नीतीश बाबू का चेहरा देखकर लगता है कि उन्हें फूट्लो-आँख नहीं सुहाते हैं मंगल पाण्डे, लेकिन…. 

नीतीश बाबू का चेहरा देखकर लगता है कि उन्हें फूट्लो-आँख नहीं सुहाते हैं मंगल पाण्डे, लेकिन का करियेगा नितीश जी।  चुनाव से पहले ही तय कर लिए थे बीजेपी से

पटना: कभी सोचे हैं कि जिस व्यक्ति के नाम पर भारत में “चिकित्सक दिवस” के रूप में मनाया जाता है, उस महानुभाव का जन्म पटना के खजांची रोड में अघोर शिशु विद्या मंदिर के प्रांगण में हुआ था। नाम था भारत रत्न डॉ बिधान चंद्र राय।  राय साहेब पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री भी थे। आज उसी बिहार में राजनीति शास्त्र से स्नातक करने वाला व्यक्ति प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्री हैं और इस सम्पूर्ण ऐतिहासिक प्रकरण के लिए जवाबदेह है बाबू नीतीश कुमार। नितीश कुमारजी “नवमीं कक्षा” में पढ़ने वाले को भी स्वास्थ्य मंत्री बना देते हैं। जानते हैं क्यों? इन्हे मुख्य मंत्री की कुर्सी से बेतहाशा मोहब्बत है। चिपककर जीवन यापन करना चाहते हैं चाहे प्रदेश में कोरोना वाइरस से संक्रमित पार्थिव शरीरों की लम्बी कतार क्यों न लग जाय ?

वैसे कहा जाता है कि  नीतीश कुमार को फूट्लो-आँख नहीं सुहाते हैं बीमारू-राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डे अगर “बॉडी-लैंगवेज” को अध्ययन-अन्वेषण करें। अब सवाल यह है कि 243 विधायकों वाला विधान सभा में अगर 43 विधायक लेकर चार-पांच बैशाखी के सहारे “जबरदस्ती” मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठेंगे तो मुँह कैसा बनेगा। अब मंगल पाण्डे सुहाएँ या नहीं लेकिन दिल्ली के दीन दयाल भवन का आशीर्वाद है उनपर। इतना ही नहीं, नीतीश कुमार को तो सातवीं पास, नवमी पास, राजनीति शास्त्र में स्नातक को बिहार का स्वास्थ्य मंत्री बनाने का “पर्याप्त ट्रेनिंग” है और चिकित्सा विज्ञान के घनुर्धरों को गंगा किनारे बैठकर खैनी चुनाकर नेताओं को सुवह-दोपहर-शाम-रात खिलाने का अभ्यास तो मंगल पाण्डे क्या शन्निच्चर झा भी स्वास्थ्य मंत्री हो सकते हैं और गुल्मी घाट ही नहीं प्रदेश के सभी खुले मैदानों में पार्थिव शरीरों की लम्बी कतार लग सकता है और आप हम ब्राह्मण है, वो चमार है, फलनमा दुसाध है, वह कुर्मी है, वह मुसलमान है करते रह जायेंगे । 

