पटना कालेज @ 160 : कभी नहीं भूलने वाले कॉलेज के शिक्षकेत्तर कर्मचारी, आपको याद है यह चेहरा? (13)

पटनाकॉलेज के #शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को समर्पित अगर आप पटना कालेज के छात्र/छात्राएं हैं तो पहले अपने कॉलेज के इन शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को पहचाने। हमें यह भी बताएं कि तस्वीर लेते समय फोटोग्राफर महोदय उन लोगों को कॉलेज परिसर के किस स्थान पर बैठाये हैं

मुन्ना भाई एमबीबीएस फिल्म आपको याद है और इस फिल्म में सम्मानित सुरेंद्र राजन साहब की भूमिका? अरे भाई, वही चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी जो अपने जीवन के दसकों वसंत देखने के बाद, हज़ारों युवाओं को चिकित्सक बनाने के बाद उस दिन भी अपने चिकित्सा महाविद्यालय में पोछा लगाते रहते हैं, तभी एक छात्र का उस भींगे सतह से आना होता है। सतह पोछता वह चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी खींझ उठता है और कहता है कि दीखता नहीं?

वह छात्र एक कदम आगे आकर उन्हें अपने सीने में सटा लेता है और कहता भी है कि आप इस चिकित्सा महाविद्यालय को साफ़-सुथरा रखने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिए, लेकिन आपको कोई पहचानता तक नहीं ……… एक छात्र का अपने प्रति इतना उत्कर्ष सम्मान देखकर, आत्मीयता देखकर वह कर्मचारी द्रवीभूत हो जाता है और उस दिन से वह उस छात्र का दीवाना हो जाता है। यहाँ तक की जब उस छात्र के विरुद्ध महाविद्यालय प्रशासन की ओर से अनुशासनिक कार्रवाई की जाती है, वह कर्मचारी प्रशासन के सामने चट्टान की तरह खड़ा हो जाता है।

पटना कॉलेज के स्थापना काल से आज तक, यानी विगत सोलह दशकों में इस महाविद्यालय से न जाने कितने लाख छात्र-छात्राओं ने शिक्षा ग्रहण कर, हज़ारों-हज़ार प्राध्यापक अपने जीवन का बहुमूल्य समय बिताकर, सैकड़ों शिक्षकेत्तर कर्मचारी अपने जीवन का एक-एक सांस और एक-एक पल इस महाविद्यालय के विकास में बिताये होंगे – लेकिन कभी आपने सोचा कि आपके अपने पटना कॉलेज में जब आप अपनी-अपनी कक्षा में जाते थे तो कौन से चतुर्थ-वर्गीय कर्मचारी प्राध्यापकों के साथ उपस्थिति-पुस्तिका लेकर आये थे, कौन से कर्मचारी आपकी कक्षा में उपस्थिति-संख्या कम होने पर कार्यालय में मदद किये थे, समय पर कालेज का शुल्क नहीं जमा करने पर कौन से कर्मचारी प्रशासनिक कार्यालय में बड़े बाबू को कहकर दंड माफ़ कराये थे, प्राचार्य अथवा विभागाध्यक्ष की अत्यधिक व्यस्तता के बाबजूद कौन से कर्मचारी आपको, आपकी बातों को प्राचार्य और विभागाध्यक्ष तक पहंचाए थे?

