‘राजनेता’ अतीक अहमद सोचा नहीं होगा अशरफ के साथ उसका अंत प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल के सामने सड़क पर इस कदर होगा….. ठांय..ठांय..ठांय..ठांय

अतीक अहमद कभी सोचा नहीं होगा की उनका अंत अशरफ के साथ प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल के सामने सड़क पर इस कदर होगा ठांय ठांय ठांय ठांय। तस्वीर: वीडियो फुटेज से

प्रयागराज/नई दिल्ली: इलाहाबाद पश्चिम से लगातार पांच बार उत्तर प्रदेश विधान सभा में और फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के अभ्यर्थी के रूप में लोकसभा तक की यात्रा तय करने वाले, साथ ही, सौ से अधिक आपराधिक मुकदमों के नामज़द अपराधी अतीक अहमद अपने भाई अशरफ अहमद के साथ कल देर रात रक्तरंजित प्रयागराज की सड़कों पर ढ़ेर हो गया। दोनों 15 अप्रैल 2023 को पुलिस की सुरक्षा में नियमित जाँच के लिए अस्पताल ले जा रहे थे। मार्ग में भी लवलेश तिवारी, सनी और अरुण मौर्य के द्वारा पुलिस सुरक्षा के बीच गोली मार कर हत्या कर दी। भारतीय आपराधिक जगत में शायद यह पहला दृष्टान्त होगा जब फायरिंग का लाइव रिकॉर्डिंग हो पाया। कहते हैं अपराधी ‘पत्रकार’ के रूप में अतीक अहमद और अशरफ अहमद तक पहुँचने में सफल हुए थे। 

जिस फ़िल्मी अंदाज में तीन अपराधियों ने दो नामी अपराधियों को मौत का घाट उतारकर स्वयं मौके वारदात पर उपस्थित पुलिसकर्मियों के हाथों सुपुर्द किया, आने वाले समय में भारतीय पत्रकारों के वजूदों पर एक प्रश्नचिन्ह लगाएगा। जिस तरह तीनों अपराधी स्वयं को पत्रकार कहकर आगे आये और अतीक अहमद तथा अशरफ अहमद को ठांय ठांय ठांय ठांय कर दिए, भारत का सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री, देश के प्रधानमंत्री भारतीय पत्रकारिता की गरिमा को बचाये रखने, बनाये रखने के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगे, यह भी एक अहम्उ प्रश्न है।  पत्रकारों के भेष में जब अपराधी कलम की जगह बंदूक और कारतूस लेकर आगे आएंगे तो यह आने वाले दिनों के लिए शुभ संकेत कदापि नहीं है। 

उमेश पाल हत्याकांड के सिलसिले में प्रयागराज लाए गए अतीक अहमद और अशरफ अहमद की शनिवार रात गोली मार कर हत्या कर दी गई। जिस वक्त के घटना हुई तब पुलिस दोनों का मेडिकल कराने लेकर जा रही थी। अतीक और अशरफ के हत्यारे मीडिया कर्मी बन कर आए थे। मेडिकल के लिए जब अतीक और अशरफ को अस्पताल की ओर लेकर जाया जा रहा था, उस दौरान दोनों भाई मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे थे। मेडिकल के लिए जा रहे अतीक मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा- मेन बात ये है कि गुड्डू मुस्लिम… इतना कहते ही अतीक और अशरफ पर हमला हो गया और दोनों वहीँ ढ़ेर हो गए। 

वरिष्ठ पत्रकार संजया कुमार सिंह अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं कि “अव्वल तो पुलिस का होना या पुलिस की व्यवस्था का मतलब है आम लोगों की सुरक्षा। पुलिस किसी को गिरफ्तार या हिरासत में लेती है इसका भी परोक्ष मतलब बाकी लोगों की सुरक्षा ही है। सुरक्षा के इस बुनियादी उद्देश्य के आलोक में जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए या जो पुलिस हिरासत में हो उसकी सुरक्षा कम महत्वपूर्ण नहीं हो सकती है। पुलिस का काम कानून का पालन करना और करवाना है। लेकिन इसके लिए वह हिंसा का सहारा नहीं ले सकती है। ना जबरदस्ती कर सकती है। ना ही किसी को बांध सकती है और ना ऐसा कोई अमानवीय काम कर सकती है। इसलिए पुलिस का रौब होता है। इसलिए उसके काम में बाधा डालना अपराध है और उसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकारी अनुमति चाहिए होती है।”

