सोना तो सिर्फ बिहार में है, राजगीर में तो सोन भंड़ार गुफ़ा है जहाँ बेशकीमती ख़ज़ाना छुपा है, जिसे आज तक कोइ नही खोज पाया है

कहा जाता है कि राजा हिरणकश्यप अपने अघोर तपस्या के पश्च्यात भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि रात-दिन, सुबह-शाम, अस्त्र-शस्त्र और देवी-देवताओं द्वारा बनाए गए बारह मासों में से किसी भी मास में उसकी मौत न हो। ब्रह्मा उसकी तपस्या से प्रसन्न थे, इसलिए उन्होंने राजा हिरणकश्यप को वरदान दे दिया। परन्तु, वरदान को देने के बाद जब ब्रह्मा को अपनी भूल का अहसास हुआ, तब भविष्य में होने वाली भयानक समस्या के निदान के लिए वे भगवान विष्णु के पास गए।

भगवान विष्णु ने विचारोपरांत हिरण्यकश्यप के अंत के लिए तेरहवीं महीने का निर्माण किया। धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या अधिकमास कहा जाता है। वायु पुराण एवं अग्नि पुराण के अनुसार इस अवधि में सभी देवी-देवता एक स्थान पर आकर वास करते हैं।

क्या आप बता सकते हैं की यह स्थान धर्म-शास्त्रों के अनुसार कहाँ है?

हजारों वर्ष पहले यह मगध का एक नगर था और मौर्य साम्राज्य की स्थापना यही हुयी थी। यह मौर्य साम्राज्य की राजधानी भी रह चुकी है। इसी स्थान पर पाण्डु पुत्र भीम से जरासंघ की लड़ाई हुयी थी, यहीं जरासंघ का बद्ध हुआ था। इतना ही नहीं, यह स्थान जैन तीर्थंकर महावीर और बुद्ध की साधना भूमि भी रहा है और आज भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है।

भारत की राजधानी दिल्ली से कोई १००० किलोमीटर दूर तत्कालीन मगध की राजधानी पाटलिपुत्र (अब पटना) से कोई १०० किलोमीटर दूर कई धर्मों, परम्पराओं की संगम स्थली राजगीर ले चलते हैं।

पटना से 100 किमी उत्तर में पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर न केवल एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है, बल्कि एक सुन्दर स्वास्थवर्धक स्थान के रूप में भी लोकप्रिय है। यहाँ हिन्दू, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं। खासकर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है।

बुद्ध के उपदेश
बुद्ध के उपदेश

बुद्ध न केवल कई वर्षों तक यहां ठहरे थे, बल्कि कई महत्वपूर्ण उपदेश और श्रवण भी यहाँ की धरती पर दिये थे। बुद्ध के उपदेशों को यहीं लिपिबद्ध किया गया गया था और पहली बौद्ध संगीति भी यहीं हुई थी। राजगीर, उत्तर भारत के बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित एक स्थान है जो कभी मगध की राजधानी हुआ करती थी, और इसके बाद, भारत में मौर्य साम्राज्य का उद्गम यही हुआ था जिसने भारतवर्ष को महान योद्धा जैसे राजा दिए और चाणक्य जैसे विद्वान।

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राजगीर का नाम वहां के राजा के घर के नाम पर पड़ा। लगभग 5वीं शताब्दी के दौरान मगध साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। उस वक्त इस शहर का नाम राजगृह हुआ करता था। इसका इतिहास महाभारत काल से भी संबंधित है। यह शहर जरासंध के साथ हुए पांडवों और भगवान श्रीकृष्ण की कहानी भी कहता है। भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंघ को यहां लगभग 17 बार हराया था। पर अठारहवीं बार भगवान श्रीकृष्ण जरासंध से लड़े बिना मैदान छोड़ गए। पांडव भीम के साथ भी जरासंध की लड़ाई का यह शहर गवाह बना। उस वक्त जरासंध यहां का राजा हुआ करता था। उसके बाद जरासंध की युद्ध में मृत्यु हो गई। जरासंध का प्रसिद्ध अखाड़ा आज भी है ।

राजगीर की पंच पहाड़ियां विपुलगिरी, रत्नागिरि, उदयगिरि, सोनगिरि और वैभारगिरि प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हैं।