नहीं न।

कॉलेज से स्नातक करने के बाद 100 में से शायद 98 फ़ीसदी छात्र-छात्राएं कभी मुड़कर पटना कॉलेज परिसर में उन चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों को नहीं देखे होंगे – यह पक्का है। बिहार ही नहीं, देश का शायद ही कोई विद्यालय अथवा महाविद्यालय होगा जिसके छात्र-छात्राएं “पूर्ववर्ती” होने के बाद भी अपने विद्यालय अथवा महाविद्यालय के शैक्षणिक स्वास्थ और वातावरण के प्रति संवेदनशील रहते होंगे, रहे होंगे, जिससे अगली पीढ़ी को बेहतर शिक्षा प्राप्त हो सके और महाविद्यालय का नाम स्वर्णक्षरों में उद्धृत रह सके।
पटना के जिस विद्यालय – टी के घोष अकादमी – से मैं माध्यमिक शिक्षा प्राप्त किया था, उसी विद्यालय से कभी संविधान सभा के डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्राध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद, पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ विधान चंद्र राय प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त किये थे। साठ के दशक के उत्तरार्ध जब मैं इस विद्यालय में प्रवेश लिया था उस समय हमारे स्कूल में तीन प्रमुख चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी थे – ठाकुर जी, छोटन जी और गुलाब जी । इसमें ठाकुर जी और छोटन जी प्रशासनिक कार्यों में, प्रधानाचार्य के कार्यालय में होते थे, जबकि गुलाब जी सम्पूर्ण विद्यालय को फूल-पौधों से सजाए रखते थे। इस विद्यालय के मुख्य द्वार से कोई पचास वर्ष पूर्व निकला था, सन 1974 में, लेकिन आज भी उस ज़माने के शिक्षक, जिन्होंने मुझे कक्षा में पाठ पढ़ाये थे; शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की पीढ़िया मुझे जानते हैं, सम्मान के साथ।

बिहार की राजधानी पटना का 159-साल पुराना पटना कॉलेज अपने पूर्ववर्ती छात्र-छात्राओं की ‘असम्वेदनशीलता’, संस्थान के प्रति उनकी ‘उदासीनता’ का एक जीवंत दृष्टान्त है। नहीं तो अपने ज़माने का “पूर्व का ऑक्सफोर्ड” कहा जाने वाला पटना कालेज को नैक द्वारा सी-ग्रेड में नहीं रखा गया होता। यह अलग बात है कि आज ही नहीं, आज़ाद भारत में भी यह कालेज असंख्य और अनन्त छात्र-छात्राओं को महज एक विद्यार्थी से देश के विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के सर्वश्रेष्ठ नेता, अधिकारी और न्यायमूर्ति दिया – किसी से पलटकर नहीं देखा, पूछा।

सन 1857 के आज़ादी के आन्दोलन के शंखनाद के कोई पांच साल बाद 1863 को पटना के गंगा नदी के किनारे इस शैक्षणिक संस्थान को स्थापित किया गया था। दुर्भाग्य यह है कि कभी अपने में स्वर्णिम इतिहास समेटे पटना कॉलेज ने समाज और शिक्षा जगत को काफी कुछ दिया, लेकिन कॉलेज की गौरवशाली परंपरा को बरकरार रखने के लिए छात्र, शिक्षक, सरकार और समाज मिलकर भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सके। अब पटना कालेज “पूर्व का ऑक्सफोर्ड नहीं रहा। यह अफ़सोस की बात है।

लेकिन, आज हम आपको इस तस्वीर के माध्यम से आपके पटना कॉलेज की यात्रा कराता हूँ। इस तस्वीर में मेरे कुछ प्यारे, बहुत प्यारे कर्मचारी नहीं हैं, जिन्हे उस ज़माने के शिक्षकों-छात्रों का सम्मान मिला था, वे खेल-कूद की दुनिया में अपनी बुजुर्गियत के कारण हस्ताक्षर भी किये थे, नहीं दिखेंगे – लेकिन हम सभी तहे दिल से उस पांच फुट ऊँचा, आत्मा से हीरा और शरीर के रंग से काला, गोल-मटोल, कछुए की चाल में अटूट विस्वास रखने वाले, सबके चहेते श्री भोला जी को नहीं देख रहे हैं, लेकिन वे हमारे ह्रदय में हैं तभी तो आज पांच दशक बाद भी बोलाजी दिल में अपना स्थान बनाये हुए हैं। आपको याद हैं न भोला जी ?

