बद्री प्रसाद यादव कहते हैं: “रेडियो में चेहरे का कोई महत्व नहीं, रेडियो आवाज की दुनिया है”, क्योंकि ये आकाशवाणी है

बद्री प्रसाद यादव - ये आकाशवाणी है

पटना / नई दिल्ली : आप विश्वास भले नहीं करें। आप भले टीवी के स्क्रीन पर रंग-बिरंगे परिधानों में, चिल्लाते-चीखते एंकरों का भक्त हों । आप भले उनके साथ अपने मुख-मंडलों को जोड़कर आधुनिक भारत में सेल्फी लेकर स्वयं को भारत का सर्वश्रेस्ठ नागरिक सम्मान से अलंकृत महसूस करते हों। लेकिन इस बात को भी जान लीजिये, मान लीजिये की भारत के मीडिया में, चाहे रेडियो हो या अखबार या फिर टीवी, “सुन्दर चेहरा का होना” आज जो “बाध्यकारी” हो गया है; कल चेहरे पर चेचक का दाग, चमड़े का रंग कोयला जैसा काला होना कोई “मायने” नहीं रखता था। अगर मायने रखता तो शायद ओमपुरी फिल्मजगत का हस्ताक्षर नहीं होते और अमीन सायानी को भारत ही नहीं, विश्व के लोग सर्वश्रेष्ठ उद्घोषकों के कतार में पंक्तिवद्ध नहीं करते।

ये आकाशवाणी पटना है। 

आपको बता दूँ की आज भारत में कोई 51 मिलियन लोग रेडियो सुनते हैं, जबकि 56 मिलियन लोग टीवी देखते हैं और 57 मिलियन लोग सोसल मिडिया पर नित्य कसरत करते हैं। विज्ञापन के लिए टीवी वाले, अखबार वाले चाहे जिनते कबड्डी खेलते हों, आकंड़ों के अनुसार भारत में औसतन लोग 2 घंटा और 36 मिनट नित्य रेडियो सुनते हैं और अपने-अपने पसंदीदा उद्घोषकों को उनके “चेहरे” के लिए नहीं, बल्कि “उनकी आवाज” के लिए अपने-अपने समय का उत्सर्ग करते हैं। चिठ्ठी ना सही, ईमेल से ही, मेसेज से ही, व्हाट्सअप से ही सही, उनसे बातचीत करते हैं। जब उद्घोषक उनके नामों को रेडियो के माध्यम से बोलते हैं तो गाँव में, गली-गली, दालानों पर, खेत-खलिहानों में लोग बाग उसके बारे में चर्चा भी करते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो सन 1957 से आज तक आकाशवाणी और बिनाका गीतमाला के माध्यम से झुमरी तिलैया का नाम विश्व के लोग नहीं जानते। 

कहते हैं वैसे तो रेडियो के असंख्य श्रोता हैं, परन्तु उनमें से अनेक श्रोता ऐसे भी है जो न केवल रेडियो का कार्यक्रम नियमित रूप से सुनते हैं, बल्कि सुन कर अपनी प्रतिक्रिया एवं फरमाईस भेजना अपना दिनचर्या समझते हैं। श्रोता और उद्घोषक भले ही एक दूसरे की शक्ल से परिचित ना हों लेकिन दोनों में बड़ा आत्मीय संबंध होता है। आज शायद लोग नहीं जानते होंगे कि आज कोई 369 निजी रेडियो स्टेशन है जो सम्पूर्ण देश के 101 शहरों में हवा में बात करती हैं। आकाशवाणी में एफएम रेडियो की संख्या अनंत है, और ऐसा माना जाता है कि भारत के सम्पूर्ण क्षेत्रफल का कोई 40 फीसदी एरिया और कुल आबादी का कोई 52 फीसदी लोगों को अपनी ध्वनि सुनाता है। 

बद्री प्रसाद यादव – एक इंटरव्यू लेते (फ़ाइल फोटो)

वैसे यह सत्य है रेडियो शब्दों के उच्चारण और आवाज की गुणवत्ता के बारे में टीवी से ज्यादा सजग होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो रेडियो में भी चिचियाते, चीत्कार मारते उद्घोषक होते। रेडियो के लिए आवाज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह केवल आवाज है जो श्रोताओं को रेडियो से जोड़ता है। आज भी घर-घर में रेडियो बजा करती है । सड़क पर चलते समय अगर हम अपने उद्घोषक की आवाज सुनते हैं, चंद समय के लिए वहीं रुक जाते हैं। संचार के माध्यमों में रेडियो अति प्राचीन माध्यम है, रेडियो और उसके श्रोताओं का जो आपसी सम्बन्ध है, वह संचार के अन्य माध्यमों में देखने को नहीं मिलता। श्रोता और उद्घोषक भले ही एक दूसरे की शक्ल से परिचित ना हों लेकिन दोनों में बड़ा आत्मीय संबंध होता है। 