प्राचीन में राजगीर को बसुमति, बारहद्रथपुर, गिरिवगज, कुशाग्रपुर एवं राजगृह के नाम से जाना गया है। राजगीर में ऐतिहासिक, प्राचीन एवं धार्मिक स्थलों का संग्रह है। यहां जहां सप्तकर्णि गुफा, सोन गुफा,मनियार मठ, जरासंध का आखाड़ा, तपोवन, वेणुवन, जापानी मंदिर, सोनभंडार गुफाएं, बिम्बिसार, कारागार, आजातशत्रु का किला है, तो रत्नागिरी पहाड़ पर बौद्ध धर्म का शांति स्तूप है।

राजगीर जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्मावलंबियों का तीर्थ है। जैन धर्म में 11 गंधर्व हुए और उन सभी का निर्वाण राजगीर में हुआ। यहां की 5 पहाड़ियां पर जैन धर्म के मंदिर हैं। भगवान महावीर ने ज्ञान प्राप्ति के बाद पहला उपदेश विपुलगिरि पर्वत पर दिया था। इसके अलावा राजगीर के आस-पास की पहाड़‍ियों पर 26 जैन मंदिर बने हुए हैं, पर वहां पहुंचना आसान नहीं है, क्योंकि वहां पहुंचने का रास्ता अत्यंत दुर्गम है।

कहा जाता है कि बुद्ध रत्नागिरि पर्वत के ठीक बगल में स्थित गृद्धकूट पहाड़ी पर उपदेश देते थे। इस पहाड़ी पर उस स्थल के अवशेष आज भी मौजूद हैं। बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्मावलंबियों का पहला सम्मेलन वैभारगिरि पहाड़ी की गुफा में हुआ था। इसी सम्मेलन में पालि साहित्य का उम्दा ग्रंथ ‘त्रिपिटक’ तैयार हुआ था। बोधगया से राजगीर भगवान बुद्ध जिस मार्ग से आए थे उसमें भी अनेक स्थल हैं। नालंदा, पावापुरी, राजगीर और बोधगया एक कड़ी में हैं। जापानी बुद्ध संघ ने विश्व शांति स्तूप भी बनवाया हुआ है।

इसी राजगीर में है सोन भंड़ार गुफ़ा जिसके बारे मे किवदंती है कि इसमें बेशकीमती ख़ज़ाना छुपा है, जिसे की आज तक कोइ नही खोज पाया है। यह खजाना मौर्य शासक बिम्बिसार का बताया जाता है, हालांकि कुछ लोग इसे पूर्व मगध सम्राट जरासंघ का भी बताते है। हालांकि इस बात के ज्यादा प्रमाण है कि यह खजाना बिम्बिसार का ही है क्योकि इस गुफ़ा के पास उस जेल के अवशेष है जहाँ पर बिम्बिसार को उनके पुत्र अजातशत्रु ने बंदी बना कर रखा था।

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सोन भण्डार गुफा मे प्रवेश करते ही 10 . 4 मीटर लम्बा, 5 . 2 मीटर चोडा तथा 1 . 5 मीटर ऊंचा एक कक्ष आता है, इस कमरा खजाने की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए था। इसी कमरे कि पिछली दीवर से खजाने तक पहूँचने का रास्ता जाता है। इस रास्ते का प्रवेश द्वार पत्थर कि एक बहुत बडी चट्टान नुमा दरवाज़े से बन्द किया हुआ है। इस दरवाज़े को आज तक कोइ नही खोल पाया है। गुफा की एक दीवार पर शंख लिपि मे कुछ लिखा है जो कि आज तक पढ़ा नही जा सका है। कहा जाता है की इसमें ही इस दरवाज़े को खोलने का तरीका लिखा है।

कुछ लोगो का यह भी मानना है कि खजाने तक पहुचने का यह रास्ता वैभवगिरी पर्वत सागर से होकर सप्तपर्णी गुफाओ तक जाता है, जो कि सोन भंडार गुफा के दुसरी तरफ़ तक पहुँचती है। अंग्रज़ों ने एक बार तोप से इस चट्टान को तोड़ने कि कोशिश कि थीं लेकिन वो इसे तोड़ नही पाये। तोप के गोले का निशाँ आज भी चट्टान पर मौजुद है।

