वे नितीश के जिला के हैं, उन्हीं के जाति के हैं, उनके विश्वासी हैं, अन्दर-बाहर की बात जानते हैं – और क्या चाहिए अध्यक्ष बनने के लिए

वाह जनाब कहिये उस्ताद 

जनता दल (युनाइटेड) के नव-नियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष (निर्वाचित कहेंगे या नहीं, यह तो नितीश कुमार और उनके पार्टी के लोगबाग जानते ही होंगे) श्री राम चन्द्र प्रसाद सिंह साहेब में वे सभी गुण हैं जो पार्टी के इस सर्वोच्च पद के लिए आवश्यक है।  
एक: वे नितीश कुमार के विस्वासपात्र भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। 
दो: नितीश कुमार और श्री सिंह साहेब दोनों का पैतृक-जिला नालन्दा ही है। 
तीन: श्री नितीश कुमार और श्री सिंह साहेब दोनों “कुर्मी” समुदाय के ही हैं। 
चार: श्री सिंह साहेब माननीय श्री नितीश कुमार के प्रमुख सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं, अतः ‘अन्दर-बाहर’ वाली बातों से भिज्ञ हैं। 

– और क्या चाहिए पार्टी के अध्यक्ष बनने के लिए !!!

जनता दल (युनाइटेड) के नए अध्यक्ष श्री सिंह और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा में एक सार्वभौमिक समानता है – दोनों ‘महज’ अध्यक्ष है और दोनों पार्टी के सुप्रीमो – भाजपा के मामले में माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री श्री अमित शाह और जनता दल (युनाइटेड) के मामले में बिहार में सातवीं बार बने मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार – के प्रवक्ता रूप में कार्य करते हैं, करेंगे । वजह यह है कि “एक साथ दो पदों का कार्यभार सार्वजनिक रूप से नहीं कर सकते हैं, इसलिए ऐसा प्रावधान किया गया है। दिल्ली के रायसीना हिल पर तो यह भी चर्चा-आम है कि माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी बिहार के मुख्य मंत्री सम्मानित नितीश कुमार को ‘विजय-चौक’ पर कान में कहे: “नितीश जी ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष बनायें तो मनमानी नहीं, ईशारों पर चले; कठपुतली जैसा नाचे।” अब मोदीजी की बातों को नितीश कुमार “ना” तो नहीं कह सकते – “देश का प्रधान सेवक बुरा मान लेंगे।”

इसे ऐसे भी समझ सकते हैं। भाजपा के मामले में पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रधान मंत्री के “आधिकारिक प्रचारक-प्रसारक” हैं। प्रधान मंत्री की ऐसी कोई भी बात नहीं है जिसका 24 x 7 जिसका प्रचार-प्रसाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वयं नहीं करते हैं। इस दृष्टि से “पार्टी अध्यक्ष” का स्थान उन्ही के पार्टी के एक सदस्य, जो कार्यपालिका का प्रधान होता है, से नीचे दीखता है – माने या नहीं माने। 

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कल, बिहार के मुख्य मंत्री और जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष श्री नितीश कुमार द्वारा अपने ही जिला नालंदा के, अपनी ही जाति कुर्मी-समुदाय के पूर्व-भारतीय प्रशासनिक सेवा के अवकाश-प्राप्त अधिकारी श्री रामचन्द्र प्रसाद सिंह का “अपनी पार्टी” का अध्यक्ष बनाना भाजपा-व्यवस्था जैसी ही दिखती है। यदि देखा जाय तो इन मामलों में भारतीय कांग्रेस पार्टी की स्थित अधिक बेहतर है जहाँ “पार्टी के अध्यक्ष” का स्थान (भले ही अध्यक्ष पद को घरेलू उत्पाद समझें) देश के प्रधान मंत्री के स्थान से भी सर्वोच्च समझा गया है – इतिहास गवाह है और देश के पूर्व प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह का दस-वर्षीय कार्यकाल सबसे बड़ा दृष्टान्त है। 
अब सवाल यह है कि श्री नितीश कुमार को श्री सिंह में ऐसी कौन से बात दिखी जो प्रदेश की जनता के हित में हो, उनके द्वारा बिहार की जनता के लिए ऐसी कोई उत्कृष्ट कार्य किया गया हो, श्री सिंह की छवि बिहार के मतदाताओं के नज़रों में, उनके घरों में जाना-पहचाना हो – शायद ऐसी कोई भी बात नहीं है। सिवाए इसके कि नितीश कुमार उनपर “बहुत भरोसा” करते हैं, वे उनके ही जिले के आस-पास की हवाओं में सांस लेते हैं और उन्ही के समुदाय के हैं। यानि, श्री नितीश कुमार अपने ही हाथों अपनी पार्टी को बंद-द्वार के तरफ मोड़ दिए।  

प्रदेश के राजनीतिक ज्ञाताओं का मानना है कि नालंदा विश्वविद्यालय भले ही विश्व में शिक्षा का पाठ पढ़ाया हो और अखण्ड भारत को विश्व में शिक्षा के मामले में अग्रणी रखा हो; लेकिन उस शिक्षा का प्रभाव प्रदेश और प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों की विचारधाराओं पर नहीं पड़ा। पड़े भी तो कैसे ? प्रदेश के वर्तमान मुख्य मंत्री नितीश कुमार भी उस विचारधारा से उबर नहीं सके। शायद वे भी इस बात के डर से भयभीत होंगे कि कहीं “सत्ता” का बागडोर हाथ से फिसल न जाय ! 

