बिहारी ‘पीके’ + मराठी ‘पीके’ = बंगाल गटक जाना, यानी ‘पैसा के लिए कुछ भी करेगा’

कलकत्ता का राईटर्स बिल्डिंग। फोटो: साहिल आहूजा के सौजन्य से

कलकत्ता / नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव सम्मानित “पीके” के कारण केंद्रीय सत्तारूढ़ पार्टी “गटक” रही है, ऐसा अनुमान है। वैसे चुनवोपरांत जो भी राजनीतिक पार्टियों के सफेदपोश नेतालोग राईटर्स बिल्डिंग की कुर्सियां तोड़ेंगे, इतना तो पक्का है कि 294 विधान सभा क्षेत्रों में स्थित सरकारी, गैर-सरकारी, निजी अस्पतालों और स्वस्थ केंद्रों “कोरोना संक्रमित बाबू मोशाय और बौदियों का एक विशाल समूह रुक-रूककर सांस लेते नजर आएंगे। उस समय न तो सत्तारूढ़, न विपक्षी और न बिचौलिए राजनितिक पार्टियों के नेतागण उन्हें देखने पहुंचेगे।

स्वाभाविक है तब तक सरकार बन गई रहेगी और सरकार बनने के बाद अगले पांच वर्षों तक नेताओं-मतदाताओं का सम्बन्ध बिच्छेद हो जाता है, इतिहास गवाह है। जो कुछ बचे-खुचे नेता होंगे वे बाराती, विवाह, हनीमून, बच्चों के जन्म, छट्ठी, सताईसा, नामकरण, मरनी, तेरहवीं, इत्यादि अवसरों पर अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज करते रहेंगे, सोसल मिडिया पर तस्वीर, कहानी पोस्ट करते रहेंगे। कभी-कभार ‘लाईव’ भी देखेंगे, शरीर से, आत्मा से नहीं।

बहरहाल, भारत के लगभग 911 मिलियन मतदाताओं को चाहिए कि वे देश के सभी राजनीतिक पार्टियों के दफ्तरों को, सरकारी-गैर-सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं को, सरकारी-गैर-सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को कोविड से संक्रमित लोगों के लिए आरक्षित/सुरक्षित कर लें। साथ ही, सभी विधान सभा और विधान परिषदों के माननीय सदस्यों, जिन्हें जिताने के लिए मतदाता उनके पक्ष में मतदान किये हैं/थे, के घरों को भी संक्रमित लोगों के रहने में इस्तेमाल करें और सरकार द्वारा मिलने वाली मासिक वेतन का भी इस्तेमाल संक्रमित लोगों, उनके परिवारों के कल्याणार्थ करें । आखिर “वे तो अपने हैं उनके और अपने तो अपने ही होते हैं।”

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आगामी लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा, विधान परिषद, पंचायत के चुनावों में कौन अभ्यर्थी और मतदाता गण सांस लेते मिलेंगे, और किनके सांस अटक जायेंगे, यह त्रिनेत्रधारी महादेव के अलावे कोई नहीं जानता। इसके लिए तो “बिहार वाले पीके” भी नहीं बता सकते हैं। वैसे आमिर खान के ‘पीके’ और ‘बिहार वाले पीके’ में एक फेबिकोल जैसा समानता है – पीके बोले तो: पैसा के लिए कुच्छो करना ”

इतना ही नहीं, सभी देश के सभी 718 जिलाधिकारियों को, मानवता के कल्याणार्थ, विधान सभा, विधान परिषद्, लोक सभा और राज्य सभा के सम्मानित सदस्यों को उनके अपने-अपने क्षेत्रों के विकास के लिए मिलने वाली राशियों का इस्तेमाल कोरोना वायरस के रोकथाम, संक्रमित लोगों, परिवारों के कल्याणार्थ, मृतकों के अंतिम संस्कार, मृतकों के परिवारों के रक्षार्थ करें। आखिर नेताजी और उनके मतदाता जीवित रहेंगे तभी तो उक्त राशि का इस्तेमाल कर पाएंगे।

वैसे केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय और केंद्र सरकार यह दावा कर रही है कि वह सक्रिय रूप से अपनी पूरी क्षमता के साथ कोविड-19 के विरुद्ध लड़ रही है और उसका ध्यान इसकी रोकथाम, निगरानी, कोविड उचित व्यवहार और टीकाकरण पर केन्द्रित है। लेकिन भारत के चिकित्सा विशेषज्ञों का, विशेषकर जो वर्तमान परिस्थिति में कोरोना -19 नामक वायरस के साथ अपनी जिंदगी को जोखिम में डालकर जद्दोजहद कर रहे हैं, उनका मानना है कि विधान सभा के वर्तमान चुनाव अभियान समाप्त होते-होते, राज्यों में नयी सरकारों की गठन होते होते सैकड़ों, हज़ारों, लाखों लोग कोरोना वायरस से बुरी तरह संक्रमित हो जायेंगे। आम लोगों के अलावे, अनेकानेक राजनेतागण भी अस्पतालों में भर्ती होंगे। उनकी साँसे भी अटकेंगी।

