बिहार के मुख्यमंत्री सम्मानित नीतीश कुमार जी से प्रदेश से पलायित एक पत्रकार का निवेदन 🙏

हे नीतीश बाबू !!!

आदरणीय श्री नीतीश बाबू,
मुख्यमंत्री,
बिहार।

प्रणाम,

आप स्वस्थ होंगे। माँ कामाख्या और महादेव से प्रार्थना करता हूँ

अपने प्रदेश की किसी भी महिला की यह कतई इक्षा नहीं होती है कि पंजाब में फसल काटते समय या मुंबई में दूकान पर बैठते समय या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भवनों के निर्माण में बालू-सीमेंट-ईंट ढ़ोते समय, या किसी घर में झाड़ू-पोछा करते समय ”उसका स्तन ठेकेदार या मालिक” देखे।

शहरों में उसके ही उम्र के बच्चे स्कूल जाय और उसे उसी घर में झाड़ू लगाना पड़े – बहुत सारी बातें हैं, बहुत सारे अवसर हैं – जिसे आप बिहारी होने के नाते ठीक कर सकते हैं नितीश बाबू। ठीक करिये हुकुम – बहुत दुआएं देंगे बिहार के लोग, जो आपके ही लोग हैं – नहीं तो प्रदेश से बाहर पलायित बच्चे जब दूसरे शहरों में, प्रदेशों में, देशों में “अब्बल” आएंगे तब “छक्कों की तरह हम सभी बिहारी ताली ही बजायेंगे – बिहारी है बिहारी है – और वह मन ही मन मुस्कुराता गलियाता रहेगा – कभी बिहार में अवसर नहीं मिला। न साधन था न अवसर और न ही प्रतियोगिता।

मैं अपने गाँव से कभी नहीं निकलना चाहता था, नीतीश बाबू। परन्तु कुकुरमुत्तों जैसा पनप रहे प्रदेश के नेताओं ने, अधिकारियों ने, बिचौलियों ने – हमारे गाँव के पंचायत से लेकर पटना सचिवालय के मुख्य मंत्री कार्यालय तक प्रदेश को इतना नोचा, इतना नोचा – अर्थ से, सामर्थ से – मुझे गाँव से बाहर कदम निकालने को मजबुर किया था नीतीश बाबू।

मुझे अपने गाँव के मिडिल स्कूल के शिक्षकगण ईश्वर जैसे दीखते थे, नीतीश बाबू। उन्हें छोड़कर रास्ते को लांघना बहुत कष्दायक था नितीश बाबू – लेकिन आप नहीं समझेंगे। पढ़ाई-लिखाई का अर्थ और महत्व आप नहीं समझेंगे। आप तो “अभियंता” थे। प्रदेश की सेवा करने के बात होती तो अभियंता के रूप में भी कर सकते थे। यही वजह है की अब कुछ “पढ़े-लिखे लोग बाग, अधिकारी भी राजनीति रसमलाई खाना चाहते हैं।

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आप तो जानते ही हैं नीतीश बाबू की नेता, अधिकारीगण तो अन्तःमन से चाहते ही हैं की सम्पूर्ण प्रदेश “ज़ाहिल” रहे। उन जाहिलों के सामने पांच साल में पांच रोटी फेंक कर पुनःचः कुर्सी पर बैठ जाएँ। मैं गलत तो नहीं कह रहा हूँ नीतीश बाबू, विश्वास नहीं हो तो अपने कनिष्ठ यानी उप-मुख्य मंत्री के आँख में आँख डालकर पूछ लीजिये। खैर, आप तो जानते ही हैं हम लोग जैसा मुर्ख थोड़े ही हैं आप ।

