नितीश बाबू !! ‘भाजपा’ को ‘उदार’ नहीं समझें, उसका ‘उदर’ बहुत बड़ा है

तस्वीर देखकर चौंकिएगा नहीं - यह राजनीति है। दोनों चेहरे को तो आप सभी पहचानते ही हैं

विस्वस्त सूत्रों के अनुसार लत्तम-जुत्ता-थप्पड़-धूसा-उठापटक के बाद से भारतीय जनता पार्टी के “आलाकमान” की नजर बिहार के 70-वर्षीय वृद्ध मुख्य मंत्री माननीय श्री नितीश कुमार पर टिकी है। पार्टी के सभी आला सदस्य 24×7 जनता दल से निकले और खुद को ‘युनाइटेड’ कहने वाले प्रदेश के मुखिया के क्रिया-कलापों को आंक रही है। बहरहाल, यह भी सुनने में आ रहा है कि दिल्ली के राजनीतिक ड्रेसिंग रूप में कुछ लोगों को सज्ज रहने का फ़रमान भी जारी हुआ है। खैर।

विगत दिनों बिहार विधान सभा में लत्तम-जुत्ता-थप्पड़-धूसा-उठापटक सब कुछ हुआ। सब मौके का फ़ायदा उठाए। जिसको जहाँ तक हाथ पहुंचा विधान सभा के सहकर्मी-सदस्यों को रसीद करते निकल गए। कई लोगों को टीवी के परदे पर देखा कि अपने हिस्से का तमाचा लगाने के बाद दोनों हाथों को ठोकते, झाड़ते-पोछते मुस्कुराते निकल रहे हैं। अखबार से टीवी तक, सोसल मीडिया पर सभी गणमान्य विद्वान/विदुषिगण इस घटना को “असंवैधानिक” कहे। वाजिव भी है। समाचार पत्रों में “ठुकाई” का समाचार भी छपा और नितीश बाबू जो जोश में आकर कहे कि वे सभी विधायकों के साथ राज्यपाल महोदय को त्यागपत्र दे देंगे, यह भी छपा। छपना भी चाहिए।

नितीश बाबू, थामिए जरा। आपकी सरकार की सहयोगी पार्टी, यानी भारतीय जनता पार्टी के बिहार के और दिल्ली के सभी नेतागण ”बाज” की तरह इस फिराक में हैं कि कब आप “फिसलें” और नयका-नयका धोती-कुर्ता-पाग-चड्डी-जीन्स-टी-शर्ट-बुशर्ट-फ्लयिंग शर्ट पहने, लाल-पीला-नीला-हरा टीका लगाए “राजनीतिक ड्रेसिंग रूम” में बैठे हैं। मिथिलाञ्चल के लोगबाग विभिन्न आकार-प्रकार के, रंग में “पाग” लिए खड़े भी हैं। कितनो के हाथ में “ललका पाग” भी है। मिथिला में “ललका पाग वियाह में पहना जाता है। आखिर आज की राजनीति भी “वियाह” से कम तो है ही नहीं। सभी लोग मुख्य मंत्री का शपथ लेने, लपकने के लिए बैठे हैं।

खबर यह है कि दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित नयका पार्टी कार्यालय से पांच-छः लोगों को फोन कर “सज्ज” रहने को कहा जा चुका है। और आप हैं कि पिछले विधान सभा (2015) में जहाँ 71 स्थान पर “जीत का ठप्पा” लगाए थे, इस बार (2020 चुनाव) में मात्र 43 स्थान पर ठप्पा लगाकर जीते हैं। आपको जो मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठाया है 74 स्थानों पर “जीत का ठप्पा” लगाकर, वह “कम बुद्धि वाला, ज्ञानवाला व्यक्ति और पार्टी नहीं है। वहां कोई “मूर्खों” का साम्राज्य नहीं है। अगर ऐसा होता तो सम्पूर्ब देश में “केशरी” नहीं लहराता। आपके जैसे उनके पास एक नहीं, दस नहीं, सैकड़ों लोग हैं जिन्हे तक्षण बिहार का मुख्य मंत्री बना सकती है। उसे “उदार” नहीं समझें, उसका “उदर” बहुत बड़ा है और आप जैसे नेता को बिना डकारे हजम करने की क्षमता रखती है। खासकर उस समय जब राम मंदिर बनने जा रही है।

