बिहार में दू गो ‘जल-संसाधन’ मंत्री हैं, एक ‘लघु’, दूसरा ‘दीर्घ’; नितीश बाबू भी ‘शंका’ से ग्रसित थे 

देखिए कलाकारी 

आज प्रातः काल दरभंगा से एक युवक आर्यावर्तइण्डियननेशन.कॉम को यह तस्वीर प्रेषित किया है। युवक प्रदेश की वर्तमान स्थिति को बहुत ही मार्मिक रूप से व्यक्त भी किया है। उसका कथन महज ‘एक युवक का कथन नहीं है,’ बल्कि प्रदेश के समस्त खेतिहरों का है, जिसे बिहार सरकार जैसी ‘निर्जीव संस्था’ में बैठे ‘सजीव लोग’ सिर्फ चुनाव के समय ही सजीव-वाला गुण दिखातेहैं। चुनवोपरांत अगले चुनाव तक उनका व्यवहार भी निर्जीव संस्था जैसी ही हो जाती है।

युवक का कहना है कि पढने, लिखने, दवा-दारू, नौकरी-पेशा, इन सब बातों की चर्चा ही नहीं करें; यह तो आने वाली दस-पुस्तों तक बिहार सरकार में बैठे लोगबाग, नेतागण नहीं दे पाएंगे। लेकिन खेतिहरों को, चाहे ब्राह्मण समुदाय के हों या चमार समुदाय के, कोईरी समुदाय के हों, या कुर्मी समुदाय के, कायस्थ समुदाय के हों या ठठेरा समुदाय के, डोम समुदाय के हों उनके खेतों में पानी नहीं पहुंचा सकते हैं। 

आगे सुनिए । गुजरात वाले माननीय बड़का मोदी जी, बिहार वाले छोटका मोदी जी (आजकल दिल्ली में विराजमान हैं क्योंकि बड़का मोदीजी समझ गए की यह कउनो काम का नहीं है, इसलिए राज्य सभा में बैठा दो, कुछ दिन बाद सेवा-अवकाश-लाभ स्वरुप किसी राज्य का लाट-साहेब बना देंगे। अभी 69 वर्ष के हैं, छः वर्ष राज्य सभा अवधि जोड़ दीजिये तो 75 वर्ष के हो जायेंगे। उस उम्र में उन्हें लाट साहेब बना देंगे तो 80 पार कर जायेंगे। और का चाहिए), नितीश बाबू के बारे में तो कुछ सोचिये ही नहीं, खुद्दे “लटके” हैं, मालूम भी नहीं होगा कि बड़का मोदीजी कौन कोना से हुआ-हुआ कर देंगे और कुर्सी पर अपना आदमी, अपना पार्टी के आदमी को विराजमान कर देंगे। 

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बस वर्तमान विधान सभा के चुनाव परिणाम आने दीजिये। क्योंकि अगर बंगाल के पोखर में मछली के जगह कमल खिल सकता है, तो बिहार किस खेत की मूली है। मध्य-बिहार में पोखर है ही नहीं। दक्षिण बिहार अब झारखण्ड है। ले-दे के बचा गंगा पार।

क्या कहते हैं आप सभी 

महाशय लिखते हैं: नितीश बाबू के तो “आँख में पानी ही नहीं है, फिर नदी-नाला में पानी का होना तो भगवान् भरोसे । दू गो जो मंत्री हैं जल संसाधन के, उनमें एक हैं “लधु” और दूसरे हैं “दीर्घ”। लगता है नितीश बाबू को इन दोनों के क्रिया-कलापों पर “शंका” था तभी मंत्रालय भी वईसने दिए हैं। इन दोनों के विभाग में ही पानी नहीं है तो आँख में कहाँ से होगा। 

आने वाला समय दूर नहीं है जब दिल्ली से लोगबाग पानी “इम्पोर्ट” कराएँगे “पीने के लिए” और रोजाना प्रेस विज्ञप्ति जारी करेंगे कि हमने किसानों को खेत के एक-एक इंच तक फसल पटाने के लिए पानी पहुंचा दिए हैं। इस बात को जब भारत का लेखा महानियंत्रक महानिदेशालय जांच करेगा, तो विस्तार से तो लिखेगा ही, रिपोर्ट के ‘ऑपरेटिंग पोर्शन’ में लिखेगा, ताकि संवाददाताओं को सुविधा हो उठाने और चेपने में, की बिहार सरकार के सिंचाई विभाग के अधिकारीगण, मंत्रीगण हेलीकॉप्टर से पूरे प्रदेश के खेत में पानी छिड़क दिए हैं। अब प्रदेश में सिचाईं की कोई किल्लत नहीं है। इस कार्य के लिए तीन हेलीकॉप्टर किराये पर लिया जायेगा, और खर्चा 300 हेलीकॉप्टर का दिखाया जायेगा। 

बहरहाल, संपादक महोदय, खेत में पानी पटाने के लिए तो पम्प लाये । उसे खेत तक ले जाने के लिए स्थानीय युवकों ने अपने तरीके से राजधानी एक्सप्रेस जैसा सवारी बनाया है स्थानीय बांसबिट्टी से बांस काट कर। पेंच-स्क्रू भी दूकान से ले आये। कैसा लगा आपको हम सभी यांत्रिक-अभियंता बनने के लिए, शिक्षा प्राप्त करने के लिए जीवन पर्यन्त लार टपकाने वाले युवक-युवतियों का प्रयास। अगर अच्छा लगे तो प्रकशित जरूर करें। आर्यावर्त-इण्डियन नेशन में हमारे बाप-दादाओं ने कार्य किये थे। आज भी अखबार का टुकड़ा घर के कोने में मिल ही जायेगा। उसे देखकर, नाम सुनकर रोना आता है। भगवान माफ़ नहीं करेगा उन सबों को। 

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