किताब के पन्नों की तरह ‘सफ़ेद’ से ‘सीपिया’ रंग का हुआ नोवेल्टी एण्ड कम्पनी, 75 वर्ष पूरा करेगा 2021 में  

उम्र: 75 वर्ष। पटना का नोवेल्टी एंड कम्पनी, प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता 
उम्र: 75 वर्ष। पटना का नोवेल्टी एंड कम्पनी, प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता 

पटना: आज 12 दिसम्बर है, साल 2020 । आज के ही दिन कोई 55-साल पहले, पहली बार पूर्णिया (गढ़बनैली) स्थित बड़े मामा के घर से गाँव के एक सज्जन के साथ पटना आया था बाबूजी के पास। बाबूजी श्री गोपाल दत्त झा (श्री गोपाल जी) उन दिनों पटना कालेज के सामने बुक सेन्टर किताब की दूकान को छोड़कर श्री तारा बाबू (श्री तारानन्द झा) के पास नोवेल्टी एण्ड कंपनी, प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता दूकान में अपनी नौकरी की शुरुआत किये थे। आगामी नव-वर्ष 2021 में पटना का नोवेल्टी एण्ड कम्पनी, प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता, जहाँ मेरी जिन्दगी की बुनियाद डाली गयी थी, 75 वर्ष का होने जा रहा है – बधाईयाँ । 

उन दिनों नोवेल्टी एक मंजिला मकान था। नोवेल्टी के दाहिने तरफ त्रिवेदी स्टूडियो और बाएं सरदारजी की एक बिजली की छोटी सी दूकान कृष्णा स्टोर्स थी। इसी नाम से अब यह दूकान फ़्रेज़र रोड स्थित चांदनी चौक मार्केट (तत्कालीन आर्यावर्त-इण्डियन नेशन समाचार पत्र के दफ्तर के बगल में) ‌है। कृष्णा स्टोर्स के ठीक बगल में नेशनल बुक डिपो था (जो अब पटना कालेज के सामने है), एक फल वाले की दूकान थी और उसके बाद रीगल होटल

रीगल होटल के बाहर बिजली के खम्भे के नीचे एक मौलवी साहेब की अण्डे की दूकान थी – पन्द्रह पैसे में एक और चौवन्नी में दो । रीगल के बाद एक किताब की दूकान पुस्तक महल थी, पुस्तक महल के बगल में नालन्दा के रस्तोगी का पुस्तक जगत था ‌(जो अब बीएन कालेज के सामने है)। फिर एक दवाई की दूकान । इन दो दूकानों के बीच बीरबल पान वाला था । इस दूकान से चार कदम पर एक रास्ता नीचे लुढ़कती थी, खजान्ची रोड और खजान्ची रोड के ठीक सामने अशोक राज पथ पर दाहिने तरफ था ऐतिहासिक खुदाबख्श पुस्तकालय। 

एक इतिहास – नोवेल्टी का पहला काउन्टर 

नोवेल्टी के दाहिने तरफ तत्कालीन पटना के एक सम्भ्रान्त फोटो स्टूडियो था – त्रिवेदी स्टूडियो। इस स्टूडियो में पटना के सम्भ्रान्त, सुन्दर लोग ही फोटो खिंचवाते थे। फिर थी उषा सिलाई मशीन का प्रशिक्षण केंद्र। इस प्रशिक्षण केंद्र के दाहिने दीवाल से लगी कोई चार-फिट की एक छोटी सी किताब की दूकान थी, जो इस भवन के पीछे बेगम साहिबा के आवासीय कालोनी में रहने वाले कोई सज्जन चलाते थे। उनकी एक आँख खराब थी। सिलाई मशीन और इस किताब की दूकान के सामने फुटपाथ पर साईकिल बनाने वाले एक मिस्त्री जी कार्य करते थे। इस किताब की दूकान से कोई दस फिट दाहिने हरिहर पान वाले की एक दूकान थी और उन्ही के दूकान से लगी थी एक चश्मे की दूकान । मुझे इस दो-सौ कदम तक ही चहलकदमी करने की इजाजत थी। इससे अधिक नहीं। मैं कोई पांच-छः साल का था। 