आपको तो ज्ञात है ही, चश्मदीद गवाह भी हैं, जब पूरा देश राम मंदिर बनाने के लिए “ईंट” इकठ्ठा कर रहा था और भाजपा के “तत्कालीन वरिष्ठ” नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी “उड़नखटोला” पर बैठकर देश में भरम-सम्मलेन कर रहे थे, तभी से भाजपा पूरे देश पर कब्ज़ा करने के फिराक में लगी है। तीन दसक बीत गए और आज देश में राजनीतिक हालात और हालत दोनों आप देख ही रहे हैं। आप भी तो जनता दल से निकले, और कहते हैं खुद की पार्टी को “युनाइटेड” नितीश बाबू।

नितीश बाबू, एक बात और ध्यान रखिये – ये जो पाटलिपुत्र के सांसद हैं सम्मानित श्री रामकृपाल यादव जी, ये राष्ट्रीय जनता दल के खिलाड़ी हैं। यह बात आप हमसे अधिक जानते हैं। इनके गुरुदेव हैं चारा-वाले श्री लालू प्रसाद यादव। दस साल राज किये खुद, फिर पत्नी जी श्रीमती राबड़ी देवीजी और बिहार को बिना “डकारे” हजम करते गए।

पाटलिपुत्र वाले सांसद जी 1991, 1996 और 2004 में आरजेडी के ही सांसद थे। ऊ तो “घरेलु चिक-चिक-झक-झक” हो गया, वे भाजपा में आ गए। आज भी उनकी निगाह ‘मुख्य मंत्री’ की कुर्सी पर है। और हो भी क्यों न !! देखने में श्री जीतन राम मांझी से अधिक सुन्दर हैं। महादेव की कृपा से जगन्नाथ मिश्र जैसा “दिव्यांग” नहीं हैं। आप ही के पूर्व-उप-मुख्य मंत्री से बहुत अधिक शिक्षित हैं। पटना नगर निगम के डिप्टी मेयर रह चुके हैं। विधान परिषद् के भी सदस्य रह चुके हैं। और न जाने कई एक कमिटियों के सदस्य भी हैं – कौन गुण नहीं है मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए ? कम से कम राजेंद्र नगर वाले श्री सुशिल कुमार मोदी या फिर दिल्ली वाले अश्विनी चौबे जी से तो लाख गुना अच्छे हैं। यह हम नहीं, पूरा प्रदेश कहता हैं।

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ऊ तो राजेडी से इसलिए छलांग लगा लिए क्योंकि लालूजी का दोनों बेटा पढाई-लिखाई छोड़कर राजनीति में ढुकना चाह रहा था, जबकि रामकृपाल बाबू नहीं चाहते थे की लालू जी का ननकिरबा “अणपढ़” रहे, “अशिक्षित” रहे, उसे भी लोगबाग “गुआर” जाति का “गंवार” कहे। लेकिन न तो लालूजी को पसंद था यह बात और ननकिरबा के माय के तो पूछिए ही नहीं। लालूजी कहते थे “पढ़लिख कर क्या करेगा? अनपढ़ रहेगा तो भी हज़ारो आईएएस पीछे-पीछे दुम हिलाते चलेगा। लेकिन श्री रामकृपाल जी लालूजी के सम्प्रदाय के होने के बाबजूद स्नातक तो कर ही लिए। ताकि स्नातक क्षेत्र से बिहार विधान परिषद् में प्रवेश ले लें। अब, जब माय-बाबू का बरद-हस्त दोनों ननकिरबा पर था, तो फिर विभीषण निकल लिए घर से और 2014 में जब सम्पूर्ण देश में सम्मानित नरेन्द्र मोदी जी की पुरबा-पछवा-उतरिया-दछिनाहा, यानि चतुर्दिक हवा चली, राजेडी से कुदककर भाजपा में शरण ले लिए।

