‘गंधराज’, ‘शंख’, ‘बीज-रहित’ प्रजाति की निम्बुओं की खेती कर ‘आत्मनिर्भर’ बनें, ‘निम्बू के खट्टापन से अपने जीवन में मधुरता लाएं’ (भाग-3)

समर शैल नेचुरल फॉर्म के संस्थापक श्री हिमकर मिश्रा अपने फार्म के निम्बुओं के बीच

रामनगर / पटना / नई दिल्ली : क्या आप जानते हैं कि ‘गंधराज’ और ‘शंख’ निम्बुओं की मांग राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कितनी है? औषधि गुण से भरपूर इन दो नीम्बुओं की प्रति किलो कीमत क्या हो सकती है? बीज-रहित निम्बू के पैदावार और व्यापार से एक गाँव की बेरोजगारी की समस्या कैसे समाप्त हो सकती है? इन निम्बुओं का घरेलू बाजार ढूंढकर हम निम्बू के उत्पादन को कैसे उद्योग में बदल सकते हैं? अगर नहीं तो पूरे देश में, विदेशों में समूह बनाएं, स्वयं आएं, अपनी आंखों से देखें या फिर इंटरनेट के माध्यम से स्वयं को शक्तिशाली बनाकर बिहार के पूर्णिया जिला के रामनगर क्षेत्र के “समर शैल प्राकृतिक कृषि” से जुड़कर ‘निम्बू के खट्टापन से अपने जीवन में मधुरता लाएं।’

विश्व में नींबू का सबसे अधिक उत्पादन भारत में ही होता है। यहां विश्व के कुल नींबू उत्पादन का 16 प्रतिशत पैदा किया जाता है। भारत में हर साल 3.17 लाख हेक्‍टेयर में नींबू की खेती होती है और सालाना 37.17 लाख टन से ज्‍यादा नींबू का उत्‍पादन होता है। नींबू की कई किस्में होती हैं लेकिन गंधराज निम्बू का जबाब नहीं है। संभव है इसे पढ़कर आप ‘मजाक’ समझ लें, लेकिन सच यही है कि अगर आप गंधराज निम्बू के पेड़ के आसपास से गुजरते हैं तो आपकी आत्मा शीतल हो जाएगी। इसकी खुसबू आपकी नाक के रास्ते सीधे आत्मा तक पहुंचेगी।

यह निम्बू मूलतः भारत के पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, त्रिपुरा आदि राज्यों में अधिक पैदा होता है। और यही कारण है कि वहां के लोग इस निम्बू और उसके सुगंध के दीवाने होते हैं। निम्बू की कई किस्में होती है, मसलन कागजी, प्रमालिनी, विक्रम, चक्रधर, पीकेएम-1 और साईं शर्बती। परन्तु गंधराज निम्बू की बात कुछ अलग है। गंधराज नींबू में अन्य नींबू की तरह विटामिन सी की प्रचुरता तो होती ही है लेकिन इसके पत्तों और छिलकों को भी औषधीय उपयोग में लाया जाता है। इसका सेवन रोगों को दूर भगाने और रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाने में किया जाता है। इसका उपयोग खट्टी डकार, मितली, उल्टी, पेट दर्द, मुंह से बदबू आने, मुंहासे, गला दर्द आदि को दूर करने में किया जाता है।

मिश्रा-दंपत्ति और प्रकृति की पूजा

गंधराज को बिहार के मिथिला क्षेत्र में जमीरी नींबू और अंगिका क्षेत्र में जमाली नींबू कहा जाता है। गंगा तट वाले भागलपुर इलाके में, यानी अंगिका क्षेत्र में गंधराज निम्बू को ‘संतरास‘ भी कहते हैं । अगर शाब्दिक अर्थ से देखें तो ‘तरास’ (त्रास) का अर्थ बहुत जोरों से प्यास लगना होता है। इसी तरह, बंगाली भाषा-भाषी क्षेत्र में गंधराज निम्बू को वहां रहने वाले लोग ‘खुशबू का राजा’ से अलंकृत करते हैं। शायद इस तरह का नामकरण इस निम्बू की सुंदरता के कारण हुआ हो। वैसे ‘गंधराज’ एक पुष्प का भी नाम होता है। खैर।

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आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम से बात करते समर शैल नेचुरल फॉर्म के संस्थापक श्री हिमकर मिश्रा कहते हैं: “कागजी निम्बू की तुलना में ‘शंख और गंधराज निम्बू औषधि की दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। गंधराज नींबू के रस और छिलके से कैंसर जैसे असाध्य रोग का इलाज किया जाता है। इसी वजह से विदेशों में इसकी मांग काफी अधिक है। हम अब तक अपने फार्म में लगभग एक लाख गंधराज नींबू के पौधे लगाए हैं। और अभी पचास हज़ार पौधे और लगाने हैं। गंधराज नींबू बांग्लादेश के रंगपुर से आया है। गंधराज नींबू को रंगपुरा नींबू के नाम से भी जाना जाता है। इस नींबू की खेती असम और बंगाल में भी की जाती है।”