हमारे नोवेल्टी भवन में बाएँ तरफ लोहे का खींचने वाला गेट था, जो एक गली-नुमा रास्ते से 25-कदम चलने के बाद छोटा सा आँगन में निकलता था। आँगन के दाहिने कोने पर एक सीढ़ी थी। आँगन से सड़क की ओर दूकान में प्रवेश का रास्ता था। आम तौर पर आँगन में किताबों के बण्डल, रस्सी, सुतली, गत्ता, क़ैंची, चाकू, सुराही,  रखा होता था। ग्राहकों का किताब तक्षण इस आँगन में बांधा जाता था। यह आँगन और बरामदा हमारे पिता-रूपी ब्रह्माण्ड की दुनिया थी। यहीं रहते थे मेरे बाबूजी, इस दूकान के अंदर ही वे अपना आशियाना बना रखे थे। वजह भी था – उनकी उतनी आमदनी नहीं थी, या यूँ कहें की आवश्यकता भी नहीं थी की बाहर किसी मोहल्ले में किराये पर मकान लें। 

श्री तारानन्द झा, संस्थापक, नोवेल्टी एण्ड कम्पनी, प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता 

पूर्णिया से बाद मगध की राजधानी, जहाँ चन्द्रगुप्त मौर्य राजा हुआ करते थे, चाणक्य जैसे उनके गुरु थे – मैं इस राजधानी  में पहली बार अपना सर पिता-रूपी ब्रह्माण्ड के नीचे तारा बाबू की दुनिया में अपना सर छुपाया। तारा बाबू को हम सभी “मालिक” कहते थे। बहुत कड़क-मिजाज के थे। अनुशाशन उनके जीवन में बहुत महत्व रखता था। समय के बहुत पाबन्द थे। मेहनत उनके जीवन का मूल-मन्त्र था, गायत्री मन्त्र जैसा। मुझे दूकान के अलावे मछुआटोली स्थित उनके घर पर आने-जाने की पूरी स्वतंत्रता थी। घर पर हमारे उम्र के उनके पोते-पोतियाँ मुझे अपने घर का हिस्सा ही समझते थे। मुझे आज तक ऐसी कोई घटना याद नहीं है जिसमें हमें उन लोगों की बातों से, व्यवहारों से कोई कष्ट हुआ हो, आत्मा दुःखी हुआ हो। 

उस दिन मैं नहीं जानता था कि नोवेल्टी की भूमि पर ही त्रिनेत्रधारी महादेव मेरे जीवन की रेखाएं खींचने का केन्द्र बिंदु बनाएंगे । लेकिन आज साढ़े – पांच दसक बाद भी उन तमाम बातों का याद रहना इस बात का गवाह है कि महादेव को मैं कभी धोखा नहीं दिया। मालिक और उनके परिवार, परिजनों को दिए जाने वाले सम्मान में कोई कटौती नहीं किया। तभी तो आज भी मालिक की तीसरी पीढ़ी भी मुझे उतना ही सम्मानित नजर से देखता हैं, जितने सम्मान के साथ हम सभी बचपन में घर पर खेला कहते थे। 

खैर, शायद उसी दिन महादेव ने मालिक के हाथों एक “बिन्दु जैसी नींव” भी रख दिया था जो आगे चलकर पटना के अशोक राज पथ से कलकत्ता की चौरंगी के रास्ते, दिल्ली के राजपथ होते हुए लन्दन, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में अपनी मेहनत का, अपनी सोच का, अपनी हुनर का, अभी पेशा का ध्वज लहराएगा।  यह एक श्रद्धांजलि स्वरुप हैं उन महात्मनों को जो मेरी जीवन को संवारने में भूमिका निभाए। दिल्ली के राजपथ तक आते आते कई लोग ईश्वर को पराये हो गए, उनमें मेरे ब्रह्माण्ड (पिताजी) और नोवेल्टी एण्ड कम्पनी के मालिक भी थे। लेकिन आज भी वे सभी मेरे इर्द-गिर्द ही हैं और मैं महसूस भी करता हूँ। 

