पटना / दिल्ली : आज तिलसंक्रान्त के भोरुकुआ है। दिल्ली में बहुत कड़ाके की सर्दी है। दिल्ली में न तो ”राजपथ” दिख रहा है और ना ही ”जनपथ” । ऐसे में सिर्फ और सिर्फ एक ही आदमी याद आ रहा है – जे है से कि। दिल्ली के जनपथ पर राजनीतिक मौसम विभाग के थर्मामीटर के नाम से जाने जाने वाले लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक 108 राम विलास पासवान जी को दिवंगत हुए 108 दिन कल हो जायेंगे। लेकिन विगत 108 दिनों में उनके द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी भी राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, राज्यीय स्तर और जिला स्तर पर भी शायद “मृतप्राय” हो गई है। यह अलग बात है कि कल से प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी कोरोना-19 का टीकाकरण अभियान प्रारम्भ करने जा रहे हैं। काश! पासवान की पार्टी के लिए भी उनके पुत्र “टीकाकरण” की व्यवस्था करते। वजह भी है – पासवान तो पासवान थे और “चिराग” न तो सीएफयल बन सकते हैं और ना ही एलईडी, जहाँ तक भारतीय मतदाताओं को प्रकाशमय करने का सवाल है।
कहते हैं भीमराव रामजी राव अम्बेडकर साहेब की मृत्यु 6 दिसम्बर, 1956 को हुई, लेकिन उनकी मृत्यु से कोई 10-साल पहले बिहार के खगरिया जिले के शाहरबन्नी गाँव में एक बच्चा का जन्म हो गया था, जिसके कान में बाबा साहेब फूंक दे दिए थे की तुम दलित नेता बनना – तुम्हारा पुस्त-दर-पुस्त का जीवन बदल जायेगा, भले भारतवर्ष में वास्तिविक दलितों की स्थिति बद-से-बत्तर हो जाय। इस समुदाय के विभिन्न जाति के लोगों के हाथों “रोजगार” नहीं आये; भले ही उसके बच्चे “विद्यालय का प्रवेश द्वार भी नहीं देख पाय जीवन पर्यन्त; भले ही इस समुदाय के लोग स्वास्थ-सुविधा के आभाव में टीबी, कैंसर, दम्मा, मलेरिया, पोलियो, कॉलेरा, हैजा, चर्मरोग इत्यादि-इत्यादि बिमारियों से ग्रसित होकर भगवान् के पास आ जाय – तुम समुदायों की चिंता नहीं करना और बिहार के दलितों के बारे में तो जीवन में कभी सोचना ही नहीं।
जाओ बालक !! तुम दलितों की राजनीति करो, दलितों के लिए कभी राजनीति नहीं करना – आज अकेले करना, कल सपरिवार।
लेकिन एक बात पासवान जी में “जबरदस्त” थी और वह की “12-जनपथ का प्रवेश द्वार अर्धरात्रि से भोरुकुआ (कोई 4 घंटा) छोड़कर, २०-घंटाx 7 कभी बंद नहीं होता था । जिसको आना है – आ जाओ – जिसको जाना है चले जाओ – चिठ्ठी लिखवाना है बिहार के किसी नेता के नाम, किसी अधिकारी के नाम, ट्रेन में आरक्षण के लिए अधिकारी के नाम, मंत्रीजी से मिलना है आ जाओ, पंक्तिबद्ध हो जाओ, पोर्टिको में टुकुर-टुकुर देखते रहो – जैसे ही अवतरित हों लपक पड़ो – कोई रुकावट नहीं। कोई सुरक्षा प्रहरी नहीं – सपरिवार उपस्थित हो जायेंगे। हाँ, अनुशासित रूप से। लेकिन “जे है से कि ई बात ननकिरबा में नहीं है।”
भारतवर्ष का ये एकलौता दलित नेता हैं जो आज़ाद भारत में छः प्रधानमंत्रियों केसाथ मुस्कुराये हैं, हँसे हैं – गजब का रिकार्ड है । अब देखिये न, जैसे ही पासवान साहेब गए, वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी से ननकिरबा का एक हाथ की दूरी हो गयी। वैसे लोगबाग कहते हैं की यह दूरी कोरोना के तहत “सोसल डिस्टेंसिंग” के अंतर्गत है – लेकिन दिल्ली के राजपथ और जनपथ की बात अगर जाने भी दें, तो अशोकराज पथ पर चहलकदमी करते मतदाता भी मानने को तैयार नहीं हैं की यह कोरोना का प्रभाव है। इस सभी तो यहाँ तक मान बैठे हैं कि कल से ही तो कोरोना-19 का टीकाकरण प्रारम्भ होने वाला है। अगर सच में “डिस्टेंसिंग” कोरोना के कारण है तो “टीकाकरण” के बाद भी देख लेते हैं कुछ दिन। इसी भीड़ में चाणक्य की नगरी में जो चालाक और ज्ञानी-महात्मा हैं, उनका मानना है कि “चाचा जान और ननकिरबा में ३६ का आंकड़ा है। और चाचा जान तो बिहार में किसी से दुश्मनी करते नहीं, और जिससे कर लिए, उसका तो बेड़ा गर्क है। श्री पासवान जी अपने जीते-जी विगत 32 वर्षों में 11 चुनाव लड़ चुके हैं और उनमें से नौ जीत चुके हैं।
बहरहाल, यदि 2011 जनगणना को सच मान लें, तो आंकड़े के हिसाब से प्रदेश के कुछ 10. 4 करोड़ (वर्तमान में 12+ करोड़) आवादी में 15 फ़ीसदी आवादी अनुसूचित जाति का है। इसमें 23 में से 21 जाति को “दलित” जाति से भी नीचे “महादलित” श्रेणी में रखा – जिसमें बन्तार, बाउरी, भोगता, चौपाल, भुइया,दबगर, डोम, घासी, हलालखोर, मेहतर, भंगी, कंजार, कुररियर, लालबेगी, मुसहर, नट, रजवार, धोबी, चमार, दुसाद। प्रदेश के ज्ञानी-महात्माओं का कहना है कि माननीय पासवान जी अपनी जाति को “महा-दलित” की श्रेणी में नहीं रखने दिया । कारण तो भैय्या वही जानते हैं !!!