सिन्ह ने आगे लिखा है कि “स्पष्ट है, पुलिस को हिरासत में व्यक्ति की न सिर्फ रक्षा करनी है, उसका सम्मान भी करना है। अपराधी पुलिस के लिए नागरिक ही है और वह उसकी शरण में इसलिए है कि वह अपराधी है वरना आम आदमी को पुलिस हाथ भी क्यों लगाए? इसलिए पुलिस अपराधी से भी अलग व्यवहार नहीं कर सकती है और चूंकि कानून की नजर में सब बराबर हैं तो कथित वीआईपी के लिए जो सब किया जाता है वही पुलिस हिरासत में आम व्यक्ति या अपराधी के लिए किया जाना चाहिए। अपराधी को सजा देना पुलिस का काम नहीं है। सजा देने का काम कोर्ट का है और वह तय है। इस व्यवस्था में पुलिस हिरासत या जेल अपराधी के लिए सुरक्षा कवच की तरह है ताकि उसने जिसके साथ अपराध किया है या जो अपराध किया है उसमें न्याय हो सके और इसके लिए उसका जीवित होना जरूरी है। वैसे भी, जो आपके संरक्षण में है उसकी जिम्मेदारी आपकी है। जान तो सबसे कीमती है। ऐसे में पुलिस जेल से अस्पताल ले जा रहे किसी अपराधी को बाइट दिलाने के लिए क्यों रुकेगी या क्यों लेने देगी? मुझे ऐसी कोई जरूरत या गुंजाइश ही नहीं दिखती है। बाइट के लिए रुकना और मारा जाना – मेरी नजर में मिलीभगत है, सिर्फ मिलीभगत।”

अतीक के वकील विजय मिश्रा के मुताबिक, अतीक और अशरफ को प्रयागराज के धूमनगंज थाने से मेडिकल के लिए ले जाया गया था। मिश्रा के मुताबिक, पत्रकारों की भीड़ में से किसी ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर अतीक और अशरफ की हत्‍या कर दी। हत्‍यारों के मीडियाकर्मियों के भेष में सामने आने की बात सामने आ रही है। उनके पास से मीडिया का कार्ड भी मिला है। घटना के वक्‍त अतीक और अशरफ के पैरोकार वकील थोड़ी दूरी पर खड़े थे। हत्‍यारों ने पत्रकारों के बीच से निकलकर पहले अतीक के सिर में गोली मारी।दरअसल, इस हत्याकांड में एक पल्सर मोटरसाइकिल का उपयोग किया गया था। इसी मोटरसाइकिल से हमलावरों के आने का दावा किया जा रहा है। इसका नंबर UP70-M7337 बताया जा रहा है। वहीं सूत्रों का दावा है कि मोटरसाइकिल का ये नंबर फर्जी है। हालांकि अभी इसकी जांच चल रही है कि बाइक कहां से लाई गई थी। 


प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल जाते समय घटना के चंद सेकेंड पूर्व

