जी.एम.रोड, दरभंगा-बंगला नंबर-4: कौन मौसेरा-कौन चचेरा? आग की लपटें, मृत माँ, एमिकल कॉड से जुड़ा मृत बचा, मृत मामा और ‘मृत मानवता’ (भाग-1)

जी एम रोड, दरभंगा-बंगला नंबर-4 : मौत और मृत मानवता 

दरभंगा / पटना / दिल्ली : कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के प्रबंधन की देखरेख करने हेतु नियुक्त तीन विशेष अधिकारीगण इधर अपनी नियुक्ति का पहला वर्षगांठ मना रहे थे, उधर दरभंगा के राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह के कनिष्ठ पुत्र कुमार शुभेश्वर सिंह (दिवंगत) की अपनी छोटी साली के बच्चे आग में झुलस रहे थे। बड़ी बेटी पिंकी झा के गर्भ में उसके एमिकल कॉड से जुड़ा उसका आठ-महीने का बच्चा, पृथ्वी पर जन्म लेने की आस में सांस ले रहा था। वह भी तड़प रहा था, क्योंकि माँ उपद्रवकारियों के गिरफ़्त में थी। वह घायल हो गयी थी। दरभंगा के ऐतिहासिक जी एम रोड स्थित बंगला नंबर 4 में मौत का तांडव हो रहा था। सहायता की आस में सबों की निगाहें अपने मौसेरे भाई सहित सभी सगे-संबंधियों की ओर उठ रही थी। लेकिन सबों का ह्रदय पत्थर हो गया था। यह घटना दरभंगा राज के इतिहास में काले अक्षर में “अमानुषिक घटना” के रूप में लिखा जायेगा। 

उस शाम माँ के एमिकल कॉड से जुड़ा वह बच्चा माँ की सांसों के साथ अपनी सांसों को जोड़ते पृथ्वी पर पदार्पित होने का इंतज़ार कर रहा था। कुछ ही दिन तो बचे थे। वह भी दुनिया देखना चाहता था। माँ के गर्भ में सुना करता था कि दिल्ली के लाल किले के तर्ज पर दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज भी रामबाग पैलेस का निर्माण किये थे। उसके नाना रामबाग परिसर में गर्व से जाया करते थे। राम बाग़ पैलेस की मिट्टी में लोट-पोट कर वह भी अपना बचपन जीना चाहता था। अपनी नानी, मौसी, मामा के साथ वह भी क्रीड़ा-कलरव करना चाहता था। लेकिन अभिमन्यु की तरह वह नहीं जानता था कि उसके ननिहाल में माँ के गर्भ में पल रहे उस नौनिहाल की जन्म से पहले मृत्यु हेतु दरभंगा के ‘सम्मानित दबंगों’ ने चक्रव्यूह रच दिया दिया था। कौन अपना, कौन पराया – वह पहचान नहीं रहा था। 

मृत माँ, एमिकल कॉड से जुड़ा मृत बचा

माँ की ख़ुशी के साथ वह गर्भ में इस बात का एहसास किया था कि इस सप्ताह उसके दिवंगत बड़े नाना जी (कुमार शुभेश्वर सिंह) का, जिन्होंने उसके नानाजी (श्रीनाथ झा) को दरभंगा में रहने के लिए जगह दिए थे, जीवन जीने के लिए, परिवार का भरण-पोषण करने के किये नौकरी दिए थे; उनका 76 वां जन्म दिवस मनाया जाने वाला है। माँ की साँसों से वह यह भी एहसास किया था कि आज़ाद भारत अपनी स्वतंत्रता का 75 वां वर्षगाँठ पर अमृत महोत्सव मना रहा था। उसके बड़े नानाजी भी तो आज़ादी भारत में ही 20 फरबरी, 1946 को जन्म लिए थे। ज्ञातव्य हो कि कुमार शुभेश्वर सिंह की पत्नी (दिवंगत) और मृतक संजय झा और पिंकी झा की माँ अपनी सगी बहनें हैं। 

