पटना में ‘अगस्त क्रांति’ के दिन ‘आज़ादी’ का ‘महोत्सव’ हो गया, कार्यकर्त्ता गाते सुनाई दिए: ‘अपने तोह अपने होते हैं……बाकी सब सपने होते हैं’

'अपने तोह अपने होते हैं बाकी सब सपने होते हैं' - नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव। तस्वीर: एनडीटीवी के सौजन्य से

नई दिल्ली / पटना : अंततः आज़ादी का अमृत महोत्सव पर अगस्त क्रांति हो गई। भारत के राजनीतिक इतिहास में आज का दिन जनता दल के लिए ‘यूनाइटेड’ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए ‘डिवाइडेड’ के रूप में दर्ज किया जायेगा। बिहार की राजनीति को प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश कुमार ‘पुनः परिभाषित’ कर भाजपा की अगुआई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से अपना ‘राजनीतिक तंत्र’ अलग कर लिया है। वे भाजपा से अलग होने के बाद अपना त्यागपत्र प्रदेश के राज्यपाल को सौंप दिए हैं। साथ ही, प्रदेश के अन्य राजनीतिक पार्टी के साथ गठबंधन कर पुनः सरकार बनाने हेतु लगभग 160 विधायकों की सूची के साथ राज्यपाल से पुनः मिलने का समय मांगे हैं। 

मुख्यमंत्री आवास के बाहर कई कार्यकर्ता “अपने” फिल्म के गीत गाते सुनाई दिए। इस फिल्म में धर्मेंद्र, सन्नी देवल, बॉबी देवल, शिल्पा सेट्टी, कैटरीना कैफ, किर्रोन खैर मुख्य भूमिका निभाए हैं। “अपने” फिल्म के इस गीत – अपने तो अपने होते हैं – सोनू निगम, जसपिंदर नरूला और जयेश गाँधी ने गया है और इस गीत के बोल हेमेश रेशमियां ने लिखा है।

हमारे संवाददाता ने जब एक कार्यकर्ता को इस अवसर पर गीत गाने का कारण पूछा तो वह मुस्कुराकर कहता है: “नीतीश बाबू कल जिसे अपने ‘दुआरी’ से ‘बच्चा’ शब्द से अलंकृत कर ‘भगा’ दिए थे, आज गुलदस्ता लेकर गले मिलने-मिलाने का मार्ग प्रशस्त करते स्वयं चले गए। आखिर अपने तो अपने होते हैं, इस बात का एहसास नीतीश बाबू को हो गया। अगर वे प्रदेश की भलाई के लिए पुनः एक होकर सरकार बनाना चाहते हैं, तो प्रदेश की जनता और मतदाता, जिसने राष्ट्रीय जनता दल को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में विजय दिलाई थी, लेकिन नीतीश बाबू ‘उधर चिपकना’ अधिक श्रेयस्कर समझें उन दिनों; आज खुद्दे जमीन पर आ गए। हम सभी उनसे उम्र में छोटे हैं, उनका सम्मान करते हैं, इसलिए, देर से ही सही, वे रोते-बिलखते अपनों के पास ही आये।”

सूत्रों के अनुसार विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नीत महागठबंधन की बैठक पार्टी के नेता तेजस्वी यादव ने अपनी मां एवं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के दस सर्कुलर रोड स्थित आवास पर बुलाई जिसमें वाम दल और कांग्रेस ने हिस्सा लिया। कहा जा रहा है कि यहां सभी विधायकों ने कुमार के समर्थन वाले एक पत्र पर हस्ताक्षर किए। उधर, सभी छोटे-छोटे विपक्षी दलों ने भी नीतीश कुमार को समर्थन देने का वादा किया है। नीतीश कुमार  राज्यपाल से मुलाकात का वक्त मांगा है। राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को शाम चार बजे मुलाकात का वक्त दिया है।

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वहीं जनता दल (यूनाइटेड) के सांसदों और विधायकों की बैठक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में उनके आधिकारिक आवास एक अणे मार्ग पर हुई। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने विधायकों और सांसदों के साथ हुई बैठक में कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उन्हें बाध्य किया, क्योंकि उसने पहले चिराग पासवान से विद्रोह कराकर और फिर पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को सामने खड़ा करके जदयू को कमजोर करने की कोशिश की। 

विगत दो दशकों में बिहार में हुए राजनीतिक उठापटक को, छीना-झपटी को अमर उजाला अखबार ने विस्तार से उजागर किया है। अखबार ने लिखा है , “26 साल के साथ में ये दूसरी बार है जब नीतीश भाजपा से अलग हो रहे हैं। नीतीश कुमार समता पार्टी के दौर से ही भाजपा के साथ आ गए थे। 2000 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब भाजपा के साथ ही थे। तब से लेकर अब तक सात बार वह इस पद पर रह चुके हैं। इनमें से पांच बार शपथ के दौरान भाजपा उनकी सहयोगी थी। 2000 में विधानसभा चुनाव हुए। तब नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था। भाजपा, समता पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा। वहीं, राजद, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी एकसाथ मैदान में थे। एनडीए गठबंधन को चुनाव में 151 सीटें मिलीं। भाजपा ने 67 सीटें जीती थीं। नीतीश कुमार की पार्टी के 34 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। एनडीए गठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चुन लिया। नीतीश ने सीएम पद की शपथ भी ले ली। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 163 था। राजद की अगुआई वाली यूपीए के पास 159 विधायक थे। बहुमत का आंकड़ा नहीं होने के कारण नीतीश को सात दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा और यूपीए गठबंधन की सरकार बनी।” 