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भारत के चुनाव आयोग की सांख्यिकी के अनुसार भारत में कुल 2698 राजनीतिक पार्टियां हैं जिसमें 8 राष्ट्रीय स्तर की पार्टियां हैं और 52 राज्य-स्तरीय पार्टियां हैं। शेष 2638 आयोग द्वारा ‘रिकॉग्नाइजेड’ नहीं हैं परन्तु निबंधित हैं और चुनाव में भाग लेते हैं। भारत के वर्तमान राज्यों के विधान सभाओं के गठन में, लोक सभा के गठन में कुल 911 मिलियन मतदातागण की भूमिक अक्षुण रही है, भले अखबार वाले लिखें या नहीं, टीवी वाले दिखयें या नहीं ।

बंगाल विधान सभा द्वार। फोटो विकिपीडिया

इसी तरह, सम्पूर्ण देश में कुल 739. 024 + बिस्तर के साथ कुल 69000 सरकारी, अर्ध-सरकारी और निजी अस्पताल और चिकित्सालय हैं। इनमें सरकारी क्षेत्र के अस्पताल और चिकित्सालय वर्तमान स्थिति पर काबू पाने के लिए कम हैं। अतः सभी निजी क्षेत्रों के अस्पतालों और स्वस्थ केंद्रों, चिकित्सालयों को स्थानीय प्रशासन के सहयोग से कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए अधिक से अधिक हिस्सा सुरक्षित किया जाय ।

इतना ही नहीं, चुकि वर्तमान काल में “ऑन-लाईन पढाई हो रही है”, अतः देश के लगभग 1000 विश्वविद्यालयों के कार्यालयों को (मसलन 54 केंद्रीय विश्वविद्यालयों, 416 राज्य विश्वविद्यालयों, 125 डीम्ड विश्वविद्यालयों, 361 निजी विश्वविद्यालयों, 7 संस्थानें जो राज्य विधायिका के अधीन हैं, 159 संस्थानें जो राष्ट्रीय महत्व के हैं) सभी संस्थानों को कोविड संक्रमित मरीजों के लिए सुरक्षित रखा जाय।

मतदाताओं का मानना है कि आज जब सम्पूर्ण विश्व, भारत भी, कोरोना वायरस नामक महामारी के चपेट में है, भारत के नेताओं को, चाहे सांसद हों या विधायक, सरकारी पैसे भी निकालने में सांस अटक रहा है। ये सभी सांप के तरह उन पैसों पर बैठे हों जबकि ये सभी पैसे जनता की सुविधा, संसदीय और विधान सभा क्षेत्रों के विकास हेतु निमित्त है।अब उन्हें कौन समझाए “अगर जिन्दा रहेंगे तो चुनाब लड़ पाएंगे सांसद महोदय, विधायक महोदय। संसदीय विधान सभा क्षेत्रों के मतदातागण जीवित रह पाएंगे तभी आपके पक्ष में मतदान भी कर पाएंगे। आप; संसदीय / विधान सभा क्षेत्रों के विकास हेतु “सरकारी पैसे” का उपयोग कर पाएंगे, भले ही उस राशि का 20 फीसदी ही उपयोग हो पाए – क्योंकि सरकारी पैसे खर्च करने में भी आपकी साँसे अटक रही है। वजह भी है: गटकना चाहते हैं।

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सांख्यिकी के अनुसार, मार्च 27, 2019 तक 1734 . 42 करोड़ रूपया बिना इस्तेमाल के सड़ रहे हैं। ये सभी पैसे संसदीय क्षेत्रों के विकास पर खर्च होना था, नहीं हो पाया – सांसद की सोच। आकंड़ों के अनुसार भारत के लोक सभा में 543 सांसद हैं, जबकि राज्य सभा में 245 यानि कुल 788 सांसद जो देश के 130 करोड़ लोगों का/मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं । आज के परिपेक्ष में, अगर प्रत्येक सांसद अपने कोष से एक साल की राशि यानि पांच करोड़ कोरोना त्रादसी के रोकथाम के लिए समर्पित करते हैं तो कुल राशि 788 x 50000000 = 39400000000 करोड़ रुपया उनके संसदीय क्षेत्रों के जिलाधिकारियों को मिलता है। इसी तरह अगर कुल 4542 विधायक अपनी राशि से 20000000 रुपये देते हैं तो कुल राशि 90840000000/- रूपया पुनः उनके जिलाधिकारियों को प्राप्त होगा; यानि कुल 1302800000000 रूपया ।

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