समय का तकाज़ा देखिये – हम सभी, यानि आज़ाद भारत के लोग आगामी वर्ष 2021 में आज़ादी के 75 वर्ष में प्रवेश करेंगे। हमारा नोवेल्टी, जहाँ हमारे जीवन की बुनियाद रखी गयी थी, वह भी अपने अस्तित्व के 75 वे साल में प्रवेश करेगा। इससे भी बड़ी बात यह है कि जिस मिटटी से मुझे मेरे पिता, नोवेल्टी के मालिक मेरे माथे पर जीवन जीने के लिए, परिश्रम के पराकाष्ठा पर पहुँचने का पाठ पढ़ाये, अब्बल बनाये – अगले वर्ष एक इतिहास रचेंगे – स्वाधीनता आंदोलन 1857-1947 में फांसी पर चढ़े, गोली का शिकार हुए या जेल की यातनाओं को सहते अंतिम सांस  लिए हुतात्माओं के आज के जीवित, परन्तु, समाज से उपेक्षित 75 वंशजों  की खोज से सम्बन्धित किताब-रूपी दस्तावेज, भारत के महामहीम राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द, प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह, देश के तमाम राज्यपालों, सभी मुख्य मंत्रियों और उन अधिकारियों को हस्तगत करेंगे जिनका देश के सञ्चालन में योगदान है। 

कहते हैं इस दूकान और दूकान की पुस्तकों की छाया में पटना ही नहीं, अविभाजित बिहार के लाखों-करोड़ों छात्र-छात्राएं विद्यार्थी-अवस्था  से वयस्क हुए, और फिर वृद्ध भी ।  जिस तरह नए किताब के सफ़ेद पन्ने समय और उम्र के साथ अपना रंग बदलते, एक गजब की खुसबू छोड़ते सफ़ेद से सीपिया रंग का हो जाता है, जो इस बात का गवाह होता है की उसने अपने रंग यूँ ही नहीं बदले, बल्कि लोगों को जीने का सबक सीखाते बड़ा हुआ है – पटना के अशोक राज पथ पर स्थित नोवेल्टी एण्ड कम्पनी (प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता) दूकान की सीढ़ियों पर बैठकर न जाने कितने लोग महज मनुष्य से इन्शान बने और इतिहास में अपना नाम हस्ताक्षरित किये। 

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नोवेल्टी एण्ड कम्पनी के स्तम्भ 

आज अपने दसकों पूराने किसी भी परिचित को देखकर इस दूकान की सीढियाँ, दीवालें, यहाँ की मिट्टी, दूकान के शीशे, कुर्सियां, घिसे बैठकी मानो जीवंत हो उठती हैं, सम्वेदना की पराकाष्ठा पर पहुँच जाती हैं  – जैसे एक दूसरे से बातचीत करती हों। आज के परिपेक्ष में दिल्ली सल्तनत में ही नहीं, विश्व के मानचित्र पर, चाहे आर्थिक मानचित्र हो, या सामाजिक, या राजनीति, या सांस्कृतिक, या मानवीय – अगर बिहार के लोग पदस्थापित हैं, तो आज़ादम भारत से भी बुजुर्ग और सम्मानित इस किताब की दूकान को पहचानते अवश्य होंगे। यह दूकान तो मेरी जिन्दगी है। 

आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम से बात करते नोवेल्टी एण्ड कम्पनी के प्रबंध निदेशक श्री नरेन्द्र कुमार झा कहते हैं कि “सन 1946 में नोवेल्टी एण्ड कम्पनी का रजिस्ट्रेशन हुआ था।स्वाभाविक है हम इसकी स्थापना वर्ष 1946 मानते हैं। इनके पिताजी श्री तारानंद झा कागज-किताब की दुनिया में बिहार के ऐतिहासिक भूकंप, जो सं 1934 में आया था और प्रदेश को तहस-नहस कर दिया था, उसके कोई चार साल बाद प्रवेश लिए थे। उन दिनों तारबाबू  कागज, कलम या अन्य स्टेशनरी सामग्रियों, मसलन कोरस का कार्बन, पेंसिल, फुलस्केप कागज, स्याही, स्केल, लमन्चुस, चौकलेट इत्यादि बेचना प्रारम्भ किया था। यह व्यवसाय सन 1938 से 1940 तक चला। यह व्यवसाय ‘नोवेल्टी स्टेशनर्स’ के नाम से जाना जाता था।  

