इधर ‘लोगों के कल्याणार्थ’ दिखाने हेतु ‘ट्रस्ट’ बन रहा था, उधर लोगों का ‘विश्वास’ चकनाचूर हो रहा था (भाग-16) 

क्या सोचे थे महाराजा साहेब आप अपने प्रान्त, प्रदेश और देश के लोगों के बारे में और आपके जाने के बाद क्या हो गया ? आपके द्वारा स्थापित 'आर्यावर्त' और 'दि इण्डियन नेशन' अख़बारों का 'मास्ट' जिसे आपने ही अनुमोदित, अनुशंसित किया था, खासकर शब्दों के 'शुरुआत' और 'अंत' में 'मछली की पूंछ' स्वरुप आकार-प्रकार देकर - आपको समर्पित। 

दरभंगा / पटना : विगत दिनों जब दरभंगा में दिव्यांगों को दी जाने वाली ट्राई-साइकिल के पीछे “महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट” का नाम “दाता” के स्थान पर लिखा देखा और उपस्थित लोग बाग़ ताली भी बजा रहे थे, तो आँखें भर आई। सोचा अगर महाराजाधिराज जीवित होते तो क्या उन दिव्यांगों को “ट्राइस्किल” देते और उसके पीछे अपना नाम लिखबाते ? महाराजा तो कुछ ऐसा करते, कुछ ऐसा देते जिससे वह दिव्यांग जीवन पर्यन्त “दिव्यांग” नहीं रह पाता – न शरीर से और न आत्मा से। लेकिन आज समय बदल गया है, महाराजा की पीढ़ियां भी उनके बाद तीसरी-चौथी आ गयी है । स्वाभाविक है सोच तो बदलेगा ही। 

हमारे देश में जब बड़े-बड़े लोगों की मृत्यु होती है, खासकर जो धनाढ्य होते हैं, बैंकों में जिनकी मोटी-मोटी राशियां जिनकी जमा होती हैं, सरकारी-गैर सरकारी, निजी संस्थाओं के परिचालन में उनके शेयर्स और प्रतिभूतियां तैरते रहते हैं, देश-विदेशों में उनकी सम्पत्तियाँ फैली होती हैं।  जैसे ही उस व्यक्ति का शरीर “पार्थिव” होता है, मृतक के पीछे संवेदनात्मक अश्रुपात करने वालों की अपेक्षा, उनके परिवार और परिजनों में ‘सुगबुगाहट’ इस बात की होने लगती है कि मृतक अपने पीछे अपनी सम्पातियों का उत्तराधिकारी किसे बना गया है? मृतक के परिवारों में सांस लेने वाले लोगों को ‘मृतक की सांस और सुंगंध’ की अपेक्षा उनकी लाल-पीला-नीला-हरा-बैगनी-काला-सफ़ेद धनों को शासन – व्यवस्था और सरकार से कैसे छिपाया जाय, बचाया जाय, सम्बन्धी सोच अधिक तीब्र होने लगता है। वैसी स्थिति में एक संस्था क्या, दर्जनों संस्थाओं का निर्माण हो जाता है। इन संस्थाओं को अंग्रेजी में “ट्रस्ट” कहा जाता है, हम इसे “विश्वास” भी कह सकते हैं, हिन्दी में। 

