मोहनपुर के ‘1985 आदेश’ को ‘2022 में क़ुतुब गंज’ में चीरफाड़, टाइटिल सूट न्यायालय में लंबित, जमीन पर ‘कब्ज़ा’ का प्रयास

दरभंगा के कुतबगंज का परिवार 

दरभंगा: दरभंगा का क़ुतुब गंज इलाका भय से ग्रस्त है। पचास से अधिक परिवारों की बस्ती वाला इस मोहल्ले पर, जहाँ दशकों से सैकड़ों लोग मिलजुल कर रहते आ रहे हैं, किसी की नजर पर चढ़ गई है। कोई तो है जो यहाँ अमन-चैन को समाप्त करना चाह रहा है। तरह बीघा के नाम पर करीब 11 एकड़ जमीन पर राजनीति कर रहा है। दरभंगा लाल किले से कुछ ही दूरी पर राज अस्पताल परिसर का यह क़ुतुब गंज इलाका और इसमें दशकों से रहने वाले लोग भय के वातावरण में जी रहे हैं। लोगों, परिवारों के मन में स्थानीय प्रशासन, जिला और प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था तथा न्यायविदों में विश्वास तो ‘पराकाष्ठा’ पर है; लेकिन कुछ तो है जो उनकी उम्मीदों को ‘हताश’ कर रहा है। 

उनकी गुहार न तो स्थानीय प्रशासन सुन रही है और न ही व्यवस्था से जुड़े, राजनीती से जुड़े जिले के संभ्रांत लोग ही । मन में बहुत बेचैनी है। पचास परिवारों के कोई दो सौ से अधिक महिला, पुरुष, बच्चे, युवक, युवतियां दरभंगा लाल किले के अंदर रहने वाले दरभंगा राज के कर्ताधर्ता की ओर टकटकी निगाहों से देख रहे हैं। वे विश्वास तो दे रहे हैं, परन्तु विश्वास को भी विश्वास नहीं हो रहा है। सभी के चेहरों पर भय का सिकन बन रहा है। मन में डर है कहीं एमजी रोड, बंगला संख्या-4 की तरह कुतुबगंज इलाके में कई दशकों से रहने वाले लोगों के साथ, उनके परिवारों के साथ कोई हादसा न हो जाय। 

अवरुद्ध कंठ से इलाके के एक वाशिंदे, जिनके पितामह सहित, अनेक परिवारों को दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह कुतुबगंज इलाके में बसने के हेतु जमीन, मकान दिए थे, कहते हैं: “मैं महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट के, दरभंगा रेजीडुअरी इस्टेट के ट्रस्टी और राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के पौत्र कुमार कपिलेश्वर सिंह के बात किया था। उन्हें वर्तमान स्थिति के बारे में बताया था। यह भी कहा था कि दरभंगा नगर निगम, बिहार सरकार के आयुर्वेद कॉलेज के अधिकारी और बिहार मेडिकल सर्विसेस एण्ड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अधिकारियों ने जबरन इस इलाके में सर्वे और जमीन की नाप-जोख कर रहे हैं। हमें अंदेशा है कि इस सम्पूर्ण जमीन पर कब्ज़ा होने की सम्भावना है।जबकि करीब 11-एकड़ भूमि का टाईटिल सूट न्यायालय के अधीन है।”

वे आगे कहते हैं: “हम सभी भयभीत हैं। बिहार सरकार के मोहनपुर – अधिग्रहण अधिसूचना को सरकार के नुमांइदे यहाँ लागु करना चाहते हैं जो क़ानूनी तौर पर गलत है। इस भूमि का टाइटिल सूट न्यायालय के अधीन है। न्यायलय के आदेश से पूर्व सरकारी अधिकारी नाप-जोख प्रारम्भ कर दिए हैं। क़ुतुब गंज इलाके में रहने वाले दो सौ से अधिक लोगों की जिंदगी उजड़ जाएगी। इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते कि उक्त जमीन को खाली करने, करवाने में जिले के उपद्रवी तत्वों का भी उपयोग किया जाय। अगर ऐसा हुआ तो  जी एम रोड बंगला संख्या-4 जैसी अमानुषिक हादसा भी हो सकता है।”

दरभंगा के जिलाधिकारी और अनुमंडलाधिकारी को प्रेषित पत्र (1)