शनिवार को रात के करीब 10 बजे का वक्त था। खबर आई कि अतीक और अशरफ को रूटीन चेकअप के लिए प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल लाया जा रहा है। उमेश पाल मर्डर केस में अतीक और अशरफ से पुलिस पूछताछ कर रही है। इसके चलते दोनों को मेडिकल चेकअप कराया जाता है। शनिवार को जैसे ही अतीक के अस्पताल पहुंचने की खबर मिली, मीडिया के लोग वहां पर जुटने शुरू हो गए। वजह भी थी, बेटे के सुपुर्द-ए-खाक होने के बाद पहली बार अतीक मीडिया के सामने आ रहा था। कुछ देर बाद नीले रंग की पुलिस जीप में अतीक और अशरफ को लाया गया। पहले अशरफ जीप से उतरा फिर उसने सहारा देकर अतीक को उतारा। इस दौरान दोनों के हाथों में पुलिस की हथकड़ी थी, जिसके चलते एक-दूसरे से बंधे हुए थे। जीप से निकलने के बाद जैसे ही पुलिस दोनों को लेकर आगे बढ़ी तो मीडिया ने असद को लेकर सवाल शुरू किए। सवाल बेटे असद के एनकाउंटर और उसके जनाजे को लेकर थे। इस बीच अशरफ ने कुछ जवाब देने की कोशिश की। अशरफ के मुंह से बस इतना ही निकला- मेन बात ये है कि गुड्डू मुस्लिम.. तभी अचानक से एक फायरिंग की आवाज आई अतीक गिर पड़ा। गोली सामने से मारी गई थी। अतीक को गोली लगते ही अशरफ मुड़कर देखता है तभी उसे भी गोली लगती है और वह भी गिर गया। इसके बाद अपराधियों ने ताबड़तोड़ ऐसे गोलियां चलाई। 

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प्रत्यक्षदर्शी के एक रिपोर्ट के आधार पर जब ये पूरी वारदात हो रही थी, उस समय मीडिया के कैमरे पूरी तरह ऑन थे। अतीक और अशरफ के दोनों तरफ पुलिसकर्मी चल रहे थे, तभी अतीक के सिर में करीब से एक गोली लगी। अतीक गिर पड़ता है और फिर अशरफ भी जमीन गिर जाता है। मुश्किल से 2 या 3 सेकंड के अंदर ये सब हुआ। इस दौरान दोनों के साथ चल रहे पुलिसवाले भी दहशत में भाग खड़े हुए। पहली गोली से लेकर आखिरी फायरिंग तक सारा वाकया करीब 10 सेकंड में हो गया। अतीक और अशरफ पर ताबड़तोड़ फायरिंग अचानक रुक गई और हमलावर सरेंडर, सरेंडर चिल्लाने लगे। उन्होंने अपने हथियार जमीन पर फेंक दिए। इसके बाद पुलिस एक्टिव हुई और दो लोगों को पकड़ लिया गया। एक हमलावर जमीन पर गिर गया था। पुलिस ने उसे वैसे ही काबू में कर लिया। घटना के बाद चारों तरफ हड़कंप था. प्रयागराज शहर में अजीब सी सिहरन थी। इस घटना ने 25 जनवरी, 2005 में हुए विधायक राजू पाल मर्डर की याद दिला दी। राजू पाल को दिनदहाड़े दौड़ा-दौड़ाकर गोलियों से मारा गया था। अंतर ये था कि तब हत्या का आरोप इन्हीं अतीक और अशरफ पर लगा था, जबकि अब गोलियों का शिकार अतीक और अशरफ हुए। 

बहरहाल, मीडिया कैमरों के सामने बाइट दे रहे अतीक अहमद और अशरफ पर गोलियां बरसाने वाले हमलावरों की पहचान हो गई है। पुलिस ने बताया कि इन आरोपियों के नाम लवलेश तिवारी, सनी और अरुण मौर्य हैं। इन तीनों ने अतीक अहमद और अशरफ को गोली मारने के बाद हाथ उठाकर पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। लवलेश यूपी के बांदा, सनी हमीरपुर और अरुण कासगंज का रहने वाला बताया जा रहा है। अतीक अहमद पर हमला करने वाले तीनों लोग मीडियाकर्मी बनकर भीड़ में शामिल हुए थे। कहा जाता है कि अतीक जमीन हड़पने के लिए हत्या करता था और विरोध में गवाही देने वालों को भी नहीं छोड़ता था। उसका भाई अशरफ भी ऐसा करता था। 

