#विशेषरिपोर्ट: आरटीआई-2005 ‘केंद्र’ का है, ‘पुलिस’,’पब्लिक ऑर्डर’ ‘राज्य का विषय’ है; और ‘आरटीआई कार्यकर्ताओं’ की ‘रक्षा/सुरक्षा’ किसकी जिम्मेदारी ?

एसपी नवीन चन्द्र झा मोतिहारी आरटीआई कार्यकर्ता बिपिन अग्रवाल की हत्या, गिरफ्तारी के बारे में बताते हुए। फोटो दैनिक भास्कर के सौजन्य से

दिल्ली / पटना : कोई आठ साल पहले भारत सरकार के गृह मंत्रालय देश के सभी मुख्य सचिवों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को एक चिठ्ठी निर्गत करती है। चिठ्ठी में इस बात को स्वीकारा जाता है कि सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के लागू होने के बाद देश में आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमला सम्बन्धी घटना बढ़ गई है। इस घटनाओं की रोक-थाम के लिए मई 2011 में एक टास्क-फ़ोर्स का भी गठन होता है। यह टास्क फ़ोर्स केंद्र का था । केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय अपने पल्लू को इस बात को लेकर झाड़ ली कि ‘चुंकि ‘पुलिस’ और ‘पब्लिक ऑर्डर’ भारतीय संविधान के सातवें अनुसूची के अनुसार ‘राज्य का विषय’ है, अतः राज्य सरकारों से अनुरोध है कि वे केंद्रीय टास्क फ़ोर्स द्वारा अनुशंसित और सुझावों को तत्काल प्रभाव से लागु करें। सन 2005 में सूचना  नियम लागू होने के बाद अब तक पूरे देश में सैकड़ों कार्यकर्त्ता मृत्यु को प्राप्त किये। बिहार भी अछूता नहीं रहा।

आंकड़ों के अनुसार अब तक 17 आरटीआई कार्यकर्त्ता मृत्यु को प्राप्त किये हैं। शशिधर मिश्रा (बेगूसराय), राम विलास सिंह (लखीसराय), डॉ मुरलीधर जायसवाल (मुंगेर), राहुल कुमार (मुजफ्फरपुर), राजेश यादव (भागलपुर), रामकुमार ठाकुर (मुजफ्फरपुर), सुरेंद्र शर्मा (पटना), गोपाल प्रसाद (बक्सर), जवाहर तिवारी (मुजफ्फरपुर), मृत्युंजय सिंह (भोजपुर), राहुल झा (सहरसा), जयंत कुमार (वैशाली), राजेंद्र प्रसाद सिंह (मोतिहारी), बाल्मीकि यादव और धर्मेंद्र यादव (जमुई), भोला शाह (बांका), पंकज कुयमर सिंह (विक्रम), श्याम सुन्दर कुमार सिन्हा (बेगूसराय), प्रवीण झा (बांका) और बिपिन अग्रवाल (मोतिहारी) – सबों की हत्या हुई। 

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा निर्गत पत्र के तर्ज पर विगत वर्ष बिहार सरकार के सचिव हिमांशु कुमार राय ने अपर मुख्य सचिव, गृह विभाग, सरकार के सभी प्रधान सचिव, सचिव, विभागाध्यक्ष, आरक्षी महानिदेशक, प्रमंडलीय आयुक्त, जिला पदाधिकारी, आरक्षी अधीक्षक और सचिव, बिहार सूचना आयोग को 7 दिसंबर, 2020 को एक पत्र प्रेषित किया। बिहार सरकार का भी वही विषय था – सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आवेदन करने वाले आवेदकों / सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने, उन पर हमला करने के सदबंध में। पत्र में कहा गया कि उपर्युक्त विषय पर पूर्व के पत्रांक 12433 दिनांक 19-12-2007 द्वारा यह निदेश दिया गया है कि सूचना का अधिकार के अंतर्गत सूचना मांगने वाले आवेदकों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा – 107 के अंतर्गत फंसाने अथवा अन्य प्रकार से प्रताड़ित करने से सम्बंधित मामलों की जांच कराई जाएगी तथा दोषी पाए जाने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों को कठोर सजा दी जाएगी।
 