अब सवाल यह है कि आज़ादी के 73 वर्ष में, 11 में से 9 चुनाव जितने के बाद लोक जनशक्ति पार्टी अपनी ही जाति को, लाखों-करोड़ों लोगों को, जिसके बल पर खगड़िया से 12-जनपथ का तक का सफर तय किया, “छल” लिया । उसे महादलित श्रेणी में जो नमक-रोटी-प्याज मिलता, उसे नहीं मिलेगा। वे वहीँ-का-वहीँ रहा, परन्तु यहाँ, यानि 12-जनपथ पर लाल कार्पेट बिछता रहा, बिछता रहा। अब ननकिरबा में तो इतनी न तो सामाजिक-सोच है और ना ही राजनीतिक की जनपथ को राजपथ के रास्ते भले ना सही, रफ़ी अहमद किदवई मार्ग के रास्ते लोक कल्याण मार्ग का सम्बन्ध मधुर बना सकें।
देश की राजनीति की नब्ज और टेंटुआ दोनों पकड़ने में माहिर थे माननीय पासवान जी। कोई भी प्रधान मंत्री उनकी मुस्कराहट पर फ़िदा हो जाते थे। दृष्टान्त प्रत्येक प्रधान मंत्री से मंत्रिमंडल में उनकी [उपस्थिति बताता है।पासवान जी एक अकेला “दलित नेता” थे जो अपने साढ़े-चार दसक के राजनीतिक जीवन में छः प्रधान मंत्रियों के कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री के पद को शोभायमान बनाया। उन्होंने प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच डी देवगौडा, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और मोदी की कैबिनेट में काम किया है और कभी भी किसी राजनीतिक विचारधारा को अपनी राजनीतिक जीवन के राह में नहीं आने दिया।
लोग बाग़ को विस्वास था की ननकिरबा पिता का कन्धा-से-कन्धा मिलाकर राजनीतिक व्यूह-रचना बनाकर कार्य करेगा। जितना ही “चिक्कन-चुनमुन” है अपने पिता को शीर्ष तक ले जायेगा। लेकिन सब कुछ उलट-पुलट हो गया – एटीच्यूड में। बॉलीवुड में भी अपनी “सुन्दरता” (अब गलतफैहमी तो किसी को भी हो सकता है) को लेकर भविष्य आजमाए थे, लेकिन बहुत सफलता नहीं मिली।
आठ बार लोक सभा संसद चुनाब जितने वाले राम विलास पासवान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, लोकदल, जनता पार्टी, जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड) में रहे और फिर 2000 में अपनी पार्टी लोजपा का गठन किया। हाजीपुर सीट से 5 लाख से अधिक मतों से जीतकर उन्होंने गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्डस में अपना नाम दर्ज कराया था । आज हाजीपुर का मतदाता ढ़िबरी लेकर चिराग को ढूंढता है। पासवान जी एम ए, एल एल बी थे और मौंटब्लैंक कलम से लिखने में दिलचस्पी रखते थे, जबकि ननकिरबा के बारे में सब कुछ “गार्डेड सेकेट” है। 1969 में पहली बार बिहार के विधानसभा चुनावों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप निर्वाचित हुए और फिर कभी मुरकर नहीं देखा। पहले अकेले थे, समयान्तराल ‘सपरिवार हो गए।
एक बार हम-दोनों उनके दिल्ली आवास पर ड्राइंग रम में बैठे थे – अकेले। दरवाजे पर श्री नारायणजी और श्री योगिन्दर जी विराजमान थे। बातचीत करते, मुस्कुराते माननीय पासवान जी कहते थे : “10 जनपथ में सोनिया जी रहतीं हैं। लोगबाग 10-जनपथ को तो देखेंगे ही, वे श्री राजीव जी की पत्नी हैं, वे श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी की बहु हैं। इसी बहाने 12 जनपथ भी देखेंगे ही, नेम प्लेट भी पढ़ेंगे ही: रामविलास पासवान, इसलिए मैं कभी 12-जनपथ नहीं छोड़ा।” कितनी सच्चाई थी उनकी बातों में। अंत तक 12 जनपथ रामविलास पासवान के नाम से सुरक्षित रहा।
आपको नमन पासवान जी। आपके ननकिरबा को उसका “एटीच्यूड” ले जायेगा जे है से कि