‘ऐतिहासिक’ चारा घोटाला काण्ड के तीन लाभार्थी: एक: नीतीश बाबू स्वयं, दूसरे: लालू बाबू और उनका परिवार और तीन: नीतीश जी के राजनीतिक महाभारत के ‘संजय’ बाबू (2)

लालू प्रसाद यादव

सम्मानित नीतीश बाबू (श्री नीतीश कुमार),
प्रणाम

उम्मीद हैं पहली चिठ्ठी प्राप्त हुई होगी सरकार। आज 16 मार्च है नीतीश बाबू। अगिला 18 मार्च, 2023 को 48-बरस हो जायेगा अख़बार की दुनिया में। 18 मार्च, 1975 को, यानी जयप्रकाश बाबू के आंदोलन के अगिला बरस दरभंगा के महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह द्वारा स्थापित ‘आर्यावर्त’, ‘दी इण्डियन नेशन’ और ‘मिथिला मिहिर’ पत्र समूह में नौकरी की शुरुआत किये थे नितीश बाबू पत्रकारिता की सबसे नीचली सीढ़ी ‘कॉपी-होल्डर’ के पद से। उस समय सिर्फ मैट्रिक पास किये थे और बी एन कॉलेज में नामांकन लिए थे नीतीश बाबू और उम्र साढ़े चौदह वर्ष । हम तो बी एन कालेज के तत्कालीन प्राचार्य डॉ एस के बोस साहब को धन्यवाद देते हैं जो हम जैसा ‘दीन’ को, जो उन्हें कई वर्षों तक अखबार देता था एक अखबार विक्रेता के रूप में, आगे पढ़ने, बढ़ने का ज्ञान दिए।

सम्मानित नीतीश बाबू, राजनीतिक उठापटक और आपके, आपकी पार्टी के, वर्तमान सत्ता के विरुद्ध चल रहे अंतर्प्रवाह के बाद भी माँ कामाख्या से प्रार्थना करता हूँ कि आपको शरीर से स्वस्थ रखें, चेहरे पर मुस्कान कायम रखें, भले अंदर से क्रोधित ही क्यों न हों आप नीतीश बाबू । अपने प्रदेश के लोगों के लिए ‘सकारात्मक विचार रखें’, वही आपकी सबसे बड़ी ‘यूएसपी’ होगी। पाटलिपुत्र की धरती से पांडव की धरती इंद्रप्रस्थ तक आपकी कुर्सी पर आपकी पार्टी, आपके ‘अपने लोगों’ की निगाहें तो शुतुरमुर्ग जैसे टिकी हुई है ही; विपक्ष तो दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित नवनिर्मित लाल रंग के गगनचुंबी इमारत से ‘महाभारत के संजय’ की भांति (अपना मिथिला वाले संजय नहीं समझेंगे) देख रही है। इस कार्य के लिए प्रदेश में भी कई लोगों को मुस्तैद की है और देश के प्रधानमंत्री को क्षण-प्रति-क्षण सूचना दे रही है। एक शुभचिंतक होने के नाते, कोई चार दशक से अधिक सम्बन्ध होने के नाते आपको ‘अद्यतन’ रखना धर्म समझता हूँ।

नीतीश बाबू, एक किताब लिख रहा हूँ “100-कहानियों का संकलन: मिथिला से दिल्ली तक मिथिला-दरभंगा राज का अंत और राजनीति का उदय” । आपको प्रेषित पत्र भी उसी किताब का एक अध्याय है सरकार। इस पत्र के माध्यम से यह कहना चाहता हूँ, वैसे आप भी जानते ही हैं कि अविभाजित बिहार के ऐतिहासिक चारा घोटाला घटना में तीन लोग और उनका परिवार लाभान्वित हुआ। भले इस बात को व्यावहारिक रूप से स्वीकार करें अथवा नहीं, प्रदेश की राजनीतिक इतिहास में दर्ज अवश्य होगा । 

