विशेष खबर : दरभंगा हवाई अड्डा का ‘नाम’ और ‘राजनीति’ : बैलेंस सीट कहता है “बेच दिया” – लोग कहते हैं “दान कर दिया” (भाग-51 क्रमशः )

महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह (दाहिने बैठे) और उनके छोटे भाई राजाबहादुर विश्वेश्वर सिंह (बाएं बैठे) - अब दरभंगा लाल किले के अंदर भाई-भाई को एक साथ बैठे तो मुद्दत हो गए (तस्वीर सम्मानित भवनाथ झा के परिवार के सौजन्य से)

नई दिल्ली: पैसे में बहुत ताकत है। आज दरभंगा के कुछ लोग, दरभंगा राज के कुछ लोग, दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह की चर्चाएं खुलेआम करते हैं। सभी उन्हें “दादाजी” कहते हैं। यह अलग बात है कि तीन-तीन महारानियों के होते हुए, महाराजाधिराज “संतानहीन” रहकर “अकाल-मृत्यु” को प्राप्त किये और आनन्-फानन में उनके हँसते-मुस्कुराते पार्थिव शरीर को अग्नि को सुपुर्द कर दिया गया । दरभंगा राज में आज की पीढ़ियों में जो भी मोहतरमा अथवा मोहतरम हैं, वे महाराजाधिराज के छोटे भाई राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह के वंशज हैं। आश्चर्य तो यह है कि वे कभी अपने ”सगे दादाजी” यानी राजाबहादुर विश्वेश्वर सिंह का नाम भी दरभंगा के किसी शिलापट्ट पर “सार्वजनिक” रूप से लिखा जाय, इतिहास में वे भी अमर रहें; उनके पार्थिव शरीर को लोग भले देखें हो अथवा नहीं, उनके नाम को पढ़कर उनके प्रति अपनी संवेदना अर्पित कर सकें – कोई चर्चा तक नहीं करते। सब संपत्ति और राजनीति का खेल है। इतना ही नहीं, जिस मिथिला समाज को सूत्रबद्ध करने के लिए डॉ सर कामेश्वर सिंह ने कवि विद्यापति के नाम पर पूरे देश में “विद्यापति पर्व समारोह” का सूत्रपात किये थे, आज मिथिला के लोगों का एक खास वर्ग, विद्यापति को ही डॉ सर कामेश्वर सिंह के नाम के विरुद्ध खड़ा कर दिए। गजब है न !! 

दिनांक 1 अक्टूबर, 1962 (as on) को दिवंगत कामेश्वर सिंह, महाराज ऑफ़ दरभंगा के बैलेंस सीट, जो मूलतः दरभंगा राज की ‘चल और अचल सम्पत्तियों’ का एक सम्पूर्ण दस्तावेज है, के पृष्ठ 21 एनेक्चर – एल “Business: The Deceased’s share in movable and immovable property as Sole proprietor of M/s Darbhanga Aviation” में संस्थान का पता 42, चौरंगी रोड, कलकत्ता लिखा है। यह संस्थान नन-सिड्यूल चार्टर एयरलाइन्स चलता था । इस दस्तावेज के “नोट्स” में जो लिखा है उसका अर्थ यही है कि दरभंगा एविएशन नामक संस्था को आज से 58-साल पहले बेच दिया गया था और उसके एवज में विक्रेता को निर्धारित मूल्य भी प्राप्त हुआ था । महाराज अधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह, जो दरभंगा के अंतिम राजा थे, का देहावसान उसी तारीख को दरभंगा के नरगौना पैलेस में हुआ था। 

दस्तावेज के 21 वे पन्ने पर लिखा है: “Out of the assets of M/s Darbhanga Aviation, the aerodrome together with land, building etc. etc has been acquired by the Government of India for which a total sum of Rs. 3.86,965/66 has been awarded as the value of the acquired properties.” यह इस बात को स्पष्ट करता है कि दरभंगा एविएशन, सम्पूर्ण जमीन समेत एरोड्रोम इत्यादि को सरकार अधिगृहित कर ली थी और उसके एवज में दरभंगा राज के तत्कालीन लोग को रकम भी दे दी थी। इसलिए यह कहना गलत होगा कि दरभंगा राज अथवा उक्त सम्पति “दान” किया गया था और इसलिए महाराज का नाम होना चाहिए। 

