‘माफिया’, ‘माफियोसो’, ‘दबंग’, ‘सरगना’ शब्दों की खेती वाले किसान तो ‘पत्रकार’ ही होते हैं; क्योंकि ‘अख़बारों का मालिक’ भी तो ‘बनिया’ ही होता है (भाग-1 क्रमशः)

बाबू सूर्यदेव सिंह (दिवंगत)

धनबाद : उस दिन धनबाद के हीरापुर स्थित बिजली कार्यालय के सामने एक सरकारी आवास के ‘आउट हॉउस’ के कुण्डी में कागज का एक टुकड़ा लगा था। मैं सुवह कोई तीन बजे घर से निकलकर झरिया पहुंचा था। विधान सभा चुनाव का घोषणा हो चुका था। बिहार और झारखंड का विभाजन नहीं हुआ था। धनबाद लोक सभा क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र – सिंदरी, निरसा, धनबाद, झरिआ, टुंडी और बाघमारा – उन दिनों भी थे। लेकिन आज की तरह उन दिनों भी झरिया विधानसभा क्षेत्र राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण था। शेष विधान सभा के विजय नेता भी अन्य विधायकों की श्रेणी में पंक्तिबद्ध हो जाते थे, या फिर झरिया के विधायक बाबू सूर्यदेव सिंह के सामने टकटकी निगाहों से आँखों-आँखों से ‘मदद’ की गुहार करते रहते थे। 

यह अलग बात है कि सं 1990 चुनाव के बाद न केवल भारतीय राजनीति में, बल्कि धनबाद के सरायढ़ेला स्थित भारत के 11 वें प्रधान मंत्री चंद्रशेखर (अब दिवंगत) के अनन्य मित्र बाबू सूर्यदेव सिंह के आवास सिंह मैंशन में भी जो परिवर्तन हुए, उसे मानवीय-मापदंड पर तो नहीं मापा जा सकता है। पारिवारिक, न्यायिक और अन्य मापदंडों पर मापने का कार्य तो जारी है, लेकिन समय के साथ साथ रक्तों के रंग भी बदलने लेंगे हैं। 

चुनाव के दौरान न केवल भारत, बल्कि विश्व की मिडिया अपने-अपने दिल्ली, कलकत्ता के संवाददाताओं के माध्यम से धनबाद-झरिया कोल बेल्ट में चहलकदमी करते दीखते थे। उन अख़बारों में प्रकाशित होने वाली हज़ार शब्द की कहानियों में सिंदरी, निरसा, धनबाद, टुंडी और बाघमारा विधान सभा क्षेत्रों के बारे में एक अथवा दो पैरा लिखा जाता था, जबकि झरिया के उम्मीवार बाबू सूर्यदेव सिंह कैसे चलते हैं, कैसे बैठते हैं, किस हाथ से अपने धोती का खूंट पकड़ते हैं, कहाँ भाषण देते अपने कुर्ता को ऊपर चढ़ाते हैं, शब्दों में कहाँ मतदाताओं से विनती होता है, कहाँ आदेश होता है, कहाँ भय दिखाया जाता है, कहाँ प्रेम दिखाया जाता है – पत्रकार बंधू बांधव बहुत तन्मयता के साथ शब्दों के साथ खेलते थे। 

उन दिनों गूगल का तो जमाना था नहीं, अतः अख़बारों के दफ्तरों में उन खबरों का कतरन काटकर रखा जाता था, ताकि अगले चुनाव में काम आ सके। पत्रकारों के शब्दों से यह बात स्पष्ट दिखता था कि आखिर सम्बंधित अखबार के मालिक चाहते क्या हैं? उन्हें पत्रकारिता से कितना गहरा सम्बन्ध है। क्या वे भी व्यवसायी हैं? क्या वे भी कोयला व्यापारी है? क्या वे लोहा व्यापारी हैं? अख़बारों का प्रकाशन सामाजिक उद्द्येश्य से किया गया है अथवा बाबू सूर्यदेव सिंह के नाम पर, उन्हें ‘कोयला माफिया’, ‘कोयला सरगना’, ‘कोयला चोर’, ‘कोयलाचंल में लाल खून की होली करने वाला’ आदि शब्दों से अलंकृत कर अपनी-अपनी दुकानदारी चलाने वाले थे। 