उन दिनों पटना अशोक राज पथ के बाएं तरफ पटना विश्वविद्यालय के कालेजों, जैसे पटना कालेज, साइन्स कालेज, मेडिकल कॉलेज का पिछले बॉउंड्री गंगा के किनारे समाप्त होता था। सम्पूर्ण इलाका खुला-खुला था। अशोक राज पथ से दाहिने तरफ कोई आधे-किलोमीटर और कम की दूरी पर एक-एक सड़क दाहिने नीचे निकलती थी, अशोक राज पथ के सामानांतर बारी पथ से मिलती थी। इसी बारी पथ (अब नया टोला) पर जहाँ खजांची रोड बारी पथ से मिलती थी, बाएं हाथ पर नोवेल्टी स्टेशनर्स दूकान थी। यह दूकान, आज की काजीपुर आवासीय मोहल्ला में प्रवेश लेने वाली गली के ठीक सामने स्थित नालंदा ब्लॉक सेन्टर थी।   

आज की पीढ़ी शायद खजांची रोड का भारत के राजनीतिक मानचित्र पर क्या महत्व है, नहीं जानते होंगे।  इसी खजांची रोड के बीचो-बीच (आधी दूरी अशोक राज पथ और आधी दूरी बरी पथ) दाहिने तरफ एक दो माजिला मकान पश्चिम बंगाल के द्वितीय मुख्य मंत्री श्री विधान चंद्र रॉय का जन्मस्थान है। 

विधान चंद्र रॉय का जन्म 1 जुलाई, 1882 को पिता प्रकाश चंद्र रॉय और माता अघोर कामिनी देवी के घर में हुआ था। आज भी वह स्थान बिधान चंद्र रॉय की माता “अघोर” को समर्पित है और वहां एक बच्चों का विद्यालय है – अधोर शिशु विद्या मंदिर।  विधान चंद्र रॉय की प्रारम्भिक शिक्षा पटना के अशोक राज पथ पर स्थित, या यूँ कहें कि आज के नोवेल्टी एंड कम्पनी दूकान से कोई पांच सौ गज की दूरी पर स्थित टी के घोष अकादमी और पटना कॉलेजिएट स्कूल में 1897 तक हुआ था। बाद में, उन्होंने आईए प्रेसिडेंसी कालेज कलकत्ता से और बी ए (गणित में सम्मान के साथ) पटना कालेज से किये।   श्री रॉय जनबरी 1948 से जुलाई 1962 तक कोई साढ़े बारह वर्ष तक पश्चिम बंगाल के मुख्य मंत्री रहे। 

श्री रामचन्द्र प्रसाद, नोवेल्टी एण्ड कम्पनी, प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता के सबसे पुराने स्तम्भ। श्री प्रसाद आप हज़ारों किताबों का नाम और लेखकों का नाम पूछ लें – कण्ठस्त 

नरेन्द्र जी आगे कहते हैं कि “नोवेल्टी स्टेशनर्स की दूकान बारी पथ में नीचे थी और दूकान के ऊपर मालिक सपरिवार रहते भी थे। बाद में वह स्थान बिहार स्टोर्स (तेज नारायण झा) को दिया गया जब हमलोग खजान्ची रोड स्थित राजा राम मोहन रॉय सेमिनरी स्कुल के सामने आ गए ।‌ कुछ समय बाद, यह स्थान उस ज़माने के विख्यात दशरथ बाइंडर को देकर हमलोग अशोकल राज पथ पर स्थित खुदा बख्श खां लाइब्रेरी के सामने पेट्रोल पम्प के ठीक बगल में आए। 

यह पेट्रोल पम्प उन दिनों अशोक राज पथ का लैंडमार्क था। कारण यह था की अशोक राज पथ पर गुलजार बाग़-पटना सिटी से लेकर गाँधी मैदान तक कोई भी पेट्रोल पम्प नहीं था। यह तत्कालीन वाहन मालिकों का एक पसंदीदा स्थान भी हुआ करता था। इसके दोनों तरफ दवाई की दूकानें हुआ करती थी और सामने बिहार यंग मैन्स इंस्टीच्यूट का दफ्तर।” श्री नरेंद्र झा आगे कहते हैं: “इस स्थान पर कुछ वर्ष रहने के बाद यहीं बगल में एक दूसरी दूकान सेन्ट्रल स्टोर्स वाले, जो लवणच्युस बेचते थे, को 1960 में दे दिया गया।  