इस सोन भंड़ार गुफ़ा के पास ऐसी ही एक और गुफा है जो कि आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। इसका सामने का हिस्सा गिर चुका है। इस गुफा की दक्षिणी दीवार पर 6 जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां उकेरी गई है। दोनों ही गुफाये तीसरी और चौथी शताब्दी मे चट्टानों को काटकर बनाई गई थी । दोनों ही गुफाओं के कमरे पोलिश किये हुए है जो कि इन्हे विशेष बनाती है, क्योकि इस तरह पोलिश कि हुईं गुफाये भारत मे बहुत कम है।

इस बात के भी प्रमाण है कि यह गुफाये कुछ समय के लिये वैष्णव सम्प्रदाय के अधीन भी रही थी क्योकि इन गुफ़ाओं के बाहर एक विष्णु जी कि प्रतिमा मिली थी। विष्णु जी की यह प्रतिमा इन गुफाओं के बाहर स्थापित की जानी थी, पर मूर्ति की संपूर्णता का काम पूरे होने से पहले ही उन लोगो को, किसी कारणवश यह जगह छोड़ कर जाना पड़ा और यह मूर्ति बिना स्थापना के रह गई। वर्तमान में यह मूर्ति नालंदा म्यूज़ियम मे रखी है।

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‘वायु पुराण’ के अनुसार मगध सम्राट बसु द्वारा राजगीर में ‘वाजपेय यज्ञ’ कराया गया था। उस यज्ञ में राजा बसु के पितामह ब्रह्मा सहित सभी देवी- देवता राजगीर पधारे थे।यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। कहा जाता है कि ब्रह्मा के आह्वान पर ही अग्निकुंड से विभिन्न तीर्थों का जल प्रकट हुआ था। उस यज्ञ का अग्निकुंड ही आज का ब्रह्मकुंड है।

यहां आने वाले लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों प्राची, सरस्वती और वैतरणी के अलावा गर्म जलकुंडों यथा ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, न्यासकुंड, मार्कंडेय कुंड, गंगा-यमुना कुंड, काशीधारा कुंड, अनंत ऋषि कुंड, सूर्य कुंड, राम-लक्ष्मण कुंड, सीता कुंड, गौरी कुंड और नानक कुंड में स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में आराधना करते हैं।

राजगीर और इसके आसपास के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के स्थलों में सप्तपर्णि गुफा, विश्व शांति स्तूप, सोन भंडार गुफा, मणियार मठ, जरासंध का अखाड़ा, बिम्बिसार की जेल, नौलखा मंदिर,जापानी मंदिर, रोपवे, बाबा सिद्धनाथ का मंदिर, घोड़ाकटोरा डैम, तपोवन, जेठियन बुद्ध पथ, वेनुवन विहार, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय, जैन मंदिर, श्रीकृष्ण भगवान के रथ के चक्कों के निशान, सुरक्षा दीवार,सामस स्थित तालाब और तेल्हार आदि आज भी हैं।

इतिहास की पुस्तकों के अनुसार, प्राचीन में राजगीर को बसुमति, बारहद्रथपुर, गिरिवगज, कुशाग्रपुर एवं राजगृह के नाम से जाना गया है। विम्बिसार बुद्घ और बौद्ध धर्म के प्रति काफी श्रद्धा रखते थे। पांचवीं सदी में भारत की यात्रा पर आए चीनी तीर्थ यात्री फाहियान ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा था कि राजगीर की पहाड़ियों के बाहरी हिस्से में राजगृह नगर का निर्माण विम्बिसार के पुत्र आजातशत्रु ने ही करवाया था।

राजगीर में प्रति तीन वर्ष पर मलमास मेला लगता है, जिसे देखने के लिए देश और विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यहाँ स्थितगर्म कुंड ठंड में यहां आने वाले लोगों का ध्यान खींचता है। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड में नहाने से कई रोग दूर होते हैं। सप्तपर्णी गुफा यहां मौजूद गर्म पानी कुंड का भी एक स्रोत है जो हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के लिए बेहद पवित्र माना जाता है।

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