विगत दिनों दरभंगा राज से संबंधित, आर्यावर्त-इण्डियन नेशन से सम्बंधित, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट से सम्बंधित, महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन से सम्बंधित अनेकानेक दस्तावेजों को उलट-पुलट रहा हूँ। आश्चर्यचकित हो गया जब भारत के विभिन्न न्यायालयों में महाराजा की सम्पत्तियों के बंटबारे (फेमिली सेटेलमेंट) के पूर्व और पश्चात  भी, एक-दूसरे के विरुद्ध दायर मुकदमों में वादी-प्रतिवादियों का हस्ताक्षर देखें। महाराजा की मृत्यु के बाद शायद ही उस परिवार में कोई बचा होगा तो ‘अशोक-स्तम्भ’ वाले कागजातों पर अपना हस्ताक्षर नहीं किया होगा। हज़ारों-हज़ार हस्ताक्षर मिले। मधुबनी, दरभंगा, पटना, कलकत्ता, दिल्ली के न्यायालयों में अनेकानेक मुकदमें दिखे। कुछ वादी के पक्ष में विजय-हस्ताक्षर दिखे तो कुछ प्रतिवादी के पक्ष में। लेकिन  उन सभी हस्ताक्षरों में महरानीअधिरानी कामसुन्दरी का हस्ताक्षर तो – “बेहद आकषर्क” – दिखा। महारानी हस्ताक्षर “हिन्दी” में करती हैं, जबकि “दस्तावेजों” को अधिकारी वृन्द “अंग्रेजी” में मुद्रित करते हैं। इससे इतना तो कहा ही जा सकता है कि महरानीअधिरानी साहिबा को अपने लोगों पर “विश्वास” बहुत है। भले महाराजाधिराज के नाम पर स्थापित ट्रस्ट्स, जिन उद्देश्यों के. लिए, जिन लोगों के कल्याणार्थ बना हो, वह उसका “विश्वास” जीता हो अथवा नहीं – क्या फर्क पड़ता हैं ?

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के नाम लोगों के कल्याणार्थ पर स्थापित दो प्रमुख ट्रस्ट्स 

“ट्रस्टों” का निर्माण एक “विश्वास” पर ही होता है जो बाहर के लोग समझते हैं। इसका निर्माण उनकी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य, संस्कृति, सामाजिक-क्रिया-कलापों, धार्मिक क्रिया-कलापों इत्यादि-इत्यादि समाज के गरीब-गुरबाओं की मुलभुत समस्याओं का एक जीता-जागता तस्वीर बनाकर होता है। सैकड़ों पन्नों पर इसके संगठन के निर्माण से लेकर क्रिया-कलापों तक, विभिन्न प्रकार की बातें, आकर्षक शब्दों में लिखा जाता है, लच्छेदार वाक्यों में उन शब्दों का विन्यास होता है। फिर सरकारी “स्टाम्प-पेपर” पर उसकी छपाई होती है। चतुर्दिक लोग-बाग़, कुछ बैठे, कुछ खड़े मानवों के समक्ष उन कागजातों में लिखे “नामों” के लोगों का हस्ताक्षर लिया जाता है, उनकी तस्वीरें ली जाती हैं। फिर सरकारी महकमे के लोग, गवाहों के सामने उस कागजातों पर हस्ताक्षर करते हैं, शपथ लेते हैं और अंत में बन जाता है “ट्रस्ट”, यानि “विश्वास” का एक महल। 

लेकिन उस गाँव के, प्रखंड के, ब्लॉक के, तहसील के, क़स्बा के, पंचायत के, जिला के, प्रदेश के गरीब-गुरबा यह नहीं जानता कि जिन “अशोक स्तम्भ” वाले कागजातों पर उन्हें, उनके “सर्वांगीण विकास” को आधार मानकर “उक्त मृतक” के नाम पर उन लोगों को “विश्वास” दिलाया जाता है, “ट्रस्ट” बनाया जाता है, वह मूलतः उनके विकास हेतु नहीं, बल्कि “मृतक की सम्पतियों को अपने-अपने घरों की ओर दिशा देने ले लिए बनाया जाता है। वास्तविकता तो यह है कि जिनके नाम पर ट्रस्ट बनाया जाता है, वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्तियों को इसी पृथ्वी पर छोड़कर भगवान् के पास चले जाते हैं । वह अपने जीते-जी समाज के सभी तबकों के लोगों के लिए जो कार्य किये होते हैं, उसी का सम्पूर्णता के साथ फल लेकर अनंत यात्रा पर निकल जाते हैं । महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह भी अपने जीते-जी समाज के सभी वर्गों, तबकों के लोगों को अपने सामर्थ्य भर मदद का इस दुनिया को कुछ कर गए साथ वर्ष पहले। लेकिन आज, ट्रस्ट और फाउंडेशन समाज के उन गरीब-गुरबों, दीन, अनाथ, निरीह व्यक्तियों को बरगलाता है, कहता है – ट्रस्ट आपके कल्याणार्थ काम करेगा, यह उनकी अंतिम इक्षा थी। 

दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की मृत्यु के बाद अनेकानेक ट्रस्ट्स बने। अन्य ट्रस्टों की बात तो आगे करेंगे, मसलन, धार्मिक ट्रस्ट, लेकिन महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट और महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन महाराजा की मृत्यु के बाद दरभंगा ही नहीं, मिथिलांचल ही नहीं, बिहार ही नहीं, देश के लोगों के लिए, गरीब-गुरबों के लिए, उनकी शिक्षा के लिए, उनके विकास के लिए, उनकी संस्कृति के विकास के लिए, शोध और विज्ञानं के विकास के लिए, कला और संस्कृति के विकास के लिए, पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन के लिए, लेखों-शोध कार्यों के प्रकाशन के लिए, अस्पतालों की स्थापना के लिए, विद्यालयों की स्थापना के लिए, विद्यालयों के संरक्षण के लिए, शारीरिक और मानसिक विकास के लिए, चैरिटेबल डिस्पेंसरियां के लिए, प्रसव गृह की स्थापना/संरक्षण के लिए, कामेश्वर सिंह के सभी दस्तावेजों के रखरखाव के लिए, पुस्तकालयों/वाचनालयों की स्थापना के लिए, समाज के दावे-कुचले वर्गों की बेटियों की शादी के लिए, धर्मशालाओं के निर्माण के लिए, दानशीलता के लिए – या उन सभी उद्देश्यों के लिए, जो उन ट्रस्टों की स्थापनाकाल में “अशोक-स्तम्भ से युक्त” वाले कागजातों पर मुद्रित थे, वचन दिए थे – कितने पुरे किये।

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महाराजाधिराज की मृत्यु 1 अक्टूबर, 1962 को हुई थी। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन की स्थापना महाराजा की मृत्यु के 26-वर्ष बाद 8 दिसम्बर, 1988 को हुई जबकि महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना 25 मार्च, 1992 को, यानि महाराजा की मृत्यु के 30-वर्ष बाद हुई। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन में तीन व्यक्तियों का (ट्रस्टी) हस्ताक्षर है – कामसुन्दरी (महाराजाधिराज की पत्नी), हेतुकर झा और उदय नाथ झा। इन तीन हस्ताक्षरकर्ताओं में हेतुकर झा की मृत्यु हो गयी है। जबकि कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट के तीन ट्रस्टी थे – द्वारकानाथ झा, मदन मोहन झा और काम नाथ झा – ये तीनों हस्ताक्षर कर्ता मृत्यु को प्राप्त किये। व्यावहारिक दृष्टिकोण से आज दोनों ट्रस्ट किनके-किनके हाथों में “केंद्रित” है यह उनमे से कोई भी नहीं जानता जिनके कल्याणार्थ यह ट्रस्ट बनाया गया था।

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के नाम लोगों के कल्याणार्थ पर स्थापित दो प्रमुख ट्रस्ट्स 

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन के ट्रस्ट डीड के आठवें पृष्ठ के पैरा 14 में लिखा है: The Board of Trustees” may utilise to the extent of ninety percent of the Trust Fund to achieve the object of the Trust as may be deemed just and proper by them from time to time. Ten percent of the Trust fund shall be earmarked for deposit towards the Fixed capital Account of the trust in order to maintain balance of the diminishing value of the ‘Fixed capital’ in years to come.” कुल 38 पैराग्राफों में लिखित इस ट्रस्ट के दस्तावेज में कुल 33 बीघा, 11 कठ्ठा 15 धूर जमीन जिसमें काफी पेड़ कलगे हैं का भी उल्लेख किया है जिसमें 1 बीघा-5 कथा और 13 धूर जमीं दरभंगा जिला (थाना नंबर 449), बासुदेवपुर मुदलाहपट्टी गाँव, पूरब भीगो परगना का जिक्र है जबकि 32 बीघा, 6 कठ्ठा और 2 धूर जमीं जिसमे काफी पेड़ लगे हैं बसुदेओपुर महल सोहन, परगना – पूरब भिगो, थाना दरभंगा उल्लिखित है। 