साठ के दशक के उत्तरार्थ जब कृष्ण बल्लभ सहाय की मुख्य मंत्री (2 अक्टूबर, 1963 – 5 मार्च, 1967) की कुर्सी अधिक गर्म हो गयी थी, तब जन क्रांति दल के महामाया प्रसाद सिन्हा (5 मार्च, 1967 – 28 जनवरी, 1968) पटना पश्चिम से चुनाव में कूद गए थे। हम सभी उस समय पटना कालेज के सामने वाली मोहल्ले पुरन्दर पुर में रहते थे। छोटे-छोटे बच्चे थे। नित्य दोपहर में मोहल्ले के बच्चे एकत्रित होकर, हाथ में गंजी, चड्डी, गमछी लेकर गली-गली घूमते थे, नारा लगते थे – “गली-गली में शोर हैं – मैय्या-बाबू (महामाया बाबू) चोर है।” आज कोई 53+ साल बाद एक बार फिर से वही नारा दुहरा रहा है बिहार का लोग, बिहार का बच्चा-बच्चा, बिहार की महिलाएं कोरोना – वायरस त्रादसी से त्रस्त होकर। सभी कह रहा है : “गली-गली में चोर हैं – मंगल पाण्डे चोर है” (आर्थिक चोर हैं अथवा नहीं यह तो देश के विभिन्न अन्वेषण एजेंसियां समय आने पर तहकीकात करेंगी, भारत का महाभिलेखागार करेगा) लेकिन वर्तमान स्थिति को देखकर बिहार के 12 करोड़ लोग इस बात का गवाह जरूर हैं कि वे प्रदेश में मंगल पांडे प्रदेश में मुस्कुराता स्वास्थ्य सेवा देने के बजाय उन सेवाओं पर “शन्निच्चर” की दशा फेर दिया। लोग मर रहे हैं, बिलख रहे हैं, शमशानों में पार्थिव शरीरों की लम्बी कतार है और मंगल पांडे प्रदेश के स्वास्थ मंत्री अभी तक बने हैं।

विगत दिनों नगवा (बलिया, उत्तर प्रदेश) वाले मंगल पाण्डे के एक रिस्तेदार के घर गया था। वे सभी भिरगू बलिया (सिवान, बिहार) वाले मंगल पांडे को भर पोख, भर छाक, तृप्त-आत्मा भर गलिया रहे थे। कह रहे थे कि बिहार के वर्तमान मुख्य मंत्री नीतीश कुमार की कोई बहुत-बड़ी कमजोरी है और वह कमजोरी भाजपा वालों को पता है। भाजपा वाले उसी कमजोरी का नश पकड़कर उन्हें जहाँ मर्जी, जिधर मर्जी, जिसके हाथों मर्जी ‘टाईट’ करते रहते हैं । अन्यथा कोरोना संक्रमण के इस त्रादसी के समय प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्री कहीं ऐसा व्यक्ति होता जो अपने नाम का सम्पूर्ण अर्थ भी नहीं बता सकता – न भौति और न भौगोलिक। ऐतिहासिक वृतांत के बारे में तो सोचिये ही नहीं । इसके बाद एक ठहाका लगाते कहते हैं: “आखिर नितीश सरकार की यह परंपरा है और परंपरा निभा रहे हैं नितीश जी। आज मंगल पाण्डे हैं स्वास्थ्य मंत्री कल लालू प्रसाद यादव का बड़का बेटा तेज प्रताप यादव था नीतीश के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री ?” गलत नहीं न कह रहे हैं। क्योंकि राजनीति शास्त्र से स्नातक पास करने वाला चिकित्सा शास्त्र का प्रमुख है बिहार में। वैसे तेजप्रताप तो नवमी कक्षा भी पास नहीं था। बात में तो कोरोना-वाइरस वाला वैक्सीन जैसा दम है लेकिन इस बात को बिहार का आदमी सोचेगा कौन?

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सज्जन आगे कहते हैं। आप तो पढ़े होंगे रामबृक्ष बेनीपुरी जी को। आप तो राजगृह, वैशाली से भी परिचित हैं ही। जब लिच्छवि की राजनृत्यांग्ना ‘अम्बपालिका’ का नाम समयांतराल अप्भ्रन्सित होकर श्री रामबृक्ष बेनीपुरी की ‘अंबपाली’ हो सकती है, तो बलिया, उत्तर प्रदेश के ‘नगवा’ गाँव में जन्में भारत के स्वाधीनता संग्राम के ऐतिहासिक युद्ध के रचयिता मंगल पांड़े का नाम और काम अप्भ्रन्सित होकर बिहार के सिवान जिला के भिरगू बलिया गाँव में जन्में मंगल पांडे क्यों न हो सकता है ?