उन्होंने आगे कहा कि “कपिलेश्वर सिंह मेरी बात तो सुने, हूँ…. हाँ …. भी किये, यह भी कहे कि हम लोगों को घबराने की, चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन जब यह कहे कि उन्हें इस विषय के बारे में कोई जानकारी नहीं है, उन्हें अब तक कोई नहीं बताया है कि क़ुतुब गंज इलाके की जमीन को बिहार मेडिकल सर्विसेस एण्ड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अधिकारियों नापी किया है, हमारा विश्वास डगमगा गया। ऐसा हो नहीं सकता कि जिस क़ुतुब गंज इलाके के बारे में उन्हें मालूम नहीं हो !” बहरहाल, आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम कपिलेश्वर सिंह से संपर्क करने का अथक प्रयास किया, संवाद भी प्रेषित किया; परन्तु इस कहानी को लिखते समय तक कोई उत्तर नहीं आया। 

दस्तावेजों के अनुसार, दिनांक 12-02 -2022 को राम बाबू झा, विनय झा, बबलू झा ‘पवन’, शंकर कुमार, अशोक कुमार, रेवती देवी, लक्ष्मण साफी, प्रभाकर मिश्रा, संजय भोगल, अरुण राम, गोपीकांत ठाकुर, शीला ठाकुर, मुकेश श्रीवास्तव, रोमा सिन्हा, सुशीला देवी, ज्योति कुमार, शिवनाथ राम, संजय भगत, अरुण राम, रामचंद्र साफी, दिल बहादुर, आशुतोष रंजन सिन्हा, आशीष पाठक, प्रमोद राय द्वारा हस्ताक्षरित दो पन्ने का आवेदन दरभंगा के जिलाधिकारी और अनुमंडल अधिकारी को प्रेषित किया गया। इस आवेदन में विषय लिखा गया: “राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, मोहनपुर, दरभंगा के प्राचार्य डॉ दिनेश्वर प्रसाद द्वारा सरकार, प्रशासन, समाचार पत्रों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं आम जनमानस को गुमराह कर, बारम्बार ‘अनैतिक’ एवं ‘अनावश्यक’ शांति व्यवस्था भंग करने के प्रयास के सम्बन्ध में।”

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दरभंगा के जिलाधिकारी और अनुमंडलाधिकारी को प्रेषित पत्र (2)

आवेदन में लिखा गया कि “राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ दिनेश्वर प्रसाद द्वारा महाराजा कामेश्वर सिंह मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट की जमीन पर अवैध रूप से दावा करते हुए सरकार, प्रशासन, समाचार पत्रों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं आम जनमानस को गलत जानकारी देकर गुमराह करने का अनैतिक प्रयास कर रहे हैं। आवेदन में आगे लिखा है: “ज्ञात हो कि सम्बंधित भूमि को लेकर व्यवहार न्यायालय, दरभंगा में एक वाद (टाइटिल सूट /163/2017 महाराजाधीरज कामेश्वर सिंह मेमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट मार्फ़त ट्रस्टी श्रीमान कपिलेश्वर सिंह वनाम एम आर इंस्टीच्यूट ऑफ़ इण्डिया, मेडिकल साइंस लंबित है। ये जानकारी किसी को दिए बिना एवं न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा किये बिना अपना प्रभाव दिखाकर, बारम्बार उक्त भूमि पर डॉ दिनेश्वर प्रसाद कभी नगर निगम के माध्यम से नापी, तो कभी बिहार मेडिकल सर्विसेस एण्ड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन लिमिटेड का सर्वे करवाने का प्रयास कर रहे हैं। 

आवेदन के अनुसार: “कई वर्षों पूर्व भी महोदय इस संस्थान के कर्मचारियों के द्वारा जिस भवन में अभी अस्पताल चल रहा है, उसे ताला तोड़कर कब्ज़ा किया था। ये भवन भी इसी ट्रस्ट का है जिसे ट्रस्ट ने एलआईसी, दरभंगा को किराये पर दिया था। एलआईसी ने जब इस भवन को खाली कर चली गई तो, खाली पाकर इस इस कार्य को अंजाम दिया गया था। टाइटल  सूट चलते हुए इस तरह कार्य क्या उचित है? सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि क्या किसी भूमि पर टाइटल सूट होते हुए बीएमआईसीएल निर्माण का अधिकार रखती है? ट्रस्ट की भूमि के रक्षार्थ यही बात अब आम जन मानस के द्वारा उनसे इस प्रकार की बातें पूछी जाती है तो डॉ प्रसाद के द्वारा अपने व्यक्तिगत राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्रभुत्व दिखा धमकाने का कार्य करते हैं।”