दरभंगा राज और राज परिवार के लोग-बाग़ भी इस ऐतिहासिक ह्रदय-विदारक घटना से अछूता नहीं है क्योंकि पहली अक्टूबर, 1960 के बाद, यानी दरभंगा के अंतिम राजा महाराजाधिराज की अंतिम सांस के बाद से आज तक दरभंगा राज की ओर से ऐसी कोई भी घटना नहीं हुई है, जो महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह का नाम, उनके वसीयतनामे पर उद्धृत कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का नाम आधुनिक भारत के इतिहास में, आधुनिक बिहार के इतिहास में, आधुनिक मिथिलाञ्चल के इतिहास में पुनः स्थापित किया जा सके।  सवाल यह है कि महाराजाधिराज जब अपने वसीयत में “चेरिटेबल” ट्रस्ट की बात इसलिए किये की वे स्वयं मानव-कल्याण के लिए कोइ भी कदम पीछे नहीं करते थे। और उम्मीद किये कि उनकी मृत्यु के बाद उस मानवता-प्रकरण की कड़ी उनके परिवार वाले, परिजन, खासकर जो उनकी मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्तियों से लाभान्वित होंगे, को नहीं टूटने देंगे। महाराजाधिराज शिक्षा के क्षेत्र में, दानशीलता के क्षेत्र में और देशभक्ति के क्षेत्र में क्या किये, क्या नहीं किये यह तो “इतिहास” की बात हो गयी। लेकिन अपनी मृत्यु के बाद उस चैरिटेबल ट्रस्ट – महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट – के द्वारा वह सभी कार्य किया जायेगा, जिससे मानवता बची रहे, उनकी आत्मा को भटकना नहीं पड़े, शांति मिले – लेकिन विगत छः दशकों में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट क्या किया, यह अरबों-खरबों का प्रश्न है !

अगर लोग बाग़ स्वयं को किसी भी राजनीतिक पार्टी के खम्भे से नहीं बांधे और मन तथा आत्मा से ‘राजनीतिक गलियारों में संकीर्ण विचारों के साथ नहीं भटकें, तो भारत में जब भी शिक्षा के महत्व और उसके संस्थागत प्रचार-प्रसार, दानशीलता और देशभक्ति की चर्चा की जाएगी,  दरभंगा राज का नाम लिया ही जायेगा – चाहे ऊपर नाम से लें या अन्तःमन से। कोई भी व्यक्ति उस तथ्य को “नजरअंदाज” नहीं कर सकता है।  वैसे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीति के कारण ही पंडित मदन मोहन मालवीय दरभंगा के महाराजाओं से आगे निकल गए। खैर। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट के दस्तावेज के अनुसार राज दरभंगा का इतिहास 400 साल से भी अधिक पुराना है जब सन 1577 में महामहोपाध्याय महेश ठाकुर ने दरभंगा राज की स्थापना किया था। महेश ठाकुर अपने समय के प्रख्यात विद्वान थे। उनके बाद भी जो भी दरभंगा राज के राजा हुए, मसलन शुभंकर ठाकुर, पुरुषोत्तम ठाकुर, नारायण ठाकुर, छत्र सिंह, महेश्वर सिंह आदि सभी अपने-अपने समय के, अपने-अपने क्षेत्र के हस्ताक्षर थे। महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह, महाराजा रामेश्वर सिंह और महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की तो बात ही अलग थी।  वे सभी दिग्गत श्त्रविद थे, अनन्य राष्ट्रभक्त थे, अन्य दानशीलता में विश्वास रखते थे। उस ज़माने का इतिहास आज भी उनकी राष्ट्रभक्ति, उनकी दानशीलता का दृष्टान्त देता है विश्व को। उनकी दानशीलता में किसी भी प्रकार का जातिवाद, भेदभाव नहीं था। समाज के सभी जाति, संप्रदाय के लोग उनके सामने बराबर थे । चाहे व्यक्ति राजनेता हों, अधिकारी हो, नौकरशाही हो, खेतिहर हों, छात्र हों , प्राध्यापक हो, धार्मिक हों, स्वास्थ्य का क्षेत्र हों, स्पिरिचुअल का क्षेत्र हो, कला का क्षेत्र हो, जिला स्तर का हो, प्रादेशिक स्तर का हो, राष्ट्रीय स्टार का हो, दरभंगा राज प्रत्येक स्थान पर मुखरित हुआ था। 