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को उद्धृत करते श्री हिमकर मिश्रा कहते हैं “प्रधानमंत्री ने अपने एक भाषण में कहा था कि “आप स्वयं उत्पादन करें। अपने उत्पाद को देश के किसी भी बाजार में बिना रोक-टोक के निश्चित कीमत पर बेचकर जीवन को बेहतर बनायें। यह महज कोई शब्द नहीं, बल्कि इस आह्वान को क्रियान्वित कर कभी ‘काला पानी’ से अलंकृत ‘पूर्णिया’ जिले के रामनगर क्षेत्र में अब तक गंधराज, शंख और बीज रहित निम्बुओं के तक़रीबन एक लाख से अधिक पौधों को तैयार किया गया है, जो न केवल आज, बल्कि आने वाले समय में उस क्षेत्र के न केवल श्रमिकों को, बल्कि लोगों को भी सम्मुन्नत बनाएगा। भारत के घरेलू बाज़ारों के अलावे, विश्व के अंतर्राष्ट्री बाज़ारों में भी अब रामनगर या यह ‘औषधि गुणों से भरपूर निम्बू दिखेगा।”

श्री मिश्रा का कहना है कि “थाईलैंड में उत्पन्न बीज रहित नींबू एक छोटी सदाबहार वृक्ष प्रजाति है। पेड़ के दीर्घवृत्ताकार पीले फल का उपयोग दुनिया भर में पाक और गैर-पाक दोनों अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है, मुख्य रूप से इसके रस के लिए। दुनिया भर में पाक और गैर-पाक उपयोग के लिए खाना पकाने और बेकिंग में उपयोग किया जाता है। हालांकि गूदे और छिलके का भी उपयोग किया जाता है। नींबू के रस में लगभग 5% से 6% साइट्रिक एसिड होता है।”

श्री मिश्रा इस बात को स्वीकारते हैं कि “पिछले कुछ वर्षों में बीज रहित नींबू की मांग बाजार में तेजी से बढ़ी है। अगर किसान धैर्य के साथ, ईमानदारी से इस फसल की खेती करें तो इससे अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते है। नींबू की खेती के लिए हल्की व मध्यम उपज वाली बलुई दोमट मिट्टी सही रहती है, जिन क्षेत्रों में लंबे समय तक सर्दी होती है और पाला पड़ने की संभावना रहती है, वहां के लिए नींबू की खेती सही नहीं होती है। रात औैर दिन के तापमान का सामंजस्य फलों में अच्छे रंग, मिठास और गुणवत्ता के विकास में मददगार साबित होते हैं।”

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बहरहाल, पूर्णिया के रामनगर इलाके में उपजे गंधराज और शंख नींबू की चर्चा आज दुनिया भर में हो रही है। विदेशी लोग, खासकर जो चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़े हैं, उनका मानना है कि कैंसर जैसे गंभीर रोग की रोकथाम भी में इस नीबू का इस्तेमाल को तबज्जो दे रहे हैं। विगत दिनों मुंबई के एक कंपनी के माध्यम से 50 हजार टन नींबू की खरीदारी कर इसे फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी, हॉलैंड और दुबई जैसे अन्य देशों में निर्यात करने का प्रस्ताव किया गया । श्री मिश्रा का कहना है कि “मुंबई की ब्रिंग इंटीग्रेटेड लाजिस्टिक कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी इस फॉर्म के लोगों से, किसानों से, उत्पादकों से मिले। भारतीय बाज़ारों में गंधराज नीबू की कीमत 300 रुपये प्रति किलो है।

फार्म पर काम करती महिला श्रमिक

आम तौर पर खान-पान से जुड़ी एक बीमारी पथरी की होती है, जिसमें व्यक्ति के भीतरी अंगों में मिनरल्स और नमक आदि के धीरे-धीरे इकट्ठा होने से एक ठोस जमावट हो जाती है। पथरी के कारण किडनी के आसपास कई बार बहुत भयानक दर्द होता है और इससे मूत्र मार्ग में अवरोध भी उत्पन्न हो सकता है। पथरी के रोगियों में सबसे ज्यादा लोग गुर्दे यानि किडनी की पथरी से परेशान होते हैं। लेकिन किडनी की पथरी को कुछ प्राकृतिक उपचारों से आसानी से ठीक किया जा सकता है।