स्वर्गीय कंटीर मिश्रा, अब राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय की निगाह टिकी है 

समस्त मोहल्ला के तरफ से प्रेषित पत्र में आगे लिखा है कि “डॉ प्रसाद इस प्रकार बारम्बार अनावश्यक एवं अनैतिक प्रयास कर इस मोहल्ले के सभ्य समाज के लोगों को उकसाने का प्रयास कर शांन्ति व्यवस्था को भांग करने की कोशिश कर रहे हैं। अतः आग्रह है कि प्राचार्य डॉ दिनेश्वर प्रसाद पर सरकार, प्रशासन, समाचार पत्रों,एवं समाज  को गुमराह करने एवं शांति व्यवस्था भांग करने हेतु क़ानूनी कार्रवाई करने की कृपा करें।” 

बहरहाल, यदि न्यायालय में दाखिल टाइटल सूट, दरभंगा प्रशासन, बिहार सरकार के अधिकारियों द्वारा निर्गत निर्देशों से संबंधित कागजात पर एक नजर डाली जाए तो ‘अधिक जानकारी तो अधिकारी गण देंगे’. लेकिन यह भ्रम अवश्य उत्पन्न करता है कि राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय के अधिकारी सरकारी निर्णय को, जो मोहनपुर स्थित महारानी रामेश्वरी इण्डियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस से सम्बंधित है, क़ुतुब गंज इलाके से जोड़ रहे हैं। बिहार सरकार के स्वास्थ विभाग द्वारा दिनांक 12-01-1985 को सरकार के तत्कालीन संयुक्त सचिव अनंत शुक्ल के हस्ताक्षर से निर्गत चिठ्ठी कुछ इस प्रकार है:

दिनांक 12-01-1985 को सरकार के तत्कालीन संयुक्त सचिव अनंत शुक्ल के हस्ताक्षर से निर्गत चिठ्ठी

Patna, dated 12-01-1985

In exercise of the powers conferred by section … of the Bihar Private Medical (Indian System of Medicines) Colleges taking over Ordinance, 1225 (Bihar Ordinance 1, 1985) the Bihar State Government have been pleased, subject to the provision of the said ordinance and the condition presented by the state government., to order a take over the Maharani Rameshwari Indian Institute of Medical Science, Mohanpur Darbhanga and the hospital attached thereto with effect from the 10th February, 1985.”

By order of the Governor of Bihar
S/d Anant Shukla
Joint Secretary to Govt. 

इससे पहले, माननीय श्री. न्यायमूर्ति किशोर कुमार मंडल सीएवी निर्णयदिनांक: 17-09-2016 याचिकाकर्ता संख्या 1 महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबलट्रस्ट की प्रबंध समिति है, जिसकाप्रतिनिधित्व एक ट्रस्टी के माध्यम से किया जाता है अर्थात याचिकाकर्ता संख्या 2। उन्होंनेदरभंगा के जिला मुख्यालय में स्थित राज अस्पताल, दरभंगा पर अपने अधिकार का दावा किया है, जिसे अब महाराजा कामेश्वर सिंह मेमोरियल अस्पताल(संक्षेप में ‘अस्पताल’ के रूप में जाना जाता है) के रूप में जाना जाता है। 
पटना उच्च न्यायालय सीडब्ल्यूजेसी संख्या 7950, 2013 दिनांक 17-09-2016 के दस्तावेज के अनुसार मोहनपुर स्थित महारानी रामेश्वरी इण्डियन इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस अस्पताल का कुल क्षेत्रफल 13बीघा, 1 कथा और 45 धुरहै। 1978-79 में महारानी रामेश्वरी भारतीय आयुर्विज्ञानसंस्थान, मोहनपुर, दरभंगा कीस्थापना और उद्घाटन किया गया था। संस्थान से जुड़ी संपत्ति एक अस्पताल थी। अधिसूचना दिनांक 12.01.1985 (अनुलग्नक-20) के तहत इसेराज्य सरकार ने एक अध्यादेश के तहत (उपरोक्त) सभी संपत्तियों/संपत्तियों के साथ अपने कब्जेमें ले लिया जो बाद में एक अधिनियम बन गया। इस अधिसूचना के बाद महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट की प्रबंध समिति अपनी याचिका के द्वारा यह दावा किया किअस्पताल संस्थान का हिस्सा नहीं था और इसलिए इसे उक्त अधिग्रहण अधिसूचना द्वारानहीं लिया गया था। जबकि प्रतिवादी का मानना था कि उक्त अधिसूचना के द्वारा संस्थान के साथइससे जुड़े अस्पताल का कब्ज़ा भी राज्य सरकार का ही होगा। इस मुद्दे को2008 के सीडब्ल्यूजेसी संख्या 13207 में इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गयाथा। 