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बहरहाल, मेरा मानना है कि आपको संचार के माध्यम के जिस क्षेत्र में जाना हो, चाहे प्रिंट मिडिया हो, रेडियो हो या फिर टेलीविजन हो; उस क्षेत्र की भाषा पर आपकी पकड़ शेर के पंजे जैसा हो। कौए जैसा आपकी चेष्टा हो। बगुले जैसा एकाग्रचित रखते हों। शब्दों के साथ कबड्डी खेलने की क्षमता रखते हों। खाली पेट में भी चेहरे पर मुस्कान बनाए रखने की काबिलियत रखते हों। ‘ईगो’ को बंगाल के खाड़ी में फेंक आये हों,  मीडिया का धौंस दिखाकर समाज को डराने – धमकाने, भयादोहन करने की बात जेहन के अंदर नहीं रखते हो। मीडिया को राजनीति में प्रवेश करने के लिए शोषण करने का ख्याल मन में नहीं रखते हो। और सबसे बड़ी बात कुछ कर गुजरने का जूनून हो। अगर इन गुणों से सज्ज हैं तो समझ लें आप भारत का सर्वश्रेष्ठ पत्रकार हैं। इन गुणों से सज्ज है हमारे “बद्री भैय्या” यानि बद्री प्रसाद यादव – ये आकाशवाणी पटना है। 

कई वर्ष पहले भारत के मशहूर कमेंटेटर जसदेव सिंह जिनकी आवाज को सुनकर आज़ाद भारत का न्यूनतम सौ करोड़ लोग बचपन से जवान और वृद्ध हुए, जिनकी आवाज के पीछे पीछे भारत के लोग दिल्ली के विजय चौक से इण्डिया गेट तक राजपथ पर चहलकदमी किये, जिनकी आवाज के साथ क्रिकेट मैदान में खिलाडी के बॉल के पीछे-पीछे दौड़े, स्टम्प किये, बॉल को लपके, स्टाम्प को उखाड़ फेंके, जिनकी आवाज के साथ अश्रुपूरित आखों से अनेकानेक राज नेताओं के पार्थिव शरीर को उनकी जीवन यात्रा की अंतिम पड़ाव तक पहुंचाए – पटना आये थे। बद्री प्रसाद यादव आकाशवाणी पटना में थे। उनकी इक्षा हुई की पटना आकाशवाणी से एक इंटरव्यू श्रोताओं तक पहुंचे। अपनी बात वे जसदेव सिंह तक पहुंचाए। सिंह साहब तक्षण हामी भर दिए। लेकिन उसके बाद क्या हुआ, शायद आज के पत्रकार सोच भी नहीं सकते !!

बद्री प्रसाद यादव और अन्य कर्मी, एक कार्यक्रम में (फ़ाइल फोटो)

बद्री प्रसाद यादव आर्यावर्त – इण्डियन नेशन अखबार पढ़कर बचपन से बड़े हुए। उन अख़बारों के दफ्तर के सामने मुद्दत तक खड़े होकर पटना के तत्कालीन पत्रकारों से गप-शप किया करते थे। फ़्रेज़र रोड स्थित पिंटू होटल के बाहर चाय की चुस्की लेकर अपनी कहानी का प्रारूप तैयार किये थे। मुद्दत तक फ़्रेज़र रोड स्थित तत्कालीन प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के दफ्तर के सामने विशालकाय पलास-बृक्ष के नीचे लिट्टी-चोखा खाकर, निम्बू वाली चाय पीकर भारत के मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी सब्बा करीम के बारे में कहानी लिखे – आज आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम उनसे बात किया। कुछ पुरानी बातों पर चर्चाएं हुई तो कुछ तत्कालीन लोगों के प्रति सम्मान अर्पित किये। कभी ‘भावुक’ हुए, तो कभी ‘ठहाका’ लगाए। आवाज में वही बुलंदी, वही आकर्षण, श्रोताओं के प्रति वही सम्मान, वही स्नेह, वही अपनापन जैसे हाथ में रेडियो का माइक हो और भारत के दूर गाँव के किसी खेत की आड़ पर बैठा एक श्रोता उन्हें अपने सामने देख रहा हो उनकी आवाज के माध्यम से । 