ये भी पढ़े   पटना कॉलेज@160: छः ऐसे प्राचार्य हुए जो गलियों में रहने वाले गरीब-गुरबों के बच्चों को नाम से ही नहीं, बाप के नाम से भी जानते थे (5)

पटना कॉलेज मेरे और मुझ जैसे उस ज़माने के बच्चों के लिए, जो पटना कॉलेज के सामने वाली गली में, पुरंदर पुर में रहते थे, कभी पटना कॉलेज को महाविद्यालय और शैक्षिक संस्था के रूप में नहीं देखा । पटना कॉलेज हम सभी लोगों के लिए एक घर था जिसे हम सभी बहुत ही संवेदनात्मक तरीके से एक-दूसरे से जोड़े रखते थे। हम सभी बच्चों को पटना कॉलेज के सभी चतुर्थ-वर्गीय कर्मचारी, मसलन रामाशीष जी, मास्टर साहेब, उपेंद्र जी, तनिक लालजी, भोला जी, त्रिभुवन जी, राजेंद्र जी आदि नाम से जानते थे और हम सभी बच्चे भी उन्हें सम्मान के साथ “चचा” कहते थे। सन 1975 से 1985 का समय पटना कॉलेज के साथ-साथ सभी शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के लिए और भी ‘संवेदनात्मक’ परिसर हो गया था। वजह था – प्रोफ़ेसर केदार नाथ प्रसाद और प्रोफ़ेसर चेतकर झा का प्राचार्य होना। प्रोफ़ेसर केदार बाबू तो तनिक ‘कठोर’, परन्तु सहृदय स्वाभाव के व्यक्त थे; प्रोफ़ेसर चेतकर बाबू तो सभी व्यावहारिक दृष्टिकोण से सबों के लिए “बाबा” थे।

गर्मी के समय रातों को पटना कॉलेज परिसर में रहने वाले शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के साथ-साथ हम मोहल्ले के लोग बाग़, बच्चे भी पटना कॉलेज परिसर में सोया करते थे। स्थान या तो अंग्रेजी विभाग का बरामदा होता था, या फिर मुख्य कॉमन-रूम का कॉरिडोर या फिर प्रशासनिक भवन का गंगा तट वाला बरामदा (विल्सन गार्डेन की और) निश्चित होता था। प्रोफ़ेसर केदार बाबू नित्य पौ फटने से पूर्व ही, जब लोगों की निद्रा ‘चीर निद्रा’ की ओर उन्मुख होती थी, अपने डंडा से सबों को उठाने लगते थे। वे प्रातःकालीन भ्रमण करते थे। कहने लगते थे: “इतनी देर तक सोयेंगे तो जिंदगी में आगे कैसे बढ़ेंगे?” अब केदार बाबू को तो कोई कुछ कह भी नहीं सकता था, आखिर पटना कॉलेज के प्राचार्य थे और प्रत्येक क्षण अपने कर्मचारियों के हितार्थ संवेदनशील रहते थे।

केदार बाबू को मैं निजी तौर पर भी इसलिए अधिक जानता था कयोंकि सन 1970 से लगातार मैं उन्हें पटना से प्रकाशित ‘आर्यावर्त’, ‘इण्डियन नेशन’, ‘सर्चलाइट’, ‘प्रदीप अखबार देते आ रहे थे। साथ ही, दिल्ली से प्रकाशित टाइम्स ऑफ़ इण्डिया अख़बार का आज का संस्करण, जो आम तौर पर पटना में शाम के तीन बजे आता था, अगले सुबह सभी अख़बारों के साथ देते थे। मैं आर्यावर्त-इण्डियन नेशन पत्र समूह में 18 मार्च, 1975 को पत्रकारिता की सबसे नीचली सीढ़ी पर पैर रखा, मन में एक खूबसूरत आत्मविश्वास के साथ 543.60 पैसे की मासिक तन्खाह के साथ और प्रोफ़ेसर केदार बाबू 20 मार्च, 1975 को पटना कॉलेज के प्राचार्य बने। प्रोफ़ेसर केदार बाबू जिस दिन पटना कालेज प्राचार्य कक्ष को छोड़े, हमारे, हम सबके “बाबा” प्रोफ़ेसर चेतकर झा 1 फरबरी, 1979 को प्राचार्य कायालय में अपनी उपस्थिति दर्ज किये। इस समय तक मैं फिर पटना विश्वविद्यालय अर्थशास्त्र स्नातकोत्तर विभाग में आ गया था और वहां विराजमान थे प्रोफ़ेसर केदार बाबू विभागाध्यक्ष के रूप में।