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क़ुतुब गंज

पटना उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने दिनांक 8.5.2012 के आदेश द्वाराइस मुद्दे को हल करने में कठिनाई का पता लगाते हुए याचिकाकर्ताओं को प्राधिकरणके समक्ष एक अभ्यावेदन दायर करने की अनुमति दी थी। स्वर्गीय महाराजा की वसीयत सेसंबंधित एक प्रोबेट कार्यवाही के संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पक्षोंके बीच हुए समझौते सहित सभी प्रासंगिक तथ्यों को रिकॉर्ड में लाना, जिसे पटना उच्च न्यायालय सीडब्ल्यूजेसी संख्या द्वाराविचार और निपटाने के लिए निर्देशित किया गया था। इसके आलोक में, याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर अभ्यावेदन पर सरकार केस्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव द्वारा विचार किया गया और आदेश दिनांक 07.02.2013 को खारिज कर दिया गया। 

न्यायालय ने कहा कि वह रिट आवेदन के समर्थन में श्री एस.एस.डी.विवेदी, वरिष्ठ अधिवक्ता, राज्य के लिए श्री किंकर कुमार और प्रतिवादी संख्या के लिए उपस्थित श्री हिमांशु कुमार अकेला को सुना है। पक्षों ने दलीलों का आदान-प्रदान किया है। याचिका के अनुसार महाराजा के दामाद ने संस्थान की स्थापना के लिए 9 बीघा, 4 कथा और 9 धुर के एक क्षेत्र को मापने वाली भूमि के एक टुकड़े के संबंध में 17.09.1971 को एक उपहार दिया था। महारानी के नाम पर संस्थान को 1978-79 में कार्यात्मक बनाया गया था। संस्थान के बेहतर प्रबंधन के लिए राज्य सरकार ने अधिसूचना दिनांक 12.01.1985 के तहत संस्थान से जुड़ी सभी संपत्तियों और संपत्तियों के साथ संस्थान को अपने कब्जे में ले लिया। महाराजा द्वारा एक वसीयत निष्पादित की गई थी जिसके लिए कोलकाता उच्च न्यायालय में एक प्रोबेट कार्यवाही दायर की गई थी। मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक गया। 

दिवंगत महाराजा की वसीयत के अनुसार दरभंगा राज की संपत्ति के संबंध में पार्टियों के बीच पटना उच्च न्यायालय सीडब्ल्यूजेसी संख्या 7950 2013 दिनांक 17-09-2016 के बीच एक पारिवारिक समझौता हुआ था, जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।  बंदोबस्त की अनुसूची-IV में अस्पताल की संपत्ति को सार्वजनिक धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए तीसरे पक्ष को आवंटित किया गया था। यह प्रस्तुत किया गया है कि राज्य सरकार उक्त समझौते की एक पार्टी थी और इस तरह समझौते की शर्तों से बाध्य थी। इस समझौते के अनुसार, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम और शैली में एक धर्मार्थ ट्रस्ट का गठन किया जाना था जो ट्रस्ट की संपत्तियों का प्रबंधन करेगा। सरकार के स्वास्थ्य विभाग के मंत्री द्वारा कुछ और पत्राचार किए गए थे ताकि यह दिखाया जा सके कि अस्पताल संस्थान की संपत्ति। माननीय मंत्री जी द्वारा अपनी व्यक्तिगत हैसियत से जारी किए गए उन पत्रों में कुछ अंतर्निहित कमियां पाते हुए, यह पाया जाता है कि वे विवाद पर अधिक प्रकाश नहीं डालते हैं। याचिकाकर्ता (ओं) ने अस्पताल के नगरपालिका होल्डिंग के निर्माण और होल्डिंग टैक्स की वसूली के संबंध में राज दरभंगा द्वारा मुख्य कार्यकारी अधिकारी को दिए गए पत्राचार पर भी भरोसा किया है।