एक: सम्मानित नीतीश बाबू आप स्वयं सबसे बड़े ‘राजनीतिक लाभार्थी’ हुए। क्योंकि प्रदेश और देश की राजनीतिक मानचित्र पर लालू यादव की ‘सक्रीय’ अनुपस्थिति से राष्ट्रीय जनता दल ‘अपंग’ हो गया। या यूँ कहें, ‘निष्क्रिय’ हो गया। वैसे लालू जी के पुत्रद्वय, पत्नी या परिवार के सदस्य इस तथ्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करेंगे, लेकिन जब भी अपने देवी-देवता के पास बैठेंगे, यह बात अन्तःमन से स्वीकार करेंगे कि “पप्पा की बात ही कुछ और है।” लालू जी के बाद प्रदेश में कोई दूसरी पंक्ति के विपक्ष के नेता नहीं थे, नहीं पनपने दिया गया (लालू यादव भी इसके लिए दोषी हैं) जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की क्षमता रखते हों। राम विलास जी को 12 जनपथ बहुत नीमन लगता था। अतः ‘कभी विपक्ष में तो कभी ‘सापेक्ष’ में रहते, श्रीमती सोनिया जी के पड़ोसी रहते, अपने जीवन का अंतिम सांस लिए। उनके मन में भी मुख्यमंत्री बनने की चाहत अवश्य थी, लेकिन आप भी उनके मित्र थे और लालू जी भी उनके मित्र थे, यह आप भी जानते हैं और सन 1974 -1975 से हम सब पुरनका पत्रकार तो जानते ही हैं, इसलिए कभी ‘छिना-झपट्टा’ नहीं किये । माँ कामाख्या उनकी आत्मा को शांति दें।  

दो: लालू यादव का परिवार आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से लाभार्थी हुआ। लालू जी लोगों की कमजोरी जानते थे और वे यह भी जानते थे कि अधिक ‘तेज’ दिखना अच्छी बात नहीं है। इसलिए वे जीवन पर्यन्त भारत के लोगों के साथ-साथ अपने प्रदेश के मतदाताओं का मनोरंजन करते रहे। पत्रकार बंधु बांधव उन पर कहानियां लिखते गए, वे चर्चित होते गए, ख्याति मिलती गयी और धीरे-धीरे कोषागार खाली होता गया। इस ‘ख्याति’ का परिणाम यह हुआ कि आज भारत में शायद लालू जी का परिवार पहला परिवार होगा जिसे अपना नैहर, अपना ससुराल, बेटी-बेटा के नैहर और उसके ससुराल वाले विधायक और सांसद बने। माँ कामाख्या से प्रार्थना है कि लालू जी स्वस्थ रहें, जल्द से जल्द ‘दादाजी’ बनें और तीसरी पीढ़ी के वंशज भी राजनीति में प्रवेश करे। आप गणित से आंकिये और देखिये कि एक परिवार में प्रदेश और देश के राजकोष से कितने पैसे निर्गत होते हैं। और,

तीसरा: INSIDE CBI किताब के ‘कर्ताधर्ता’जो आपके लिए महाभारत वाला संजय जैसा भूमिका अदा किये मुख्यमंत्री की कुर्सी तक लाने में। मैं गलत तो नहीं कह रहा हूँ नीतीश बाबू । INSIDE CBI किताब के लेखक तो सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह थे, किताब के कवर पर उनका ही नाम लिखा था। लेकिन ‘नेपथ्य’ में कौन-कौन थे, हमसे बेहतर तो आप जानते हैं नीतीश बाबू। वैसे अगर जीवित होते तो सम्मानित जोगिंदर सिंह बाबू से निवेदन अवश्य करता कि INSIDE CBI किताब का “INSIDE STORY” का एक-दो अध्याय उस किताब में जोड़ देते। खैर। बाबू जोगिंदर सिंह साहब कितने ‘बेहतरीन’ व्यक्ति थे, यह बात तो भारत का सर्वोच्च न्यायालय उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों में लिख ही दिया था। कैसे वे ‘Political Hobnobbing” करते थे उनके राजनेताओं के साथ जो विभिन्न प्रकार के ‘घपलों’ में शामिल थे । माँ कामाख्या से प्रार्थना करूँगा कि वे सम्मानित जोगिन्दर बाबू और उनकी पत्नी को अपने शरण में स्थान दें, उनकी आत्मा को शांति दें। 