दिनांक 1 अक्टूबर, 1962 (as on) को दिवंगत कामेश्वर सिंह, महाराज ऑफ़ दरभंगा के बैलेंस सीट का पन्ना

बहरहाल, जिस हवाई जहाज को सरकार को समर्पित करने की बात कहा जा रहा है, उसी दस्तावेज के अगले पैरा में लिखा है कि “The two aircrafts belonging to M/s Darbhanga Aviation have been requisitioned under Section 108 of the Defence of India Rules and price has been determined at Rs. 3,02,229/- by the Central Government so far, which has not yet been received.”

इतना ही नहीं, दस्तावेज आगे कहता है: “DARBHANGA AVIATION. Notes: The value of business assets of M/s Darbhanga Aviation, a proprietary concern of the deceased (Maharaj Adhiraaj Dr Sir Kameshwar Singh of Darbhanga) has been returned on the basis of net assets appearing in the enclosed audited balance Sheet as on 1.10.1962.  Out of the assets of M/s Darbhanga Aviation a building (3, Middleton Street, Calcutta) was sold in January 1964 for the gross sum of Rs. 21,25,000/- (including the cost of furniture and approximately 4 kathas of land, holding No. 42/1 Chowringhee Road, belonging to the deceased).  इन तीनों “नोट्स” को पढ़ने के बाद आप क्या कहेंगे? 

अब अगर बेची हुई सम्पत्तियों पर, मुआवजा प्राप्त किये सम्पत्तियों पर दरभंगा राज की वर्तमान पीढ़ी महाराज अधिराज का नाम चाहते हैं, महाराज के सम्मानार्थ उन सभी सम्पत्तियों पर महाराज का नामकरण हेतु मुहिम चलता है, तो स्वतंत्र भारत के 75 वर्षगाँठ पर इससे बेहतर सम्मान और क्या हो सकता है उस महान व्यक्ति के लिए, जिसके पार्थिव शरीर को बिना किसी “ऐतिहासिक सम्मान” के आनन्-फानन में अग्नि को सुपुर्द कर दिया गया। जिस “संदेहास्पद” अवस्था में डॉ सर कामेश्वर सिंह का हँसता-खेलता-मुस्कुराता शरीर “पार्थिव” हो गया और विगत 60 वर्षों में दरभंगा के कोई भी महानुभाव, यहाँ तक कि महाराज के छोटे भाई की पीढ़ियां, कभी “चूं” तक नहीं किये ताकि उस “अकाल मृत्यु” से “पर्दा” हटे – फिर क्या वजह है कि इतने दिनों बाद सबों को महाराज के नाम की चिंता हो गई है। आखिर क्यों पथ्थर के शिलापट्ट पर महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह का नाम गुदवाना चाहते हैं ?  

दिनांक 1 अक्टूबर, 1962 (as on) को दिवंगत कामेश्वर सिंह, महाराज ऑफ़ दरभंगा के बैलेंस सीट का पन्ना और दरभंगा एविएशन के बारे में, हवाई अड्डा के बारे में

अगर महाराजाधिराज के नाम और शोहरत को बरकरार रखने के लिए आज राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह के परिवार के सदस्य, दरभंगा के लोग बाग इतने चिंतित और व्याकुल हैं तो सिर्फ दरभंगा हवाई अड्डा का नाम ही क्यों महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के नाम पर ? फिर चाहिए तो यह भी कि दरभंगा राज की वर्तमान पीढ़ी कलकत्ता स्थित दरभंगा एविएशन के दफ्तर और दरभंगा हॉउस की जमीन पर बनी राष्ट्र की सबसे ऊँची ईमारत “42-कलकत्ता” का नाम दरभंगा के अंतिम राजा महाराज अधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह के नाम पर नामकरण कराने के लिए मुहिम छेड़ें। चाहिए तो यह भी कि कलकत्ता की सड़कों पर, राईटर्स बिल्डिंग स्थित पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री कार्यालय में या कलकत्ता न्यायालय में याचना दायर करें क्योंकि कलकत्ता के चौरंगी रोड स्थित “42/1, 42A और 42 बी” की संपत्ति महाराज अधिराज दरभंगा की ही थी।  इस संपत्ति को महाराज की मृत्यु के बाद 10,40,00,000 /- में बेचा गया था और इसी भूखंड पर दरभंगा एविएशन का दफ्तर भी था। 