मेरा जन्म सन् 1959 में हुआ नीतीश बाबू, दरभंगा जिला के एक संस्कृत आचार्य के घर में। बहुत विद्वान थे मेरे बाबूजी नितीश बाबू। आप तो जानते ही हैं कि बिहार ही नहीं, सम्पूर्ण देश में विद्वान लोग, शिक्षित लोग, विचारवान नेताओं से “पन्गा” नहीं लेते। हमारे बचपन में नेतागण अपने-अपने क्षेत्र के लुच्चों, लफंगों, गुंडों को पालते थे अपने राजनीतिक लाभ के लिए नीतीश बाबू; परन्तु समयान्तराल जब समाज के उन महानुभावों को यह ज्ञान हुआ की उनकी सहायता के बिना नेतागण कुर्सी पर विराजमान नहीं हो सकते; वे स्वयं राजनीति में कूद पड़े और बिहार के करोड़ों “असहाय, निरीह, अशिक्षित मतदाता गण, मेरे बाबूजी के तरह, कूबत नहीं रखते उन्हें रोकने के लिए” और आप नेतागण तो रोकेंगे ही नहीं यह तो सर्वविदित है यहाँ तक की निर्वाचन आयोग भी दिल्ली के सरदार पटेल चौक पर अपने जन्म से ही रो रहा है , आप जानते ही हैं । अब निर्वाचन आयुक्त भी इतने ताकतवर तो हैं नहीं (क्योंकि आप टी एन शेषन की दशा अवकाश के बाद देख चुके हैं) की शासन और व्यवस्था से टक्कर ले।

गाँव में शिक्षा का बंदोबस्त नहीं था नीतीश बाबू, उन दिनों में भी और आज भी। सरकारी अधिकारी शिक्षकों को मिलने वाले पारिश्रमिक में से “कटौती” लेने लगे सरकार । चूँकि प्रशासन और सरकार स्वयं प्रदेश को, जिलों को, गांवों को शिक्षित नहीं करना चाहते थे (आज भी नहीं चाहते हैं हुकुम), जिला-पंचायत-प्रखंडों- गांव की स्कूलों की पढ़ाई जमीन के अंदर दफ़न होती चली गयी हुज़ूर। अधिकारीगण कागज़ पर स्कूल बनाते गए, शिक्षकों की नियुक्ति करते गए, तनखाह बांटते गए और प्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल आता गया हुकुम – यह आप भी जानते हैं और मैं तो जानता ही हूँ तभी लिख रहा हूँ।

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प्रदेश से बाहर पलायित बच्चे जब भी कोई बालक-बालिका दूसरे शहरों में, प्रदेशों में, देशों में “अब्बल” आने लगे, “छक्कों की तरह हम सभी लोग ताली बजाने लगे, लगते हैं हुकुम” यह आप जानते हैं नीतीश जी।

मैं तो साढ़े-चार-वर्ष की उम्र में ही पिता की ऊँगली पकड़कर छोटी लाइन की ट्रेन से दरभंगा से हाजीपुर-सोनपुर-पहलेजा घाट के रास्ते गंगा मैया की तेज धार को काटते पटना के महेंद्रु घाट पहुँच गए सरकार। उस समय कपार पर गोलघर जैसा लाल-तिलकधारी बिनोदानंद झा मुख्यमंत्री कार्यालय से निकल रहे थे हुज़ूर; प्रदेश के नेताओं को, अधिकारीयों को, ठेकेदारों को, बिचौलियों के मुख में प्रदेश को लूटने की विधि-विधान की ओर उन्मुख करके हुज़ूर। क्योंकि दीप नारायण सिंह 18 दिन के शासन में क्या किये, आप तो अनेकानेक बार पढ़े हैं और श्रीकृष्ण सिंह की तो बात ही छोड़िये।

अगर गांव छोड़कर पटना नहीं आया होता, पटना छोड़कर कलकत्ता नहीं गया होता, कलकत्ता छोड़कर दिल्ली नहीं आया होता तो गर्दनीबाग रेलवे क्रासिंग पर या फिर सर्पेंटाइन रोड के चौराहे पर, या फिर डाक बंगला रोड के कोने पर “भुट्टा ही बेचते” रहता न नीतीश बाबू।