ये भी पढ़े   बिहारे के हैं केंद्रीय स्वास्थ राज्य मंत्री और बिहारे के हज़ारों मरीजों के परिवार/परिचारक ठिठुर रहे हैं दिल्ली की सड़कों पर

बहरहाल, इन दिनों मिथिला में चर्चाएं आम है कि आप अपने कैबिनेट में बिना चुनाव लड़ाये मिथिला के ‘विद्वान’ को विधान परिषद् के रास्ते बार-बार, लगातार अपने शरण में रहे हुए हैं। मिथिला के लोग बाग़ तो उन्हें आपका ‘उप’ भी कहना प्रारम्भ कर दिए हैं। यह अलग बात है कि ‘लालू का छोटका ननकिरबा’ और आपका ‘मुंह बोला भतीजा’ प्रदेश का उप-मुख्यमंत्री है। लोग बाग़ यह भी कह रहे हैं कि आने वाले दिनों में नीतीश कुमार अपनी कुर्सी उन्हें सौंपने वाले भी हैं।” गजबे का ‘आत्मविश्वास’ है मिथिला के लोगों में ।

पटना के सरपेंटाइन रोड से दरभंगा के लाग बाग टावर चौक तक चाय की दुकानों पर, पान की दुकानों पर चर्चाएं आम हैं कि ‘मिथिला के वे महाशय आपको प्रातःकालीन चाय से लेकर रात्रि में आपको बिछावन पर सुलाकर, ओढ़ना ओढ़ाकर ‘शुभ रात्रि’ कहकर, दोनों हाथ जोड़े कुछ देर दरवाजे पर खड़े रहते हैं और आप जैसे ही लम्बी सांस लेने लगते हैं, वे आश्वस्त हो जाते हैं कि आप ‘सो’ ‘गए हैं, कोई 160-180 मिनट के लिए वे भी ‘विश्रामावस्था’ में चले जाते हैं।” आप तो भलीभांति जानते ही हैं नीतीश बाबू कि जब चारा घोटाला के बड़का अभियुक्त श्रीमान लालू प्रसाद यादव जी और उनकी अर्धांगिनी बैठी थी मुख्यमंत्री बनकर, ‘साधु बाबा’ भी उसी तरह सेवा करते थे। लेकिन बाद में साधु बाबा लालू जी के साथ क्या किये, आप तो प्रथम द्रष्टा रहे हैं हुकुम।

सम्मानित नीतीश बाबू, लेकिन आप तो स्वयं विद्वद्जन हैं, सोचने-विचारने की क्षमता आप में है। मगध से मिथिला जाने के मार्ग में ही आपका घर आता है और आप जानते हैं कि ‘मिथिला के लोग किसी के नहीं हुए। वे तो ललित बाबू के भी नहीं हुए। दरभंगा के महाराजाधिराज के नहीं हुए। अगर होते तो जब महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह आम चुनाव लड़े थे तो मिथिला के लोग माँछ-भात-दही-रसगुल्ला भी दबाकर खाये और जब मतदान का समय आया तो दूसरे को अपना मत दे दिए। यह बात उन दिनों प्रकाशित अख़बारों में प्रकाशित हुआ था। इतना ही नहीं, बिहार में जगन्नाथ मिश्र अपने भाई के भी नहीं हुए थे। कान भरते थे इंदिरा जी का। आप तो देखबे किये हैं नीतीश बाबू। और सुनिए, जैसे ही राजनीति में ललित बाबू के ‘काला चश्मा वाले अनुज ‘रस’ टपकाने लगे, मिथिला के लोग चिपकते चले गए। दरभंगा राज को, आर्यावर्त-इंडियन नेशन अख़बारों को समाप्त करने में उनका उत्कर्ष स्थान था और जो शेष बचा था वह कार्य लालू प्रसाद कर दिए । मिथिला के लोग अगर मिथिला के होते तो शायद मिथिला का, दरभंगा राज का यह हश्र नहीं होता। महाराजा साहब द्वारा स्थापित दर्जनों इंडस्ट्री आज मिट्टी में नहीं मिलता। उसके लोहा-लक्कड़ को किलो के भाव में नहीं बेचा जाता नितीश बाबू। आज मिथिला में खेत-पथार, गोबर, झाड़ी, चूल्हा, कादो, ईंट-पत्थर सभी बिलख रहा है सरकार।