भाजपा वाले जानते हैं श्री रामकृपाल यादव जी की “राजनीतिक पैठ” बिहार में। कहीं ऐसा न हो कि आप “अलबलाएँ” और दीन दयाल उपाध्याय मार्ग से फूल का गुलदस्ता उनके हाथ में सम्मानित मोदीजी, सम्मानित अमित शाह जी, सम्मानित जयप्रकाश नड्डा जी देकर इन्दिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पर विदाई भी करें और जयप्रकाश नारायण अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर स्वागत के लिए भी खड़े रहें। क्योंकि श्री मोदी जी हैं दिल्ली में और उत्तर प्रदेश के घोसी वाले सम्मानित श्री फगु चौहान साहेब “लाट-साहेब” हैं बिहार का, तो कुछ भी हो सकता है। इसलिए “गश” में नहीं आएं, “अलबलाएँ” नहीं।

सोचिये न, बिहार से 40 सदस्य लोक सभा में हैं. किसी के मुंह में कोई बकार नहीं। श्री रामकृपाल बाबू उधर जैसे ही बिहार विधान सभा में लत्तम-जुत्ता-थप्पड़-घुसा हुआ, इधर दिल्ली के संसद में बिहार के प्रतिपक्ष के खिलाफ खड़े हो गए। ये आज भाजपा के हैं भले, लेकिन पहिले लालू यादव के बगल में बैठते थे, और लालूजी के दोनों ननकिरबा के साथ छत्तीस नहीं, छिहत्तर का नाता रखते हैं। भाजपा के सांसद होने के नाते लोकसभा में बिहार विधानसभा घटना की कड़ी निंदा किये । उन्होंने कहा कि राजनीतिक जीवन में आज तक ऐसी घटना नहीं देखे थे । उन्होंने यह भी कहा कि बिहार विधानसभा में लोकतंत्र की हत्या की गई है और इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम होगी।”

सांसद महोदय बिहार विधानसभा के माननीय अध्यक्ष जी से आग्रह किये कि मामले में दोषी सभी सदस्यों को बर्खास्त करें । इस घटना से वे काफी आहत हैं । लोकतंत्र में सभी को अपनी बातों को रखने का अधिकार है। उनके अनुसार बिल का विरोध कर सकते थे वे, लेकिन विधानसभा के अध्यक्ष को बंधक बनाना बहुत ही बड़ी ओछी हरकत है। चेयरमैन, उप मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों पर हुए हमले की कड़ी निंदा करता हूं। कम से कम कोई तो बोला संसद में। कोई तो ओछी हरकत कहा संसद में। ये तो एक पक्ष हुआ। अब दूसरा पक्ष भी देखिये क्योंकि अच्छे लोगों की आलोचना खुलकर होती है। श्री राम कृपाल यादव जी जैसे ही अपनी बात फेसबुक पर पोस्ट किये, चतुर्दिक आलोचना होने लगी।

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अनिकेत यादव लिखते हैं: ” जब अन्याय और अत्याचार होता है तो रावण हँसता है, गद्दाफी हँसता है, नादिर हँसता है, बाबर हँसता है, जब द्रोपदी का चीरहरण होता है तो दुर्योधन हँसता है, कौरव हँसते है और याद रखा जाएगा कि जब आज संविधान का चीरहरण हो रहा है तो ये भाजपाई हँस रहे है।” जबकि  चन्दन यादव संसद महोदय से ही सवाल पूछ बैठे: “विपक्ष को सदन मे बात रखने का मौका नहीं देगा तो विपक्ष झाल बजाने गया है महोदय।” मिटना ही नहीं, अवन कुमार लिखते हैं: “रामकृपाल जी आपका बुद्धि भ्रष्ट हो रहा है सुधर जाये जिस देशद्रोही गद्दारों लूटेरों बेईमानो के साथ खड़े हैं जनता कभी माफ नहीं करेगा कम से कम मुंह बंद करें चमचागीरी की हद से दूर रहें। 