तदुपरांत विभागीय पत्रांक 9420 दिनांक 18-09-2009 द्वारा सरकारी पदाधिकारियों से यह उपेक्षा की गयी है की वे सूचना मांगने वाले व्यक्तियों का सम्मान करते हुए सूचना उपलब्ध कराने में सकारात्मक भूमिका निभायें। इसके विपरीत आचरण करने वालों को कर्तब्य की उपेक्षा करने तथा कदाचार में लिप्त होने का दोषी माना जायेगा, जिसके लिए उनके विरुद्ध विभागीय कार्रवाई संचालित कर वृहत दंड भी दिया जा सकेगा। सूचना मांगने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध झूठे आपराधिक मुक़दमे दायर करने सम्बन्धी प्राप्त शिकायत की वरीय अधिकारियों से जांच करायी जाएगी तथा दोषी पाए गए अपराधियों के विरुद्ध गंभीरतम अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी। उक्त परिपत्र में यह निर्णय भी संसूचित किया गया है की गृह विभाग द्वारा एक हेल्प लाइन स्थापित की जाएगी जिसका टेलीफोन नंबर प्रेस तथा अन्य माध्यम से व्यापक रूप से प्रचारित करते हुए इस प्रकार के झूठे मुकदमों से पीड़ित व्यक्तियों को शिकायत दर्ज करने का अवसर दिया जायेगा तथा उस पर त्वरित कार्रवाई की जाएगी। 

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सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं / आवेदकों को प्रताड़ित किये जाने तथा उन पर हमला किये जाने के मामले अभी भी प्रकाश में आ रहे हैं। इस सम्बन्ध में भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा गठित टास्क फ़ोर्स द्वारा की गयी अनुसंशाओं / सुझाव पर विचारोपरांत उन्हें राज्य में लागू करने का निर्णय लिया गया है। जहाँ सूचना का अधिकार कार्यकर्त्ता अथवा आवेदक को धमकाया जाता है अथवा उस पर हमला होता है तो सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा -18 के तहत राज्य सूचना आयोग में एक शिकायत वाद दायर किया जाय। राज्य सूचना आयोग इस शिकायत वाद का संज्ञान ले सकता है और इसके सम्बन्ध में आवश्यक जांच आदि संघारित कर सकता है। अधिनियम में निहित प्रावधानों के तहत आयोग को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि सूचना मांगने के कारण दी गयी धमकी अथवा किये गए हमले को शीघ्र विज्ञापित किया जा। 

धमकी पाने वाले अथवा हमले के शिकार सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं / आवेदकों की सुरक्षा एवं इसके लिए जांच संधारित करने के सम्बन्ध में सम्बंधित जिला के जिला पदाधिकारी तथा आरक्षी अधीक्षक अविलम्ब आवश्यक कार्रवाई करें। सूचना का अधिकार आवेदक पर हमले की स्थिति में निकट सम्बन्धी, सिविट सोसाइटी द्वारा दायर की गई शिकायतों पर भी विचार करते हुए तत्काल कार्रवाई की जाए। राज्य में सूचना का अधिकार के क्षेत्र में सक्रीय सिविल सोसाइटी भी सूचना का अधिकार कार्यकर्ताओं को मिलने वाली धमकी और हमले से सम्बंधित गंभीर मामलों को संज्ञान में लेते हुए इसे राज्य प्राधिकारियों एवं राज्य सूचना आयोग के समक्ष रखें, ताकि राज्य सरकार की सम्बंधित संस्थाओं द्वारा ऐसे मामलों में आवश्यक कार्रवाई की जा सके। अनुरोध है कि इस सम्बन्ध में निर्गत दिशा निर्देशों का अनुपालन किया जाए तथा अधीनस्थ पदाधिकारियों को इससे अवगत करते हुए सभी स्तरों पर अनुपालन सुनिश्चित कराया जाय। 