जब बिहार के लोग आज़ादी के सांस भी नहीं लिए थे, श्रीकृष्ण बाबू प्रदेश के सिंहासन पर बैठ गए थे। उन दिनों बेगूसराय वाले रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की कविता का राजनीतिक गलियारे में राजनीतिकरण नहीं हुआ था हुकुम नेताओं के ‘स्वहित’ में। ऊ तो आप, हम सभी गवाह है कैसे दिनकर जी संत जेवियर स्कूल के छोड़ में बने मंच पर अपनी अंतिम सांस से कुछ माह पूर्व पटना के गाँधी मैदान में गरजे थे – “सिंहासन खाली करो कि जनता आ रही है।” लेकिन “स्वयंभू” राष्ट्रकवि बने दिनकर जी शायद सपने में भी नहीं सोचे थे कि जिस जनता के लिए वे महात्मा गांधी के नाम पर बने गांधी मैदान में वे गर्जन कर रहे हैं, उस जनता के प्रतिनिधि को जनता से दूर-दूर तक कोई लगाव, प्रेम-मोहब्बत नहीं होगा। सभी अपने-अपने राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए किसी को संरक्षित करेंगे। “स्वयंभू” इसलिए लिखा हूँ कि बिहार सरकार, भारत सरकार या अन्य संस्थाओं में ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है जो रामधारी बाबू को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से अलंकृत किया हो ! मन करे तो ढूंढ़बा लीजिये नीतीश बाबू। मिथिला में आजकल एगो और नेता हैं, लेकिन वे आपके पार्टी के नहीं हैं। वे सांसद हैं और जब भी प्रधानमंत्री को देखते हैं कमर से सीधा ‘लम्ब प्रसार गुणांक’ जैसा दंडवत देते हैं। वे भी बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सपना देख रहे हैं।

ये भी पढ़े   पार्श्ववर्ती प्रवेश (लेटरल एंट्री) : रुक्मणी रुक्मणी, शादी के बाद क्या क्या हुआ - कौन हारा कौन जीता, खिड़की मे से देखो ज़रा ..."  

नीतीश बाबू आपको याद होगा, आप भी शायद हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन के परिसर में आये थे जब दिनकर जी का पार्थिव शरीर रखा था और बिहार के पढ़े-लिखे, शिक्षित, कवि-कवियत्री दो नहीं, चार फांक में बंटे थे जब उनके पार्थिव शरीर को गुल्मी घाट ले जाने की बात हो रही थी। अब तो मुरारी (कृष्ण मुरारी किशन जी ) जीवित नहीं हैं, अन्यथा उस दिन का फोटुआ भी हम निकाल देते। नीतीश बाबू, बिहार में मरने के बाद, पार्थिव शरीर से भी राजनीति करते हैं लोग, आप तो प्रदेश के मुख्यमंत्री ही हैं, सभी जानते हैं । नीतीश बाबू, बिहार में अगर आठ राष्ट्रपति शासन को छोड़ दिया जाय तो अंकों के हिसाब से आप 23 वें नंबर के मुख्यमंत्री हैं। हां, मुंडी के हिसाब से कई लोग एक मर्तबा ही नहीं, कई मर्तबा मुख्यमंत्री कार्यालय में पदासीन हुए और पदच्युत भी। जिस जयप्रकाश बाबू के आंदोलन के उपज आप हैं नीतीश बाबू, हम सब भी तो उस आंदोलन के चश्मदीद गवाह भी है।