बहरहाल, पटना कॉलेज के चतुर्थ वर्गीय कर्मचारियों में हम बच्चे सबसे अधिक भयभीत रहते थे श्री रामाशीष जी से। वे चीता की तरह दौड़ते थे। किसी भी बच्चे को कालेज परिसर में अगर अनुशासन के विरुद्ध हरकत देखते थे, तो डराने के लिए इस कदर दौड़ते थे, गेंद पकड़कर रख लेते थे, ताकि फिर वैसी गलती नहीं दोहराया जाय। वे कॉलेज परिसर में चतुर्दिक उपस्थित रहते थे। क्या व्यायामशाला , क्या पुस्तकालय, क्या परीक्षा कक्ष, क्या कॉमन रम और क्या खुला मैदान। भय वश ही सही, मन में श्री रामाशीष जी का नाम आते ही, सामने दिखने लगते थे। लेकिन बहुत ही हृदय वाले मनुष्य थे हमारे रामाशीष ही।

भोला जी की तो बात ही नहीं। व्यावहारिक तौर पर भोला जी को पटना कालेज के प्राचार्य भी सम्मान करते थे। आज भले पटना कालेज का वह रोज-गार्डन नहीं है, लेकिन आज भी इन शब्दों को लिखते समय एक-एक शब्द भोला जी के खून-पसीने से सींचित वह रोज गार्डन यानी विल्सन गार्डन याद आ रहा है। प्रशासनिक भवन का वह बरामदा जो गंगा छोड़ की ओर है, उस बरामदे के सामने सैकड़ों किस्म के गुलाब खिले रहते थे। एक तरह से वह एक ‘लवर्स स्पॉट’ था गुलाबों की रंग-बिरंगी पंखुड़ियों के कारण।
कॉलेज के समय में भोलाजी बहुत सतर्क रहते थे कहीं उस बगीचे के फूल को कोई तोड़ न ले। आखिर ‘मनचले” तो उस दिन भी थे और पूजा-पाठ के लिए मोहल्ले की महिलाएं वहां तक पहुँचती ही थी। भोजाजी 100 मीटर की दौड़ में कभी द्वितीय स्थान पर नहीं आये। अगर गलती से कोई युवक कर्मचारी आगे भी बढ़ने लगता था, तो उसकी गति को आँखों की नजर से नियंत्रित किया जाता था, ताकि भोला जी का जय-जयजयकार हो। पारितोषिक वितरण के समय उन्हें पीला-लाल धोती पहनाकर, भर गर्दन माला पहनाकर सम्मानित किया जाता था। आज उन दिनों को याद करते आखें भर आती हैं। आपको नमन है भोला जी।

ये भी पढ़े   पटना कालेज @ 160 : अपने दशकों पुराने किसी भी परिचित को देखकर पटना कालेज की मिट्टी, नोवेल्टी एंड कंपनी की सीढियाँ जीवंत हो उठती हैं (8)

उसी दौड़ में एक थे राजेंद्र जी। इस तस्वीर में ऊपर की पंक्ति में सबसे छोटे कद के, काले, घुंघराले बाल बाले। बहुत बेहतरीन इंसान थे राजेंद्र जी। राजेंद्र जी उस समय के प्राचार्य (प्रोफ़ेसर महेंद्र प्रताप 1966-1971) के बहुत ही चहेते थे। इसलिए उन्हें हंसी-मजाक में अपने सहकर्मी “महेंद्र प्रताप” से बह कभी-कभार सम्बोधित कर देते थे। उनकी आवाज में नाक का प्रभाव अधिक रहता था। बोलते समय, बात करते समय हाथ अधिक हिलाते थे। लेकिन हृदय के बहुत नेक आदमी थे।इस तस्वीर में जो सबसे दाहिने बैठे हैं, वे हैं “मास्टर साहब” – एक मायने में मास्टर साहब पूरे पटना कॉलेज के “प्रमुख” थे। क्या पुस्तकालय, क्या वाचनालय, क्या खेल का मैदान – हरेक स्थान पर मास्टर साहब दीखते थे। कभी-कभार हम बच्चों को ‘लवणच्युस’ भी देते थे। त्रिभुवन बाबू, झाजी आदि भी पटना कालेज के स्तम्भ ही थे। आज जब उन सबों को याद करता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे पटना कॉलेज परिसर में मस्ती कर रहा हूँ और उन तमाम सम्मानित लोगों की निगाहें हम बच्चों पर टिकी हुई है – आखिर वे भी सभी तो पिता भी थे।