लेकिन उसे क्या मालूम था कि बड़े नानाजी के जन्म दिन से एक सप्ताह पूर्व, कलकत्ता उच्च न्यायलय द्वारा दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के ट्रस्टियों द्वारा महाराजाधिराज की सम्पत्तियों को कौड़ी के भाव में बिकती प्रथा को रोकथाम करने के लिए एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन अवकाश प्राप्त न्यायविदों, न्यायधीशों के रहते हुए भी; जिले में मुखिया (जिलाधिकारी) की उपस्थिति में भी, जिले के दो-दो बड़े कप्तान साहबों (पुलिस अधीक्षकों) की उपस्थिति में भी, सैकड़ों पुलिसकर्मियों की उपस्थिति में भी उसकी सांसे अधजली माँ की सांसों के साथ धीरे-धीरे बंद हो जायेगा और अंत में अपनी प्यारी माँ के साथ वह भी दुनिया से कूच कर जायेगा, जन्म लेने से पहले ही। ऐसा ही हुआ। बड़े-बड़े शहरों में, खासकर जब शहर ‘स्मार्ट’ शहरों की गिनती में आ जाय, ऐसी बातें, घटनाएं समाज के संभ्रांतों, ठेकेदारों, मालिकों, मुख्तारों की नजर में कोई अहमियत नहीं रखता है। 

आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम के पास उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार, जी एम रोड पर कुल 10-कोठी हैं जिसे “ए -टाइप” बंगला कहा गया है।  ये सभी बंगला कुल 19 बीघा, 9 कट्ठा में फैला है। दस्तावेज के अनुसार, बंगला नंबर 1 (2 बीघा 19 कट्ठा), बंगला नंबर-2 (2 बीघा 3 कट्ठा), बंगला नंबर – 3 (2 बीघा 12 कट्ठा), बंगला नंबर – 4 (1 बीघा 6 कट्ठा), बंगला नंबर-5 (2 बीघा 4 कट्ठा), बंगला नंबर – 7 (2 बीघा 14 कट्ठा), बंगला नंबर – 8 (1 बीघा 9 कट्ठा), बंगला नम्बर-9 (1 बीघा 6 कट्ठा) और बंगला नंबर – 10 (2 बीघा 16 कट्ठा) जमीन है। दस्तावेज के अनुसार, जी एम रोड स्थित सभी बंगलों (19 बीघा 9 कट्ठा जमीन सहित) की कीमत 01-01-1987 को 19,40,000 आँका गया था। और भारत के सर्वोच्च न्यायालय को भी इस तथ्य से अवगत करा दिया गया था। 

दस्तावेजों के अनुसार फेमिली सेटलमेंट के बाद बंगला नंबर 1 में राजकुमार जीवेश्वर सिंह की पुत्री अपने परिवार के साथ रहती हैं। यह हिस्सा उन्हें मिला था। बंगला नंबर – 2 महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह वेलफेयर ट्रस्ट को मिला। बंगला नंबर-3 वर्तमान महारानी को दिया गया। बंगला नंबर-4 कुमार शुभेश्वर सिंह के हिस्से आया। बंगला नंबर-5 चैरिटी का था। द्वारका नाथ झा को हस्तगत हुआ। बंगला नंबर-६ विश्वविद्यालय को चला गया। बंगला नंबर-7 में कुमार जीवेश्वर सिंह की पुत्री रहती हैं। बंगला नंबर – 8 में राम जानकी हॉस्पिटल है। बंगला नंबर – 9 में राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के पुत्र राजकुमार यग्नेश्वर सिंह (अब दिवंगत) की पत्नी, दो पुत्र कुमार रत्नेश्वर सिंह रहते हैं और अंत में बंगला नंबर-10 विश्वविद्यालय के पास चला गया। 

