मेडिकल नहीं तो पैरामेडिकल क्षेत्र में आजमायें हाथ

पैरामेडिकल
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डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल कोर्स में दाखिला अगर किसी कारण से नहीं मिलता है तो निराश होने की जरूरत नहीं है। जीवविज्ञान विषय पर आधारित करिअर विकल्पों के बारे में भी विचार किया जा सकता है और पैरामेडिकल क्षेत्र भविष्य संवारने का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

मेडिकल कोर्स में दाखिला नहीं मिलने का यह मतलब निकालना बिलकुल गलत है कि इसके बाद भविष्य अन्धकारमय हो जाएगा। पैरामेडिकल क्षेत्र ऐसे ही युवाओं के लिए भविष्य संवारने का बेहतरीन विकल्प हो सकता है।

इस तरह के कोर्सेस में बी एस सी (नर्सिंग), बैचलर ऑफ़ फिजियोथिरेपिस्ट, बैचलर ऑफ़ ओक्युपेशनल थेरेपिस्ट, बैचलर ऑफ़ फार्मेसी फार्मेसी बी एस सी (रेडियोलोजी) एंड एक्स-रे टेक्नीशियन, अाॅपरेशन थियेटर असिस्टेंट्स,मेडिकल लैब टेक्नोलोजिस्ट,डेंटल हाइजीनिस्ट/मेकेनिक आदि का उल्लेख किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त होम्योपैथी पर आधारित बी एच एम एस, आयुर्वेद पर आधारित बी ए एम एस,यूनानी चिकित्सा पर आधारित बी यू एम एस आदि कोर्सेस का भी इस क्रम में महत्वपूर्ण विकल्प है।

बुनियादी तौर पर पैरामेडिकल से अभिप्राय ऐसे सहायक चिकित्सीय पेशों से है जिनकी भूमिका डॉक्टर या सर्जन को मरीज़ का इलाज़ करने के दौरान सहायता प्रदान करना है। पैरामेडिकल पेशे में भविष्य बनाने के लिए यह ज़रूरी है किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से सम्बंधित ट्रेड में उपयुक्त कोर्स और ट्रेनिंग हासिल की जाए। बारहवीं के बाद अमूमन उपलब्ध ऐसे कोर्स डिप्लोमा या ग्रेजुएशन स्तर के होते हैं। इनकी अवधि दो से चार वर्ष तक की होती है।

इस समय देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर केंद्र और राज्य सरकारें ध्यान केंद्रित कर रही हैं और उम्मीद है कि आने वाले समय में इस क्षेत्र के लिए अधिक राशि का प्रावधान बजट में किया जाये। यही नहीं निजी क्षेत्र के बड़े हॉस्पिटल समूह भी मोटे मुनाफे की आस में बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए आगे आ रहे हैं। ऐसे में नए हॉस्पिटल, क्लिनिक, मेडिकल लैब आदि के लिए ट्रेंड और अनुभवी लोगों की मांग में बढ़ोतरी आना स्वाभाविक है। खाड़ी के देशों और अन्य देशों में भी इस तरह के अनुभवी लोगों के लिए रोजगार के अवसर कुछ कम नहीं है।

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यह बताना ज़रूरी है कि अन्य प्रोफेशनल कोर्सेस की तुलना में इस तरह के कोर्सेस में दाखिला पाना अपेक्षाकृत ज्यादा आसान है। उदाहरण के लिए मेडिकल कोर्स की बात करें तो देश के मेडिकल कॉलेजों में एम बी बी एस कोर्स की लगभग 63 हजार सीटें उपलब्ध हैं जबकि हर साल करीब 10 लाख से अधिक प्रत्याशी इसकी प्रवेश परीक्षा में शामिल होते है। इससे प्रोफेशनल कोर्सेस में दाखिला पाने के इच्छुक युवाओं की आपसी गहन प्रतिस्पर्धा का अंदाजा लगाया जा सकता है।

दूसरी ओर विभिन्न प्रकार के पैरामेडिकल कोर्सेस को संचालित करने वाले संस्थानों की देश में न सिर्फ संख्या कहीं अधिक है बल्कि इनमें दाखिला पाने के इच्छुक प्रत्याशियों की संख्या भी बहुत ज्यादा नहीं है।

ऐसा इसलिए है कि प्रायः युवाओं की करिअर प्राथमिकता सूची में पैरामेडिकल क्षेत्र के कोर्सेस का नाम अत्यंत निचले पायदान पर होता है। इन कोर्सेस में दाखिला पाने के लिए अधिकाँश संस्थानों में प्रवेश परीक्षा की बजाय बारहवीं के प्राप्तांकों को ही आधार बनाया जाता है।

इनमें से ज़्यादातर कोर्सेस सरकारी संस्थानों में ही चलाये जाते हैं,इस कारण फीस का बहुत ज्यादा बोझ भी युवाओं और अभिभावकों को वहन नहीं करना पड़ता है। दो से चार वर्षों की अवधि के इन कोर्सेस में सैद्धांतिक ज्ञान से ज़्यादा व्यवहारिक पहलुओं पर फोकस रखा जाता है।

पैरामेडिकल ट्रेनिंग के बाद सरकारी और निजी क्षेत्र के चिकित्सा संस्थानों/अस्पतालों अथवा प्राइवेट नर्सिंग होम में रोज़गार के अवसर मिल सकते हैं। सरकारी अस्पतालों में तो निर्धारित वेतनमानों के अनुसार आकर्षक वेतन मिलता है पर निजी क्षेत्र के अस्पतालों में शुरूआती दौर में वेतन कम मिलता है। अनुभव और कार्यकुशलता के आधार पर तनख्वाह में समय-समय पर बढ़ोतरी होती रहती है। फार्मेसी का कोर्स करने वालों को कैमिस्ट की दुकान खोलने सम्बंधित लाइसेंस मिल जाता है। इस प्रकार से स्वरोजगार का लक्ष्य भी इस तरह के कोर्स को पूरा करने के बाद तलाश किया जा सकता हैं। (वार्ता के सौजन्य से)

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