हुज़ूर!! बिनोदानंद झा, लोगबाग उन्हें “बिनोदबाबू” कहते हैं (मुंह भी नहीं दुखता) से लेकर आजतक 22 मुख्यमंत्री बने हुज़ूर, एक-एक आदमी दो बार, तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए; आप भी जानते हैं लेकिन हम लोग जैसा निरीह-गरीब-गुरबा इन साठ-वर्षों में आज भी ठेंघुने पर ही हैं हुकुम क्योंकि अपने प्रदेश में कभी “अवसर का अवसर नहीं ढूंढा गया” नीतीश जी। लेकिन देखिये न बिहार के बाहर दिल्ली में, नोएडा में, गाजियाबाद में, लखनऊ में, कानपुर में, कोलकाता में,चेन्नई में, मुंबई में, राजस्थान में, मध्यप्रदेश में, उत्तराखंड में मंत्रियों का, अधिकारीयों का, ठेकेदारों का, दबंगों का और शासन-व्यवस्था के नजदीकियों का कितना बड़ा संपत्ति-साम्राज्य है ? आपको तो मालूम ही है नीतीश बाबू।

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के बी सहाय, महामाया प्रसाद सिंह, सतीश प्रसाद सिंह, बी पी मंडल, भोला पासवान शास्त्री, हरिहर सिंह, दारोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर, केदार पांडेय, अब्दुल गफूर, जगन्नाथ मिश्रा, राम सुन्दर दास, चंद्रशेखर सिंह, सत्येन्द्र नारायण सिंह, लालू प्रसाद, राबड़ी देवी और नीतीश जी आप जैसे सभी मुख्यमंत्रियों ने, मंत्रियों ने, अधिकारियों ने, दबंगों ने अपने-अपने राजनीतिक लाभ के लिए – सबों ने मिलकर बिहार का चतुर्दिक लुटे हुकुम, लूट रहे हैं सरकार और बिहार को बांझ बना दिए “आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य, कला-विज्ञान इत्यादि इत्यादि क्षेत्रों में सरकार ।

नीतीश बाबू !! अपने प्रदेश में अपने लोगों को सुरक्षित रहने, भर-पेट डकार लेकर खाने, अनंत-स्तर तक शिक्षा ग्रहण करने, स्वस्थ और तंदुरुस्त रहने, व्यापार करने, खेतों में भरपूर उत्पादन करने, उसे उचित मूल्यों बाजार में बेचने, बिना धूस दिए कार्यालयों में अधिकारियों, कर्मचारियों को काम करने का माहौल बनाइए बाबू।

अपने प्रदेश की किसी भी महिला की यह कतई इक्षा नहीं होती की: पंजाब में फसल काटते समय उसका स्तन वहां का ठेकेदार गलत निगाह से देखे; कम उम्र के लड़कों को जो अपने बूढ़े माता-पिता को भरपेट खाना खिलाने के लिए अरब देश भागे जहाँ उसे वहां “शारीरिक शोषण करें” शहरों में उसके ही उम्र के बच्चे स्कूल जाए और उसे उसी घर में झाड़ू लगाना पड़े – बहुत सारी बातें हैं, बहुत सारे अवसर हैं – जिसे आप बिहारी होने के नाते ठीक कर सकते हैं नीतीश बाबू।

ठीक करिये हुकुम – बहुत दुआएं देंगे बिहार के लोग, जो आपके ही लोग हैं नहीं तो आप उत्तरोत्तर कमजोर होते चले जायेंगे। आखिर समय भी कोई चीज है। अगर ऐसा नहीं होता तो मगध में गुप्त वंश का पतन नहीं होता। शेष तो आप पढ़े-लिखे हैं ही, विचारक भी हैं।

आपका शुभचिंतक,

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