“समय बदल रहा था। बाबूजी की मेहनत और विस्वास रंग लाने लगी थी। यहाँ से हम सभी कोई 200 गज की दूरी पर पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के बैचलर क्वाटर्स के ठीक सामने एक-तल्ला मकान खरीदकर आए।  यही स्थान है जहाँ आज हम सभी हैं। उस समय हमारा छोटा भाई (अमरेन्द्र कुमार झा), जिसे प्रकाशन की दुनिया में लोग “बौआ जी” के नाम से जानते हैं, महज सात-वर्ष का था। इस एक-मंजिले मकान में कुछ वर्ष दूकान चलायी गयी। 1966 जनवरी से पुराने एक मंजिला मकान तोड़ना प्रारम्भ कर 12 महीने के भीतर तारा भवन बन गया था । उसी मकान में नोवेल्टी ला हाउस 1967 में ही खोला गया और वृहस्पतिवार 4 जनवरी 1968 को पटना लाॅ जर्नल रिपोर्ट्स PLJR का उद्घाटन करवाया गया। नोवेल्टी लाॅ हाऊस से कानूनी पुस्तकें भी प्रकाशित की गई थी।‌

नरेन्द्र जी आगे कहते हैं कि “वर्ष 1950 में मछुआटोली पावर हाउस के ठीक सामने निवास स्थल के लिए जमीन खरीदकर ‘आनन्द भवन’ तीन साल में दिसम्बर 1954 में पूरा बनाया गया जहां हमलोग नया टोला से 1 जनवरी 1955 को हमेशा-हमेशा के लिए आ गए।”

रामधारी सिंह दिनकर का निवास स्थल व ‘उदयाचल’ प्रकाशन हमारे निवास स्थल के बगल में 1956-57 के बाद बना। हमारे निवास स्थल के बगल में छविनाथ पांडे 1937 से ही थे। हमारे मकान के ठीक सामने रामखेलावन पांडे में 1956 में आए। वे पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के अध्यक्ष थे।

नया टोला के जिस मकान में हम सभी रहते थे उस मकान को सन 1955 में श्री गौरीनन्दन सिंह (गौरी बाबू) को दे दिया। यह मकान (रिपब्लिक प्रेस) प्रारंभिक काल में एक पंजाबी मित्र का था।   

बिहार में ‌नोवेल्टी एण्ड कम्पनी का मुख्य कार्यालय पटना में ही है जब कि पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण क्षेत्रों में कम-से-कम ८-९ शाखाएॅ भी राॅची-खूंटी, चक्रधरपुर, जमशेदपुर,  दरभंगा, सहरसा, रोहतास, भोजपुर, मुंगेर और भागलपुर में भी थी।  ये सभी शाखाएं नोवेल्टी एंड कंपनी के संस्थापक के असामयिक निधन (20 अक्तूबर 1982) के तत्काल बाद नहीं बल्कि कई‌ वर्षों बाद बंद करना पड़ा। इसका मुख्य कारण यह भी था कि जटिल चौधरी (जो मूलतः अजन्ता प्रेस, नयाटोला, पटना में भी नोवेल्टी का काम करते थे) के देहावसान के बाद ही बन्द किया गया। वे अजन्ता प्रेस के बन्द होने के बाद ही राॅची गए थे जहाॅ उन्होंने अपना प्रतिष्ठान कचहरी रोड पर खोला था। अजन्ता प्रेस 1969-70 में बन्द हो गया। नोवेल्टी एण्ड कम्पनी के आलेख का इतिहास अजन्ता प्रेस से भी सम्बद्ध है।  

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उन दिनों श्री शान्ति बाबू, श्री चौधरीजी, श्री द्वारिका बाबू, श्री सीतारामजी, श्री योगनाथ झा, श्री गनौरियाजी, श्री त्रिलोचन मंडलजी, श्री जगदेव मण्डलजी, मुन्नीलाल जी, नवीन चौधरीजी, राजेन्द्र झाजी, रामप्रीत यादवजी, सुशील झाजी, रमेश झाजी, दिलीप कुमारजी आदि भी ‌काम करते थे। द्वारिका जी तथा अन्य कर्मचारी तारा भवन में ही रहते थे। श्री रामचन्द्र जी बाबूजी के बहुत अच्छे मित्र और शुभचिंतक थे, आज भी हैं। मेरे बाबूजी यहाँ छोटे मुलाजिम के रूप में काम करते थे ।