कहा जाता है कि बिहार में आधुनिक शिक्षा की स्थापना दिवस के अवसर पर 28 अप्रैल 1858 को पटना हाई स्कूल के बदले पटना में एक जिला स्कूल खोलने की योजना बनी और पटना हाई स्कूल का नाम ही पटना जिला स्कूल पड़ा। इस तरह, एक लम्बा सफर तय करने के पश्चात् पटना जिला स्कूल को पटना कॉलेज के रूप में स्थापित करने का सरकारी आदेश 15 नवम्बर 1861 को पास हुआ। इसी आदेश के अनुसार पटना जिला स्कूल अगस्त 1862 में पटना कॉलेजिएट स्कूल का रूप ले लिया। इसी पटना कॉलेजिएट स्कूल को 9 जनवरी 1863, शुक्रवार के दिन कॉलेज का दर्जा प्राप्त हो गया। इसका नाम गाॅवर्नमेंट कॉलेज हो गया। 1862 ईस्वी में शिक्षा निदेशक के आदेश से प्राचार्यों और शैक्षणिक सेवा करने वालों को अधिक वेतनमान निर्धारित किए गए। 1863 से कॉलेज के हेडमास्टर को प्रोफेसर इंचार्ज कहा जाने लगा। पटना कॉलेज में (माह:अप्रैल) 1863 में 312 छात्र पढ़ते थे । 19 फरवरी 1867 से यहाँ केवल कालेज स्तर की पढ़ाई होने लगी और पटना कॉलेज के प्रथम प्राचार्य जे० के० रोजर्स बने। जे० डब्ल्यू० मैक्रिण्डल 1880 तक प्राचार्य के पद पर कार्यरत रहे।

1865 के बाद पटना काॅलेज ने सैकड़ों विद्वान प्रशासक, देशभक्त, अधिकारी, वकील, जज, पत्रकार और लेखक पैदा किया। देखते-देखते, ऐसी स्थिति हो गई कि बिहार का लगभग प्रत्येक बड़ा आदमी पटना कॉलेज का छात्र रहा। बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह, सर्वोदय नेता जय प्रकाश नारायण, महान कवि और साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर, अनुग्रह नारायण सिंह, डॉ सच्चिदानन्द सिन्हा, सर सुल्तान अहमद, प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा, सैयद हसन अस्करी, योगेन्द्र मिश्र, जगदीश चन्द्र झा, विष्णु अनुग्रह नारायण, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री गोरखनाथ सिंह, केदारनाथ प्रसाद, आदि पटना कॉलेज के छात्र रहे। पटना काॅलेज में पंडित राम अवतार शर्मा (संस्कृत), डाॅ अजीमुद्दीन अहमद (अरबी और फारसी), सर यदुनाथ सरकार (इतिहास), डाॅ सुविमल चन्द्र सरकार (इतिहास), डाॅ डी०एम० दत्त (दर्शन शास्त्र), डाॅ ज्ञानचन्द्र (अर्थशास्त्र), डाॅ एस०एम० मोहसिन (मनोविज्ञान), एस०सी० चटर्जी (भूगोल), परमेश्वर दयाल (भूगोल), विश्वनाथ प्रसाद (हिन्दी), नलिन विलोचन शर्मा (हिन्दी) जैसे राष्ट्र प्रसिद्ध शिक्षक थे।