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प्रारंभिक अवस्था में 3000 /- रुपये डोनेशन के साथ महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना हुई। लेकिन लेकिन महाराजाधिराज ने इस ट्रस्ट के उद्देश्य और ऑब्जेक्टिव के बारे में कोई विशिष्ट दिशा निर्देश अपने जीते-जी नहीं दिया था। सिवाय इसके कि उनके साम्राज्य में किसी भी व्यक्ति को, गाँव के किसान से लेकर, गरीब-गुरबा से लेकर विद्वान-विदुषी तक, यह चेरिटेबल ट्रस्ट काम आये।  चाहे उनकी शिक्षा की बात हो, स्वस्स्थ की बात हो, ज्ञान-विज्ञान की बात हो, उनके विकास की बात हो। किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाय।   

ट्रस्ट के स्थापना काल में महाराजाधिराज की बातों को बहुत ही तबज्जो दिया गया। हॉस्पिटल, चेरिटेबल  डिस्पेंसरी, मेटरनिटी होम, महिलाओं के लिए अस्पताल, बाल कल्याण केंद्र की स्थापना, अस्पतालों में पर्याप्त बिस्तरों की व्यवस्था, अस्पताल की स्थापना जिससे लोगों को लाभ प्राप्त हो सके। इस बात का भी उल्लेख किया गया कि किसी भी विद्यालय को आर्थिक मदद देना, विद्यालयों को बढ़ावा देना, देख भाल करना, किसी भी संस्थान, कॉलेज, विश्वविद्यालय, टेक्निकल कालेज, फिजिकल कालेज, मेंन्टल कालेज की स्थापना, शोध कार्यों को प्रमुखता देना, शोध करवाना, संस्कृति और कला को बढ़ाव देना, विज्ञानं को बढ़ावा देना, बेहतर स्वास्थ्य की व्यवस्था करना, गरीब गुरबा को मदद इत्यादि – इत्यादि। ट्रस्ट के निर्माण के समय यह उल्लेख किया गया कि ट्रस्ट की सम्पूर्ण शक्ति बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी में निहित होगी। इस ट्रस्ट में न्यूनतम 3 और अधिकतम 9 ट्रस्टीज होंगे। प्रारम्भ में तीन ट्रस्टियों के साथ – द्वारकानाथं झा, मदन मोहन मिश्रा और एक नाथ झा) ट्रस्ट की स्थापना की गयी और एक साल के अंदर छः अन्य ट्रस्टियों की नियुक्ति की जाएगी।  ये छह ट्रस्टी वही लोग होंगे जो महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के लाभार्थी होंगे। 

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के नाम लोगों के कल्याणार्थ पर स्थापित दो प्रमुख ट्रस्ट्स 

महाराजाधिराज के इक्षानुसार ग्रामीण इलाके के लोगों के कल्याणार्थ महत्व देते 25 मार्च 1992 को बना महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट निबंधित हुआ। कामेश्वर सिंह के किसी भी भाषा में भाषण, लेखनी, प्रकाशन को एकत्रित करना, उसे सुरक्षित रखना, पुनः प्रकाशित करना आदि बातों को महत्व दिया गया। यह भी व्यवस्था किया गया की महाराजाधिराज की चिठ्ठिया, पत्राचार, उनकी लेखनी, उनके संवाद को गाँव गाँव तक लोगों में पहुँचाया जाय, युवकों को पढ़ाया जाय, बताया जाय ताकि मातृभूमि के प्रति, लोगों के प्रति लोगों में संवेदना जागृत हो, वे भावनातमक मूल्यों को समझें और एक-दूसरे के लिए काम कायें। एक म्यूजियम बनाया जाय जहाँ उनसे सम्बंधित सभी कागजातों, रेप्लिका, लेख, कतरन को सुरक्षित रखा जाय। 