एक ने देश की आज़ादी के लिए फांसी के फंदों पर लटकना अधिक श्रेयस्कर समझा, ताकि आज़ाद भारत में आने वाली पीढ़ियां खुले में सांस ले, स्वच्छ हवा में सांस ले सके। और दूसरा आज़ाद भारत में जन्में मंगल पाण्डे अपने ही प्रदेश के लोग-बाग़ को कोरोना वायरस के संक्रमण के इस त्रादसी के समय एक-एक साँसों पर राशन लगाता है। ऑक्सीजन सिलिंडरों, स्वास्थ्य-सेवाओं का किल्लत करवाता है। पीड़ित/पीड़िता को असमय मृत्यु के द्वार पहुंचता है। आज़ाद भारत में यह पहली घटना है जब शमशानों में पार्थिव शरीरों की कतार बन गयी है। कुछ भी हो सकता है और ‘बेचारे नीतीश कुमार असहाय अबला नारी जैसा टकटकी निगाह से अपने सामने अपने ही लोगों को मरते देख रहे हैं, थेथर जैसा। कुछ भी हो सकता है। यह बिहार है। न यहाँ लोग-बाग़ अनुशासित होंगे और ना ही चिपकिल्ली जैसा रंग-बदलते नेता।”

वैसे प्रदेश में राजनीतिक विश्लेषणकर्ताओं की किल्लत नहीं है, चवन्नी-छाप से लेकर लाखों-रुपये वाले मिल जायेंगे; लेकिन अब तक किसी ने एक शब्द भी नहीं लिखा है कि “आखिर वह कौन सा वजह है कि 71-वर्षीय नितीश कुमार, औसतन 45-50+ वर्षीय घुटने-कद के नेताओं के सामने नतमष्तक हो रहे हैं। क्या गर्दन, क्या कमर. सम्पूर्ण शरीर झुकाकर दंड पेल रहे हैं । सत्तर के ज़माने से लेकर विगत वर्षों तक दिल्ली के क़ुतुब मीनार, पटना के गोलघर जैसा ऊँचा हेंकड़ी रखने वाले नितीश कुमार को क्या हो गया है? उनका एटीच्यूड इतना परास्त क्यों हो गया है? भारतीय जनता पार्टी के तो वे जन्म से विरोधी रहे हैं। कुछ तो वजह है जो नितीश कुमार की कमजोरी हो सकती है और उस कमजोरी का भरपूर इस्तेमाल भारतीय जनता पार्टी के लोग कर रहे हैं। ढूँढना चाहिए ।

आज बिहार के स्वास्थ मंत्री मंगल पांडे के विरुद्ध सोशल मीडिया पर, ट्विटर पर #हैशटैग चल रहा है “#रिजाइनमंगलपाण्डे और वजह है प्रदेश की वर्तमान स्वास्थ्य व्यवस्था । प्रदेश सरकार जिस तरह से विगत 15 से अधिक माहों से कोरोना वायरस के संक्रमण से, लोगों की स्वास्थ व्यवस्था से, अस्पतालों की स्थितियों से, मरीजों के दशाओं से खिलबाड़ कर रही है, इस स्थिति में तो #हैशटैगनितीश कुमार होना चाहिए था। #हैशटैग राष्ट्रपतिशासन होना चाहिए था #हैशटैगभंग करो विधान सभा होनी चाहिए था। यह #हैशटैग मंगलपांडे ही क्यों? मंगल पांडेय तो पूरी राजनीतिक प्रकरण का एक सबसे छोटा सिक्का है।