निर्विवाद रूप से, याचिकाकर्ताओं के अनुसार चैरिटेबल ट्रस्ट का गठन 26.03.1992 को किया गया था, यानी संस्थान के अधिग्रहण आदेश/अधिसूचना के साथ-साथ इसकी संपत्तियों और 2013 की पटना उच्च न्यायालय सीडब्ल्यूजेसी संख्या 7950 दिनांक 17-09-2016 संपत्तियों के बाद जारी किया गया था। दूसरी ओर, राज्य सरकार का कहना था एक दृष्टि से अवलोकन पर, ऐसा प्रतीत होता है कि उस अधिसूचना के अनुसार संस्थान से जुड़े अस्पताल पर भी कब्जा कर लिया गया था । प्रतिवादी संख्या के काउंटर हलफनामे का जिक्र करते हुए यह कहा गया है कि राज्य सरकार स्वर्गीय महाराजा की वसीयत के संबंध में परिवार के सदस्यों के बीच हुए समझौते में ‘पार्टी’ नहीं थी, जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखा गया था और अनुमोदित किया गया था। उन्होंने दरभंगा राज के सहायक प्रबंधक के पत्र का भी उल्लेख किया है जिसमें प्रतिवादी राज्य को अस्पताल के संबंध में कोई आपत्ति नहीं दी गई थी। 

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सरकार की और से प्रधान सचिव ने इस तथ्यात्मक पृष्ठभूमि में दावे की व्यापक जांच की। उन्होंने पाया कि प्रोबेट मामले में समझौता/निपटान परिवार के सदस्यों के बीच हुआ था जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 22.3.1987 को स्वीकार कर लिया था अर्थात 1985 में राज्य सरकार द्वारा संस्थान के अधिग्रहण के काफी बाद। उन्होंने यह भी कहा कि चिकित्सा परिषद अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत, संस्थान उचित कामकाज और मान्यता के उद्देश्य से एक अलग अस्पताल से जुड़ा होने का हकदार था। इस न्यायालय के निर्देश पर सरकार द्वारा पारित 2013 दिनांक 17-09-2016 दिनांक 23.06.2005 के पटना उच्च न्यायालय सीडब्ल्यूजेसी संख्या 7950 के एक अन्य आदेश से ऐसा प्रतीत होता है कि जब इसे लिया गया था तब अस्पताल को संस्थान से जोड़ा गया था। दिवंगत महाराजा के परिवार के सदस्यों के बीच समझौता उस संस्थान के अधिग्रहण के बाद हुआ था जिसमें राज्य सरकार ‘पार्टी’ नहीं था। विभिन्न दावेदारों के बीच माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष हुआ उक्त पारिवारिक समझौता इस प्रकार विवाद पर निर्णायक राय दर्ज करने के लिए प्रासंगिक नहीं होगा। पक्षकारों से यह अपेक्षा की गई थी कि वे माननीय उच्चतम न्यायालय के ध्यान में उस अधिसूचना को लाएँ जिसके द्वारा संस्थान से सम्बद्ध अस्पताल और अन्य संपत्तियों को जनवरी, 1985 में राज्य सरकार द्वारा पहले ही अधिग्रहित कर लिया गया था। 

न्यायमूर्ति किशोर कुमार मंडल ने लिखा: “Having appreciated the contention of the parties and on perusal of the materials on record placed by both parties the respondent Principal Secretary under the impugned order, found that the Hospital was part of the Institute when it was taken over in 1985. Relying on those documents which were presented before and appraised by the respondent- Principal Secretary for excluding the property of the Hospital treating it to be separate from the Institute, the present writ petition is filed. It is difficult for the writ Court to percolate thick shells of fact and record its decisive opinion on the controversy. The petitioner(s) have relied heavily on the settlement arrived at in the Probate matter before the Hon’ble Supreme Court. Patna High Court CWJC No.7950 of 2013 dt.17-09-2016 After all it was a family settlement amongst the beneficiaries of the Will which got approval of the Hon’ble Supreme Court in 1987. The State was not a party to the settlement. It was not brought to the notice of the Court that the State Government had in January 1985, taken over the Institute and its attached Hospital besides other properties under an Act which is not in challenge. The said settlement before the Hon’ble Supreme Court in which the State is not a party does not improve the case of the petitioner(s).”

साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि “दोनों पक्षों को सुनने के आलोक में, यह न्यायालय हस्तक्षेप योग्य चुनौती के तहत आदेश में किसी भी पेटेंट अवैधता को खोजने में असमर्थ है। रिट आवेदन विफल हो जाता है और खारिज कर दिया जाता है। हालांकि, वर्तमान आदेश याचिकाकर्ताओं को कानून के अनुसार उपयुक्त मंच के समक्ष अपनी शिकायत को प्रस्तुत करने का अधिकार है। 

क्रमशः ……

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