हम तो सन 1968 से देख रहे हैं नीतीश बाबू। सन 1968 से 1975 मार्च महीने तक अख़बार बेचते थे सरकार पटना की सड़कों पर, गोविन्द मित्र रोड, मखनिया कुआं, खजांची रोड, अशोक राज पथ, पटना विश्वविद्यालय परिसर, महेन्द्रू मोहल्ला, रानी गहत तक अखबार देते थे गंहकी को। बेचते-बेचते आर्यावर्त, इण्डियन नेशन, सर्चलाइट, प्रदीप, जनशक्ति में पढ़ते थे समाचार सर्कार। फिर 18 मार्च, 1975 को हम ‘दी इण्डियन नेशन’ अखबार में आ गए । आपको तो याद ही होगा नीतीश बाबू कैसे आप बड़का मोरी वाला पैजामा और कुर्ता पहने दफ्तर आते थे। दुर्गा बाबू से, केशव कुमार जी से, सीता शरण जी से, मिथिलेश मैत्रा (बाबुल दा) से, दीना बाबू से, चौधरी जी से, ज्वाला बाबू से, सुरपति बाबू से, कृष्ण कुमार जी से, भाग्य नारायण जी से, राधे श्याम आचार्या जी से, शरद जी से, बिंदेश्वर ठाकुर जी से, रामजी मिश्र मनोहर जी से, जीतेन्द्र जी ‘जीवन’ से, शोभा कांत जी से, काशी बाबू से कैसे मिलते थे और अपनी राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चा करते थे। लेकिन लालू के साथ बहुत कम आते थे, नहीं के बराबर। अश्विनी जी, सुशील जी कभी कभार साथ होते थे। सुबह-सवेरे के अख़बारों में आपके बारे में लिखा होता था। कृष्ण मुरारी ‘किशन’ और कभी कभी दीना बाबू के पुत्र ‘विक्रम जी’ के द्वारा खींची गई तस्वीरें उन समाचारों का रंग-रूप-स्वरुप बदल देता था नीतीश बाबू। हम सभी देखे हैं नितीश बाबू। हुकुम !!!! आपको तो सर्चलाइट के मुक्ता बाबू, अमलेंदु जी, यूएनआई के धैर्या बाबू, बी एन झा साहब, फरजंद साहब, भी याद होंगे न नितीश बाबू।

हुकुम, आज कोई नहीं हैं और यह बात ‘ऊ’ नहीं जानते होंगे नीतीश बाबू। लेकिन आज भी सभी अपने-अपने शब्दों, कार्यों के कारण जीवित हैं नीतीश बाबू, तभी तो आज कोई 48 वर्ष बाद भी सभी बातें याद हैं और यहाँ लिख रहा हूँ । आप तो उन दिनों वैसे नहीं थे। लालू यादव तो वैसे ही थे, उन दिनों भी, जनता की वेदना, संवेदना के साथ खिलवाड़ कर, अपना नाम कमाने के लिए कुछ भी करते थे नीतीश बाबू। आपको तो उस शाम की घटना भी याद होगी न नीतीश बाबू जब फ़्रेज़र रोड में ‘लालू का अपहरण’ की खबर बिजली जैसे फैली। आप तो जानते ही थे नीतीश बाबू कैसे अपने आप का ‘अपहरण’ कराकर अख़बारों के पन्नों पर आने के लिए क्या-क्या टिकरम करते थे। आज भी कोई बदलाव नहीं है सरकार उनमें । वह तो बिहार की अशिक्षित जनता, भयभीत जनता थी कि लालू से कोई टकराने की बात नहीं करता था। आप तो जानते ही हैं।

