अन्ना हज़ारे का रामलीला मैदान ‘अनशन पार्ट दो’ – पहले आंदोलन का ‘सिक्वल’ नहीं

अन्ना हज़ारे
अन्ना हज़ारे

अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया,प्रशांत भूषण व शांति भूषण, बाबा रामदेव जैसे ‘अवसरवादी साथी’ अगुवाई में नहीं दिखे।

कई क्रांतिकारी रैलियों का गवाह रहा राजधानी दिल्ली का रामलीला मैदान अण्णा हजारे का दूसरा अनसन का भी गवाह बन चुका है। देखना होगा कि इस रैली से कितने और मुख्यमंत्री या राज्यपाल बनाता है। मत भूलिए दिल्ली के मुख्यमंत्री और पुंडुचेरी की राज्यपाल अण्णा के पहले आंदोलन की उपज रहे हैं।

बहरहाल आंखों देखी हालत यह है कि अण्णा का रामलीला मैदान ‘अनशन पार्ट दो’ उनके पहले अनशन का ‘सिक्वल’ नहीं है। वालीबुड में फिल्मों के सिक्वल की सफलता का ट्रेंड इन दिनों भले हिट हो लेकिन जनता की अदालत में अनशन के ‘सिक्वल’ का हिट होना आसान नहीं। खासकर ऐसे समय में जब ना तो आंदोलनकारी और ना ही मीडिया अपने पहले के सरोकार में हो।

बहरहाल, रामलीला मैदान में एक बार फिर मुद्दों पर सुनवाई चली है। तर्क, साक्ष्य और हालाते गवाह मंच से समझाए जा रहे हैं। देखना होगा नतीजा कितना निकलता है। अनशन की शुरूआत 2011 के ढर्रे पर ही हुई।

ऐतिहासिक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के तकरीबन सात साल बाद सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे ने केन्द्र में लोकपाल नियुक्त करने की अपनी मांग को लेकर शुक्रवार को अनिश्चतकालीन भूख हड़ताल शुरू की। भूख हड़ताल पर बेठने वाले अण्णा ने अपने शुरूआती संबोधन में दावा किया कि इस बार का अनशन पहले से भी बड़ा होगा। अण्णा ने कहा-मैंने सरकार को 42 बार पत्र लिखा। मगर सरकार ने नहीं सुनी। अंत में मुझे अनशन पर बैठना पड़ा। इस बार आश्वासन पर आंदोलन खत्म नहीं होगा। मांग पूरी करवाए बिना यहां से नहीं हटूंगा। हालाकि पहले दिन अण्णा का रामलीला मैदान अनशन पार्ट-2 अपने पुराने रंगत में नजर नहीं आया।

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बता दें कि आंदोलन शुरू होने से पहले अण्णा हजारे राजघाट पहुंचे। यहां उन्होंने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद अण्णा हजारे शहीदी पार्क पहुंचे। यहां शहीदों को याद करने के बाद अण्णा सीधे रामलीला मैदान पहुंचे, जहां भूख हड़ताल की शुरुआत की। माना जा रहा है इस बार उनके हमले के केन्द्र में मोदी सरकार होगी। हजारे कृषि पर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने के अलावा केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति की मांग पर जोर दे रहे हैं।

पहले दिन यानि शुक्रवार को ‘रामलीला अनशन पार्ट-2’ में कई चीजे अलग दिखी। अण्णा के पूर्ववर्ती झंडाबदारों में से कोई बड़ा चेहरा नजर नहीं आया। अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया,प्रशांत भूषण व शांति भूषण, बाबा रामदेव जैसे साथी उनकी अगुवाई में नहीं दिखे।

इस बार अण्णा हजारे के साथ नए साथी नजर आए। जिन्होंने दावा किया कि अनशन लंबा खिचेगा। मंच के घेरे में अण्णा के संरक्षक दत्ता अवारी, पंकज काल्की और दिल्ली से सुनील लाल के अलावा कुछ नए चेहरे मोर्चे पर मौजूद थे। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एवं कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त एन संतोष हेगड़े भी रामलीला मैदान पहुंचे थे।

इसके अलावा ‘भगवा-केसरिया’ समूह के संगठन व उनके कार्यकताओं की दूरी शुक्रवार के अनशन में देखी जा सकती थी। उनकी जगह किसानों के संगठनों ने ली है। भारतीय किसान युनियन के एक धड़े के अलावा करीब दर्जन भर खेती-किसानी से जुड़े संगठनों के लोग सफेद-हरे रंग वाली टोपी व झंड़े के साथ मैदान में पहुचे है। इसके अलावा दिल्ली वालों की भागीदारी यहां बेहद कम दिखी।

