प्रधानमंत्री: “राज्यसभा के लिए आपने (उपराष्ट्रपति महोदय) जो कुछ भी किया है इसके लिए सबकी तरफ से ऋण स्वीकार करते हुए मैं आपका धन्यवाद करता हूं…”

एम वेंकैय्या नायडू की विदाई File Photo: PTI

नई दिल्ली : “हम जो भी कहते हैं वो महत्‍वपूर्ण तो होता ही है लेकिन जिस तरीके से कहते हैं उसकी अहमियत ज्यादा होती है। किसी भी संवाद की सफलता का पैमाना यही है कि उसका गहरा इंपैक्‍ट हो, लोग उसे याद रखें और जो भी कहें उसके बारे में लोग सोचने के लिए मजबूर हों, अभिव्‍यक्‍ती की इस कला में आपकी दक्षता इस बात से हम सदन में भी और सदन के बाहर देश के सभी लोग भली भांति परिचित हैं। आपकी अभिव्यक्ति का अंदाज जितना बेबाक है, उतना ही बेजोड़ भी है। आपकी बातों में गहराई भी होती है, गंभीरता भी होती है। वाणी में विज भी होता है और वेट भी होता है, वार्मथ भी होता है और विजडम भी होता है। संवाद का आपका तरीका ऐसे ही एक किसी बात के मर्म को छू जाता है और सुनने में मधुर भी लगता है। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यसभा में राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू का सभापति के तौर पर कार्यकाल समाप्त होने और विदाई के अवसर पर कहे। 

उन्हें विदाई देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह देश के एक ऐसे उपराष्ट्रपति हैं, जिन्होंने अपनी सभी भूमिकाओं में हमेशा युवाओं के लिए काम किया और सदन में भी हमेशा युवा सांसदों को आगे बढ़ाया और उन्हें प्रोत्साहन दिया। प्रधानमंत्री ने कहा: “आप तो देश के एक ऐसे उपराष्ट्रपति हैं जिसने अपनी सभी भूमिकाओं में हमेशा युवाओं के लिए काम किया है। आपने सदन में भी हमेशा युवा सांसदों को आगे बढ़ाया, उन्‍हें प्रोत्‍साहन दिया। आप लगातार युवाओं के संवाद के लिए यूनिवर्सिटीज और इंस्टीट्यूशंस लगातार जाते रहे हैं। नई पीढ़ी के साथ आपका एक निरंतर कनेक्ट बना हुआ है और युवाओं को आपका मार्गदर्शन भी मिला है और युवा भी आपको मिलने के लिए हमेशा उत्सुक रहे हैं। इन सभी संस्‍थानों में आपकी लोकप्रियता भी बहुत रही है। आपने सदन के बाहर जो भाषण दिए, उनमें करीब करीब 25 प्रतिशत युवाओं के बीच में रहे हैं, ये भी अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।”

कार्यालय काल के क्षण: उपराष्ट्रपति एम वेंकैय्या नायडू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – फोटो: इकनॉमिक टाइम्स के सौजन्य से 

प्रधानमंत्री ने कहा कि “व्यक्तिगत रूप से मेरा ये सौभाग्य रहा है कि मैंने बड़ी निकट से आपको अलग-अलग भूमिकाओं में देखा है। बहुत सारी आपकी भूमिका ऐसी भी रहीं कि जिसमें आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करने का भी मुझे सौभाग्य मिला। पार्टी कार्यकर्ता के रूप में आपकी वैचारिक प्रतिबद्धता रही हो। एक विधायक के रूप में आपका काम काज हो। सांसद के रूप में सदन में आपकी सक्रियता हो। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में आपका सांघ्रणिक कौशल्य और लीडरशिप की बात हो। कैबिनेट मंत्री के रूप में आपकी मेहनत, नवाचार का आपका प्रयास और उससे प्राप्त सफलताएं देश के लिए बहुत उपकारक रही हैं या फिर उपराष्ट्रपति और सदन में सभापति के रूप में आपकी गरिमा और आपकी निष्ठा मैंने आपको अलग अलग जिम्मेदारियों में बड़े लगन से काम करते हुए देखा है। आपने कभी भी किसी भी काम को बोझ नहीं माना। आपने हर काम में नए प्राण फूंकने का प्रयास किया है। आपका जज्‍बा, आपकी लगन हम लोगों ने निरंतर ये देखी है। मैं इस सदन के जरिये प्रत्येक माननीय सांसद और देश के हर युवा से कहना चाहूंगा कि वो समाज, देश और लोकतंत्र के बारे में आपसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। लिसनिंग, लर्निंग, लीडींग, कनेक्टिंग, कम्युनिकेटिंग, चेजिंग और रिफ्लेक्टिंग, रिकनेक्‍टिंग जैसी किताबें आपके बारे में बहुत कुछ बताती हैं। आपके ये अनुभव हमारे युवाओं को गाइड करेंगे और लोकतंत्र को मजबूत करेंगे।”