इतना ही नहीं। चाहिए तो यह भी कि पहली अक्टूबर, 1962 के बाद महाराज अधिराज कामेश्वर सिंह की जितनी भी सम्पत्तियाँ, भारत ही नहीं, विश्व के कोने-कोने में थी, जिसे उनके देहावसान के बाद दरभंगा राज से जुड़े ‘घुटने-कद के लोगों से लेकर आदम कद के लोगों तक, विभिन्न लोगों के हाथों बेचे, पैसे अर्जित किये गए; उन तमाम सम्पत्तियों का नामकरण दरभंगा के अंतिम महाराज डॉ सर कामेश्वर सिंह के नाम पर होनी चाहिए। चाहिए तो यह भी कि दिल्ली के 7-मानसिंह रोड का नामकरण, 25, 25A अकबर रोड का नामकरण दरभंगा के महाराजा के नाम होनी चाहिए और इसके लिए भारत सरकार के गृह और शहरी विकास मंत्रालय, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास याचिका पेश किया जाय कि उन भवनों और भूखंडों का नया नामकरण महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के नाम पर किया जाय। यह अलग बात है कि भारत सरकार उन भवनों और भूखंडों के लिए “भरपूर मुआवजा” दे दी दो। 

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दरभंगा के रामबाग परिसर की भूमि को महाराज की मृत्यु के बाद काट-काटकर, टुकड़े-टुकड़े कर निजी लोगों के हाथ बेचा गया, निजी लोग परिसर के अंदर अपने आसियाना का डाक पता रामबाग परिसर के साथ जोड़े; उन तमाम निजी भवनों का नाम भी महाराजाधिराज के नाम पर किया जाय। लेकिन ऐसा नहीं हो सकता हैं। वजह है – दरभंगा के अलावे देश के किसी भी कोने में स्थित दरभंगा के दिवंगत सभी राजा-महाराजाओं की अमानतें, उनका धरोहर, उनकी भवनें, उनकी सम्पत्तियों पर न तो अब महाराजा का स्वामित्व रहा और ना ही, दरभंगा राज की वर्तमान पीढ़ियों को उसमें कोई दिलचश्पी थी अथवा है। अगर ऐसा नहीं होता तो आज दरभंगा राज का यह हश्र भी नहीं होता। दरभंगा में “दरभंगा राज परिवारों” का, महाराजा की “वर्तमान पीढ़ियों” की “पहचान” का प्रश्न है और उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात है महाराजा के नाम पर राजनीति। 

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्तियों के लाभार्थी आज तक यह नहीं बताए कि महाराजा की मृत्यु के तुरंत बाद दरभंगा एविएशन का अस्तित्व कलकत्ता के चौरंगी और दरभंगा में नेश्तोनाबूद हो गया – कुल रकम 28,14,194/- रुपये –  लेकिन कोई “चूं” तक नहीं किये। सम्पूर्ण दरभंगा राज में “चुप-चुप” का वातावरण बरकरार रहा, आज भी । महाराजाधिराज की मृत्यु के चौदह महीने भी नहीं बीते थे कि दरभंगा एविएशन का नामोनिशान मिट गया था, दफ्तर बिक गया, हवाई पट्टी और हवाई जहाज के बदले “मूल्य” प्राप्त कर लिया गया  – और जिला के, प्रदेश के और देश के लोगों को बताते रहे कि दरभंगा हवाई अड्डा का नाम दरभंगा के अंतिम राजा के नाम पर क्यों नहीं किया जाए ? इतना ही है तो “दि 42 कलकत्ता” का नाम दरभंगा के महाराजा पर करा कर उन्हें सम्मानित करें। कलकत्ता के चौरंगी रोड स्थित 42/1, 42A और 42 बी की संपत्ति रुपये 10,40,00,000 /- में बेचा गया था और यहीं दरभंगा एविएशन भी था।  