आप तो यह भी जानते हैं नीतीश बाबू कि कैसे लालू यादव रामसुंदर दास को ‘गच्चा’ देकर 10 मार्च, 1990 को बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए। आप यह यह भी देखे थे हुकुम कि एक शिक्षित और एक वास्तविक शिक्षित में क्या अंतर होता है। अगर ऐसा नहीं होता नीतीश बाबू तो लालू प्रसाद दूसरे ही पारी में ‘क्लीन बोल्ड’ कैसे हो जाते ? साल सन 1996 आ गया था और लालू यादव चारा घोटाला में फंस गए थे। आप तो सब चीज के चश्मदीद गवाह है नीतीश बाबू। फिर आप ऐसे कैसे हो गए? आप तो अभियंता हैं हुकुम और प्रदेश में भले शिक्षा का व्यापार होता हो, प्रदेश में भले शिक्षा के नाम पर गोबर पाथा जाता हो; लेकिन लालू एंड कंपनी की तुलना में शिक्षा का महत्व तो आप अधिक जानते होंगे नीतीश जी। वैसे भी अभियंता की पढाई में बहुत मेहनत और मसक्कत करना पड़ता है, यह हमसे बेहतर तो आप जानते हैं सरकार । निर्णय लेने में आप जितना माहिर हैं, शातिर हैं, उतना लालू जी भी नहीं हैं हुकुम।

ये भी पढ़े   ​दरभंगा के ​महाराजा कामेश्वर सिंह के ​आकस्मिक मृत्यु के बाद दरभंगा राज का पतन क्यों हुआ​?​

अब देखिये न नीतीश बाबू। आप बी टेक मेकैनिकल और आपके साथ सातवां पास उपमुख्यमंत्री। कोई तुलना है हुकुम। आप उनके हाथ ‘नेस्फील्ड ग्रामर’ दे दीजिये, पुस्तक भंडार के श्री रामलोचन शरण जी का ‘व्याकरण चन्द्रिका’ दे दीजिये, बुकलैंड प्रकाशन का ‘अलजेब्रा’ दे दीजिये – चारो खाने चित हो जायेंगे आपके उपमुख्यमंत्री जी और कई अन्य मंत्रीगण नितीश बाबू। शिक्षा का महत्व आप समझ सकते हैं। आप पढ़े लिखे हैं। चोरी-चमारी से पास नहीं किये हैं। आप कैसे समझते हैं कि ये सभी लोग आपके प्रदेश में शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार होने देंगे। शिक्षा बहुत बड़ा तलवार है नितीश बाबू।

अशिक्षित होना यानी अपंग होना है, यह मैं नहीं, आप भी स्वीकार करेंगे। साईकिल बांटकर, खिचड़ी बांटकर, जूता बांटकर, लवणच्युस बांटकर लोभियों को लुभाया जा सकता है नीतीश बाबू, शिक्षित नहीं बनाया जा सकता। खैर। यहाँ तो विद्यालय में खिचड़ी खिलने, बांटने के लिए भी मारा-मारी है, क्योंकि ‘मुनाफा’ है। बच्चों को खिचड़ी में भले ‘मक्खी’ मिले, लेकिन खिचड़ी बनाने का निविदा पाने वाले लाखों-लाख की वातानुकूलित गाडी में घूमते हैं हुकुम। आपके प्रदेश में तालव्य, दन्त और मूर्धन्य में अंतर नहीं समझने वाले शिक्षा की नीतियां बना रहे हैं नीतीश बाबू। मधुबनी और मिथिला लोकचित्र कला (आज कल पटना उच्च न्यायालय में मुकदमा चल रहा है जी आई टैग के लिए) को भारत के बाज़ारों में बेचकर लाभ जरूर कमा रहे हैं हुकुम। मिथिला में अब मछली का उत्पादन नहीं होता। दक्षिण भारत से आयात होता है सरकार और उसे मिथिला का माँछ कहकर संस्कृति को चूना लगा रहे हैं हुकुम, स्वहित में। क्या-क्या कहें सरकार।