अर्जुन यादव का कहना है: “आप भी उसी बेगों के गुट में सामिल हो गये, जिसमें एक पेक-पेकाना शुरू करता है तो सभी पेकपेकाने लगते हैं…आप अपनी पार्टी मोह में इतने अंधे हो गए हैं जो आपकों दिखाई नहीं दे रहा है कि कौन किसको मार पीट रहा है, अभी तक जितने भी विडियो आए हैं, उसमें तो साफ साफ आप सबकी तानासाही मानसिकता और घिनौना खेल ही दिख रहा था, अगर सच में विपक्ष वाले गलती कर रहे थे तो उनका विडियो जारी कराइए। शर्म आनी चाहिए आपको, खुलेआम लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए…” यदुवंशी पिन्टु यादव भी एक सवाल पूछकर टिपण्णी करते हैं। वे लिखते हैं: “क्या चाचा आपको भी लगता है ये गलती विपक्ष का है तो हम समझ सकते हैं आप पार्टी हित में बोल रहे हैं पर क्या किसी कानून में लिखा है कि आप किसी हिटलर साही कानून का विरोध नहीं कर सकते क्या किसी कानून में लिखा है महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन नहीं कर सकते क्या किसी कानून में लिखा है आप रोजगार के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते अगर ऐसा है तो आप सही हो सकतें हैं।

जबकि मुलायम यादव का कहना है: “बड़े शर्म के साथ कहना पड़ रहा है कि रामकृपाल यादव आर एस एस की हाफ चड्डी पहन लिए आप बहुत दुखी मन से मैं कह रहा हूं कि किसी जमाने में लालू यादव आप पर इतना ज्यादा विश्वास करते थे आज उन्हीं के लड़के के खिलाफ इतना बड़ा झूठ बोलने में आपको शर्म नहीं आती । कितना सम्मान देता है तेजस्वी यादव आपको और दलाली की भी हद होती है । स्वाभिमान खोकर दलाली नहीं की जाती । यादों के नाम पर कलंकित हो तुम हम सोचते थे कि आगे चलकर तुम कर जाओगे लेकिन कभी नहीं सुधरोगे कम से कम इतना तो ध्यान देना चाहिए कि केंद्रीय कैबिनेट मंत्री मंडल में एक भी यादव नहीं है कि पिछड़ा नहीं फिर भी तुम को समझ नहीं आ रहा है ।

चलिए यह मान लेते हैं कि “लालू प्रसाद यादव के पुत्र से क्या अपेक्षा कर सकते हैं? खबर में बने रहना या विधान सभा की कार्रवाई को वाधित करने की कला तो पुत्र पिता जी से ही सीखे होंगे। सन 1974 की क्रान्ति में बिहार ही नहीं दिल्ली और देश की मीडिया को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए लालू जी अनेकाननेक ‘ऐतिहासिक कार्य’ किये थे। वैसे उनकी क्रिया-कलापों को आज की पीढ़ियां (जिनकी आयु 50 वर्ष भी होगी) नहीं देखी होगी। अखबार में छपने के लिए, खबरों में बने रहने के लिए वे “खुद अपना अपहरण कर लेते थे” – यह बात उन दिनों के लोग, जो आज भी शरीर से जीवित होंगे, जानते होंगे। कयोंकि “बिहार में तो लोग बाग़ शरीर से अधिक जीवित हैं, आत्मा की तुलना में। शब्द बहुत कटु है लेकिन सत्य है। आर्यावर्त इण्डियन नेशन डॉट कॉम गलत नहीं लिखता है। अगर राजनेताओं को एक पल के लिए छोड़ भी दें और समाज के अन्य लोगों के बारे में विचार करें की वे शहर से जीवित हैं या आत्मा से – तो पहले वालों की संख्या उत्कर्ष पर होगी। आत्मा से जीवित लोगों की संख्या विलुप्त होती जा रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद बिहार का यह हाल नहीं होता। और सबसे अधिक आत्मा से मृत हैं वे लोग तो “राजनीति का जामा पहनकर राजनीति करते हैं, पत्रकारिता करते हैं, प्रशासन का हिस्सा होते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो पत्रकार राजनीति में नहीं आते। अधिकारी विधान सभा-विधान परिषद्-लोक सभा-राज्य सभा की कुर्सियों की ओर टकटकी निगाहों से नहीं देखते, लाड़ नहीं टपकाते।