बद्री प्रसाद यादव कहते हैं: “आप तो दिल्ली में रहते हैं। जसदेव सिंह साहेब को देखे भी होंगे। लेकिन मैं कई वर्ष पहले की बात कह रहा हूँ। वे पटना आये थे।  आकाशवाणी पटना के लिए मैं एक इंटरव्यू लेना चाहा उनका। पटना रेडियो से उनका इंटरव्यू का ब्रॉडकास्ट होना, हमारे श्रोताओं के लिए बहुत मायने रखता था। एक निवेदन में ही स्वीकृति मिल गयी। मैं उनके पास पहुंचा। वे सामने बैठे थे और मैं हाथ में माइक लिए उनसे बात करने जा रहा था। वे मेरी आखों में आँख डालकर एक बार देखे। ऐसा लगा वे हमारी मनःस्थिति को पढ़ लिए हों। वे हमसे उम्र में तो बड़े थे ही, तजुर्बा में तो उत्कर्ष पर थे। वे उठे और मेरे पास आकर बैठ गए। अपना दाहिना हाथ हमारे पीठ पर रखे और कहते हैं: बद्रीजी, आप भूल जाएँ की आप जसदेव सिंह का इंटरव्यू ले रहे हैं। मैं बहुत ही आम आदमी हूँ। मुझे खास नहीं बनायें। मैं चाहता हूँ कि आज हम दोनों खुलकर बात करें। हमारी बातें जब हमारे श्रोता सुनेंगे तो उन्हें किसी बात का अफ़सोस नहीं होगा कि बद्री प्रसाद यादव जसदेव सिंह से यह सवाल क्यों नहीं पूछे? 

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बद्री जी आगे कहते हैं: “मैं अपने जीवन काल में सैकड़ों, हज़ारों लोगों से मिला हम, उनका इण्टरव्यू लिया हूँ, देश के बहुतों खिलाड़ियों से रूबरू हुआ हूँ, लेकिन जो बात जसदेव सिंह में थी, किसी और में नहीं दिखी। उन्हें विख्यात कमेंट्रेटर होने का ‘गुमान’ नहीं था, बल्कि उनकी भाषा की कमेंट्री को गौरव होता था कि वे उनकी भाषा में बोलते हैं। उनकी बोली भारत ही नहीं, विश्व के लोग पसंद करते हैं। उनकी आवाज के साथ विश्व के लोग चलते-फिरते-विचरण करते हैं। भगवान से दुआ करते हैं कि वे उस अनमोल आवाज को अपने शरण में ही रखें। हम श्रोताओं के तरफ से इसे एक श्रद्धांजलि समझें।”

बद्री प्रसाद यादव सबसे बाए (फ़ाइल फोटो)

पद्मभूषण जसदेव सिंह आकाशवाणी जयपुर में सं 1955 में भर्ती हुए थे। सन 1963 में वे दिल्ली आ गए और आकाशवाणी दिल्ली तथा दूरदर्शन के हो गए। जसदेव सिंह सन 1963 से अपने जीवन के अंतिम सांस तक भारत के स्वत्रंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की पैरेडों का आधिकारिक कमेंट्रेटर थे। इससे भी बड़ी बात यह थी कि जसदेव सिंह नौ ओलम्पिक, आठ हॉकी विश्व कप और छः एशियाई खेलों का कमेंट्रेटर रहे थे। उनकी आवाज और कर्मण्यता को मद्दे नजर उन्हें ‘ओलम्पिक ऑर्डर’ से भी सम्मानित कियया गया था। लम्बी बीमारी के बाद तीन वर्ष पहले 25 सितम्बर, 2018 को 87 वर्ष की आयु में वह आवाज सदा के लिए शांत हो गया। 

“खेल के खोये सितारे” के लेखक बद्री प्रसाद यादव आगे कहते हैं: “मैं सन 1974 में आकाशवाणी पटना में आया। पटना की, बिहार की सड़कों से विधान सभा तक, खेल के मैदानों से खेल मंत्रालयों तक, खिलाड़ियों के घरों से देश-विदेश के खेल के मैदानों तक – पत्रकारिता को भी देखा और खिलाड़ियों को भी देखा। लेकिन समय बदल गया है, आज महसूस भी कर रहा हूँ। आज ‘संस्कृति’ में, चाहे पत्रकारिता की संस्कृति हो, खिलाड़ियों की संस्कृति हो, खेल के मैदानों की संस्कृति हो, खेल मंत्रालयों की संस्कृति हो, आसमान-जमीन सा बदलाव हो गया है। मशीनीकरण, तकनीकीकरण से एक ओर जहाँ व्यावसायिक क्रिया-कलापों को पंख लगा है; वहीँ दूसरी ओर ‘मानवता-मानवीयता’ का पंख कट भी गया है। पहले के दिनों में जब आकाशवाणी में अपने-अपने क्षेत्रों के हस्ताक्षर आते थे, हम सभी उनसे बातचीत करत्ते थे, तो स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते थे। आज ह्रदय के अन्तः कोने में वह एहसास नहीं होता है। लगता हैं लोग भी मशीन जैसा ही व्यवहार करते हैं।”