आज दरभंगा राज परिवार में जो भी 60-वर्ष की आयु में अथवा कम में हैं, असल में महाराजा की सम्पत्तियों का मलाई तो वही खा रहे हैं; लेकिन कभी भी उन लोगों ने दरभंगा एविएशन के बारे में वास्तविक स्थिति का खुलासा नहीं किया। ऐसी बात नहीं है कि वे वास्तविक स्थिति के बारे में जानते नहीं। और दरभंगा के लोगों को ‘वास्तविक स्थिति’ पूछने का कोई मतलब ही नहीं है। क्या महाराजा की तीसरी और अंतिम ‘जीवित रानी’ या दरभंगा रेसिडुअरी एस्टेट के ट्रस्टी, या महाराजा की सम्पत्तियों के लाभार्थी यह नहीं जानते कि दरभंगा एविएशन नामक संस्था को आज से 58-साल पहले बेच दिया गया था ? क्या वे नहीं जानते कि हवाई-पट्टी के लिए “मूल्य प्राप्त किया गया” था, क्या दो हवाई जहाजों के लिए भी “मूल्य” निर्धारित कर दिया गया था? जानते तो सभी हैं – सिर्फ बताना नहीं चाहते क्योंकि बताने से बात दूर तक जाएगी 

क्वीन एलिजाबेथ के पीछे खड़े महाराजाधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह (आर्काइव फोटो सौजन्य से )

Estate of Maharajadhiraj Sir Kameshwar Singh Bahadur of Darbhanga, Bihar (deceased) – Accountable person: Sole Executor Pandit Lakshmi Kant Jha, Ex-Chief Justice, Patna High Court” जो मूलतः दरभंगा राज की ‘चल-अचल सम्पत्तियों’ का एक सम्पूर्ण दस्तावेज है, के पृष्ठ 21 एनेक्चर – एल Business: The Deceased’s share in movable and immovable property as Sole proprietor of M/s Darbhanga Aviation में संस्थान का पता 42, चौरंगी रोड, कलकत्ता लिखा है और यह नन-सिड्यूल चार्टर एयरलाइन्स चलता है। इस दस्तावेज ke “नोट्स” men उद्धृत हैं जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि दरभंगा एविएशन नमक संस्था को आज से 58-साल पहले बेच दिया गया था और उसके एवज में विक्रेता को निर्धारित मूल्य प्राप्त हो गए थे।” अब आप लोगों को जो भी कहें कि तिरहुत का विमानन इतिहास दरअसल बिहार का विमानन इतिहास था, ठीक है । यह जमीन भी महाराजा की ही थी। हवाई पट्टी भी उन्ही का था । परन्तु सबसे बड़ी बात यह है कि दरभंगा एविएशन को  तो 28,14,194/- रुपये में बेच दिया गया था और यह बात दरभंगा राज के लोग बाग़ लोगों को बताये नहीं।

बिहार के ऐतिहासिक विरासतों पर कार्य करने वाले शोधकर्ता तेजकर झा कहते हैं : “सम्पत्ति तो कवि विद्यापति की भी नहीं है। और रही बात हवाई अड्डे की तो इसमें कोई शक नहीं की हवाई अड्डा महाराज ने बनवाया था। दरभंगा एवीएशन की स्थापना उन्होंने की थी। सम्पत्ति अगर सरकार ने ले ली या किसी ने बेच दिया तो उनका इस में कोई दोष नहीं। विद्यापति कवि ही नहीं एक बहुत बड़े विद्वान थे। उनके नाम पर विश्वविद्यालय कर दे तो अच्छा। एक व्यक्ति जो राष्ट्र हित में समर्पित था उसको क्यों ऐसे छोड़ रहे हैं ? उन के मरने के बाद जो भी हुआ, उस में उनका क्या दोष? सब अपनी अपनी बिन अपने स्वार्थ की बजा रहे। विद्यापति महोत्सव महाराज ने प्रारम्भ करवाया की मिथिला को एक सूत्र में बांध सके। आज विद्यापति के नाम पर मिथिला के वोट को देखा जा रहा है।”

