किताब पढ़ने में होता है।

इंटरनेट आने के बाद ई-पुस्तकों का दौर शुरू हुआ और इसके रफ्तार पकड़ने से प्रकाशकों तथा पाठकों के ज़हन में प्रकाशित किताबों के भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे। लेकिन पिछले दिनों नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में आए प्रकाशकों की मानें तो ई-पुस्तकों का दायरा बढ़ने के बावजूद प्रकाशित किताबों की धूम बरकरार है और पाठक इन्हें ही तरजीह रहे हैं।

प्रकाशकों का कहना है कि ई पुस्तक और प्रकाशित किताबों का बाजार अलग-अलग है। वक्त के साथ नए-नए माध्यम आते हैं मगर नए माध्यम आने से पुराने की चमक फीकी नहीं पड़ती है। हालांकि उनका मानना है कि पाठक सफर के दौरान ई-पुस्तक पढ़ना या सुनना चाहेंगे लेकिन पाठकों ने किताब को सीने पर रखकर सोने या सिरहाने रखने की अपनी आदत को बदला नहीं है।

वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण महेश्वरी का कहना है कि ‘‘जब ई-पुस्तक आना शुरू हुई तो प्रकाशकों में हलचल हुई कि अब प्रकाशित पुस्तकों को कौन खरीदेगा लेकिन यह सब हमारे लिए माध्यम साबित हुए। यह हमारे लिए सहयोगी हैं। इसमें एक-दूसरे के लिए विरोधाभास नहीं है, जिसे जिस माध्यम पर पढ़ना है वह उस माध्यम पर पढ़ सकता है। मकसद यह है कि आप पेश क्या कर रहे हैं।’’

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वे फिर कहते हैं कि गाड़ी चलाने के दौरान या सफर में किताब को पढ़ने के बजाय ऑडियो पुस्तक से किताब सुनी जा सकती है लेकिन ऐसे पाठक अब भी मौजूद हैं जो अपने सीने पर किताब रखकर सोना चाहते हैं या अपने बिस्तर के सिरहाने किताब रखना चाहते हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्ववर्ती छात्र शान कश्यप का कहना है की वे ई-किताब पढ़ना पसन्द करते हैं। इसके तीन कारण है। कई किताबें बहुत महंगी होती है और ई – किताबें मुफ्त में डाउन लोड हो जाती है। दूसरी बात – अपनी किताबों को गन्दा करना बिलकुल पसंद नहीं है, लेकिन ई – किताबों में अण्डर लाईन, हाइलाइटिंग, बुकमार्क, कमेंट आदि लिख पाता हूँ। तीसरी बात कि हज़ारों ई-किताबें मेरे फोन में हमेशा रेडी रेफरेंस के लिए मौजूद रहती है।

भारत में विज्ञान को हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओँ में विकसित तथा सुदृढ़ करने वाला एक मंच साइन्स विन्स के सह-संस्थापक आशुतोष सिंह का कहना है कि वैसे वे किताब पढ़ना पसंद करते हैं, परन्तु ई-किताब का भविष्य है। आशुतोष जी मुंबई फिल्म जगत में लिखते भी हैं और संगीतकार भी हैं। वे यह भी मानते हैं कि तकनिकी के विकास के साथ साथ समयान्तराल में यह प्रोन्नत करेगा और कीच-कीच को भी कम करेगा।

ई-पुस्तक (इलैक्ट्रॉनिक पुस्तक) कागज की बजाय डिजिटल रूप में होती हैं जिन्हें कम्प्यूटर, मोबाइल एवं अन्य डिजिटल यंत्रों पर पढ़ा जा सकता है। पटना के पत्रकार अमित सिन्हा कहते हैं कि “ई-किताब मुफ्त में उपलब्ध होता है। यह चलनशील है। इसे लेखक की प्रतियां ख़रीदे बिना पढ़ा भी जा सकता है और बाँटा भी जा सकता है। इतना ही नहीं, ई-किताब को पढ़ने के लिए रौशनी की जरुरत नहीं होती और इसे मोबाईल पर भी पढ़ा जा सकता है।