इस ट्रस्ट के अधिक यह भी निर्धारित किया गया की सम्पूर्ण देश में वेद, शास्त्र पुराण, काव्य का प्रचार-प्रसार किया जाय। विभिन्न स्थानों पर सेमिनार, संगोष्ठी, योग कराया जाए ताकि देश में स्पिरिचुअल और संस्कृति का विकास हो। पुस्तकालय, वाचनालय का अधिकाधिक निर्माण हो। माता-पिता विहीन बच्चों के लिए अनाथालय, विधवा आश्रम का निर्माण किया जाए, धर्मशालाओं का निर्माण हो, विधवाओं की देखभाल किया जाए, उन्हें वोकेशनल ट्रेनिंग दिया जाय, उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जाय। बिना जाति-संप्रदाय के बारे में सोचे, समाज के सभी गरीब-गुरबाओं को, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को समय-समय पर उनके कार्यों के लिए आर्थिक मदद की जाय। अनंत बातें उल्लिखित हैं ट्रस्ट के डीड में। 

लेकिन अन्य बातों को यदि छोड़ भी दें तो शायद दरभंगा राज में महाराजाधिराज की पत्नी के विरुद्ध उन्ही के घर के लोग, महाराजाधिराज की सम्पत्तियों के लाभार्थी, सम्पत्तियों के लिए ही अनेकानेक मुक़दमे किये हैं, कुछ मुकदमें आज भी भारत के न्यायालयों में लंबित हैं। वैसी स्थिति में “चेरिटेबल ट्रस्ट” अपने उद्देश्य को कितना प्राप्त किया होगा, इस ट्रस्ट के अधीन सम्पत्तियों, गहनों का इस्तेमाल मानव कल्याणार्थ, गरीब-गुरबों कल्याणार्थ किता हुआ होगा, कितने अस्पताल बने, कितने अनाथालय बने, कितने पुस्तकालय बने, कितने विद्यालय बने, किटचे वाचनालय बने, कितने सेमिनार और संगोष्ठी हुए यह तो ट्रस्ट के लोग अधिक जानते होंगे। लेकिन इतना सच है कि दिव्यांगों को दी जाने वाली ट्राइस्किल के पीछे महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चेरिटेबल ट्रस्ट का नाम उद्धृत कर देने से महाराजाधिराज की आत्मा कलपेगी, बिलखेगी – यही सच है। क्योंकि बिना डकार लिए ट्रस्ट के सभी धन-सम्पत्तियों को खाना दरभंगा राज की संस्कृति में कहीं उल्लेख नहीं है। 

कहा जाता है कि महाराजाधिराज अपनी मृत्यु के बाद भी, दरभंगा ही नहीं, भारत के विभिन्न शहरों में जितनी सम्पत्तियाँ छोड़ गए थे, उन सम्पत्तियों के सहारे भारत के बराबर भौगोलिक क्षेत्रफल का एक और देश जोड़कर भारत को बृहत्-भारत बनाया जा सकता था। स्वतन्त्र भारत में सरकार की मदद से देश में आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, मानवीय क्रांतियाँ लायी जा सकती थी, जिससे देश के लोगों का अध्यधिक भलाई हो सकता था – लेकिन ऐसा नहीं हुआ और जो हुआ, साथ ही, जो हो रहा है, वह मिथिलाञ्चल ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत-राष्ट्र के लोगों के लिए, विशेषकर जो महाराजाधिराज के प्रति नतमस्तक थे, “दुःखद” प्रकरण मानते हैं। खैर, वर्तमान में सबसे अधिक खबर में हैं, ‘कंट्रोवर्सी’ नहीं कहेंगे अभी तक क्योंकि यह बात “सार्वजनिक नहीं हो पाया है, सरकार तक नहीं पहचुँ पायी है, सरकारी अधिकारियों के कान खड़े नहीं हुए हैं – महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन का क्रिया-कलाप । यह फॉउंडेशन भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन आय-कर से सम्बंधित सभी सुविधाओं का उपयोग करता हैं। आज भी करोड़ो-अरबों की संपत्ति, विशेषकर भू-भाग, पुरात्तव, ऐतिहासिक कागजातों के अलावे चल-अचल सम्पत्तियाँ हैं इस फॉउंडेशन के पास । स्थापना काल के तीन ट्रस्टियों में फाउंडेशन के त्रसी की मृत्यु हो गयी है। शेष दो में एक हैं महारानीअधिरानी कामसुंदरी और दूसरे हैं उदय नाथ झा। 