नागरिक अधिकार मंच, बिहार के अध्यक्ष शिव प्रकाश राय का कहना है कि “सूचना के अधिकार अधिनियम द्वारा सूचना प्राप्त कर अनियमितताओं का पर्दाफास करने वाले एक्टिविस्टों की हत्या का दौर जारी है। विगत वर्षों में 15 या उससे अधिक सूचना आवेदकों और कार्य कर्ताओं की जघन्य हत्या की जा चुकी है। निराशाजनक बात यह है की इन सभी मामलों में बार-बार पुलिस का ध्यान आकृष्ट करने के वावजूद ससमय सही अनुसन्धान, अभियुक्तों की गिरफ़्तारी और त्वरित न्याय विचरण का प्रबंध नहीं किया जा सक है।” 

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एक रिपोर्ट मोतिहारी के आरटीआई  कार्यकर्ता विपिन अग्रवाल की हत्या का कई गुनाहगार पुलिस की पकड़ से दूर हैं। वैसे मोतिहारी पुलिस ने हत्या में शामिल 2 शूटरों को गिरफ्तार किया है, लेकिन इस जघन्य अपराध में शामिल अन्य लोग पुलिस के गिरफ्त से बाहर हैं । रिपोर्ट के अनुसार, हत्या के लिए 20 लाख की सुपारी देने वाले असली गुनाहगारों को पुलिस अब तक नहीं पकड़ सकी है। जांच में यह बात साफ हो गई है कि जमीन अतिक्रमण हटाने को लेकर 8 लोगों ने साजिश रची और 20 लाख रू जमा कर आरटीआई कार्यकर्ता बिपीन अग्रवाल को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया। पुलिस सूत्रों के अनुसार, अब तक के अन्वेषण से यह स्पष्ट होता है कि गिरफ्तार अपराधी मनीष पटेल ने कबूल किया है कि 20 लाख रू में सौदा हुआ था। घटना से कुछ दिन पहले एक अपराधी जो अब तक पुलिस पकड़ में नहीं आया है उसके घर पर मीटिंग हुई थी। मीटिंग में 8 लोग शामिल हुए थे। इस मीटिंग में वो लोग भी शामिल थे जिनकी अवैध जमीन का खुलासा आरटीआई एक्टिविस्ट ने किया था। हरसिद्धि के एक अग्रवाल परिवार जिसका खेसरा संख्या 246 है, खंडेलवाल परिवार जिसका खेसरा संख्या 244 है, भटहा का एक शख्स जिसका खसरा संख्या 468 है। 

रिपोर्ट के अनुसार “हरसिद्धि के एक पेट्रोल पंप संचालक, एक शराब कारोबारी, एक पूर्व प्रमुख व एक पत्रकार के साथ योजना बनाई गई। आरटीआई के तहत सूचना मांग कर अतिक्रमण बाद चलाया जा रहा है, जिससे काफी नुकसान हुआ। इसलिए विपिन अग्रवाल की हत्या करना बहुत ही जरूरी हो गया। पुलिस के समक्ष दिये बयान में गिरफ्तार अपराधी ने बताया था कि आरटीआई कार्यकर्ता को ठिकाना लगाने का जिम्मा एक पत्रकार, एक पूर्व प्रमुख व एक शराब कार्यकर्ता को दिया गया। घटना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए 5 लोगों में तय हुआ और ₹20 लाख की व्यवस्था की बात कही गई। पैसा सुगौली के दो अपराधी के यहां जमा हुआ। इसके बाद घटना की तारीख 24 सितंबर तय की गई। लाल रंग की अपाचे से मनीष कुमार और एक अन्य अपराधी था। दूसरे मोटरसाइकिल पर तीन अपराधी थे। वहीं दो लोग लाइनर का काम कर रहे थे। जैसे ही पता चला कि विपिन अग्रवाल मवेशी हॉस्पिटल हरसिद्धि की ओर गया है तो हम लोग भी उसके पीछे लग गए। वह मवेशी हॉस्पिटल से दवा लेकर घर की ओर वापस आ रहा था। वह हरसिद्धि- छपवा रोड पर चढ़ने वाला था कि हमारे साथ वाला एक अपराधी अपने कमर से पिस्टल निकाला और उस पर गोली चला दी। गोली लगते ही वह वहीं गिर गया। हम लोग वहां से भागते हुए सुगौली के साथी अपराधी जिसने गोली चलाई थी उसका घर रुका। फिर पता चला कि विपिन अग्रवाल मर चुका है। इसके बाद वहां से निकले।” 