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इन तमाम बंगलों में एक सिर्फ बंगला नंबर-4 है जो फॅमिली सेटलमेंट के बाद कुमार शुभेश्वर सिंह को प्राप्त हुआ। महाराजाधिराज के समय इस बंगला में पहले यदु दत्त झा रहते थे। बाद में, यदु दत्त झा के बच्चे – धीरेन्द्र दत्त झा, जीवेन्द्र दत्त झा, नरेंद्र दत्त झा और आशु दत्त झा – उस बंगला के परिसर में ही कुछ जमीन खरीदकर अपना-अपना मकान बनाकर रहने लगे। अपने जीवन काल में ही कुमार शुभेश्वर सिंह अपने छोटे साढू श्रीनाथ झा, जो सरिसब-पाहि के रहने वाले थे, दरभंगा में रहने को कहा। श्रीनाथ झा आर्यावर्त-इण्डियन में प्रसार विभाग में निरीक्षक के पद पर कार्य भी करते थे। सूत्रों के अनुसार,  कुमार शुभेश्वर सिंह  अपने छोटे साढ़ू को सपरिवार रहने के लिए बंगला नंबर-4 में ही एक भूखंड दिए थे। वे अधिकांश समय दरभंगा में ही रहते थे।  

श्रीनाथ झा की छोटी बेटी 

बंगला नंबर 4 का भू-क्षेत्र एक बीघा 6 कट्ठा है। फैमिली सेटलमेंट के बाद बंगला नंबर 4 दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह के अनुज राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के सबसे छोटे पुत्र कुमार शुभेश्वर सिंह के हिस्से में है। कुमार शुभेश्वर सिंह की मृत्यु (22 मार्च 2006) के बाद उनके हिस्से का सम्पूर्ण सम्पत्तियों का मालिक उनके दो पुत्र – कुमार राजेश्वर सिंह और कुमार कपिलेश्वर सिंह – है। वर्तमान काल में बंगला नंबर 4 की शेष बची हुई जमीन और मुख्य भवन भी उन्ही के हिस्से में है/अथवा था। वैसे बंगला नंबर-4 में जमीन महज नाम मात्र बचा है। यह कहा जाता है कि श्रीनाथ झा समयांतराल कुमार शुभेश्वर सिंह के द्वारा दी गई जमीन से हटकर इस परिसर के मुख्य भवन में आ गए। यह भी कहा जाता है कि उस भवन को कुमार शुभेश्वर सिंह के पुत्रों – कुमार राजेश्वर सिंह और कुमार कपिलेश्वर सिंह – मधुबनी के शिव कुमार झा के हाथों बेच दिया था, जहाँ श्रीनाथ झा की विधवा अपने बाल-बच्चों के साथ रह रही थी। 

दरभंगा के लोगों का कहना है कि जिस घर में श्रीनाथ झा का परिवार रहता था, उस घर पर (यदि बेचा नहीं गया था) कुमार शुभेश्वर सिंह के पुत्रों का अधिकार था। लेकिन उस शाम उस घर पर जबरन अधिपत्य स्थापित करने के लिए कुछ लोग जबरन आधुनिक मशीनों और दर्जनों लोगों के साथ हमला बोल दिया। घर को बुल्डोजर से तोड़ना प्रारम्भ कर दिया। साथ ही, परिवार के सदस्यों को जिंदा जलाने का प्रयास करने लगा था। इस घटना में झुलस गए चार में से दो लोगों – पिंकी झा (जो गर्भवती थी) और उसके भाई संजय झा की मौत हो गई है। वैसे, श्रीनाथ झा की बेटी बार-बार कह रही है कि घर-जमीन का मामला न्यायालय के अधीन है। 