बताया जा रहा है कि आरोपी लवलेश तिवारी बांदा, सनी हमीरपुर और अरुण मौर्या कासगंज का रहने वाला है। लवलेश तिवारी के पिता यज्ञ तिवारी तक मीडिया की टीम पहुंची तो उन्होंने अपने बेटे से किसी प्रकार का संबंध न होने की बात कही। उन्होंने बेटे को लेकर कई गंभीर बातें कही हैं। लवलेश के पिता ने कहा कि हमारा उससे कोई लेना-देना नहीं है। लवलेश कभी-कभार घर आता था। पांच-छह दिन पहले घर आया था। उससे हमलोगों की अधिक बात नहीं होती थी। पिता ने कहा कि वह एक नशेड़ी था। कोई काम नहीं करता है। लवलेश चार भाइयों में तीसरे नंबर पर है। लवलेश के अतीक हत्याकांड में शामिल होने की जानकारी पिता को टीवी के जरिए मिली। लवलेश के पिता ने कहा कि घटना ने उन्हें परेशान कर दिया है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने हमें तो उसके बारे में पता ही नहीं था। टीवी पर खबर चली तो पता चला कि उसने इस घटना को अंजाम दे दिया है। लवलेश तिवारी के पिता ने कहा कि उसने इंटर तक की पढ़ाई पास की है। लवलेश पहले भी एक मामले में जेल जा चुका है। करीब डेढ़ साल तक जेल में वह रहा था। आरोपी अरूण मौर्य कासगंज में सोरों थाना क्षेत्र के गांव बघेला पुख्ता का रहने वाला है। अरूण के पिता का नाम हीरालाल बताया जा रहा है। छह साल से अरूण उर्फ कालिया बाहर रह रहा था। जीआरपी थाने के पुलिसकर्मी की हत्या के बाद अरूण फरार हुआ था। 15 साल पूर्व अरूण के माता-पिता की मौत हो गई थी। अरूण मौर्य की रिश्ते में ताई ने मीडिया को बताया कि कि अरूण दिनों से यहां नहीं आया है, उसकी खेती पड़ी हुई है यहां, 10 से 11 साल की उम्र में यहां से फरार हैं। 

बहरहाल, अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ की शूटआउट में हत्या के बाद उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं। उनका पूरा ध्यान इस घटना के आलोक में राज्य की कानून-व्यवस्था को सुचारू रखने पर है। उन्होंने यूपी डीजीपी समेत तमाम आला अधिकारियों को प्रयागराज जाने के निर्देश दिए हैं और हर 2 घंटे पर अपडेट देने के लिए कहा है। दोनों डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और केशव प्रसाद र्मोर्या के सभी कार्यक्रम भी रद्द कर दिए गए हैं और उनके आवासों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। 

कहा जाता है कि अतीक का विवाह शाइस्ता परवीन से हुआ था। उनके पांच बेटे थे जिनके नाम की अली, उमर अहमद, असद, अहज़ान और अबान थे। जिनमे से एक की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई थी। 1999-2003 के बीच, वह सोने लाल पटेल द्वारा स्थापित अपना दल का अध्यक्ष भी रहा। अतीक अहमद विभिन्न आरोपों में बंद रहते हुए जेल से कई चुनाव लड़ चुके थे।अतीक पर संगीन धाराओं में 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे। वह जेल के अंदर से ही अपनी आपराधिक गतिविधियों को संभाला करता था। 