अमर उजाला ने लिखा है कि ये बात 2005 विधानसभा चुनाव की है। चुनाव से दो साल पहले यानी 2003 में समता पार्टी नए नाम जदयू के तौर पर अस्तित्व में आई। इसमें नीतीश कुमार की समता पार्टी के साथ लोक शक्ति, जनता दल (शरद यादव ग्रुप), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय हो गया था। जदयू और भाजपा ने मिलकर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ा। फरवरी में हुए इस चुनाव में किसी भी गठबंधन या दल को बहुमत नहीं मिला। 

राम विलास पासवान की लोजपा को 29 सीटें मिलीं। पासवान जिसके साथ जाते उसकी सरकार बनती। लेकिन, पासवान दलित या मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ गए। दोनों ही गठबंधन उनकी शर्त मानने को तैयार नहीं हुए। क्योंकि, एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी नेता थीं, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार गठबंधन के नेता थे। छह महीने राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा। नए सिरे से चुनाव हुए। इस बार  एनडीए गठबंधन में शामिल जदूय को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। जो बहुमत के आंकड़े 122 से काफी ज्यादा था। नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। 

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अखबार आगे लिखता है कि “एनडीए गठबंधन ने 2010 में भी साथ में मिलकर चुनाव लड़ा। तब जदयू को 115, भाजपा को 91 सीटें मिलीं। लालू प्रसाद यादव की राजद 22 सीटों पर सिमटकर रह गई। तब तीसरी बार नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता मिली। वह मुख्यमंत्री बने। सन 2013 में नीतीश ने 17 साल पुराने साथ का साथ छोड़ा था। तब भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। नीतीश कुमार  भाजपा के इस फैसले से सहमत नहीं थे। उन्होंने एनडीए से अलग होने का फैसला ले लिया। भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। राजद ने नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश पद पर बने रहे। 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश की पार्टी ने अकेले लड़ा। उसे महज दो सीटों पर जीत मिली। एनडीए केंद्र की सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।

अख़बार के अनुसार, “उन्होंने महादलित परिवार से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि, फरवरी 2015 में नीतीश कुमार ने फिर से बिहार की कमान अपने हाथ में ले ली और मुख्यमंत्री बने। इस बार उनकी सहयोगी राजद और कांग्रेस थीं।  सन 2015 विधानसभा चुनाव से पहले जदयू, राजद, कांग्रेस समेत अन्य छोटे दल एकसाथ आ गए। सभी ने मिलकर महागठबंधन बनाया। तब लालू की राजद को 80, नीतीश कुमार की जदयू को 71 सीटें मिलीं। भाजपा के 53 विधायक चुने गए। राजद, कांग्रेस और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार फिर से पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए। लालू के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम और दूसरे बेटे तेज प्रताद स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए। 2017 में तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफा मांगा। हालांकि, राजद ने मना कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने खुद इस्तीफा दे दिया और चंद घंटों बाद भाजपा के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली। भाजपा की मदद से सीएम बने। 
  
सन 2020 में भाजपा-जदयू ने मिलकर एनडीए गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा। तब जदयू ने 115, भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 74 सीटें हासिल की। ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जदयू सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी। इसके बाद भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने।भाजपा की तरफ से दो उप मुख्यमंत्री बनाए गए। अभी बिहार विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 243 है। यहां बहुमत साबित करने के लिए किसी भी पार्टी को 122 सीटों की जरूरत होती है। वर्तमान आंकड़ों को देखें तो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद है। उसके पास विधानसभा में 79 सदस्य हैं। वहीं, भाजपा के 77, जदयू के 45, कांग्रेस के 19, वाम दलों के 16, एआईएमआईएम का 01, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के  04 विधायक और एक निर्दलीय विधायक हैं। अब एक बार फिर से जदयू एनडीए से अलग हो गई है। 

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कहते हैं, “1985 में नीतीश कुमार ने पहली बार नालंदा की हरनौत सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था। चार साल बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़े। इसके बाद 1990 की बात है। तब नीतीश कुमार ने जनता दल में अपने वरिष्ठ नेता लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनवाने में खूब मदद की। नीतीश लालू को बड़े भाई कहकर बुलाते थे। 1991 में मध्यावधि चुनाव में नीतीश बाढ़ इलाके से चुनाव जीता। 1994 में नीतीश ने लालू यादव से बगावत कर दी और जॉर्ज फर्नांडीज के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई।”

बहरहाल, सूत्रों के अनुसार, भाजपा और जदयू दोनों दलों के बीच गत कई महीने से तकरार चल रही है। इन दोनों के बीच कई मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से असहमति देखने को मिली थी जिनमें जातीय आधार पर जनगणना, जनसंख्या नियंत्रण कानून और सशस्त्र बलों में भर्ती की नयी ‘‘अग्निपथ’’ योजना शामिल हैं। बिहार भाजपा के प्रमुख संजय जायसवाल के अनुसार “नीतीश कुमार जनमत के साथ खिलवाड़ किया है। वे जनता को धोखा दिए हैं।”

उधर, भाकपा-माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य  अपने वादे पर डटे हैं। विगत दिनों वे कहे थे कि “यदि जदयू भाजपा से गठजोड़ तोड़ती है और नयी सरकार बनती है तो हम मदद का हाथ बढ़ाएंगे।” भट्टाचार्य ने कहा कि जदयू और भाजपा के बीच विवाद (भाजपा अध्यक्ष) जे पी नड्डा के हाल के इस बयान के बाद हुआ कि क्षेत्रीय दलों का ‘‘कोई भविष्य नहीं है।’’

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