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हरसिद्धी प्रखंड कार्यालय के समीप स्थित पेट्रॉल पंप को सील हुए 15 महीने बीतने को है। लेकिन आज तक इस भूमि को अतिक्रमणमुक्त नहीं किया गया। आरटीआई कार्यकर्ता विपिन अग्रवाल की हत्या के बाद ग्रामीणों में इस बात की चर्चा तेज है। अग्रवाल ने ही लोकायुक्त, पटना के पास याचिका दायर की था। जिसके फैसले आधार पर पेट्रोल पंप को 29 जून, वर्ष 20 में सील कर दिया गया था। तब अरेराज के तत्कालीन एसडीओ धीरेन्द्र कुमार मिश्रा, डीएसपी ज्योति प्रकाश, सीओ सतीश कुमार, थानाध्यक्ष शैलेन्द्र कुमार सिंह व पुलिस टीम की मौजूदगी में पेट्रोल पंप सील करने की कार्रवाई की गई थी। लोकायुक्त, पटना का निर्णय आने से पूर्व में भी पेट्रॉल पंप की 10 कट्ठा 18 धुर गैरमजरूआ भूमि की जमाबंदी उप समाहर्ता, पूर्वी चंपारण ने रद्द कर दी थी। साथ ही 11 फरवरी, वर्ष 20 को अंचलाधिकारी के पास पत्र भेजकर कार्रवाई का आदेश भी दिया था। उक्त भूमि गैर मजरुआ मालिक की जमाबंदी तीन लोगों के नाम से थी। उक्त पेट्रोल पंप बीजेपी नेता का है। जिसे लीज पर लेकर चलाया जा रहा था।

बिहार में अब तक मारे गए आरटीआई कार्यकर्ता 

* शशिधर मिश्रा – जिला बेगूसराय – 2010 
* राम विलास सिंह – लखीसराय – 2011 
* डॉ मुरलीधर जायसवाल – मुंगेर – 2012 
* राहुल कुमार – मुजफ्फरपुर – 2012 
* राजेश यादव – पीरपैंती, भागलपुर – 2012 
* रामकुमार ठाकुर, अधिवक्ता – मुजफ्फरपुर – 2013 
* सुरेंद्र शर्मा – पटना – 2015 
* गोपाल प्रसाद -(पूर्व सैनिक) बक्सर, 2015 
* जवाहर तिवारी – मुजफ्फरपुर – 2015
* मृत्युंजय सिंह – जगदीशपुर, भोजपुर – 2017 
* राहुल झा – सहरसा – 2018 
* जयंत कुमार – गोरौल वैशाली – 2018 
* राजेंद्र प्रसाद सिंह – संग्रामपुर, मोतिहारी – 2018 
* बाल्मीकि यादव और धर्मेंद्र यादव – जमुई  – 2018 
* भोला शाह – बांका – 2018 
* पंकज कुमर सिंह – विक्रम – 2020
* श्याम सुन्दर कुमार सिन्हा – बेगूसराय – 2020 
* प्रवीण झा – बांका – 2021 
* बिपिन अग्रवाल – मोतिहारी – 2021 

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