बहरहाल, सामाजिक क्षेत्र के मीडिया ‘व्हाट्सएप्स’ पर प्रसारित सूरजकली कुशवाहा के बारे में कुछ इस आदर लिखा गया है। उनका नाम सूरजकली कुशवाहा उर्फ जयश्री कुशवाहा है। उनकी उम्र 60 साल है। उनके पति सालों से गायब हैं। कानूनन कोई 10 साल से ज्यादा गायब रहता है तब उसे फाइलों में मृत घोषित कर दिया जाता है जय श्री कुशवाहा के पति 15 साल से गायब है । बेटे पर फायरिंग हो चुकी। खुद उन पर कई बार हमला हो चुका है। फिर भी वे 33 साल से उस माफिया अतीक अहमद से लड़ रहीं हैं जो कभी उत्तर प्रदेश में खौफ का पर्याय था। यूपी के प्रयागराज में धूमनगंज इलाके के झलवा की रहने वाली जयश्री के पति बृजमोहन कुशवाहा के पास 12 बीघा से अधिक जमीन थी। इस पर बढ़िया खेती होती थी। परिवार का पालन-पोषण हो रहा था। लेकिन एक दिन अचानक सब कुछ बदल गया। जयश्री के पति गायब हो गए। जमीन पर अतीक का कब्जा हो गया।

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खबर के अनुसार, अतीक के अब्बू फिरोज के पास लाल रंग का एक ट्रैक्टर था। इस ट्रैक्टर से किसानों के खेतों की जुताई-बुवाई होती थी। यही ट्रैक्टर उनके खेत में भी चलता था। लेकिन उनकी जमीन देखकर अतीक के मन में लालच जाग गया। अतीक का करीबी लेखपाल मानिकचंद श्रीवास्तव एक दिन जयश्री के पास आया और कहा कि उनकी जमीन शिवकोटी सहकारी आवास समिति के नाम पर दर्ज हो गई है। दरअसल, अतीक ने शिवकोटी सहकारी समिति बनाकर जयश्री की पूरी जमीन अपने नाम करवा ली थी। यही नहीं अतीक ने इसमें दो लोगों को सचिव बनाया और इस जमीन को बेचना शुरू कर दिया। जयश्री के अनुसार 1989 में एक दिन उनके पति अचानक से गायब हो गए। वह कहाँ गए किसी को पता नहीं। इसके कुछ दिनों बाद उन्हें पता चला कि जमीन अब उनकी नहीं रही। जमीन जयश्री और उनके परिवार के जीवनयापन का सबसे बड़ा सहारा था। इसलिए उन्होंने गाँव वालों से सहायता माँगी और अपनी जमीन वापस पाने के लिए कोर्ट में आपत्ति दाखिल कर दी। इस बीच उन्हें यह पता चल गया था कि जमीन हड़पने का पूरा खेल अतीक अहमद का था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

उन्होंने बताया कि जब उनकी जमीन हड़पी गई, तब अतीक अहमद विधायक था। उसने उन्हें कई बार अपने कार्यालय में बुलाया। अतीक के बुलावे पर जब वह पहली बार गईं तो उसने कहा कि तुम्हारा पति मेरा बहुत खास था। अब नहीं रहा। इसलिए अब तुम्हारे परिवार जिम्मेदारी मेरी है। अपनी जमीन दे दो और घर में रहो। जयश्री ने इनकार किया तो अतीक भड़क गया। कहा कि जिस तरह तुम्हारे पति को गायब करवाया है, उसी तरह तुमको भी गायब करवा दूँगा। जयश्री के अनुसार इसके बाद अतीक के गुर्गों ने कई बार घर में घुसकर उनके साथ मारपीट की। उसके गुर्गे उन्हें लगातार धमकी देते रहे। लेकिन उन्होंने हमेशा ही अतीक का डटकर मुकाबला किया। वे अपने भाई प्रह्लाद कुशवाहा की करेंट लगने से हुई मौत के लिए भी अतीक अहमद को जिम्मेदार ठहराती हैं। उनका कहना है कि बीते 30 सालों में उनपर 7 बार हमला हुआ। अतीक के गुर्गों ने सैंकड़ों बार उन्हें धमकियाँ दीं। साल 2016 में उनके घर के सामने बेटे और परिवार पर हमला हुआ। इसमें उनके बेटे को गोली लगी थी। लेकिन बेटे की जान बच गई।

