#भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (12) ✍️ ‘तिरंगा’ उत्पादक और विक्रेता तिरंगे का व्यापार करते हैं 😢

#कतरन’ पर आपका स्वागत है। ‘तिरंगा’ उत्पादक और विक्रेता तिरंगा के कल्पनाकार को नहीं जानता, नहीं पहचानता, क्रेताओं को नहीं बताता उनके बारे में, वह तो महज मुनाफ़ा के लिए तिरंगा बेचता है। ‘बेचना और खरीदना’ व्यापार का एक अहम् हिस्सा है और तिरंगा का व्यापार हो, यह शुभ संकेत नहीं है। इस कहानी के माध्यम से मैं देश के प्रधानमंत्री सम्मानित श्री नरेंद्र दामोदर मोदीजी से निवेदन करता हूँ कि वे भारत के लोगों को आह्वान करें कि अगले वर्ष 2023 में और आगे, जब आज़ाद भारत के लोग जश्ने आज़ादी का वर्ष मनाएं, वे अपने-अपने घरों में, माँ के साथ, दादा-दादी के साथ, नाना-नानी के साथ, बहनों के साथ, घर-समाज के बड़े-बुजुर्गों के साथ बैठकर तिरंगा के नियमों का ह्रदय से पालन करते अपने-अपने हाथों से तिरंगा बनायें, लहरायें, फहराएं – लेकिन बाजार में न तो तिरंगा बेचें और ना ही बाज़ार से तिरंगा खरीदें। क्योंकि देश के बच्चे ही नहीं, युवक और वुजूर्ग भी, न तो आज तिरंगा की जीवन-यात्रा को जानते हैं, न अपनी अगली पीढ़ियों को बताते हैं। यही कारण है कि आज इस तिरंगा के कल्पनाकार सम्मानित पिंगली वेंकैय्या साहब को नहीं जानते और सम्मानित पिंगले साहब के बारे में न तो तिरंगा उत्पादक बताता है और ना ही बाजार में तिरंगा बेचने वाला ही।

फ्लैग फाउंडेशन ऑफ़ इण्डिया देश में अब तक लगभग 100 विशालकाय ध्वज देश में लगा चुका है, जिसमें 13 झंडे 207 फुट से ऊंचे हैं। फ्लैग फाउण्डेशन के संस्थापक यह मानते हैं कि उनकी पहल के बाद पुरे देश में अनेक संस्थाएं आगे आईं और अभी तक 500 से अधिक विशालकाय ध्वज पुरे देश में लगाए जा चुके हैं। वे यह भी मानते है कि किसी भी देश में इतने विशालकाय झंडे नहीं हैं, जितने हमारे देश भारत में हैं। वे यह भी स्वीकार करते हैं कि : “हालांकि यह सत्य है कि सिर्फ तिरंगा प्रदर्शित करने से कोई देशभक्त नहीं बन जाता। यह प्रतीकात्मक है लेकिन किसी भी काम में सफलता के लिए हम इसे प्रेरणा स्रोत अवश्य बना सकते हैं। मेरा मानना है कि हम सभी अपने-अपने काम राष्ट्रहित में ईमानदारी दे करते रहें तो कोई भी ताकत भारत को खुशहाल राष्ट्र बनने से नहीं रोक सकती। तिरंगा हमारा राष्ट्रीय ध्वज है, जो देश की संप्रभुता और स्वाभिमान का सर्वोच्च प्रतीक है ही, राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए मर-मिटने वालों के बलिदान का भी प्रतीक है। हमें इसका मान-सम्मान बनाए रखना है। हमें सदैव याद रखना है, झंडा ऊंचा रहे हमारा। ”

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विगत 13, 14 और 15 अगस्त, 2022 को आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के आह्वान पर ‘हर घर तिरंगा’ लहराने का कार्य लोगों ने बहुत उत्साह से संपन्न किया। प्रधानमंत्री के वेबसाइट पर कोई पांच लाख से अधिक तिरंगे के साथ सेल्फी भी प्रेषित किया भारत के लोगों ने। सरकार द्वारा निर्धारित से 9/- रुपये, 18/- रुपये और 25/- रुपये में बाजार से तिरंगा खरीदकर हर घर तिरंगा लहरा कर, फहरा कर स्वतंत्रता दिवस की ख़ुशी ज़ाहिर किये। शायद स्वतंत्र भारत में पहली बार लोगों ने इस कदर आस्था और विश्वास दिखाया है।

लेकिन क्या तिरंगे के इतिहास को कितने लोग जानते हैं?

कहते हैं भारत के राष्ट्रीय ध्वज में 1906 से लेकर साल 1947 तक अलग-अलग बदलाव आए हैं। 1857 में पहली बार क्रांतिकारियों ने एक हरे रंग का झंडा, जिसके ऊपर कमल था, स्वीकारे। बाद में 1906 में कलकत्ता के पारसी बागान चौक पर तिरंगा फहराया गया था जिसे हरे, पीले और लाल रंग से बनाया गया था जिसके बीच में ‘वंदे मातरम’ लिखा था। सन 1907 में मैडम कामा द्वारा पेरिस में यह ध्वज फहराया गया। इसमें सबसे ऊपर लाल पट्टी का रंग केसरिया का और कमल के बजाय सात तारे थे जो सप्त ऋषि का प्रतीक था। उसमें आखिरी पट्टे पर सूरज और चांद भी अंकित किए गए थे। इसके दस साल बाद 1917 में एक तीसरा झंडा आया। होमरूल आंदोलन के तहत एक ध्वज को डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने फहराया। उस ध्वज में पांच लाल और चार हरी क्षितिज पट्टियां थीं और यूनियन जैक भी मौजूद था। साल 1921 में दो रंगों का ध्वज था – लाल-हरा पट्टी का। महात्मा गाँधी के सुझाव पर एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा सम्मिलित किया गया, फिर चरखा जोड़ा गया । इसी बीच में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी में एक ध्वज फहराया जिसमें ऊपर केसरिया, बीच में सफेद, नीचे हरा और बीच में एक टाइगर मौजूद था। सन 1931 में ध्वज को केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ, मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे का साथ मिला। तत्पश्चात अशोक चक्र का सफर आता है। सन 1947 में सावरकर ने चरखे की कमेटी को एक टेलीग्राम भेजा और कहा कि तिरंगे के बीच में मध्य अशोक चक्र होना चाहिए.” उनके विचार को सहर्ष स्वीकार किया गया। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने उसे आजाद भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में वरण किया। अशोक चक्र होने का अर्थ ‘अखंड भारत’, एक बड़ा भारत, एक दिव्य भारत का प्रतिक। इस ध्वज की कल्पना पिंगली वेंकैय्या ने की थी ……

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