तेजकर झा आगे कहते हैं: “महाराज थे, पैसा था, ऐय्याशी करते थे। लोग के लिये क्या किए? जो भी उद्योग या अस्पताल या शिक्षा के संस्था खोले वो अपने लिए। पैसा सबसे दोहन करने के लिए। ब्राह्मण थे। श्रोत्रि थे। उच्च वर्ग के थे ….. मर गया अच्छा हुआ। यह नैरटिव चलाया गया समाज में। यही लोग चाहते हैं। परिवार ने भी यही सिद्ध किया। हमारी क्या औकात की कुछ ज़्यादा बोले। बाँकी लोग उनके बाद क्या थे और क्या किए मिथिला के लिये ये भी बता दें अगर ….. में किसी नेता के दम हो तो। कितने नए अस्पताल और उद्योग खड़े हुए ? कितने शिक्षक राष्ट्रीय स्तर के निकले ? कितना विकास हुआ ? कौन से किसान खुशहाल हो गए ? मिथिला के कुटीर उद्योग जहां गए? कितना समाज में ज्ञान का प्रसार हुआ? कितने को रोजगार मिला?

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कई करोड़ का प्रश्न है जो आज दरभंगा के अंतिम “संतानहीन राजा” महाराज अधिराज डॉ सर कामेश्वर सिंह के लिए की जा रही है। जिस व्यक्ति ने दरभंगा ही नहीं, सम्पूर्ण मिथिलांचल के विकास के लिए 11 उद्योगों की स्थापना किये, जिन्होंने अपने 54-वर्ष के जीवन काल में 31+ वर्ष परतंत्र भारत से लेकर स्वतंत्र भारत में संसद के सदस्य रहे, जो संविधान सभा का सदस्य रहे, जिसने सम्पूर्ण मिथिलांचल के लोगों के सूत्रबद्ध करने के लिए मिथिला के ही कवि विद्यापति के सम्मान में ‘विद्यापति पर्व समारोह’ आयोजन की शुरुआत किये – आज न केवल उस व्यक्ति के बारे में मिथिला के ही लोग कहते फिरते हैं “उन्होंने क्या किये मिथिला के लिए”, बल्कि राजनीति से प्रेरित होकर “विद्यापति को ही उनके विरुद्ध” खड़ा कर दिए । 

बहरहाल, राज दरभंगा इतिहास संरक्षण एवं संवर्धन समिति के एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार “आज उल्लास की बात है “राज दरभंगा इतिहास संरक्षण एवं संवर्धन समिति के सदस्य संजय कुमार राय की जनहित याचिका को पटना उच्च न्यायालय ने स्वीकार करते हुए गत 20 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश संजय करोल के कोर्ट ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय से चार सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है। न्यायालय ने तीन माह के अंदर मामले में अंतिम निर्णय ले लेने की बात कही है। श्री राय ने दरभंगा एयरपोर्ट का नाम विद्यापति एयरपोर्ट रखने के प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज की है। माननीय सदस्य ने कहा कि हवाई अड्डे की जमीन महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की है इसलिए उसके नामकरण में इस बात का ख्याल रखा जाय। उन्होंने यह भी कहा कि दरभंगा एयरपोर्ट का नाम दरभंगा एयरपोर्ट अथवा महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह एयरपोर्ट नाम से करने या महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह विद्यापति एयरपोर्ट नामकरण का आग्रह किया गया है। 