उस ज़माने में पटना में कुकुरमुत्तों की तरह प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता नहीं पनपे थे – कुञ्जिका नहीं छपता था, गेस-पेपर, टेस्ट-पेपर इत्यादि का बोल-बाला नहीं था। चाहे स्कूली छात्र-छात्राएं हो या कालेज के, विश्वविद्यालय के – मूल किताब पढ़ते थे और अधिक सहारा पुस्तकालय का होता था। उत्तर बिहार के प्रमुख शहरों जैसे – अररिया, बेगूसराय, खगरिया, मधेपुरा, समस्तीपुर, दरभंगा, सिवान, सुपौल, सहरसा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, मुंगेर, हाजीपुर इत्यादि शहरों के पुस्तक-विक्रेताओं की मांग को पूरा करने के लिए पटना के बड़े-बड़े प्रकाशक और पुस्तक विक्रेतागण (मसलन: नोवेल्टी, पुस्तक भण्डार, भारती भवन (शुरू में भारती भवन महेंद्रु घाट पर १९५० के आस पास गुमटी के रूप में आया था), लक्ष्मी पुस्तकालय, मगध राजधानी प्रकाशन, साइंटिफिक बुक कंपनी, मोतीलाल बनारसी दास, राजकमल प्रकाशन, स्टूडेंट्स फ्रेंड्स, एस चाँद एंड कंपनी) किताबों को भेजा करते थे – लेकिन मार्ग यही था।

श्री नरेन्द्र जी कहते हैं: “हमने गेस पेपर कभी‌ नहीं छापा था। नोवेल्टी एण्ड कम्पनी ने अजंता टेस्ट पेपर 1947 में ही शुरू किया था जब कि लाॅ के लिए लीडींग केसेज पुस्तक। हमारा टेस्ट पेपर ही भारती भवन के गोल्डेन गेस पेपर व अन्यों के गेस पेपर का आधार भी बना। कोई 20 वर्ष बाद टेस्ट पेपर बन्द कर दिया गया। हमारे टेस्ट पेपर को कोई भी बीट नहीं कर सका। यही टेस्ट पेपर अजन्ता प्रेस की शुरुआत का भी आधार बना।”

मेरे बाबूजी श्री गोपाल दत्त झा (श्री गोपाल जी) नित्य अपरान्हकाल 4 बजे किताबों का बण्डल लेकर महेन्द्रू घाट के लिए रवाना होते थे। बहुत अधिक बण्डल होने पर, या अधिक वजन होने पर तो रिक्शा लेते थे, चवन्नी से अठन्नी किराया तक, नहीं तो कंधे पर रखकर कोई 2 किलोमीटर का रास्ता पैदल तय करते थे। मैं टेनिया जैसा, कंधे में अपनी लम्बाई का कपड़े का एक झोला लिए, बाबूजी का कभी बाएं तो कभी दाहिने तरफ कमीज पकड़े, कदमताल करते बाबूजी के पदचिन्हों पर चला करता था। यह क्रिया औसतन सप्ताह में चार दिन अवश्य हो जाता था। उन दिनों माँ गाँव में रहती थी। बाबूजी जब शाम में दिन-भर के खर्च का हिसाब मालिक के सामने रखते थे, तो उसमें “रिक्शा किराया” जुड़ा होता था और एक श्रेणी था “अन्य खर्च” जिसमें चाय और मेरे लिए बिस्कुट, लवणच्युस सम्मिलित होता था।

बाबूजी कहते थे: “किताब का वजन बहुत भारी नहीं होता। वसर्ते तुम किताब को भारी नहीं समझो । यह सिद्धांत किताबों की खरीद-बिक्री से अधिक किताबों को पढ़ने-पढ़ाने में लागु होता है। तुम जैसे ही किताब को अपने जीवन से, अपने भविष्य से भारी मान लोगे; वैसे ही तुम उन अनन्त-लोगों की लम्बी कतार में स्वयं को खड़े पाओगे, जहाँ तुम्हे अपनी परछाई भी नहीं दिखेगी। तुम्हारी अपनी ही परछाई लोगों की परछाई के साथ गुम हो जाएगी।”