जयश्री के अनुसार वह कई सालों तक कोर्ट और थाने के चक्कर काटती रहीं। लेकिन अतीक के खिलाफ कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही थी। साल 1991 में उन्हें अतीक के खिलाफ पहली FIR करवाने में कामयाबी हासिल हुई। लेकिन साल 2001 में आरोपों को निराधार बताकर केस बंद कर दिया गया। 2005 में जयश्री को बड़ी सफलता मिली। सीलिंग एक्ट से अनुमति नहीं मिलने के कारण शिवकोटी सहकारी आवास समिति का नामांतरण रद्द हो गया। इसके बाद जमीन उनके नाम पर दर्ज कर दी गई। साल 2007 में सूबे के सियासत में परिवर्तन हुआ। इसके बाद अतीक के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और कार्रवाई का सिलसिला शुरू हुआ। जयश्री के वकील केके मिश्रा का कहना है कि इस मामले में कुल 4 मुकदमे दर्ज किए गए हैं। लेकिन सभी मामलों में अब तक पुलिस विवेचना भी पूरी नहीं हो पाई है। पुलिस ने अतीक और अशरफ के अलावा किसी अन्य आरोपित के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल नहीं की है। जयश्री और उनके परिवार की सुरक्षा को ध्यान में रखकर प्रशासन ने दो जवान तैनात किए हैं। हालाँकि जयश्री के बेटों ने लाइसेंसी हथियार के साल 2020 में आवेदन दिया था, जो अब तक नहीं मिला है।

वरिष्ठ पत्रकार दयानन्द पाण्डे

उधर ‘सरोकारनामा’ पर वरिष्ठ पत्रकार दयानन्द पाण्डे लिखते हैं: “यह तो होना ही था। योगी सरकार ने तो नहीं , 3 सिरफिरे हत्यारों ने अतीक़ अहमद और उस के भाई अशरफ़ को मिट्टी में मिला दिया। मीडिया तो अपराधियों को इंज्वाय करने का अभ्यस्त हो ही चला है लेकिन हत्यारों और अन्य अपराधियों को मीडिया को इस तरह इंज्वाय करने से ज़रुर बचना चाहिए। क्यों कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोग अब शब्दों में ही नहीं , गोली में भी ढूंढने लगे हैं। इस बात को कम से कम हत्यारों को ज़रूर समझ लेना चाहिए। विकास दुबे से लगायत अतीक़ अहमद तक की कथा यही बताती है। फिर हत्यारा अतीक़ अहमद तो पूरी हेकड़ी से मीडिया को इंज्वाय कर रहा था। इतना ही नहीं , एक दिन बड़े इत्मीनान से कह रहा था कि मीडिया के कारण ही वह हिफाज़त से है। तब उस ने या किसी भी ने कल्पना नहीं की थी कि फर्जी ही सही , मीडिया वाले ही उस के हत्यारे हो जाएंगे।

उत्तर प्रदेश में एक नाम है हरिशंकर तिवारी। एक समय हरिशंकर तिवारी के कारनामों के चलते अपराध के चलते गोरखपुर की तुलना अमरीका के शिकागो से की जाती थी। लेकिन हरिशंकर तिवारी ने कभी मीडिया को इंज्वाय नहीं किया। जब कि मीडिया पर उन की पकड़ और संपर्क बहुत बढ़िया और ज़बरदस्त रहा है। गोरखपुर से लखनऊ तक बहुत से मीडियाकर्मियों से उन के मधुर संबंध रहे हैं और कि हैं। तिवारी ने कई सारे मीडियाकर्मियों की नौकरी भी खाई और बहुत सारे मीडियाकर्मियों को नौकरियां भी दिलवाते रहे। कई बार तो संपादक भी वह तय करवा देते थे। ख़बरों को प्लांट करने में उन का जवाब नहीं था। लेकिन कैमरे आदि के सामने आने से वह मुसलसल बचते रहते थे। गोरखपुर के अखबारों में एक समय तो बाक़ायदा तय हो गया था कि जितनी ख़बर माफ़िया हरिशंकर तिवारी की छपेगी , उतनी ही माफ़िया वीरेंद्र शाही की भी। एक लाइन या एक कालम भी कम नहीं। सालों-साल यह सिलसिला चला है। कहूं कि कोई तीन दशक तक यह सिलसिला जारी रहा।