ई- पुस्तक, ऑडियो पुस्तक, हार्ड बाउंड किताबें तथा पेपर बैक किताबें यह सब अलग-अलग चीजे हैं और बाजार सभी के लिए अपनी-अपनी किस्म का है जिसको जो चाहिए उसको वो मिलता है। राजकमल प्रकाशन के प्रबंधक अशोक महेश्वरी अनुसार नई किताबें इसलिए आ रही हैं क्योंकि उनकी मांग है। वक्त के साथ नए माध्यम आएंगे जो अपने पुराने माध्यमों (किताबों) के समानांतर अपनी जगह बनाएंगे। नए माध्यमों के आने से किताबों की बिक्री कम नहीं हुई है। ई-पुस्तक और ऑडियो पुस्तक का जो दौर आ रहा है वो अपनी जगह बनाता जाएगा। अगर कोई सफर में होगा या चल रहा होगा या जल्दी में होगा तो वह ई-पुस्तक पढ़ेगा या ऑडियो पुस्तक सुनेगा, लेकिन जब उसके पास वक्त होगा और वह आराम से पढ़ना चाहेगा तो वह प्रकाशित किताब ही पढ़ेगा। इसलिए ई-पुस्तक और प्रकाशित किताब का बाजार अलग है और इनमें कोई विरोधाभास नहीं है।

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जब इंटरनेट आया था लोग कहते थे कि रोजगार खत्म हो जाएंगे लेकिन अब हम देखते हैं कि रोजगार बढ़े हैं। ऐसा ही ई-पुस्तक को लेकर भी है। ई-पुस्तक आने से प्रकाशित किताबों पर असर नहीं पड़ा है, यह आम पाठकों, प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं का मानना है। लोग अपनी रुचि के अनुसार किताबें पढ़ने का माध्यम चुन सकते हैं लेकिन जरूरी यह है कि लोगों में पढ़ने की आदत पड़े। इलाहाबाद उच्च न्यायलय में कार्यरत जबकि अनुज वर्मा भी किताब पढ़ना ज्यादा पसंद करते हैं। अगर ई किताब पहले मिली तो कोई बात नहीं।

कुमार कौस्तुभ जो पिछले कुछ दिन पहले से ई-किताब पढ़ना शुरू किया है, का कहना है कि “ई- किताब मोबाईल पर कहीं भी पढ़ी जा सकती है और घर में जगह भी नहीं घेरती। ख़राब होने का सवाल नहीं होता है। चूहों को बुलाबा नहीं देती। इसका प्रकाशन भी आसान है, इसलिए इन्हे ई-किताब पसंद है। अभी तक ये दो किताब किण्डल पर डाल चुके हैं। जबकि मोहम्मद रिज़वान अहमद कहते हैं: “मैं जब भी किताब के बाजार में जाता हूँ तो पुराने लेखकों और साहित्यकारों की किताब ढूंढता हूँ और मिल जाने पर तुरंत खरीद लेता हूँ।

इसी तरह दमन में रहने वाले सरोज झा कहते हैं: “मैं दोनों प्रतिलिपियों का नियमित पाठक हूँ। लेकिन खरीदता किताब की दूकानों से हूँ। ऑनलाईन अनुभव खराब है। मोहम्मद शाहवार खान कहते हैं की वे हार्ड कॉपी पढ़ना पसंद करते हैं। महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह कल्याणी फाऊंडेशन, दरभंगा के प्रशासनिक अधिकारी श्रुतिकार झा भी ई – किताब की अपेक्षा किताब पढ़ना अधिक पसंद करते हैं। (भाषा के सहयोग से)

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  1. विश्लेषण और रपट का बेहतरीन मिश्रण है. पुस्तक बाजार की रूप-रेखा और पाठकों की पसंद का संतुलित लेखा-जोखा है.

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