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दस्तावेजों के अनुसार महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन के “डोनर ट्रस्टी”, यानि महाराजी अधिरानी काम सुंदरी अपने जीवन के 90 वसंत पार कर चुकी हैं और वृद्धावस्था के अंतिम पड़ाव पर पहुँच गयी हैं। महाराजा दरभंगा अपने जीवन काल में अनेकानेक दान किये हैं, चाहे आर्थिक क्षेत्र हो या सामाजिक या सांस्कृतिक, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद प्रदेश के विकास में योगदान नगण्य हो गयी है । दैवेज के अनुसार डॉ हेतुकर झा इस  फॉउंडेशन के संस्थापक और लाईफ-टाईम ट्रस्टी के साथ साथ मैनेजिंग ट्रस्टी भी थे।  अब वे जीवित नहीं हैं। शेष दो आमंत्रित ट्रस्टीगण अपने-अपने कार्य काल को दो-बार पूरा कर अवकाश प्राप्त कर चुके हैं। कुल 17 पन्नों के दस्तावेजों में अनेकानेक बातें की गई हैं, लिखी हैं जो इस बात को स्पष्ट करता है कि किसकी मृत्यु होने के कौन कार्य करेगा, इत्यादि। दरभंगा के लोगों का ही नहीं, दरभंगा राज परिवार से जुड़े अन्य लोगों का कहना है की “खुदा-न-खास्ते अगर महारानी साहिबा की मृत्यु हो जाती है, तो वैसी स्थिति में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन की सम्पूर्ण सम्पत्तियों पर एकाधिकार “को-ट्रस्टी” का हो जायेगा। शेष तो आप सभी विद्वद्जन हैं ही। अपनी मृत्यु से पूर्व 5 जुलाई 1961 को कोलकाता में ,महाराजाधिराज अपनी अंतिम वसीयत की थी। कोलकाता उच्च न्यायालय द्वारा वसीयत सितम्बर 1963 को प्रोबेट हुई और पं. लक्ष्मी कान्त झा, अधिवक्ता, माननीय उच्चतम न्यायालय, वसीयत के एकमात्र एक्सकुटर बने और एक्सेकुटर के सचिव बने पंडित द्वारिकानाथ झा । वसियत के अनुसार दोनों महारानी के जिन्दा रहने तक संपत्ति का देखभाल ट्रस्ट के अधीन रहेगा और दोनों महारानी के स्वर्गवाशी होने के बाद संपत्ति को तीन हिस्सा में बाँटने जिसमे एक हिस्सा दरभंगा के जनता के कल्याणार्थ देने और शेष हिस्सा महाराज के छोटे भाई राजबहादुर विशेश्वर सिंह जो स्वर्गवाशी हो चुके थे के पुत्र राजकुमार जीवेश्वर सिंह , राजकुमार यजनेश्वर सिंह और राजकुमार शुभेश्वर सिंह के अपने ब्राह्मण पत्नी से उत्पन्न संतानों के बीच वितरित किया जाने का प्रावधान था । 

महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के नाम लोगों के कल्याणार्थ पर स्थापित दो प्रमुख ट्रस्ट्स 