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गोरखपुर के पत्रकारों में इस बात को ले कर बहुत दहशत रहती थी। हर्षवर्धन शाही इन दिनों लखनऊ में सूचना आयुक्त हैं। एक समय गोरखपुर के एक अख़बार में नई-नई नौकरी कर रहे थे। उन को यह सब बहुत बुरा लगता था। एक बार वीरेंद्र शाही की लंबी-चौड़ी विज्ञप्ति अवसर मिलते ही चोरी से फाड़ कर फेंक दिया। दूसरे दिन वीरेंद्र शाही की वह विज्ञप्ति नहीं छपी तो अख़बार की क्लास ले ली वीरेंद्र शाही ने। अंतत : किसी ने पता किया कि विज्ञप्ति किस ने ग़ायब की। फाड़ी हुई विज्ञप्ति भी मिल गई। हर्षवर्धन शाही का तबादला उसी दिन गोरखपुर से बस्ती कर दिया गया। ऐसे अनेक क़िस्से हैं , गोरखपुर से लखनऊ तक के। एक बार दैनिक जागरण , कानपुर से ट्रांसफर हो एक रिपोर्टर झा साहब गोरखपुर पहुंचे। हरिशंकर तिवारी के ख़िलाफ़ एक विज्ञप्ति टाइप ख़बर छाप दिया। तिवारी के लोगों ने झा को फ़ोन कर तिवारी के घर बड़े मनुहार से बुलाया। जिसे गोरखपुर में हाता नाम से पुकारा जाता है। रिपोर्टर झा पहुंचे तिवारी के घर। बड़ी विनम्रता से तिवारी ने उन का स्वागत किया। उन की ख़ूब तारीफ़ की। और बर्फी भरी एक प्लेट रख दी। कहा खाइए। और लीजिए , और लीजिए की मनुहार भी करते रहे। झा भी अजब पेटू थे। कोई 32 बर्फी खा गए। फिर जब चलने लगे तो झा को लगातार 32 झन्नाटेदार थप्पड़ भी रसीद किए गए। जितनी बर्फी , उतने ही थप्पड़। झा के गाल लाल ही नहीं , गरम भी हो गए। वह भयवश कोई प्रतिरोध भी नहीं कर पाए। ध्वस्त हो कर वह किसी तरह दफ़्तर पहुंचे और रो पड़े। फूट-फूट कर रोए। कहा कि उन का ट्रांसफर तुरंत वापस कानपुर कर दिया जाए। गोरखपुर में वह अब एक दिन भी नहीं रहना चाहते। तुरंत तो नहीं पर जल्दी ही उन का ट्रांसफर वापस कानपुर हो गया।

हरिशंकर तिवारी और गोरखनाथ मंदिर का रिश्ता सर्वदा से छत्तीस का रहा है। हरिशंकर तिवारी का माफ़िया अवतार ही गोरखनाथ मंदिर के ख़िलाफ़ हुआ। यह अवतार करवाया था एक आई ए एस अफ़सर सूरतिनारायण मणि त्रिपाठी ने। गोरखपुर विश्विद्यालय के फाउंडर मेंबर थे तब गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजय सिंह। गोरखपुर के तत्कालीन कमिश्नर सूरतिनारायण मणि त्रिपाठी भी फाउंडर मेंबर थे। थे तो आचार्य कृपलानी जैसे लोग भी। पर कार्यकारिणी की जब भी कोई बैठक होती दिग्विजयनाथ भारी पड़ जाते। मंदिर के लठैत दिग्विजयनाथ के लिए खड़े हो जाते। लाचार हो कर सूरतिनारायण मणि त्रिपाठी ने एक दबंग की तलाश शुरू की। हरिशंकर तिवारी तब विश्विद्यालय के छात्र थे। दबंग थे। मणि ने तिवारी को तैयार किया। मंदिर के ख़िलाफ़ खड़ा किया तिवारी को। कमलापति त्रिपाठी जैसे राजनीतिज्ञों का आशीर्वाद मिला तिवारी को। बाद के दिनों में तिवारी बड़े ठेकेदार बन गए। इस की एक लंबी अंतर्कथा है। जो फिर कभी। पर तिवारी के खिलाफ दो मोर्चे लगातार खुले रहे। एक गोरखनाथ मंदिर का दूसरे , वीरेंद्र शाही का। बीच-बीच में और भी कई। फिर 1986 में जब वीरबहादुर सिंह मुख्य मंत्री हुए तो उन्हों ठेके -पट्टे के मामले में न सिर्फ़ तिवारी की कमर तोड़ दी बल्कि एन एस लगा कर तिवारी और शाही दोनों को जेल भेज दिया।