अभी अपरान्ह के चार बज गए थे। मैं अपने दरवाजे पर दस्तक दे दिया था। जंजीर में लटके कागज का टुकड़ा खोला। उसमें लिखे शब्दों को देखकर स्वयं पर हंसी भी आ रही थी और गौरवान्वित भी महसूस कर रहा था। कागज के टुकड़े के लेखक थे कलकत्ता से प्रकाशित दी टेलीग्राफ समाचार पत्र के सहायक संपादक सौमित्र बनर्जी यानी बॉबीदा। वे मेरे ‘अहंकार-रहित बॉस’ थे। आम तौर पर उस ज़माने में आनंद बाजार पत्रिका समूह में कार्य करने वाले, खासकर दी टेलीग्राफ और संडे पत्रिका के पत्रकार सहकर्मी मुझे बहुत पसंद करते थे, क्योंकि वे मेरे शब्दों को पढ़ते थे। 

ये भी पढ़े   मजदूरों, परिवारों, बच्चों के जीवन के साथ खेलने की मालिकों की आदत तो पुरानी है... (भाग - 12)

बॉबी दादा उस पुर्जी में लिखे थे:  “वे आज दोपहर कलकत्ता से आये हैं। आने के बाद सूर्यदेव को फोन किए। सूर्यदेव सिंह के चुनाव प्रचार-प्रसार में उनके साथ रहकर कवर करना चाहते हैं । चार-पांच कहानियां करनी है। शायद पूरा पन्ना भी छपे। वे बैंक मोड़ स्थित पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री दरबारा सिंह के पुत्र के होटल स्काई लार्क में रुके हैं। सूर्यदेव सिंह का कहना था कि वे मेरे बिना बात नहीं करेंगे। साथ ही, चुनाब प्रचार-प्रसार में मेरी उपस्थिति अनिवार्य है। मैं अपने अख़बार के संपादक के इन शब्दों को पढ़कर हैरान हो गया। सोचा एक संपादक अपने हाथ से इन शब्दों के द्वारा एक छोटा सा रिपोर्टर को कितना महत्व दे रहा है। फिर सोचा इसमें हैरानी की क्या बात क्या है ? आखिर अखबार भी तो दी टेलीग्राफ है – सच लिखने में कोई कोताही न उन दिनों करता था और आ ही आज। 

तभी गुल्लर के पेड़ के नीचे स्थित हमारे आऊट हॉउस के सामने दो गाड़ियां रुकी। यह आवास धनबाद के एक एडीएम श्री सूर्यनारायण मिश्र जी का था । मिश्रा जी पटना के मशहूर प्रकाशक ज्ञानपीठ प्रकाशन के मालिक श्री मदनमोहन पांडेय, जिन्हे हम सभी बड़े बाबूजी के रूप में सम्बोधित करते थे, की सबसे बड़ी बेटी के पति थे। निहायत अनुशासित व्यक्ति। जैसे देखने में चेहरे पर चमक था, अन्तःमन से उतने ही स्वच्छ थे। आज के युग में ऐसे व्यक्ति को “युधिष्ठिर” कहा जा सकता है।  धनबाद जैसे शहर में जहाँ उनके बराबर के ही नहीं, बल्कि, उनके घुटने और एड़ियों तक के अधिकारी सुवह शाम लक्ष्मी से स्नान करते थे, धनबाद से दूर अपने-अपने गाँव में खेत खलिहानों में एकड़-दर-एकड़ जमीन जोड़ते जा रहे थे, अपने पुरखों का नाम रोशन कर रहे थे; मिश्रा जी किसी भी समय अग्नि-कुंड में प्रवेशकर अपनी ईमानदारी की परीक्षा देने को सज्ज रहते थे।

तीन रोटी, एक कटोरा दाल, एक सब्जी और गुड़ का एक ढ़ेला उनके लिए भोज के बराबर था। हाँ, शुक्रवार को यदाकदा, मिटटी की वर्तन में रसोई में बचे भात में पानी डालकर रख देते थे ताकि अगली रात प्याज और लहसुन वाली चटनी के साथ उसे ग्रहण किया जा सके। कोयलांचल में इस तरह भात रखने/खाने की प्रथा बहुत पुरानी है। इनके आवास और हीरापुर से एसएसयलएनटी कालेज के रास्ते धनबाद के आरक्षी अधीक्षक का आवास होते हुए जाने वाली सड़क के बीच कोई दीवार नहीं था। सपाट – खुला हुआ, जैसे उनका व्यक्तित्व था। अपने प्रांगण में अपरिचित गाड़ियों को देखकर वे मेरी ओर देखे। वैसे उन गाड़ियों का रंग-रूप उनके लिए भले अपरिचित था, लेकिन एक सरकारी मुलाजिम होने के नाते गाड़ियों का नंबर प्लेट से वाकिफ थे वे । उन्हें इस बात का भय हो गया था कि कहीं कुछ ‘गड़बड़’ न हो जाय। 