पिछले के सभी मुख्यमंत्रियों में श्रीकृष्ण बाबू को छोड़ दीजिये; जो अच्छे और अपने प्रदेश के लोगों के लिए ‘मानवीय’ थे, मसलन दीप नारायण बाबू, कृष्ण बल्लभ बाबू, मंडल जी, भोला बाबू, कर्पूरी जी – सभी राजनीति के शिकार हुए और यही कारण है कि छह महीना, साल भर, एक महीना से अधिक कुर्सी पर नहीं बैठ पाए। सभी ‘ईमानदार’ थे। लोगों की भलाई करना चाहते थे। प्रदेश को आगे ले जाना चाहते थे। पचहत्तर साल बाद आज भी श्रीकृष्ण बाबू लोगों के जेहन में जीवित हैं, शेष सभी को लोगबाग क्या-क्या कहते हैं, आप भी जानते ही हैं सरकार । सत्तर के दशक के बाद जितने भी महानुभाव कुर्सी पर आये, मुख्यमंत्री कार्यालय में बैठे – प्रदेश के लोग, मतदाता बहुत उम्मीद किये थे उनसे, आपसे भी किये हैं हुकुम। लेकिन सभी अपना-अपना उथ्थान किये, चाहे जगन्नाथ मिश्र हों, या लालू यादव या राबड़ी देवी। आपसे बहुत उम्मीद करते हैं लोग नीतीश बाबू।

लोग बाग़ अशिक्षित है, अनाथ है सरकार। आपकी ओर टकटकी निगाहों से देख रहे हैं। आप बहुत कुछ कर सकते हैं नीतीश बाबू। लेकिन जिस तरह चाटुकारों, चापलूसों, जी-हुजूरी करने वालों के कारण मिथिला राज, दरभंगा राज मिट्टी में मिल गया; जिस आर्यावर्त-इण्डियन नेशन का नाम फ़्रेज़र रोड में मिट्टी में मिल गया – आप उन चाटुकारों, चापलूसों की परछाई से बाहर निकलें नीतीश जी। आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपका पुत्र निर्लोभ है। पत्र-पत्रिकाओं में एक शब्द भी उसके बारे में नहीं प्रकाशित होता। उसे आपके ज्ञान का उत्तराधिकारी बनना है, आपकी मानवीयता का उत्तराधिकारी बनना है, लोगों के दुखसुख में उनका आंसू पोछना है – आपको वह ब्रह्माण्ड समझता है। आपकी राजनीति और मुख्यमंत्री की कुर्सी से उसे कोई लालच नहीं है सरकार। आज तो समाज में लोग अपनी उन्नति के लिए, कमाई के लिए ‘बाहर वाले को गॉडफादर’ बना लेते हैं, जबकि जैविक पिता कलपते-कलपते अंतिम सांस ले लेता है। नीतीश बाबू आप माता कामाख्या को धन्यवाद दीजिये, आपको ऐसा पुत्र मिला है।

नीतीश बाबू, कुछ ऐसा कीजिए जिससे आपका नाम भी श्रीकृष्ण सिन्हा जैसा सम्मान के साथ लें। मैं देवी कामाख्या का पुजारी हूँ सरकार। मैं मन में कोई मैल नहीं रखता, आप भी नहीं रखें। पूरे प्रदेश के लोग, खासकर नेता, सभी आपकी कुर्सी की ओर देख रहे हैं। कब आपका पैर लड़खड़ाए, ठेंघुना में दर्द हो, आप बैठें और लोगबाग आपकी गर्दन पर पैर रखकर ऊपर चढ़ जायँ नीतीश बाबू। नीतीश बाबू पूरे प्रदेश के लोग आपके साथ हैं, क्या शिक्षित, क्या अशिक्षित, क्या शिक्षक, क्या विद्यार्थी, क्या मालिक, क्या श्रमिक – ईमानदारी से चापलूसों, चाटुकारों को अपने दरवाजे से बाहर कीजिये और कृष्ण की तरह अपने प्रदेश को आगे ले जाएँ सरकार। नहीं तो कल के इतिहास में लोग लिखने में तनिक भी संकोच नहीं करेंगे की बिहार का एक ऐसा मुख्यमंत्री हुआ जो अंदर से कमजोर था, भयभीत था, लोगों ने बहुत उम्मीदें किये, लेकिन वह पानी फेर दिया क्योंकि उसे चाटुकारिता, चापलूसी अधिक पसंद था।

क्रमशः 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here