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बद्री प्रसाद आगे कहते हैं: “उन दिनों जब प्रदेश के ही नहीं, देश के गीतकार, संगीतकार, गायक, वाद्ययंत्र बजाने वाले कलाकार आकाशवाणी आते थे, चतुर्दिक लोगों के मन में एक उत्कंठा होती थी उनके माध्यम से अपनी संस्कृति को जानना, पहचानना, उसे अपने जीवन में अमल करना। आज की परिस्थिति बिलकुल अलग है।”

कमेंट्री की बात करते हुए वे कहते हैं कि आज भले लोग टीवी पर अपने पसंदीदा खिलाडियों को देखें, खेल देखें, लेकिन अभी भी गांवों में रेडियो और रेडियो कमेंट्री सुनने वाले लोग हैं और बहुत ही चाव से सुनते हैं। बद्री प्रसाद के रूप में उनकी आवाज की शुरुआत आकाशवाणी केन्द्र पटना के बालमंडली सदस्य के रूप में हुई थी। बद्री प्रसाद यादव ने जनरल ड्रामा के लिए ऑडिशन दिया था । चयन नहीं हुआ। कहा गया कि आपकी आवाज माइक्रोफोन के लायक नहीं। किश्मत का खेल देखें, सन 1974 में आकाशवाणी केन्द्र पटना में उद्‌घोषक के रूप में ज्वाइन किये। वे राज्य के अंदर होने वाले खेल कार्यक्रमों के अलावा राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल और क्रिकेट मैचों में कमेंट्री की है। रणजी ट्रॉफी, दिलीप ट्रॉफी, विल्स ट्रॉफी, भारत बनाम श्रीलंका टेस्ट मैच (कटक), भारत बनाम पाकिस्तान वनडे (हैदराबाद), डबल विकेट इंटरनेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट आदि की यादगार कमेंट्री की। फुटबॉल में आईएफए शील्ड, संतोष ट्रॉफी, नेहरू गोल्ड कप आमंत्रण अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट में कमेंट्री की। इसके अलावा अस्सी के दशक में विश्व कप फुटबॉल में दिल्ली दूरदर्शन के कार्यक्रम में एकरिंग भी की। आम लोग बद्री प्रसाद यादव को बेहतर कमेंटेटर और उद्‌घोषक के रूप में ही जानते हैं, लेकिन खुद एक बेहतर फुटबॉल खिलाड़ी और कलाकार रह चुके हैं। फुटबॉल में इन्होंने राज्य का प्रतिनिधित्व किया है और कलाकार के रूप में कई सीरियलों में काम किया है। 

बद्री प्रसाद यादव पर अनेकानेक कहानियां लिखे हैं लोग। पटना के नवीन चंद्र लिखते हैं : पटना के मोइनुल हक स्टेडियम से मैं बद्री प्रसाद यादव, अपने सहयोगी कमेंटेटर प्रेम कुमार सहित अन्य सहयोगियों के साथ आप सभी श्रोताओं का स्वागत करता हूं। आप आकाशवाणी केन्द्र पटना से बिहार और बंगाल के बीच खेले जा रहे रणजी मुकाबले का आंखों देखा हाल सुन रहे हैं। आपको मैं बताता चला हूं कि आज पटना का मौसम …… जी हां, बिहार के स्टार उद्‌घोषक और कमेंटेटर बद्री प्रसाद यादव की मधुर आवाज कुछ साल पहले तक रेडियो पर सुनाई पड़ती थी। अब भी सुनाई पड़ती है, लेकिन कभी-कभी। बद्री प्रसाद यादव अपना कॅरियर फ्लाइंग में बनाना चाहते थे। फ्लाइंग ट्रेनिंग फाइनल स्टेज पर थी, लेकिन पिता स्व. बाबू वंशी लाल ने इकलौते पुत्र को हरी झंडी नहीं दी। खेल के प्रति रुझान बचपन से था। गांधी मैदान में होने वाले फुटबॉल मुकाबले को देखने जाते थे। थोड़ा बहुत खेलते भी थे। स्कूल की ओर से खेला था। इंटर वाराणसी के कॉलेज से किया, वहां भी फुटबॉल खेलना जारी रखा। कॉलेज की पढ़ाई करने पटना गए। बीएन कॉलेज में स्पोट्‌र्स कोटे पर एडमिशन हो गया। एक साल बीएन कॉलेज से खेला। अगले साल सायंस कॉलेज चले गए। राइट बैक पोजिशन पर खेलने वाले बद्री प्रसाद यादव एक साल बिहार के उप कप्तान रहे और चाल साल तक बिहार टीम का प्रतिनिधित्व किया।

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