राज दरभंगा इतिहास संरक्षण एवं संवर्धन समिति ने माननीय उच्च न्यायालय, पटना के प्रति आभार प्रकट करते हुए धन्यवाद दिया है। समिति राज्य एवं केंद्र सरकार से मांग करती है कि इस एयरपोर्ट का नामकरण महाराजधिराज कामेश्वर सिंह दरभंगा एयरपोर्ट किया जाए।  सोचनीय बात यह है कि राज दरभंगा ने सन 1962 के भारत-चीन युद्व के समय अपनी हवाई अड्डा जो कि 89 एकड़ में थी, भारतीय वायुसेना को राष्ट्रहित में उपयोग के लिए दिया था। इसलिए हमारा राज्य एवं केन्द्र सरकार से अनुरोध है कि दरभंगा एयरपोर्ट का नामकरण महाराजधिराज कामेश्वर सिंह के नाम पर किया जाय। हाल ही में देखा गया है कि देश के कई हिस्सों में वहां के राजा के नाम पर हवाई अड्डे का नामकरण किया गया है। जैसे हरियाणा स्थित हिसार में महाराजा अग्रसेन एयरपोर्ट नाम रखा गया है। अत: राज्य एवं केन्द्र सरकारों से हमारा अनुरोध है कि पटना उच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करते हुए हमारी मांग को स्वीकार कर उचित न्याय किया जाय।” प्रेस विज्ञप्ति समिति के संरक्षक रंगनाथ ठाकुर द्वारा हस्ताक्षरित है। 

इतना ही नहीं, दरभंगा रेसिडुअरी एस्टेट एक ट्रस्टी कपिलेश्वर सिंह भी “राज परिवार” की ओर से पटना हाईकोर्ट के निर्देश के प्रति आभार व्यक्त किया है। एक वीडियो के माध्यम से उन्होंने कहा: पूरा राज परिवार दरभंगा एयरपोर्ट सम्बन्धी सम्मानित पटना उच्च न्यायालय ने जो आदेश पास किया है, उसका हम स्वागत करते हैं। साथ ही, श्री संजय राय, जिन्होंने पीआईएल फ़ाइल किया, हम धन्यवाद देते हैं। मेरे दादाजी कामेश्वर सिंह ने आज़ादी के पहले पूर्णियां, दरभंगा, सहरसा एयरपोर्ट का निर्माण किया था। साथ ही, उन्होंने दरभंगा एविएशन कंपनी का नींव भी रखा था। जब इंडो-चाईना वार हुआ तो देश का हिट देखते हुए राज परिवार ने अपना एयरपोर्ट वाला जमीं और विमान सरकार को सौंप दिया।”

राजा बहादुर विश्वेश्वर सिंह के बड़े पुत्र कुमार जीवेश्वर सिंह की बड़ी बेटी के पति प्रोफ़ेसर अरविन्द सुन्दर झा कहते हैं: “इसे राज दरभंगा से छीन लिया गया । इसलिए अगर किसी का नाम हो तो महाराजा का होना चाहिए । विद्यापति कहाँ से बीच मे आ गये । नेहरू जी पर कम्युनिस्ट का विशेष प्रभाव था । सन 1962 के  जंग के बाद भी शायद नहीं बदला । ठीक इसी तरह जगन्नाथ मिश्रा ने  राज हेड ऑफिस का किया। … छोटे कुमार (कुमार शुभेश्वर सिंह) को बुड़बक बना कर ।”

ज्ञातव्य है कि एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजय कोरोल की कोर्ट ने दरभंगा एयरपोर्ट के नामकरण के मामले में एक आदेश जारी किया है। कोर्ट ने केंद्रीय नागरिक उडयन मंत्रालय से चार सप्ताह में जवाब मांगा है। न्यायालय ने तीन माह के भीतर मामले पर अंतिम निर्णय लेने की भी बात कही है। समिति के सदस्य संजय राय ने कोर्ट में दरभंगा एयरपोर्ट का नाम महाकवि विद्यापति एयरपोर्ट रखने के प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज कराई थी। हाई कोर्ट ने उनकी आपत्ति स्वीकार करते हुए आदेश दिया है। राय की अर्जी में कहा गया है कि दरभंगा एयरपोर्ट का नाम महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह या महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह सह विद्यापति एयरपोर्ट होना चाहिए। समिति के संरक्षक के अनुसार “कोर्ट यह आदेश 20 जुलाई को आया” था।  आश्चर्य की बात यह है कि “दरभंगा के लोगों के लिए इतना महत्वपूर्ण होने के बाद इस आदेश को न्यायालय के आदेश के 15 दिनों के बाद दरभंगा में सार्वजनिक किया गया।”