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फेसबुक पर ही हमारे एक अभिन्न मित्र मनोज मलयानिल लिखते हैं: बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हर आये दिन बदज़ुबानी करते हैं, मुख्यमंत्री के लिए गाली-गलौज की भाषा इस्तेमाल करते हैं ..मांसपेशियाँ फड़काते हैं और उँगलियाँ दिखा कर बात करते हैं। मलयानिल जी का कहना है कि पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव की ‘नौंवीं फेल’ का जब मुद्दा उठा था तब उन्होंने ये पोस्ट लिखी थी और कहा था कि उच्च शिक्षा अगर अनिवार्य नहीं तो ज़रूरी क्यों है। उनके अनुसार: “लालू प्रसाद यादव का बचपन गरीबी में गुजरा। भैंस चराते हुए गांव के स्कूल से उन्होंने ककहरा सीखा। लालू ने पटना में चपरासी भाई के घर में रह कर एमए तक की पढ़ाई की और इतना ही नहीं पटना यूनिवर्सिटी के छात्र संघ का नेतृत्व किया। आगे चलकर लालू प्रसाद ने लॉ भी पढ़ा।मुफ़लिसी के बाद भी लालू ने पूरी पढ़ाई की ।

बिहार के बड़े नेता उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा है कि लालू राज में शिक्षा की स्थिति इतनी खराब हो गई कि पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी 10 वीं भी पास नहीं कर सके। खैर तेजस्वी यादव से गठबंधन में तवज्जो नहीं मिल पाने के कारण लालू विरोध में कुशवाहा अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग कर गए…पर ये सवाल तो वाजिब है कि बेहद विपरीत हालात के बाद भी लालू प्रसाद ने करीब पचास साल पहले पटना यूनिवर्सिटी जैसी प्रतिष्ठित जगह से एमए किया लेकिन आज के जमाने में माता- पिता के मुख्यमंत्री रहते हुए भी लालू-राबड़ी के दोनों बेटे 10 वीं की पढ़ाई तक नहीं कर सके? ये अलग विषय है कि नेतृत्व क्षमता के लिए औपचारिक शिक्षा कितनी जरूरी है। गुजरे जमाने में एक से बढ़ कर एक नेता हुए जो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे पर उनमें कमाल की नेतृत्व क्षमता थी..पर वे नेता इसलिए नहीं पढ़ पाये थे क्योंकि उनके पास पढ़ाई के साधन नहीं थे, और औपचारिक शिक्षा नहीं होने के बाद भी वे इसलिए कामयाब हो गए क्योंकि तब बंद अर्थव्यवस्था में गवर्नेंस का रटा-रटाया फॉर्मूला था और शासन व्यवस्था किसी खास राजनीतिक फलसफे से नियंत्रित थी। उदारीकरण और ग्लोबलाइजेशन के बाद आज का गवर्नेंस काफी व्यापक हो चुका है। गवर्नेंस के लिए खास तरह की एक्सपर्टीज- हुनर की जरूरत पड़ती है। ऐसे में अगर कोई राजनीतिक व्यक्ति खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताता है तो जाहिर है कि आधुनिक जमाने में उसकी पढ़ाई-लिखाई, उसकी दक्षता, उसकी शैक्षणिक योग्यता के बारे में लोग सवाल पूछेंगे। उसमें भी अगर सीएम पद का उम्मीदवार अगर दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का बेटा हो तो ये सवाल और भी लाजिमी होगा कि सारी सुख सुविधाओं के बाद वह 10 वीं भी क्यों न कर सका।”

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