अनशन में दिल्ली से बाहर के लोगों की भागीदारी ज्यादा रही। अनशन का समय दस बजे रखा गया था। दोपहर तक ऐसा लगा कि मैदान खाली रह जाएगा। शायद इसे अण्णा ने भी भांप लिया। वे केंद्र सरकार पर बरसे। कहा-‘प्रदर्शनकारियों को दिल्ली लेकर आ रही ट्रेन आपने कैंसिल कर दी। आप उन्हें हिंसा की ओर धकेलना चाहते हैं। मेरे लिए भी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। मैं कई पत्र लिखे और कहा था कि मुझे सुरक्षा नहीं चाहिए। आपकी सुरक्षा मुझे बचा नहीं सकती। सरकार का धूर्त रवैया सही नहीं है।’ इससे पहले उन्होंने मंच पर एक दो लोगों को बुलाया और कुछ बातें की। फिर मंच पर ही कुछ और लोग अण्णा के पीछे बैठे। सनद रहे कि पहले आंदोलन में मुख्य मंच पर अण्णा अकेले बैठा करते थे। और अण्णा के साथ कुछ होता था तो वह था-‘लहराता तिरंगा’। इस बार दो छोटे मंच भी बने हैं जहां अण्णा के चित्रों व बैनरों के साथ संबोधन और संचालन करने वाले लोग बैठे थे।

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इतना ही नहीम पहले की तुलना में और भी कई मायने में अलग रहा आंदोलन। 2011 में भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर अण्णा हजारे ने आदोलन किया और अब किसानों का मुद्दा लेकर वो दिल्ली पहुंचे हैं। अण्णा के इस आंदोलन को ‘जन आंदोलन सत्याग्रह’ नाम दिया गया। बैनर पर सक्षम किसान, सशक्त लोकपाल और चुनाव सुधार जैसी तीन प्रमुख मांगें भी लिखी हुई हैं। भारतीय किसान यूनियन समेत देश के कई दूसरे किसान संगठनों ने अण्णा के इस आंदोलन को समर्थन दिया है। 2011 के आंदोलन को ‘जन लोकपाल’ नाम दिया गया । अपने संबोधन में अण्णा ने कहा कि अंग्रेज चले गए, लेकिन लोकतंत्र नहीं आया। साथ ही कहा कि सिर्फ गोरे गए और काले आ गए।

याद रहे पिछली बार लोकपाल विधेयक को पारित कराने की मांग को लेकर बैठे अण्णा हजारे ने अपना अनशन आश्वासन पर तोड़ा था। अनशन न केवल लंबा चला था बल्कि पूरी दिल्ली सड़क पर उतर आइ थी। जिन्होंने जेपी का आंदोलन नहीं देखा था उन्होंने उसे ही जेपी आंदोलन जैसा माना। इस बार क्या होगा?

मुद्दे ज्यादा टेंट कम:
इस बार अण्णा आंदोलन का क्षेत्रफल पहले की तुलना में कम है। रामलीला मैदान में लगाए टेंट कम लेकिन मुद्दे ज्यादा हैं। लोकपाल नियुक्त करने की अपनी पिछली मांग के अलावा अण्णा हजारे जिन मुद्दों को लेकर मंच पर हैं उनमें लोकपाल कानून को कमजोर करने वाली धारा 44 और धारा 63 का संशोधन करने, कृषि पर स्वामीनाथन आयोग की पूरी रिपोर्ट लागू करने, चुनाव सुधार, खेती पर निर्भर 60 साल से ऊपर उम्र वाले किसानों को प्रतिमाह 5 हजार रुपए पेंशन देने, कृषि मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा तथा सम्पूर्ण स्वायत्तता देने सहित और भी कई मांगें शामिल हैं।

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कहां गया मध्यम वर्ग:
साल 2011 के मुकाबले इस बार अण्णा हजारे के आंदोलन से मध्यम वर्ग नदारद दिखा। उस वक्त आंदोलन पूरी तरह से भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम था जिसे मध्य वर्ग का काफी समर्थन मिला. इस बार ये किसानों के लिए आंदोलन है। एक और बड़ा फर्क है कि 2011 में केंद्र और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी, अब केंद्र में बीजेपी और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सत्ता है। अण्णा हजारे ने साफ कर दिया कि आम आदमी पार्टी समेत किसी भी राजनीतिक दल के नेता, सदस्य, कार्यकर्ता या समर्थक उनके आंदोलन के मंच पर नहीं आ सकते। वैसे दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी 2011 में हुए अण्णा आंदोलन के गर्भ से ही निकली पार्टी है।

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