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इस #हैशटैग पर राष्ट्रीय जनता दल, यानी लालू यादव एंड कंपनी के लोगबाग बोल रहे हैं। कल तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार संजय यादव (क्या तेजस्वी यादव बोल नहीं सकते ? इतने बड़े अभी नहीं हुए हैं।) हैश्टैग का इस्तेमाल करते हुए लिखा है कि ये शर्मनाक है कि जीवनदायिनी कोविड वैक्सीन की बर्बादी करने वालों राज्यों में बिहार का सातवां स्थान है। तेरह करोड़ लोगों में से अब तक 76.6 लाख लोगों को वैक्सीन लगी है, जबकि इनमें कितने डोज प्रति व्यक्ति को लगी, ये स्पष्ट नहीं है। बावजूद इसके 4.95 लाख वैक्सीन बर्बाद हो चुकी है। ये आपराधिक तरीके से हुई बर्बादी डर पैदा करती है।” परन्तु, क्या राष्ट्रीय जनता दल के सभी 75 विधान सभा के विधायकगण और पांच राज्य सभा के सम्मानित सदस्यों ने प्रदेश में कोरोना वायरस के संक्रमण के रोकथाम, संक्रमित मतदाताओं के जीवनार्थ मदद हेतु एक कदम आगे आये हैं? आखिर प्रदेश की जनता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में उनके 75 लोगों को ससम्मान प्रदेश के विधान सभा तक तो पहुँचाया था। क्या राष्ट्रीय जनता दल के शहंशाह लालू प्रसाद यादव, श्रीमती राबड़ी देवी के समय प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत बेहतर थी ? प्रदेश के लोग कहेंगे – नहीं।

बहरहाल, अलग-अलग जिले में खराब स्वास्थ्य व्यवस्था और अस्पताल की बदहाली का जिक्र करते हुए लोगों ने स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय से इस्तीफे की मांग की है. लोगों ने ट्वीट कर उनपर निशाना साधा है। #रिजाइनमंगलपांडे अभियान में यह कहा जा रहा है कि “आज से 25 साल बाद आपके बेटे पोते पूछेंगे आपसे की जिस आदमी के स्वास्थ्य मंत्री रहते मुजफ्फरपुर की चमकी एक राष्ट्रीय आपदा बन गया, पटना के डेंगू ने कोहराम मचा दिया, अस्पतालों में डॉक्टर, बेड और ऑक्सीजन की कमी के वजह से लोग दम तोड़कर मर रहे थे… वो अमंगल पांडे कैसे वर्षों तक स्वास्थ्य मंत्री की कुर्सी पर जोंक बनकर चिपके रह सका ? वो आपसे पूछेंगे की उस निकम्मे को हटाने के लिए बिहारी चेतनाशील समाज ने आवाज भी नहीं उठाया। बिहार में स्वास्थ्य विभाग के बर्बादी के अनेक दोषी हैं लेकिन सबसे बड़ा दोषी है मंगल पांडे। जब तक ये आदमी पद पर है, स्थिति सुधरने की उम्मीद बेईमानी है। बिहार के बचाव के लिए इस नकारा आदमी को स्वस्थानम गच्छ करना होगा। मंत्री पद से विसर्जित करवाइए।”

वैसे आजकल “कद्दावर” शब्द का यत्र-तत्र-सर्वत्र इस्तेमाल किया जा रहा है। वैसी स्थिति में कहा जाता है कि 45 वर्षीय मंगल पांडे भाजपा का ‘कद्दावर’ नेता हैं। सिवान जिले के भृगु बलिया गांव में जन्म लिए। सं 1987 से जब भाजपा बिहार में राजनीतिक जड़े जमाने की कोशिश कर रही थी उस वक्‍त उन्‍होंने आखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में अपना कदम रखा और फिर आरएसएस से संबंध बना लिए। फिर 1989 में बीजेपी में शामिल। सन 2005 में बिहार भाजपा के महासचिव बने और 2012 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्य हो गए। स्थानीय रिपोर्ट का मानना है कि एक साल बाद, यानी 2013 में जब बिहार भाजपा अध्यक्ष के रूप में अचानक मंगल पांडे का नाम सामने आया तो ना सिर्फ भाजपा नेताओं बल्कि विपक्षी पार्टियों के लिए भी हैरानी की बात थी।