अब सवाल यह है कि क्या कुमार शुभेश्वर सिंह (अब दिवंगत) इस भवन को भी अपने साढू को दे दिए थे, लिख दिए थे ? अगर हां, तो फिर जिला प्रशासन के भूमि निबंधन शाखा में इससे सम्बंधित दस्तावेज होनी चाहिए। अगर भवन और जमीन श्रीनाथ झा के नाम से था, फिर न्यायालय जाने की बात क्या है?  इसी तरह, अगर शुभेश्वर सिंह के पुत्रों ने इस भवन को शिव कुमार झा के हाथों बेच दिया था, तो फिर इससे भी सम्बंधित दस्तावेज भी स्थानीय निबंधन कार्यालय में होनी चाहिए। लेकिन विडंबना यह है कि बंगला नंबर 4 के मुख्य मालिक (चाहे कुमार राजेश्वर सिंह हों या कुमार कपिलेश्वर सिंह या शिव कुमार झा या फिर श्रीनाथ झा) के तरफ से किसी भी प्रकार का आधिकारिक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है। अगर है, तो फिर स्थानीय प्रशासन की ओर इस बात की पुष्टि अब तक क्यों नहीं की गयी है ?

सूत्रों के अनुसार इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह भवन आज भी कुमार राजेश्वर सिंह – कपिलेश्वर सिंह के स्वामित्व में हो, जिस पर उनकी अपनी मौसी और उसके बाल-बच्चे आधिपत्य जमाना चाह रहे हों। इस बात को भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि अगर यह भवन उनके स्वामित्व में है, तो फिर जबरन-कब्ज़ा के भय से उन्होंने स्थानीय उपद्रवकारियों का सहयोग लिया हो, ताकि मकान खाली हो सके। यह भी संभव है कि सिंह-भाइयों इस बात से अनभिज्ञ थे यह मामला इतना अधिक घृणित, अमानुषिक, अमानवीय हो जायेगा। और इन तमाम प्रश्नों का उत्तर सिर्फ और सिर्फ वे ही दे सकते हैं। सिंह-भाइयों के अपने मौसा श्रीनाथ झा की मृत्यु कुछ वर्ष पहले हो गई थी और घर में पुरुष के रूप में संजय (उनका मौसेरा भाई) ही था, जो मृत्यु को प्राप्त कर चुका है। शेष मौसी और अपनी दो मौसेरी बहनें ही थी, जिसमें एक की मृत्यु हो गई है। 

बहरहाल, विगत 10 फरवरी को संध्याकाळ बांग्ला नंबर-4 में यह घटना हुई थी।  इस मामले में पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए कांड से जुड़े 8 अपराधियों को सोमवार को गिरफ्तार कर लिया था. मामले में कुल 40 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है. अभी तक 13 अभियुक्तों की पहचान कर ली गई, जिसमें से 8 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया गया है. 

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ज्ञातव्य हो कि पिछले साल 9 फरवरी को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के तत्कालीन प्रबंध समिति को भंग कर दिया था । प्रबंध समिति के सभी सदस्यों के समस्त अधिकार को ‘समाप्त’ कर दिया था । साथ ही, दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के बैंक अकाउंट को ‘जब्त’ कर लिया था और प्रबंधन समिति के एक सदस्य पर दस लाख का जुर्माना भी किया था । वजह था: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की सम्पत्तियों से लाभार्थियों द्वारा दायर एक याचिका पर निर्णय निर्णय लिया था। अपने निर्णय में न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक ने कहा था कि “दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट” के क्रियाकलापों में अनियमितता, कुप्रबंध, ट्रस्ट की सम्पत्तियों को औने-पौने मूल्य पर बेचने, महाराजाधिराज और दरभंगा राज की गरिमा को नष्ट करने इत्यादि के कारण ट्रस्ट के ट्रस्टियों (प्रबंध समिति के सदस्य) – महारानी कामसुंदरी सहित, दिवंगत कुमार शुभेश्वर सिंह के दोनों पुत्रों – राजेश्वर सिंह और कपिलेश्वर सिंह – को दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के ट्रस्टीशिप / प्रबंध समिति की सदस्यता से “बेदखल” किया जाता है। 