बहरहाल, पहली अक्टूबर सं 1962 के बाद, यानि उनकी “आकस्मिक मृत्यु” के बाद क्यों ऐसा हुआ जो दरभंगा राज प्रति सम्मान उत्तरोत्तर कम होता गया। उनका सम्मान उस शिखर जैसा था की भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद भी, गाँधी भी, सुभाष बोस भी “ससम्मान उनके सामने खड़े होते थे। मानवता का पराकाष्ठा थे दरभंगा महाराज। लेकिन आज जब दरभंगा हवाई अड्डे के नामकरण का प्रश्न आता है तो क्या गृह मंत्रालय, क्या नागर विमानन मंत्रालय, क्या प्रदेश के मुख्य मंत्री मंत्रालय – इन कार्यालयों में कार्य करने वाले चपरासी और अधिकारी भी सीधा-मुंह बात नहीं करता। महत्व नहीं देता। महज कुछ सालों में ऐसा क्यों हुआ जो सम्मान को शिखर से उतार कर जमीन पर ला दिया ? जबकि अन्य प्रदेशों, चाहे राजस्थान हो, मध्य प्रदेश हो, दक्षिण के राजा-महाराजाओं का वर्तमान पीढ़ी हो, वर्तमान व्यवस्था के सामने वे आज भी उतने सम्मानित हैं। खैर। कुछ तो है जो अन्वेषण और शोध का विषय है। 

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बहरहाल, तिरहुत के विमानन इतिहास की शुरुआत तिरहुत सरकार महाराजा रामेश्वर सिंह के कालखंड में ही होती है। तिरहुत सरकार का पहला विमान एफ-4440 था। जो 1917 में प्रथम विश्‍वयुद्ध के दौरान भारतीय मूल के सैनिकों के लिए खरीदा गया था।आजकल लोगबाग कहते नहीं थकते कि तिरहुत सरकार का पहला विमान जहां भारतीय फौज के लिए खरीदा गया था, वही दरभंगा एविएशन का आखिरी विमान भी भारतीय वायुसेना को ही उपहार स्‍वरूप दिया गया। यह कहना गलत है। उपहार स्वरुप नही दिया गया था बल्कि Defence of India Rules के तहत उसकी कीमत Rs. 3,02,229/ निर्धारित की गयी थी। यह राशि काउ लिया, आज तक गर्त में ही है। 

तिरहुत सरकार के एक इंजन वाले एफ-4440 विमान में दो लोगों के बैठने की सुविधा थी। 1931 में वायसराय के दरभंगा आगमन से पहले तिरहुत सरकार द्वारा एक विमान खरीदने की बात कही जाती है। कहते हैं यह जहाज भी बेहद छोटा था। एक इंजन वाले इस जहाज की कोई तस्वीर अब तक उपलब्ध नहीं हुई है, क्योंकि ये समय पर दरभंगा नहीं आ सका। 1932 में गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए जब कामेश्‍वर सिंह लंदन गये तो उस जहाज को भारत लाने की बात हुई, लेकिन नहीं आ पाया। 1934 के भूकंप के बाद इसे अशुभ मान कर लंदन में ही बेच दिया गया। 

तिरहुत में पहला विमान 1933 में उतरा। पूर्णिया के लालबाग मैदान में माउंट एपरेस्‍ट की चोटी की ऊंचाई नापने और सुगम रास्ता तलाशने के लिए तिरहुत सरकार ने इस मिशन को प्रायोजित किया था। 1940 में तिरहुत सरकार ने अपना दूसरा विमान खरीदा। आठ सीटों वाले इस विमान का पंजीयन VT-AMB के रूप में किया गया। बाद में यह पंजीयन संख्‍या एक गुजराती कंपनी को और 18 मार्च 2009 में कोलकाता की कंपनी ट्रेनस भारत एविएशन, कोलकाता-17 को VT-AMB (tecnam P-92J5) आवंटित कर दिया गया है। यह विमान 1950 तक तिरहुत सरकार का सरकारी विमान था। इसी दौरान तिरहुत सरकार ने तीन बडे एयरपोर्ट दरभंगा, पूर्णिया और कूच बिहार का निर्माण कराया। जबकि मधुबनी समेत कई छोटे रनवे भी विकसित किये। दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद 1950 में अमेरिका ने भारी पैमाने पर वायुसेना के विमानों की निलामी की। दरभंगा ने इस निलामी में भाग लिया और चार डीसी-3 डकोटा विमान खरीदा। 