पटना कॉलेज में बी०ए० की पढ़ाई 1865 से होने लगी।‌ 1864 -1865 में जे०के० रोजर्स और चार शिक्षक थे। प्रोफेसर ए०ओ० बैंक रसायन शास्त्र, भौतिकी और गणित पढ़ाते थे। पटना कॉलेज में इस तरह वकालत, विज्ञान, इंजीनियरिंग और कला की पढ़ाई होती थी। कैलाश चन्द्र बंदोपाध्याय प्रथम प्राइवेट छात्र थे जिन्होंने 1869 में एम०ए० पास किया।‌ वे एमए, मानसिक एवं नैतिक दर्शन, कला में प्रतिष्ठा (Honours of Arts) की उपाधि लेने वाले पहले विद्यार्थी थे जो द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे। 1905 में पटना कॉलेज का महत्व बढ़ने लगा। कलकत्ता विश्वविद्यालय से इसे काफी अनुदान मिलने लगा। इस कॉलेज के प्रोफेसर डी०एन० मल्लिक भौतिकी में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश भेजे गए। शिक्षकों की संख्या बढ़ने लगी। 1907 में पटना कॉलेज में करीब 120 छात्र थे‌ जिनमें से 90 बिहारी थे। 1862-63 में यहाँ एक पुस्तकालय की स्थापना हुई। 1866 में पटना कॉलेज के पुस्तकालय में करीब चार हजार पुस्तकें थीं। 1899 में पटना कालेज पुस्तकालय में पुस्तकालय अध्यक्ष की नियुक्ति की गई।

ये भी पढ़े   पटना कालेज @ 160 : ईंट, पत्थर, लोहा, लक्कड़, कुर्सी, टेबल, प्रोफ़ेसर, छात्र, छात्राएं, माली, चपरासी, प्राचार्य सबके थे रणधीर भैय्या (12)

1919 से भारतीय प्रशासनिक सेवा में भारतीय छात्र भी सम्मिलित होने लगे। 1921 में नीलमणि सेनापति और रशिदुज जमन तथा 1922 में अभय पद मुखर्जी आई०सी०एस० पास किए। ये लोग पटना कॉलेज के ही छात्र थे‌। 1912 में बंगाल से हटकर बिहार और उड़ीसा अलग प्रान्त बना दिए गए। अक्टूबर 1917 को कलकत्ता विश्वविद्यालय से अलग पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। 1913 में ही प्रथम बार पटना कॉलेज के उत्तर में स्थित गंगा घाट पर वायसराय लॉर्ड हार्डिंग आए और इस अवसर पर एक ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। गांधीजी के नेतृत्व में प्रारम्भिक स्वतंत्रता संघर्ष में इस कॉलेज के छात्रों की भूमिका अति सराहनीय रही। गांधीजी के कहने पर कॉलेज के कुछ छात्रों ने 1920 के आन्दोलन में भाग लिया और जय प्रकाश नारायण उन्हीं छात्रों में से एक थे।

1940 में शिक्षकों के मामले में दूसरे चरण की शुरुआत हुई। इस वर्ष तक पटना कॉलेज के अधिकांश में शिक्षकों का कार्यकाल समाप्त हो गया। कई शिक्षकों की मृत्यु हो गई। इसी समय से विद्वानों के नए झुंड से पटना काॅलेज पुनः विकास की ओर बढ़ चला। इन विद्वानों में प्रमुख थे – प्रोफेसर वाई०जे० तारापोरेवाला, प्रोफेसर गोरखनाथ सिन्हा, प्रोफेसर काली किंकर दत्ता, श्री जगदीश नारायण सरकार, डाॅ सुधाकर झा, प्रोफेसर एस०के० घोष, के० अहमद, एफ० रहमान, डी०एन० दत्त, कार्तिक नाथ मिश्र, प्रोफेसर महेन्द्र प्रताप, डाॅ ज्ञानचन्द्र, डाॅ इकबाल हुसैन, प्रोफेसर ए० मन्नान, प्रोफेसर टी०बी० मुखर्जी, प्रोफेसर सैयद हसन अस्करी, प्रोफेसर विमान बिहार मजुमदार, नर्मदेश्वर प्रसाद, ए०एस० अल्टेकर, वी०पी० सिन्हा, एच०एन० घोषाल, अजीमुद्दीन अहमद, एस०आर० बोस, रमोला नन्दी, हरिमोहन झा, धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी इत्यादि। छात्राओं की संख्या 1932-33 में 2 थी जो बढ़कर 1936 में 15, 1938-39 में 32, 1939-40 में 42 और 1951-52 में 62 थी।