ये भी पढ़े   दरभंगा के महाराजा अपनी बहन से कहते थे: "अगर तुम बेटा होती तो दरभंगा की राजा (रानी) तुम्हीं होती" (भाग - 44)

दोनों गाड़ियों से कोई पांच महाशय नीचे उतड़े। सभी सम्मानित मिश्रा जी को ह्रदय से पहचानते थे, सम्मान करते थे। कई मर्तबा उनके हस्ताक्षर से ही उन लोगों के विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई हुई थी। सभी मिश्रा जी को बहुत श्रद्धा से प्रणाम कर मेरे बारे में पूछे। मिश्रा जी मेरे कमरे को ओर इशारा करते अंदर चले गए। 

उन महाशयों में चार अंगरक्षक थे और पांचवें बाबू सूर्यदेव सिंह के सबसे प्रिय और आज्ञाकारी भाई बच्चा बाबू (बच्चा सिंह) थे। मुझे देखकर वे मुस्कुराये और कहे कि “झाजी…. भैय्या तुरंत बुलाये हैं।” मैं भी उनकी बातों का सम्मान करते मुस्कुराया। टेबुल पर रखे पानी वाले जग से बच्चा बाबू पानी पिए। फिर एक छोटका ताला सिकड़ी में लटका कर मैं भी गाड़ी में सवार हो गया। बॉबी दादा का कागज अपने बुशर्ट के ऊपरी जेब में रख लिया था। मैं जानता था बाबू सूर्यदेव सिंह इन्हीं बातों पर चर्चा करेंगे। मिश्रा जी अपने समस्त परिवार के साथ मुझे देख रहे थे जैसी मेरी अंतिम विदाई हो रही हो। 

सिंह मैंशन में प्रवेश के साथ बाएं हाथ पोर्टिको के ठीक सामने वाले कक्ष में अपनी कुर्सी पर धोती-कुर्ता-बंडी (आजकल पढ़े-लिखे लोग जैकेट कहते हैं) पहने, बाएं पैर को दाहिने पैर पर रखे प्रसन्न मुद्रा में बाबू सूर्यदेव सिंह बैठे थे। उन दिनों सिंह मैंशन में प्रवेश का अर्थ होता था आप जिला का सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं और आपकी पहुँच कोयला क्षेत्र के सर्वशक्तिमान मानव तक है – जो आपके दुःख में, सुख में आपके साथ है। बसर्ते आप उसे ‘चुटी’ नहीं काटें। चाहे आप मजदुर हों या कोयला क्षेत्र में कार्य करने वाले सबसे नीचले कर्मी, चाहे पत्रकार हों या नेता। एक तरह से सिंह मैंशन उन दिनों कोयला क्षेत्र का सीसीटीवी था। कोई 45-किलो वजन वाले शरीर पर हीरापुर बाजार से पांच रुपये मीटर वाले कपड़े का बुशर्ट और स्टेचलोन पैंट और हवाई चप्पल पहने मनुष्य को देखते ही सूर्यदेव बाबू सम्मान में खड़े हो गए। मुझ जैसे व्यक्ति को इतना सम्मान सूर्यदेव बाबू देंगे, मैं जीवन में कभी सोचा नहीं था। 

सूर्यदेव बाबू कहते थे: “झाजी, आप ब्राह्मण हैं और मैं राजपूत। मुझ जैसा राजपूत आप जैसे ब्राह्मणों का हमेशा से सम्मान करता आया है। धनबाद में आप हमारे सबसे प्रिय पत्रकार हैं। सच लिखने में तनिक भी कोताही नहीं करते। कुछ साल पहले आपको याद होगा जब आप अपने अखबार में मेरी बेटी किरण के बारे में लिखे थे। वह मेरे-उसके जीवन में पहली घटना थी। पहली बार उसका नाम अखबार में छपा था। आप यह भी लिखे थे कि मैं पत्रकारों से जब भी बात करता हूँ, किरण, हमारी प्यारी बेटी, हमेशा मेरे सामने के दरवाजे के पास खड़ी रहती है। सामने खड़े बच्चा बाबू मुझे और अपने बड़े भाई को देखकर कभी मुस्कुरा रहे थे, तो कभी गर्दन हिला कर उनके शब्दों का सम्मान कर रहे थे।” 