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जबकि इसे साफ तौर पर दूसरे टर्म से नकारे गए वयोवृद्ध नेता सीपी ठाकुर के गुट की हार और सुशील मोदी की जीत के रूप में देखा गया। मंगल पांडे को पार्टी की प्रदेश ईकाईं का जिम्मा सौंपा गया और जनवरी 2013 से मंगल पांडे ये जिम्मेदारी निभा रहे है। भाजपा का माना है कि उनके नेतृत्‍व में भाजपा के लिए बिहार में काफी कुछ बदलाव आया है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि आने वाले समय में पांडे जी वर्तमान मुख्य मंत्री नितीश कुमार को निवर्तमान बना सकते हैं। वैसे यह कार्य आसान नहीं है क्योंकि प्रदेश में मुसलमानों का एक विशाल समूह, जो आरजेडी के साथ है भी, वह भी शाहनवाज का चिकना-चिकना चेहरा देख रहा है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी शाहनवाज की “हैसियत” को जानते हैं। वे ये भी जानते हैं कि शाहनवाज साहेब पार्टी के लिए क्या-क्या कर सकते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में एक्यूट इनसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी AES से अब तक हुई 170 मौतों के कारण हाहाकार मचा हुआ है। स्‍थानीय भाषा में ‘चमकी बुखार’ कही जाने वाली इस बीमारी की वजह से सियासी पारा भी बढ़ गया है। यही वजह है कि नीतीश कुमार द्वारा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे का इस्तीफा मांगने की खबरें सामने आ रही है। हालांकि बीजेपी सूत्रों ने भी स्पष्ट संकेत दिया है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे। जाहिर है बीजेपी-जेडीयू के बीच यह बड़ा सियासी मसला बन सकता है। कहा जाता है कि एक्यूट इनसेफेलाइटिस सिंड्रोम को भयावह बनने से रोकने की जिम्‍मेदारी राजनीति शास्त्र से स्नातक प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के कंधों पर थी, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके। बच्चों की लगातार मौत के बाद जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन मुजफ्फरपुर पहुंचे थे, तब उनके साथ मंगल पांडे भी थे। हॉस्पिटल में जायजा लेने के बाद हर्षवर्धन ने एसकेएमसीएच में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ चमकी बुखार को लेकर बैठक की और बीमारी के नियंत्रण पर चर्चा की। उस वक्‍त डॉ. हर्षवर्धन के बगल में ही मंगल पांडेय भी बैठे थे। बैठक के दौरान ही वह भारत-पाक मैच का स्कोर पूछते हुए नजर आए। उन्होंने पूछा कितना विकेट हुआ तो सामने से जवाब मिला चार विकेट। यही बात विवाद का कारण बन गई.

2014 के लोकसभा चुनावों में पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी को आगे किए जाने से नाराज नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जेडीयू एनडीए से अलग हो गई तो भाजपा ने विधानसभा चुनावों में एनडीए के सहयोगी दलों एलजेपी, HAM और RLSP के साथ मैदान में उतरने का फैसला कर दिया. उस समय मंगल पांडे बिहार भाजपा के अध्यक्ष हैं. कहा जाता है कि ये सुशील मोदी के बहुत करीबी हैं। अब बिहार के लोगों को कौन समझाए कि सुशिल मोदी अब दिल्ली में हैं और दिल्ली में संसद के बाहर अगर शुशील मोदी ही नहीं, उन जैसा 53०-535 सांसद, चाहे लोक सभा के हों या राज्य सभा के, बिना संत्री और साज सज्जा के विजय चौक पर दाहिने के बजाय बाए तरफ से चलेंगे तो दिल्ली पुलिस पकड़कर पार्लियामेंट ठाणे में ठूंस देगी। उम्र से लंबे राजपथ पर कोई किसी का नहीं है, कोई किसी को पहचानता नहीं है।

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