#भारतकीसड़कों से #भारतकीकहानी (9) ✍️ : दिल्ली का #श्रद्धानंदमार्ग और जिस्म बेचती महिलाओं का रुदन 😢

शब्द कटु हैं लेकिन यह भी सच है कि श्रद्धानन्द मार्ग स्थित कोई दो हज़ार से अधिक महिलाएं (वेश्याएं) अपनी जिश्म को बेचकर, हर जुल्म को सहकर दिल्ली के समाज को सुरक्षित रखी है। परन्तु उनके आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, चिकित्सा सुविधाओं की ओर कोई देखता भी नहीं।

23 मार्च, 1995 को दिल्ली से प्रकाशित दी इण्डियन एक्सप्रेस के प्रथम पृष्ठ पर करीब आठ कॉलम में एक कहानी प्रकाशित होती है। वह कहानी सांख्यिकी के आधार पर थी। उस कहानी में यह लिखा गया था कि दिल्ली पुलिस जी बी रोड यानी श्रद्धानंद मार्ग स्थित कोठों से सप्ताह वसूलती है। उस समय दिल्ली पुलिस के आयुक्त श्री निखिल कुमार थे। जिस दिन वह कहानी प्रकाशित हुई, उसी रात कोई 12 बजे मंदिर मार्ग, कनॉट प्लेस, पंचकुहिया रोड क्षेत्रों में “सीवर-लाइन ब्लास्ट” हुआ। दर्जनों लोग हताहत हुए। इण्डियन एक्सप्रेस के तीन संवाददाता – मैं, श्री अजय सूरी और श्री संजीव सिन्हा – मौके वारदात पर थे। मन्दिर मार्ग के पुलिस कर्मी अपने उच्च अधिकारियों को हमलोगों की ओर इशारा किये। फिर क्या था, मुझे और संजीव की पिटाई-कुटाई हो गई। देर रात श्री निखिल कुमार, तत्कालीन सेन्ट्रल डिस्ट्रिक्ट के उपयुक्त श्री आदित्य आर्या दफ्तर पधारे। उधर तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री पी एम सईद (अब दिवंगत) देर रात अपने घर कार्य कर रहे थे। हमलोगों की फोन की घंटी टनटनाइ। पूरी बात सुने और कहानी खुलकर लिखने को कहा। उसी रात कोई 2 बजे मंदिर मार्ग थाना के तीन कर्मी लाइन हाज़िर हो गए।

आज श्रद्धानंद मार्ग के इलाके में गया था। आज भी उस इलाके में महिलाओं की घरों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं है । आज भी उन्हें अच्छे स्वास्थ्य, शिक्षा, संस्कृति, भोजन-व्यवस्था, वस्त्र के लिए ललकना पर रहा है। यहाँ कोई दो हज़ार से अधिक मतदाता हैं जो दिल्ली विधान सभा और लोक सभा चुनाव में अभ्यर्थियों को वोट देते हैं। चुनाव के समय अभ्यर्थी दूर से यहाँ हाथ हिलाते दीखते हैं। परन्तु चुनाव के बाद अगली चुनाव में दर्शन देते। इन महिलाओं की क्षमता नहीं है कि वे अपनी आवाज बुलंद कर सकें। दिल्ली की सरकारी कार्यालयों में, फाइलों में इनके जीवकोत्थान के लिए काला, लाल, हरे स्याहियों से पन्ना-दर-पन्ना टिपण्णी लिखे होते है; परन्तु फाइलों की गति “दिव्यांगों” की गति से भी 99 फीसदी धीमी होती है। क्योंकि अगर गति तीव्र होती तो शायद मरणासन्न जीवन जीने वाली यह महिला मतदाताओं का जीवन कुछ अलग होता। विश्वास नहीं हो तो भ्रमण-सम्मेलन जरूर करें।

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