बिहार के मुख्य मंत्री श्री नितीश कुमार और जनता दल के नव-निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रामचन्द्र प्रसाद सिंह 

राज्य सभा सांसद और नालंदा के निवासी श्री सिन्ह को जनता दल (युनाइटेड) का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना ज्वलंत उदहारण है। एक ऐसे व्यक्ति को एक ऐसे राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष बनाना जिसे प्रदेश के सफ़ेद-पोश लोगों के अलावे, सम्भ्रान्त-पदाधिकारियों के एक समूह के अलावे प्रदेश का वह व्यक्ति (महिला-पुरुष) जो अपनी उँगलियों में कालिख लगाकर नितीश कुमार और उनकी पार्टी को बिहार विधान सभा तक सात-बारे भेजी – रामचन्द्र प्रसाद सिंह को नहीं जानती है। 

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वैसे भी जो लोग ब्यूरोक्रेसी के त्यागपत्र देकर, अथवा अवकाश के बाद राजनीति में अपना स्थान बनाने का प्रयन्त करते हैं – राजनीति में सफल नहीं हुए हैं, जहाँ तक “लीडरशीप” का सवाल है। मंत्री बनना, मुख्य मंत्री बनना “सफल लीडरशीप का माप नहीं हो सकता है।” यहाँ देश के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, बॉलीवुड के हीरो शत्रुघ्न सिन्हा और अन्य “नेताओं” का भी नाम उल्लिखित किया जा सकता है। बहरहाल, लीडरशीप का मापक-यन्त्र करबिगहिया रेलवे-क्रासिंग के बगल में विगत छः दसकों से बैठा “मुरारी जूता सिलने वाला” जैसा मतदाता होता है और आर सी पी सिंह उस यंत्र के सामने खड़े भी नहीं हो सकते। 

हाँ, सबसे बड़ी निज़ात बिहार को शरद यादव से मिला है। यह बात नितीश कुमार भॉति भांति जानते हैं। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बंदाई गाँव में जन्म लिए शरद यादव, भले स्वयं को किसान परिवार का सदस्य मानते हों; लेकिन इतिहास गवाह है कि बिहार के लोगों के लिए, बिहार में अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के लिए उन्होंने कभी कुछ नहीं किया। शरद यादव संभवतः भारत के पहले ऐसे राजनेता हैं जो तीन राज्यों से लोकसभा के लिए चुने गए मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और किसी भी राज्य के अपने संसदीय क्षेत्रों के मतदाताओं के लिए कभी कुछ भी नहीं किया। वे राजनीतिक गठजोड़ के माहिर है। इतना ही नहीं, नितीश कुमार इन्हे अपना राजनीतिक गुरु भी मानते थे। आज शायद नहीं। 

पहली बार शरद यादव मध्य प्रदेश की जबलपुर लोक सभा सीट से सांसद चुने गए। फिर 1977 में भी वे इसी लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे। उस वक्त वे युवा जनता दल के अध्यक्ष रहे। 1986 में वे राज्यसभा से सांसद चुने गए और 1989 में यूपी की बदाऊं लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर तीसरी बार संसद पहुंचे। वे 1991 से 2014 तक बिहार की मधेपुरा सीट से सांसद रहे। 1995 में उन्हें जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया और 1996 में वे पांचवीं बार लोकसभा का चुनाव जीते। 1997 में उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। 1998 में उन्‍होंने जॉर्ज फर्नांडीस की मदद से जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाई, जिससे नीतीश कुमार जनता दल छोड़कर जुड़ गए।   शरद यादव 2004 में राज्यसभा से दूसरी बार सांसद बने और फिर 2009 में वे 7वीं बार सांसद बने । समय का तकाजा देखिये की 2012 में संसद में उनके बेहतरीन योगदान को देखते हुए शरद यादव को ‘उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार 2012’ से नवाजा गया। लेकिन ठीक दो साल बाद संपन्न हुए लोह सभा चुनाव में  2014 के लोकसभा चुनावों में मधेपुरा के मतदाता उन्हें दिल्ली नहीं भेजे।

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प्रदेश की कुल आवादी में उच्च जातियों का प्रतिशत अब 20 फीसदी ही बचा है। शेष अस्सी फीसदी में तक़रीबन 45 फ़ीसदी लोग अन्य पिछड़ी जाति/अत्यन्त पिछड़ी जाति से आते हैं, अनुसूचित जाति (दलित/महादलित) करीब 15 फीसदी हैं। मुसलमानों का प्रतिशत 16.9 फीसदी है। अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) कोई 1.3 फीसदी है और अन्य 1.8 फीसदी। 

खैर, आरसीपी सिंह को दल यूनाइटेड (जेडीयू) का नया अध्यक्ष नियुक्त करते राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने कहा कि एक साथ दो पद संभालना आसान नहीं हो रहा है। इसलिए उन्होंने आरसीपी सिंह के नाम का प्रस्ताव रखा और फिर बाकी सदस्यों ने इसका समर्थन किया।  कोई विरोध कर भी कैसे सकता था ! सिंह साहेब बिहार से जेडीयू कोटे से राज्य सभा सांसद हैं। नितीश कुमार के जिले नालंदा के मुस्तफापुर के रहने वाले है। इतना ही नहीं, यूपी कैडर वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे और नीतीश के प्रमुख सचिव रह चुके है। इससे भी बड़ी बात यह है कि 62 वर्षीय श्री सिंह साहेब अवधिया कुर्मी जाति के है – और क्या गुण चाहिए ?

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