साथ ही, न्यायालय ने तीन पूर्व न्यायमूर्तियों को “संयुक्त विशेष अधिकारी” के रूप में नियुक्त भी किया जो  दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट के पिछले दस वर्षों के सभी कार्यों की छानबीन करेंगे। न्यायालय ने संयुक्त विशेष अधिकारियों का प्रतिमाह दो लाख रुपये का पारिश्रमिक भुगतान निर्धारित किया । न्यायालय ने पश्चिम बंगाल न्यायिक सेवा के विरुद्ध “अवांछनीय” टिका-टिप्पणी करने पर दरभंगा राज रेसिडुअरी के प्रबंध समिति के एक सदस्य कपिलेश्वर सिंह को 10,00,000 रुपये का दंड देने का आदेश भी दिया था ।

9 फरवरी, 2021, जिस दिन न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक अपने 12-पृष्ठों का आदेश जारी किया था, शायद वह नहीं जानते थे की उस दिन के अगले दिवस को दरभंगा राज रेसिडुअरी ट्रस्ट की ही एक संपत्ति, जो दरभंगा राज के फेमिली सेटलमेंट के तहत लाभार्थी बने, उसी संपत्ति (4  रोड) में महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह के अनुज राजबहादुर विश्वेश्वर सिंह के सबसे छोटे पुत्र कुमार शुभेश्वर सिंह (अब दिवंगत) के हिस्से आये भवन में उनकी अपनी पत्नी की सगी बहन का संतान, गर्भ में पलटा बच्चा जन्म से पहले अग्नि को सुपुर्द हो जायेगा। इतना ही नहीं, कुमार शुभेश्वर सिंह की अपनी साली के बिलखते, तड़पते संतानों को उसका मौसेरा भाई, बहन या परिवार के अन्य लोग देखने तक नहीं आये। 

न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक ने कहा था कि  “The fact that the estate requires protection is ‘disputed’ by any of the appearing parties. They seek an appropriate mechanism so that the estate is administered properly. They seek a mechanism by which the entire litigation between the parties come to an end as expeditiously as possible. In view of the factual situation, it would be appropriate to discharge the present committee of management with immediate effect. They will not operate any bank account of the estate any further. In the facts and circumstances in the instant case, it would be appropriate that three Special Officers are appointed to administer the estate.”

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक वीडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा आयोजित न्यायालय में दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के क्रिया-कलापों की छानबीन के लिए जिन तीन विशेष स्पेशल ऑफिसर्स की नियुक्ति किये हैं उनमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योतिर्मय भट्टाचार्य, न्यायमूर्ति (श्रीमती) मधुमिता मित्रा (अवकाश प्राप्त) और साहिबगंज के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज (अवकाश प्राप्त) न्यायमूर्ति गोपाल कुमार रॉय हैं। न्यायालय ने उन सभी पुलिस अधिकारियों, अधीक्षकों से अनुरोध भी किया है कि जिन-जिन स्थानों/क्षेत्रों में दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट की संपत्ति है, और जिसका इन्वेंट्री बनाया जायेगा, आवश्यकता पड़ने पर प्रशासनिक मदद करें।

