यह है ऐतिहासिक #लालकुआं दिल्ली से कोई 25 किलोमीटर दूर दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ सड़क पर। सन 1857 #मेरठक्रांति के बाद जब दिल्ली पर धाबा बोला गया था, इस स्थान के पास सैकड़ों क्रांतिकारी मृत्यु को प्राप्त हुए। स्वाभाविक है वह जघन्य अपराध ब्रितानिया हुकूमत के अफसरान, पुलिस अधिकारी ही किये थे। क्रांतिकारियों के लहू-लहान पार्थिव शरीर को इसी कुएं में फेंका गया था। खून से लथपथ पार्थिव शरीर इस कुएं के पानी को लाल कर दिया था। मेरठ का यह हिस्सा लाल कुआं के नाम से विख्यात हुआ। इस ऐतिहासिक कुएं की जो दशा वर्तमान में हैं, यह इसका हकदार नहीं है।
सन 1857-1947 के क्रांतिकारियों के वंशजों की खोज से संबंधित हमारे दो दशक पुराने प्रयास का मानना है कि यह महज एक कुआं नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत का आराध्य है। सैकड़ों लोगों ने मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों को यहाँ की मिट्टी को अर्पित किया है, अपने लहू से मिट्टी को, कुएं को स्नान कराया है, तभी यह स्थान लाल कुआं कहलाया। इसका बेहतरीन रख-रखाव आज की पीढ़ी कर सकती है, कल की पीढ़ी को भारत का इतिहास सुपुर्द करने के लिए।
एक भारतीय होने के नाते, एक पत्रकार होने के नाते, मैं अपने कर्म का निर्वाह कर रहा हूँ। अब तक सन 1857-1947 क्रांति के 75 शहीदों के वंशजों को ढूंढा हूँ भारत में। छः किताबों से छः परिवारों का जीवन भी बदला हूँ। शेष आप सभी विद्वान, विदुषी हैं🙏