ये भी पढ़े   स्वाभिमान का श्रृंगार' : जो 'स्वाभिमान' महारानी कामेश्वरी प्रिया में था, दरभंगा राज उस स्वाभिमान को फिर नहीं देख पाया (भाग - 50)

तभी वे कहते हैं : “कलकत्ता से कोई बंगाली बाबू आये हैं। उनका फोन आया था। होटल स्काई लार्क में रुके हैं। वे कह रहे थे कि वे मेरे साथ चुनाब प्रचार में रहना चाहते हैं। परन्तु मैं उनसे कह दिया कि आप जो भी हों, मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ, लेकिन जब तक झाजी ‘हाँ’ नहीं कर देंगे, मेरे तरफ से ‘ना’ ही समझें और आप अन्य पत्रकारों की तरह कहानियां गढ़ें, लिखें, छापें।” मैं बाबू सूर्यदेव सिंह का अपने प्रति इतना विस्वास देखकर, सुनकर बहुत प्रसन्न था । यह विस्वास सिर्फ मेरी खड़ी बोली और सत्य शब्दों का चयन था, जो कलकत्ता के दी टेलीग्राफ अख़बार में, सन्डे पत्रिका में प्रकाशित होता था। 

बाबू सूर्यदेव सिंह के आगे ‘कोल माफिया’ शब्द का उपसर्ग आखिर भारत के बड़े-बड़े पत्रकारों ने, सम्पादकों ने, जो व्यवसायी घरानों से जुड़े थे, लगाए थे। अनेक दृष्टान्त हैं जब भारत में सबसे अधिक बिकने वाला अंग्रेजी अखबार का मालिक भी धनबाद के कोयला भवन और कलकत्ता के कोल इण्डिया भवन में कुर्सियों पर बैठे अधिकारीयों को भेजा करते थे एक ‘पुर्जी’ जिसमें कभी प्राईम कोल के हज़ारो हज़ार टन निर्गत के लिए, तो कभी गरीबों के घरों में कोयलों की बुकनी के लिए, जिसे मिटटी के साथ ‘गुलों’ का निर्माण किया जाता था, के आवंटन के बारे में लिखा होता था । यानी स्टील जगत में इस्तेमाल होने वाले कोयलों से लेकर गरीबों के घरों में इस्तेमाल होने वाले गुलों तक के नाम पर बिना किसी प्रशासनिक पहरे से ‘व्यापार होता था। वैसे कोल इण्डिया या बीसीसीएल को क्या करना था ? अधिकारियों को डर होता था, कहीं ‘अखबार वाले कुछ लिख न दें। कोई अपने घर से दे रहे हैं वे। वे सभी समाज के संभ्रांत थे। अखबारों के मालिक थे, खुद का पत्रकारिता से मीलों दूर का कोई वास्ता नहीं था, अलबत्ता दर्जनों पत्रकारों को नौकरी पर अवश्य रखते थे। आखिर अखबार के मालिक थे। बहुत बड़ा ‘नेक्सस’ था उन दिनों। उम्मीद है आज भी कमोबेश यही नेक्सस होगा – लेकिन वे कभी ‘माफिया, ‘माफियोसो’, ‘सरगना’ ‘दबंग’ शब्दों से अलंकृत नहीं हुए। खैर। समय किसे छोड़ा है। 

बाबू सूर्यदेव सिंह चुनाव से सम्बंधित कुछ और बातें करते हुए मुझे कहे कि ‘बंगाली बाबू को कह दें कल आठ बजे सुबह झरिया कार्यालय में पहुँच जायेंगे। अभी चुनाव से संबंधित जो बातें हुई हैं उसे आप बंगाली बाबू को लिखकर दे देंगे, क्योंकि बहुत बातें चुनाव प्रचार-प्रसार के दौरान नहीं हो पाएगी। फिर एक क्षण रुके और कहते हैं: ‘बंगाली बाबू तो कंपनी के खर्च पर आये हैं, आप हीरापुर से झरिया कैसे आएंगे? और जोर से हंस दिए ………क्रमशः 

बाबू सूर्यदेव सिंह की तस्वीर धनबाद के पुराने फोटोग्राफर जयदेव गुप्ता की है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here