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प्रधानमंत्री ने कहा कि “आपकी कही एक बात बहुत लोगों को याद होगी, मुझे तो विशेष रूप से याद है। मैंने हमेशा सुना है आप मात्र भाषा को लेकर के बहुत ही टची रहे हैं, बड़े आग्रही रहे हैं। लेकिन उस बात को कहने का आपका अंदाज भी बड़ा खुबसूरत है। जब आप कहते हैं कि मात्रभाषा आंखों की रौशनी की तरह होती है और आप आगे कहते हैं और दूसरी भाषा चश्मे की तरह होती है। ऐसी भावना हृदय की गहराई से ही बाहर आती है।आपकी मौजूदगी में सदन की कार्रवाई के दौरान हर भारतीय भाषा को विशिष्ट अहमियत दी गई है। आपने सदन में सभी भारतीय भाषाओं को आगे बढ़ाने के लिए काम किया। सदन में हमारी सभी 22 अनुसूचित भाषाओं  में कोई भी माननीय सदस्य से बोल सकता है उसका इंतजाम आपने किया। आपकी ये प्रतिभा, आपकी निष्ठा आगे भी सदन के लिए एक गाइड के रूप में हमेशा हमेशा काम करेगी। कैसे संसदीय और शिष्ट तरीके से भाषा की मर्यादा में कोई भी अपनी बात प्रभावी ढंग से कह सकता है इसके लिए आप प्रेरणापुंज बने रहेंगे।”

नायडू के बारे में कहा, ‘‘इस सदन को नेतृत्व देने की जिम्मेदारी भले ही पूरी हो रही हो लेकिन उनके अनुभव का लाभ भविष्य में देश को मिलता रहेगा, साथ ही हम जैसे अनेक सार्वजनिक जीवन के कार्यकर्ताओं को भी मिलता रहेगा।” प्रधानमंत्री ने कहा: “आपकी नेतृत्व क्षमता, आपके अनुशासन ने इस सदन की प्रतिबद्धता और प्रोडक्टिविटी को नई ऊंचाई दी है। आपके कार्यकाल के वर्षों में राज्यसभा की प्रोडक्टिविटी 70 पर्सेंट बढ़ी है। सदन में सदस्यों की उपस्थिति बढ़ी है। इस दौरान करीब करीब 177 बिल पास हुए या उन पर चर्चा हुई जो अपने आप में किर्तिमान हैं। आपके मार्गदर्शन में ऐसे कितने ही कानून बने हैं, जो आधुनिक भारत की संकल्पना को साकार कर रहे हैं। आपने कितने ही ऐसे निर्णय लिए हैं। जो अपर हाऊस की अपर जर्नी के लिए याद किए जाऐंगे।”

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अंततः, “आदरणीय सभापति महोदय, हमारी तमाम सहमतियों असहमतियों के बावजूद आज आपको विदाई देने के लिए सदन के सभी सदस्य एक साथ उपस्थित हैं। यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है। ये आपके लिए इस सदन के सम्मान का उदाहरण है। मैं आशा करता हूं कि आपके कार्य, आपके अनुभव आगे सभी सदस्यों को जरूर प्रेरणा देंगे। अपने विशिष्ट तरीके से आपने सदन चलाने के लिए ऐसे मानदंड स्थापित किए हैं जो आगे इस पद पर आसीन होने वालों को प्रेरित करते रहेंगे। जो लिगेसी आपने स्थापित की है, राज्यसभा उसका अनुसरण करेगी, देश के प्रति अपने जवाबदेही के अनुसार कार्य करेगी। इसी विश्वास के साथ आपको पूरे सदन की तरफ से, मेरी तरफ से अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं और आपने देश के लिए जो कुछ भी किया है, इस सदन के लिए जो कुछ भी किया है इसके लिए सबकी तरफ से ऋण स्वीकार करते हुए मैं आपका धन्यवाद करता हूं। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि “हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है। न स सभा यत्र न सन्ति वृद्धा न ते वृद्धा ये न वदन्ति धर्मम् ! अर्थात जिस सभा में अनुभवी लोग होते हैं। वहीं सभा होती है और अनुभव लोग वही हैं जो धर्म यानि कर्तव्य की सिख दें। आपने मार्गदर्शन में राज्यसभा में इन मानकों को पूरी गुणवत्ता से पूरा किया है। आप माननीय सदस्यों को निर्देश भी देते थे और उन्हें अपने अनुभवों का लाभ भी देते थे और अनुशासन को ध्यान में रखते हुए प्यार से डांटते भी थे। मुझे विश्वास है कि किसी भी सदस्य ने आपके किसी भी शब्द को कभी अन्यथा नहीं लिया। ये पूंजी तब पैदा होती है। जब व्यक्तिगत जीवन में आप उन आदर्शों और मानकों का पालन करते हैं। आपने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि संसद में व्यवधान एक सीमा के बाद सदन की अवमानना के बराबर होता है। मैं आपके इन मानकों में लोकतंत्र की परिपक्वता को देखता हूं। पहले समझा जाता था कि अगर सदन में चर्चा के दौरान शोरगुल होने लगे तो कार्यवाही को स्थगित कर दिया जाता है। लेकिन आपने संवाद, संपर्क और समन्वय के जरिये न सिर्फ सदन को संचालित किया बल्कि प्रोडक्टिव भी बनाया।”

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सदन में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि “19 साल तक उच्च सदन के सदस्य रहे नायडू ने सदन में संरक्षक की भूमिका में आने के बाद अनुशासन, संयम, गरिमा, स्नेह के भावों के साथ कार्यवाही का संचालन किया। उन्होंने हमेशा इस बात की पैरवी की कि सभी राज्यों में उच्च सदन बनाने के लिए एक नीति बनाई जाए। नायडू ने महिला आरक्षण विधेयक को लेकर भी अपना सकारात्मक रुख जाहिर किया, साथ ही,  कोविड काल में नायडू ने सांसदों के बैठने की विशेष व्यवस्था कराई और विषम परिस्थितियों में सदन के संचालन का प्रयास किया। आपने नियमावली की समीक्षा का काम 2018 में शुरू किया था और इसे जारी रहना चाहिए क्योंकि संसद में दोनों ही सदनों का अपना अपना महत्व है। समय के साथ नियमों में बदलाव जरूरी है।’’

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