न्यायमूर्ति देबांगसु बसाक संयुक्त विशेष अधिकारियों को कहा है कि वे किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक में एक एकाउंट खोले जिसमें रजिस्ट्रार, ओरिजिनल साईड से मिलने वाली एक करोड़ रुपये को जमा कर दिया जायेगा। इस राशि का इस्तेमाल अधिकारियों के वेतन और जांच के दौरान होने वाले अन्य खर्च शामिल होंगे। संयुक्त विशेष अधिकारियों को यह भी स्वतंत्रता दी गयी है की दरभंगा रेसिडुअरी इस्टेट के बेहतर प्रबंधन के लिए वे किसी भी योग्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की नियुक्ति कर सकते हैं और उन्हें उचित वेतन दे सकते हैं। ये तीनो अधिकारीगण न केवल दरभंगा राज के ट्रस्ट्स के क्रियाकलापों की जान करेंगे, बल्कि विशेष “ऑडिट टीम” को नियुक्त कर पिछले 10 वर्षों का लेखा-जोखा का भी जांच करेंगे। न्यायालय ने इन तीन संयुक्त स्पेशल अधिकारियों से निवेदन किया है कि वे किसी उच्च श्रेणी के चार्टड अकाउंटेंट अथवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के फईम को नियुक्त कर विगत दस वर्षों का लेखा-जोखा की जांच कराई जाय। न्यायालय ने इन संयुक्त विशेष अधिकारियों को कहा है कि वे सर्वप्रथम इस्टेट के प्रशासन के लिए सभी सम्पत्तियों का एक इन्वेंटरी बनाएं । इस कार्य में वे किसी भी व्यक्ति का सहयोग ले सकते हैं। साथ ही उनका वेतन भी निर्धारित कर सकते हैं। 

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जी एम रोड, दरभंगा-बंगला नंबर-4

न्यायमूर्ति बसाक अपने आदेश में यह तो स्पष्ट कर दिए थे कि “इस कार्य को निष्पादित करने में यदि आवश्यकता हो तो वे स्थानीय पुलिस की भी मदद ले सकते हैं। स्थानीय पुलिस अधीक्षक, जिसके क्षेत्राधिकार में यह इस्टेट आता है, से निवेदन है कि वे संयुक्त विशेष अधिकारियों को कार्य निष्पादन करने में मदद करें।” लेकिन विगत 10 फरवरी के शाम 4 रोड कोठी में जो घटना हुई और पिछले सात दिनों में स्थानीय पुलिस प्रशासन, जिलाधिकारी, दरभंगा राज के लोगों का, मृतक की माँ की बड़ी बहनों के संतानों का जो रवैय्या रहा, किसी भी दृष्टि से “मानवीय” नहीं कहा जा सकता है। यह “अमानुषिक घटना” के लिए निंदा शब्द उपयुक्त नहीं होगा। 

कलकत्ता उच्च न्यायालय अपना आदेश जारी करते समय दरभंगा रेसिडुअरी एस्टेट के करता-धर्ताओं की आदतों से परिचित होने के कारण इस बात का विशेष ध्यान रखा था कि नव-नियुक्त पदाधिकारियों के लिए पहले ही पैसा मिला जाय। अदालत ने यह स्पष्ट किया था कि “चुकी पिछले विशेष पदाधिकारी को उनके कार्य के लिए महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के लाभार्थियों ने भुगतान नहीं किया था, जबकि वे पांच बैठक किये थे और प्रत्येक बैठक के लिए उन्हें प्रारम्भ में एक लाख रुपये देने को तय हुआ था। वैसी स्थिति में नव-नियुक्त संयुक्त विशेष अधिकारियों से कहा गया है कि वे निवर्तमान विशेष अधिकारी को रजिस्ट्रार ओरिजिनल साईड द्वारा भुगतान प्राप्त करते ही 10,00, 000 (दस लाख) रुपये अंतिम भुगतान स्वरूप कर दें।न्यायालय ने आदेश दिया है कि दरभंगा राज के लेखा से इन स्पेशल ऑफिसर्स को प्रतिमाह 2,00,000/- (दो लाख) रुपये का भुगतान किया जायेगा। 