बाद के दिनों में समय पलटा और तिवारी कैबिनेट मंत्री भी बने। शाही की हत्या हो गई। पर मंदिर और हाता का मोर्चा खुला रहा। फिर जब योगी मुख्य मंत्री बने 2017 में तो तिवारी मीडिया तो छोड़िए , सार्वजनिक जीवन से भी अपनी सक्रियता समाप्त कर दी तिवारी ने। अपने दोनों बेटों को भी निष्क्रिय करवा दिया। शुरू -शुरू में कुछ छापेमारी वगैरह हुई। पर मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए जैसे मेढक ग़ायब हो जाता है , सर्दी और गर्मी में , पूरी तरह ग़ायब हो गए। अब तो सुनता हूं , बढ़ती उम्र के कारण वह अस्वस्थ भी हैं। हरिशंकर तिवारी और चाहे जो हों , आप जो भी कहें पर उन के तीन-चार गुण बहुत प्रबल हैं। एक तो वह निजी बातचीत में अतिशय विनम्र हैं। अहंकार बिलकुल नहीं है। शराब , औरत आदि का व्यसन बिलकुल नहीं है। फिर रास्ता कैसे बदला जाता है , उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक से सीखना चाहिए। ज़िक्र ज़रूरी है कि बृजेश पाठक एक समय न सिर्फ़ ठेकेदारी बल्कि दबंगई में भी हरिशंकर तिवारी के ख़ास लेफ्टिनेंट रहे हैं। यहां तक कि लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ का चुनाव भी हरिशंकर तिवारी का आशीर्वाद ले कर वह विजयी हुए थे।

वैसे भी जो होशियार अपराधी होते हैं , सत्ता के ट्रक से अपनी साइकिल को नहीं लड़ाते। तिवारी ने भी तमाम विपरीत स्थितियां बारंबार देखीं पर कभी ऐसा नहीं किया। ऐसे , जैसे अतीक़ अहमद पूरी दबंगई और हेकड़ी से अपनी साइकिल सत्ता के ट्रक से टकराता रहा। मुस्लिम होने , मुस्लिम वोट बैंक का नशा उस पर मरते समय तक तारी था। मीडिया इंज्वाय करता रहा , ऐसे जैसे पान चबा रहा हो , पान मसाला खा रहा है। अतीक़ और उस के छोटे भाई अशरफ़ की गोली लगने के पहले तक की बॉडी लैंग्वेज देखिए। निश्चितता देखिए। हेकड़ी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की युगलबंदी देखिए। अपराधी होने की ज़रा भी शर्म नहीं है चेहरे पर। जवान बेटा मारा जा चुका है , पर चेहरे पर उस का भी बहुत अफ़सोस नहीं दिख रहा। न कोई बेचैनी और दुःख। मीडिया को बाइट ऐसे दे रहे हैं , अहंकार और ऐंठ में चूर हो कर गोया वह सचमुच कोई बहुत बड़ा पुण्य कर के बतिया रहे हैं। फिर कबीर वैसे ही तो नहीं लिख गए हैं : एक लाख पूत, सवा लाख नाती, ता रावण घर, दीया ना बाती !            

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