छोटी महारानी महाराजा के बाद अधिकांश समय दरभंगा हाउस केंद्र सरकार द्वारा लेने के बाद उससे सटे आउट हाउस में दिल्ली में रहने लगी और दरभंगा आने पर नरगोना पैलेस में। 1980 के आसपास से नरगोना कैंपस में बेला पैलेस के सामने नवनिर्मित कल्याणी हाउस में आने पर रहती हैं। 1990 से अधिक समय दरभंगा में रहने लगीं है और दरभंगा रिलीजियस ट्रस्ट जिसके अधीन 108 मंदिर है और सीताराम ट्रस्ट जिसके अधीन वनारस के बांस फाटक, गोदोलिया चौक के नजदीक राममंदिर आता है के एकमात्र ट्रस्टी हैं, उक्त मंदिर के गेट के समीप कुछ अंश जमीन की बिक्री कर दी गयी है। इनसे पूर्व बड़ी महारानी राजलक्ष्मी जी इसके ट्रस्टी थीं। राजलक्ष्मी जी ने महाराज कामेश्वर सिंह के चिता पर माधवेश्वर में मंदिर का निर्माण करवायी थी। छोटी महारानी कामसुन्दरी जी महाराज कामेश्वर सिंह कल्याणी ट्रस्ट बनवायी जिसके तहत किताबों का प्रकाशन ,महाराजा कामेश्वर सिंह जयंती आदि कराती हैं। पंडित दुर्गानंद झा, मेनेजर के ट्रस्टी बनने के बाद श्री केशव मोहन ठाकुर, पूर्व IAS की नियुक्ति हुई और उनके बाद दरभंगा राज के एक पदाधिकारी श्री मित्रा और फिर श्री बुधिकर झा मेनेजर रहे।

कल्याणी ट्रस्ट डीड के अनुसार, फॉउंडेशन का कार्यकारी शक्ति मैनेजिंग ट्रस्टी में निहित है। बाद में, दिसंबर 1998 में एक सप्लीमेंट्री डीड ऑफ़ रेक्टिफिकेशन पारित कर फॉउंडेशन में  दो “इंवाइटिज ट्रस्टीज” का पद जोड़ा गया, जिसका कार्यकाल दो वर्ष निर्धारित किया गया। साथ ही, इस बात का भी प्रावधान किया गया कि इस इन्वाइटेड ट्रस्टीज के कार्यकाल को एक-टर्म के लिए और बढ़ाया जा सकता है। बसर्ते बोर्ड ऑफ़ लाईफ टाईम ट्रस्टीज / मैनेजिंग ट्रस्टी का अनुमोदन हो।महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फॉउंडेशन एक पब्लिक ट्रस्ट है और सरकार द्वारा निर्धारित आयकर से सम्बंधित सभी सुविधाओं का लाभ भी उठता है – चाहे आमदनी हो या डोनेशन। सूत्रों के अनुसार “डॉ हेतुकर झा की मृत्यु 2017 में होती है। बाद में डॉ सुरेंद्र गोपाल, जो एक इन्वाइटी ट्रस्टी थे, अपने दो टर्म कार्यकर अवकाश प्राप्त करते हैं। पुनः, पध्मश्री मानव बिहारी वर्मा, जो दूसरे इन्वाइटेड ट्रस्टी थे, वे भी अपना दो कार्यकाल पूरा कर 2018 में अवकाश प्राप्त करते हैं। अब इस फॉउंडेशन में न तो कोई लाईफ़ टाईम /मैनेजिंग ट्रस्टी है, न इन्वाइटेड ट्रस्टीज है, जो डोनर ट्रस्टी हैं वे 90 वर्ष से भी अधिक हैं और फॉउंडेशन का क्रिया-कलाप देखने, समझने की स्थिति में नहीं हैं।  

बहरहाल, दरभंगा के लोगों को, मिथिलांचल के लोगों को चाहे वे किसी भी जाति के हैं सबों को दरभंगा राज के महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट और महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाऊंडेशन के क्रियाकलाप के बारे में पूछने का पूरा अधिकार है। पूछिए न ट्रस्ट से की महाराजाधिराज की मृत्यु के बाद उन्होंने आपके लिए, बिहार के लिए, मिथिलांचल के लिए क्या किये? आप नहीं पूछेंगे तो आप सोये रह जायेंगे और दरभंगा किला के अंदर सिनेमा हॉल तो खुला ही गया है, होटल भी है ही – बस गगनचुम्बी इमारत बन जाएगी और पटना के फ़्रेज़र रोड जैसा कहीं कामेश्वर मॉल तो कहीं लक्ष्मीश्वर मॉल तो कहीं रामेश्वर मॉल खुल जायेगा और आप सभी दरभंगा को मिथिला की राजधानी बनाने का सपना सोये-सोये देखते रहेंगे। 

इसलिए जागें ……. क्रमशः 

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