न्यायालय ने दरभंगा राज के ट्रस्ट्स के लोगों को आदेश दिया है कि वे न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारियों को कार्य निष्पादन करने में पूर्णता के साथ सहयोग करें। न्यायालय सभी लाभार्थियों को स्पेशल अधिकारियों द्वारा आयोजित किसी भी बैठक में भाग लेने की पूर्ण स्वतंत्रता दी है। इतना ही नहीं, न्यायालय इस्टेट के बेहतर क्रिया-कलापों के लिए उनसे बेहतर राय की भी अपेक्षा किया है। उन्हें यह भी कहा गया है कि वे अपना ईमेल विशेष अधिकारियों को अवश्य दे दें ताकि वे क्रिया कलापों की सुचना उन्हें देते रहे। विशेष अधिकारियों के कार्यों में कोई दिक्कत ना हो, न्यायालय ने यह भी आदेश दिया है कि आवश्यकता पड़ने पर वे स्थानीय प्रशासन की मदद भी ले सकते हैं। न्यायालय ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि इस्टेट की सभी सम्पत्तियों की पहचान पहली बैठक में ही हो जानी चाहिए। साथ ही, इस्टेट के प्रशासन से सम्बंधित एक रोड-मैप भी तैयार होनी चाहिए। खैर, “रोड मैप” बना या नहीं, यह तो विशेष संयुक्त अधिकारीगण बताएँगे, लेकिन इतना अवश्य हुआ की पांच लोगों के परिवार में तीन की मौत हो गई।  

फेसबुक पर दरभंगा के युवा नेता आदित्य मोहन लिखते हैं : “पिंकी मर गई। वो गर्भवती थी। भूमाफिया के मारपीट और लगाए आग में वो झुलस गई, पहले पेट मे पल रहे 8 महीने के बच्चे की मौत हुई और अब पिंकी भी नहीं बची। यह बिहार में अंधेरगर्दी की कहानी है। दरभंगा में भूमाफिया जमीन और मकान पर जबरन कब्जा के लिए बुलडोजर लेकर पहुंच गया। जब घरवालों ने इसका विरोध किया तो मारपीट किया, भूमाफिया के लोगों ने न केवल घर में आग लगा दी बल्कि परिवार के लोगों को भी आग में जलाने की कोशिश की। घटना में परिवार के चार सदस्य झुलस गए, गर्भवती पिंकी (अब मृतक) के अलावा एक युवक की हालत काफी गंभीर बताई जा रही है और उन्हें डीएमसीएच के बाद बेहतर इलाज के लिए पटना रेफर कर दिया गया है। पूरी घटना सीसीटीवी में कैद है। मौके पर पहुंचे एसडीपीओ ने इस घटना की पुष्टि की है। बाकी घायल लोगों का डीएमसीएच में इलाज चल रहा है। वहीं मौके पर भूमाफिया के लोग जेसीबी छोड़कर फरार हो गए हैं। घटना दरभंगा नगर क्षेत्र अंतर्गत जीएम रोड की है।”

भारतीय जनता पार्टी के नेता संजय सरोगी लिखते हैं: “जीएम रोड के आगजनी घटना में पीएमसीएच में ईलाजरत संजय झा एवं उनकी बहन पिंकी झा की मृत्यु बेहद ही दुःखद एवं हृदय विदारक है। भूमि विवाद में हमलावरों द्वारा इस तरह की शर्मनाक घटना को अंजाम देना कहीं से भी बर्दाश्त योग्य नहीं है। जिला प्रशासन एवं पुलिस अधिकारियों से लगातार मेरी बात हो रही है, घटना में संलिप्त दोषी किसी भी हालत में बख्शे नहीं जायेंगे। घटना में स्थानीय पुलिस प्रशासन की भूमिका भी संदेहास्पद है। घटना से पूर्व ही पीड़ित पक्ष लगातार स्थानीय पुलिस प्रशासन के समक्ष गुहार लगाते रहें। आखिर प्रशासन इतनी असंवेदनशील कैसी हो सकती है? अगर पुलिस सक्रिय रहती है, समय पीड़ित पक्ष के गुहार पर संज्ञान लेती तो हमलावर इस तरह के अपराध में कभी सफल नहीं हो पाते और पीड़ित पक्ष के तीन सदस्य आज जीवित होते।” 

क्रमशः

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