नोवेल्टी एण्ड कम्पनी, प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता

“मैं इस किताब के बण्डल को अपने कंधे पर लेकर तुम्हारे साथ इसलिए नित्य चलता हूँ ताकि तुम्हे किताब का वजन मालूम हो सके, किताब का महत्व मालूम हो सके। इसलिए किताबों को सूंघने की आदत डालो, कागज़ का गंध एक बार अगर नाक के रास्ते मष्तिष्क में जगह बना लिया, मैं समझूंगा मेरे साथ तुम्हारा आना सार्थक हो गया। मैं उस दिन तक शायद रहूँगा नहीं, लेकिन तुम्हारे किताबों के प्रत्येक पन्नों में स्वयं को पाउँगा। मुझे ख़ुशी होगी।”  

तारा भवन का निर्माण हो गया था। मालिक काउंटर के पीछे वाली कुर्सी पर बैठते थे। बात सं 1968 की है। मैं दूकान में इधर-उधर भटक रहा था। कुछ दिन मुझे देखने के बाद एक दिन मालिक बाबूजी से पूछते हैं कि क्या मैं स्कूल नहीं जाता हूँ। बाबूजी एक क्षण के लिए स्थिर हो गए। फिर बोले की नाम तो लिखाये थे राम मोहन रॉय सेमिनरी में, लेकिन फ़ीस नहीं देने के कारण नाम कट गया है। अभी फिर नाम लिखूंगा। मालिक अपने दाहिने हाथ की उँगलियों में फंसी पेन्सिल को घुमा रहे थे, बायां हाथ गाल पर था। मैं लिफ्ट के पास वाले प्रवेश दरवाजे पर खड़ा था। बाबूजी हमसे दो कदम आगे मालिक के तरफ चेहरा कर उन्हें अपनी सम्पूर्ण बातें बता रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे महाभारत का कृष्ण-अर्जुन सम्वाद हो रहा हो। मालिक की बातों में एक तरफ जहाँ अनुशाशन था, वहीँ बेचैनी भी थी की मेरा नामांकन विद्यालय में जल्द से जल्द हो। 

तभी मालिक फोन उठाये और फोन के डायल में अपनी ऊँगली डालकर पांचबार उसे नचाया – शायद पांच अंकों का नंबर दयाल किया। दूसरे छोड़ से हेल्लो की आवाज आते ही मालिक कहते हैं: “मैं नोवेल्टी से तारबाबू बोल रहा हूँ। श्री आचार्य साहेब हैं क्या? उन दिनों आचार्यजी टी के घोष अकादमी विद्यालय के प्राचार्य थे। उनसे कुछ बातें हुई। फोन रखते मालिक बाबूजी को कहते हैं: “कल इसका दाखिला टी के घोष में करा दें छठे वर्ग में।” फिर हाथ में 30 /- रूपये देते मुस्कुरा दिए। जैसे मुझे अरबों-खरबों का आशीर्वाद मिल गया हो। साल था 1968 और मैं बन गया टी के घोष अकादमी स्कूल का छात्र – कभी अंत नहीं होने वाली एक शैक्षिक जीवन की शुरुआत। 

सन 1982 में 20 अक्तूबर को मालिक का देहान्त हुआ था। मैं पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र विषय) की परीक्षा उत्तीर्ण कर पटना से प्रकाशित आर्यावर्त-इण्डियन नेशन पत्र समूह के इण्डियन नेशन समाचार पत्र के सम्पादकीय विभाग में उप-संपादक-सह-सम्वाददाता के पद पर पहुँच गया था। आज उनके ही आशीष से भारत के महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में  पत्रकारिता कर, भारत की बातों को ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, लन्दन तक पहुँचाया। पहले देश की बातें लोग लिखते थे, छापते थे, बोलते थे – बाद में हमारे बारे में, हमारे प्रयास के बारे में लिखने लगे, बोलने लगे, छापने लगे, दिखाने लगे। 
    