शरीर में बने पथरी और उसे निकालने में इस निम्बू की महत्ता को बताते श्री हिमकर मिश्रा कहते हैं: “नींबू के रस में साइट्रिक एसिड की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जो धीरे-धीरे ऑक्जालेट और सोडियम आदि तत्वों के इस जमाव को घुलाता रहता है। घुलने के बाद पथरी के छोटे-छोटे कण मूत्र मार्ग से ही निकलते रहते हैं। इसके अलावा अगर आप निम्बू के रस का ऐसा प्रयोग रोज करते हैं तो शरीर में अतिरिक्त पदार्थों का अनावश्यक जमाव नहीं होता है और पथरी बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। पथरी के रोगी को डॉक्टर भी यही सलाह देते हैं कि ज्यादा से ज्यादा पानी पियो और तरल पदार्थों का सेवन करो। ऐसे में बहुत सारे लोग दिनभर पानी पीते-पीते ऊब जाते हैं तो नींबू पानी पीना उन्हें स्वादिष्ट भी लगता है और इससे उनके शरीर में पानी की कमी भी नहीं होती है। पानी शरीर के विषाक्त और दूषित पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है इसलिए इसे पीना पूरे शरीर के लिए लाभदायक होता है।”

बहरहाल, बीज रहित नींबू, जिसका करीब 30, 000 पेड़ समर शैल प्राकृतिक बगीचे में हैं, संकर मूल का होता है, जो कि खट्टा नींबू (साइट्रस औरंटीफोलिया) और बड़ा नींबू (साइट्रस लिमोन) या चकोतरा (साइट्रस मेडिका) के बीच एक सलीब का होता है। यह एक मध्यम आकृति का, लगभग कॉटे रहित वृक्ष है, जो कि विस्तृत फैल, झालरदार शाखाओं के साथ 4.5 से 6.0 मीटर (15 से 20 फीट) लंबा होता है। बीज रहित नींबू को फ़ारसी में नींबू या ताहिती नींबू के रूप में भी जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम है ‘साइट्रस लैटिफ़ोलिया’ जो कि रुटेसी परिवार से संबंध रखती है। इसका फूल हल्का बैंगनी के साथ सफेद रंग के होते है। फल अंडाकार या आयताकार है जो कि 4 से 6.25 सेंटीमीटर (1.5 से 2.5 इंच) चौड़े और 5 से 7.25 सेंटीमीटर (2 से 3 इंच) लंबे होते है।

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इतना ही नहीं, श्री मिश्रा आगे कहते हैं कि “हृदय रोगों, और दिल के दौरे के विरुद्ध रोकथाम के लिए भी जाना जाता है। इसमें फ्लेवोनोइड (लिमोनिन ग्लूकोसाइड) नामक विशेष यौगिक शामिल है, जिसमे ऑक्सीकरण रोधी, कर्कटजनक-विरोधी, जीवाणुनाशक तथा विषैला पदार्थों को हटानेवाले गुण है, जो कि पाचक और मौखिक व्रण की चिकित्सा प्रक्रिया को प्रोत्साहित करती है। कैम्प्फ़ेरोल की उपस्थिति के कारण इसे बाम, वापाधारक और साँस खींचनेवाला जैसे विरोधी कंजेस्टिव दवाओं में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।”

इस प्रजाति के निम्बू के महत्व को बताते श्री मिश्रा कहते हैं: “त्वचा को कायाकल्प करता है और इसे संक्रमण से बचाता है। इसके अंदर उपलब्ध अम्ल त्वचा की मृत कोशिकाओं को साफ़ करते है और रूसी, चकत्ते और घावों का इलाज करते है। इसकी एक अनूठी सुगंध है जो प्राथमिक पाचन में सहायक होती है। घुलनशील फाइबर का उच्च स्तर इसे एक आदर्श आहार सहायक बना देते है, जिससे रक्तधारा में शरीर के शर्करा का अवशोषण को नियंत्रित करने में मदद कर सके।”

बहरहाल पूरी तरह परिपक्व होने पर फल पीलापन लिये हुए हरा या बिलकुल पीले रंग के हो जाते है। फल का गूदा रसदार, पर फल में एक सुगंधित, मसालेदार सुगंध और तीखा स्वाद होता है। वाणिज्यिक कृषि के प्रयोजनों के लिए इसमें दुसरे नींबू की तुलना में कई फायदे है, जैसे बड़ा आकृति, बीज की अनुपस्थिति, प्रतिकूल वातावरण में रहने की सहिष्णुता, झाड़ियों पर कांटों की अनुपस्थिति, और लंबे समय तक फलों के शेल्फ जीवन। यह सारी खूबियां संयुक्त रूप से बीजरहित नींबू के पोधे को अधिक व्यापक रूप से खेती करने के लिए सर्व-प्रिय बना देते है। यह पहली बार दक्षिणी इराक और ईरान में वाणिज्यिक रूप से उगाया गया था। मैक्सिको अब अमेरिकी, यूरोपीय और एशियाई बाजारों के लिए बीजरहित नींबू का प्राथमिक उत्पादक और निर्यातक है।

क्रमशः

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