एक ‘टिस’ की शुरुआत के तहत आखिर अपने ही देश में अपना तिरंगा क्यों नहीं फहरा सकता कोई, युवा नेता और उद्योगपति नवीन जिंदल सन 1995 में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर किये । सन 1995 से सन 2004 तक लगभग दस साल यह लड़ाई चली। वादी-प्रतिवादियों का बहस जारी रहा। न्यायमूर्ति दोनों पक्षों की बातों को सुनते रहे। हताशा किसी के चेहरे पर नहीं था। न्याय के प्रति सम्मान और विश्वास उतना ही अडिग था, जितना तिरंगा के प्रति।
भारत के एक नौजवान नवीन जिंदल की बातें और भारत के लोगों को तिरंगा लहराने, फहराने से सम्बंधित कहानियां भारत के कोई छह लाख से भी अधिक गाँव तक पहुँचते रही थी, अख़बारों के माध्यम से, पत्रिकाओं के माध्यम से, टीवी के माध्यम से, रेडियो के माध्यम से । जिला, प्रदेश, देश, विदेश के अख़बारों में प्रकाशित होते रहे।
कोई दस वर्षों की लड़ाई के बाद देश में तिरंगा के मामले में, उसे लहराने, फहराने के मामले में एक नया सूर्यादय हुआ और फिर 23 जनवरी 2004 को भारत का सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में भारत के सभी देशवासियों को अपने ऑफिस, घर, कारखाने और सार्वजनिक जगहों पर सम्मानपूर्वक प्रत्येक दिन ‘तिरंगा’ फहराने का मौलिक अधिकार प्रदान कर दिया। आगे सन 2009 में भारत सरकार का गृह मंत्रालय झंडा से संबंधित नियमों में भी आमूल परिवर्तन किये। भारत के प्रत्येक नागरिकों राष्ट्र के सम्मानार्थ, देश केव सम्मानार्थ, तिरंगा के सम्मानार्थ, अपनी आज़ादी के सम्मानार्थ, जंगे आज़ादी में अपने-अपने प्राणों को उत्सर्ग करने वाले क्रांतिकारियों के सम्मानार्थ तिरंगा फहराने का मौलिक अधिकार मिला।
आज हम जब आज़ादी के अमृत महोत्सव पर 13-14 और 15 अगस्त, 2022 को अपने-अपने घरों में, चाहे भारत की झोपड़ियां हो, शहरों की गगनचुम्बी अट्टालिकाएं हो, फार्म हॉउस हो, विद्यालय तो, महाविद्यालय हो, शैक्षणिक संस्थानें हो, सरकारी-अर्ध-सरकारी, निजी कार्यालय हो – उस व्यक्ति को भूल गए जिसने भारत के लोगों को घर-घर तिरंगा लहराने, फहराने का मौलिक अधिकार दिलाया था…….. ओह !!!!!