पटना कॉलेज शिक्षा का एक महान केन्द्र बन चुका था। 1937 में इस कॉलेज की लाइब्रेरी में पुस्तकों की संख्या 15000 से ज्यादा थी। छात्रों के लिए एक मैगजीन रूम की व्यवस्था 1939 में की गई। 1950 में पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या 37000 हो गई। 1928 में पटना काॅलेज के स्टाफ-क्लब में चाय मिलने लगी। 1930 से हॉकी-क्रिकेट आदि खेले जाने लगे। 1949 से यहां के छात्र एन०सी०सी० का प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे। बाहर से आने वाले छात्रों को रहने के लिए एक छात्रावास की व्यवस्था प्रथम बार की गई जो कॉलेज के पास में ही स्थित था। इसके प्रथम अधीक्षक संस्कृत के प्रोफेसर छोटे राम तिवारी थे। इसमें आवासियों की संख्या 30 थी । पटना काॅलेज के शिक्षा-स्तर को ऊंचा उठाने में छात्रावासों की भूमिका अति प्रशंसनीय रही। मिंटो हिन्दू हॉस्टल का ‘एस्से क्लब’ काफी प्रसिद्ध संस्था थी। सभी छात्रावासों में एक पुस्तकालय की व्यवस्था की गई। छात्रावास के अंतेवासियों की सामाजिक भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। मिंटो मुस्लिम होस्टल में प्राचार्य जैक्सन के नाम पर एक पुस्तकालय की स्थापना 1912 में हुई। इसी पुस्तकालय के कारण 1929 में मिंटो मुस्लिम होस्टल का नाम जैक्सन होस्टल हो गया।

पटना कॉलेज के प्राचीन गौरवमय गाथा को जितना लिखा जाए उतना कम होगा। आज के पटना काॅलेज में शायद ही 1940-50 का पटना कॉलेज दिखाई दे। 1940-50 में कहा जाता था कि “पटना कॉलेज विद्या का पवित्र मंदिर है। इस मंदिर में आकर श्रद्धा और विनय के व्यवहार से अपने व्यक्तित्व को निखारने का सुअवसर नहीं गंवाना चाहिए”। पटना कालेज देश के प्राचीन शिक्षण संस्थानों में से एक है। साथ ही यह सह-शिक्षा का भी बिहार में सबसे पुराना केन्द्र है। इस वर्ष स्थापना का 160 वर्ष पूरा कर रहा हैं । विगत 159 वर्षों में इस कॉलेज ने जो कीर्तिमान स्थापित किया है उसके कारण इसे बिहार एवं बिहार के बाहर देश के दूसरे हिस्से में भी मानक शिक्षण संस्थान के रूप में प्रतिष्ठा मिली है। शिक्षा, न्याय, कला एवं साहित्य, राजनीति, समाज सेवा, प्रशासनिक सेवा इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में इस कॉलेज का योगदान अग्रगण्य रहा है। बिहार के अनेकानेक महान एवं मार्गदर्शक व्यक्तियों का निर्माण इसी कॉलेज से सम्भव हुआ है। विद्वान प्रोफेसरों और मेधावी छात्रों की अटूट परम्परा ही कालेज की स्थायी गरिमा का आधार है।

#बहरहाल, अगर आपके पास भी पटना कालेज के आपके ज़माने के शिक्षकेत्तर कर्मचारियों की तस्वीरें हैं, तो आप उनके बारे में जरूर लिखें – आज के इस सामाजिक क्षेत्र वाले मीडिया पर अगर के वंशजों की नजर पड़ी और वे भी हम लोगों की तरह ही अपने पूर्वजों को प्यार और स्नेह करते होंगे; तो उन्हें फक्र होगा कि उनके बाबूजी को, दादाजी को, नानाजी को उनके छात्र-छात्राएं आज भी याद करते हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here