चौंकिए नहीं !!!!!!! दिल्ली सल्तनत में दरभंगा राज का नामोनिशान समाप्त
दरभंगा के अंतिम राजा रामेश्वर सिंह द्वारा अर्जित और उनके पुत्र महाराज अधिराज सर कामेश्वर सिंह द्वारा पोषित, संरक्षित दिल्ली सल्तनत में दरभंगा का नामोनिशान बस मिटने ही वाला है। महाराजाधिराज की मृत्यु (2 अक्टूबर, 1962) के बाद दरभंगा राज में कोई भी सख्शियत नहीं रहा जो दिल्ली सल्तनत में दरभंगा की गरिमा को बरकरार रख पाता।
अकबर रोड और मानसिंह रोड पर बाएं हाथ दरभंगा लेन का जो बोर्ड आज आप देख रहे हैं, उसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को, नगर विकास मंत्रालय, भारत सरकार को, नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों को धन्यवाद दीजिये, अन्तःमन से कृतार्थ होएं – क्योंकि कल जब वहां देश में विख्यात ‘डेवलपर’ का गगनचुम्बी ईमारत खड़ी होगी, चौबीसवें और तीसवें तल्ले के बालकोनी से उस ईमारत के स्वामी दिल्ली की हवाओं का, फ़िज़ाओं का आनंद लेंगे – उस दिन मानसिंह रोड और अकबर रोड पर खड़े होकर कहते नहीं थकेंगे ‘यह महाराजा दरभंगा का था’, लेकिन कभी अपने कलेजे पर हाथ रखकर यह नहीं स्वीकार करेंगे कि “हम सभी मिथिला इतिहास को मिटते देख रहे थे मूक-बधिर की तरह।
98-वर्ष पुराना ऐतिहासिक विरासत दिल्ली सल्तनत में नहीं बचा जिस सल्तनत की बुनियाद 25/25 A दरभंगा हाउस और परिसर तथा 7, मानसिंह रोड के रूप में दरभंगा के तत्कालीन महाराजा रामेश्वर सिंह आआज से दो दिन पूर्व, यानी 9 अगस्त, 1923 में रखे थे, जिस बुनियाद और गरिमा को उनके पुत्र महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह अपने शरीर को पार्थिव होने के पूर्व अंतिम सांस तक सीचें थे; दरभंगा राज का वह ऐतिहासिक इतिहास अब दरभंगा राज का नहीं, बल्कि भारत सरकार का हो गया और कल एक निजी बिल्डर का हो जायेगा