इनमें दो C-47A-DL और दो C-47A-DK मॉडल के विमान थे। आजाद भारत में यह एक साथ खरीदा गया सबसे बडा निजी विमानन बेडा था। इन्ही चार जहाजों को लेकर दरभंगा के पूर्व महाराजा कामेश्वर सिंह ने दरभंगा एविएशन नाम से अपनी 14वीं कंपनी की स्थापना की। इस कंपनी का मुख्यालय काेलकाता रखा गया। इसके निदेेशक बनाये गये द्वारिका नाथ झा। दरभंगा एविएशन मुख्य रूप से कोलकाता और ढाका के बीच काग्रो सेवा प्रदान करती थी। भारत सरकार में इन चारों विमानों को क्रमश: VT-DEM,VT-AYG, VT-AXZ VT-CME के नाम से पंजीयन कराया गया था। VT-DEM,VT-AYG, VT-AXZ नंबर का विमान जहां आम लोगों के लिए उपलब्‍ध था, वहीं,VT-CME को कामेश्वर सिंह ने खास अपने लिए विशेष तौर पर तैयार करवाया था। यह भारत का पहला लग्जरी विमान था, इसमें कई खूबियां थी। 

यह विमान कर्नाटक के बलगाम में अभी संरक्षित कर के रखा हुआ है। 1950 में स्थापित दरभंगा एविएशन को पहला धक्‍का 1954 में लगा। 01 मार्च 1954 को कंपनी का विमान VT-DEM कलकत्ता एयरपोर्ट से उडने के तत्काल बाद गिर गया। इस हादसे के बाद कंपनी कमजोर हो गयी। कंपनी को बेहतर करने के लिए यदुदत्‍त कमेटी का गठन किया गया, लेकिन कमेटी का प्रस्ताव देखकर कामेश्‍वर सिंह निराश हो गये। कामेश्वर सिंह ने कंपनी को नये सिरे से शुरु करने का फैसला किया और नये विमान खरीदने का फैसला लिया गया। कंपनी ने 1955 में अपना एक पुराना विमान VT-AXZ कलिंगा एयरलाइंस को लीज पर दे दिया। कलिंगा एयरलाइंस ने उस विमान के परिचालन में घोर लापरवाही की, जिसका नतीजा रहा कि उसी साल 30 अगस्त 1955 को वो विमान नेपाल के सिमरा में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। 

दरभंगा एविएशन का तीसरा विमान 1962 में दुर्घटना का शिकार हो गया। VT-AYG नंबर का यह विमान बांग्‍लादेश में दुर्घटना का शिकार हो गया। इस विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद दरभंगा एविएशन की काग्रो सेवा नये विमान की आपूर्ति तक बंद कर दी गयी, जो फिर कभी शुरू न हो सकी। कंपनी के पास एक विमान बचा था, जो महाराजा कामेश्वर सिंह का निजी विमान था। VT-CME नंबर का यह विमान कामेश्वर सिंह के निधन तक उनके साथ रहा। इसी विमान ने तिरहुत को पहला पायलट दिया। बेशक इस विमान के पायलट आइएन बुदरी थे, लेकिन 1960 में मधुबनी के लोहा गांव के सुरेंद्र चौधरी इस जहाज के सहायक पायलट के रूप में नियुक्त होने वाले तिरहुत के पहले पायलट बने। श्री चौधरी 1963 तक इस विमान के सहायक पायलट थे। 01 अक्‍टूबर 1962 को कामेश्‍वर सिंह की मौत के बाद भारत सरकार ने इस विमान का निबंधन रद्द कर लिया……………… क्रमशः 

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