बहरहाल, विगत 75 वर्ष के अस्तित्व में बिहार के शैक्षिक और शैक्षणिक वातावरण को मजबूत बनाने में नोवेल्टी एंड कम्पनी की भूमिका तो ऐतिहासिक है ही; इसका योगदान और भी महत्वपूर्ण तह हो गया जब 35-वर्ष पहले नोवेल्टी एण्ड कम्पनी की अगुआई में पटना में पुस्तक मेला का आयोजन होने लगा। पुस्तक मेला महज एक किताबों, प्रकाशकों, क्रेताओं, विक्रेताओं, पाठकों, अधिकारीयों का मिलान-स्थल ही नहीं, बल्कि बिहार के सांस्कृतिक-शैक्षिणिक विकास में भी योगदान दिया। यह पुस्तक मेला बिहार के वर्तमान मुख्य मन्त्री श्री नितीश कुमार के लिए भी ऐतिहासिक है क्योंकि उसी वर्ष नितीश कुमार पहली बार चुनाब जीते थे। आज यह पुस्तक मेला बिहार के लोगों की एक आदत सी हो गयी है।  बिहार के लोगों में, युवकों में, युवतियों में, कामकाजी महिलाओं में, सडको पर मजदूरी करने वाले श्रमिकों में “किताब खोलकर पढ़ने की आदत की शुरुआत तो पटना पुस्तक मेला से ही हुआ है। यह बात लोग माने अथवा नहीं परन्तु यह भी सत्य है कि पटना के नोवेल्टी एंड कंपनी के चार लोग और उनका परिवार, कमर्चारी, मसलन नरेंद्र कुमार झा, अमरेंद्र कुमार झा, रत्नेश्वर जी और स्वर्गीय राजेश कुमार – ने किताबों का लत लगाया पाठकों को, नई पीढ़ियों को तभी आज पटना पुस्तक मेला अपने इस मुकाम पर पहुंच गया है।  
पटना पुस्तक मेला भारत का तीसरा और दुनिया के दस प्रमुख पुस्तक मेलों में शामिल है। पटना पुस्तक मेला अपने सांस्कृतिक आन्दोलन के लिए जाना जाता है।  इसी सन्दर्भ में अपने समय के विख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी ने एक बार पटना पुस्तक मेला में भाषण देते हुए कहा था कि देश की हो या न हो पर हिन्दी प्रदेशों की यदि कोई संस्कारधानी हो सकती है तो वह बिहार का पटना ही है। वहीं प्रतिष्ठित लेखक-आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह ने अपने सामने चार हजार से भी अधिक श्रोताओं को देखकर कहा था कि यदि यहाँ आने से पहले मेरी मौत हो गई होती, तो मेरी आँखें खुली रह गई होतीं क्योंकि यह दृश्य देखना बाकी रह गया होता! 
  
लोकनृत्य, संगीत, नुक्कड़ नाटक, जन-सम्वाद, काव्य पाठ, कथा पाठ, चित्र कला प्रदर्शनी, फिल्म महोत्सव, पुरस्कार सम्मान आदि कला-साहित्य की तमाम रंग-बिरंगी गतिविधियों के साथ-साथ प्रबुद्ध वैचारिक गोष्ठियों का आयोजन सीआरडी द्वारा आयोजित पटना पुस्तक मेले की परम्परा बन गई है। देश भर के चुनिन्दा लेखक, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार और विविध विषयों के विद्वानों से सीधा संवाद इसका विशेष आकर्षण रहा है।  

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नोवेल्टी एण्ड कम्पनी किताब की दूकान, अपनी शुरूआती जिन्दगी और जिन्दगी की अब तक की यात्रा को दो मानवों का नाम लिए बिना पूरा नहीं किया जा सकता है। उन दिनों पटना में यह एकलौता सात मंजिला मकान था। नए भवन के बाहर श्री रामचन्द्र जी के छोटे भाई श्री महेश जी, श्री जगन जी चाय की दूकान करते थे। पांच नए पैसे प्रति कप। इनके पिताजी पटना मेडिकल कालेज में कार्य करते थे, इसलिए वे धीरे-धीरे दूकान पर रहने लगे और दूकान चलाने लगे। वे मुझे बहुत स्नेह करते थे। वे जानते थे कि मैं श्री गोपालजी का बेटा हूँ, इसलिए चाय, डंडा बिस्कुट नित्य मिलता था। बाबूजी को लिफ्ट चलाने का भार भी दिया गया था। लेकिन मालिक के आदेश से यह कार्य मुझे करने को कहा गया। सुवह-सुवह छः बजे लिफ्ट खोलना पड़ता था और रात में दस बजे तक। मुझे आदेश दिया गया था की सुवह इसका परिचालन शुरू करने से कोई 10 बजे तक, जब दूकान खुल जाया करेगी, और फिर रात में आठ बजे से (जब दूकान बंद हो जाएगी) से रात्रि के दस बजे तक मुझे चलाना है। इसके लिए मुझे 25 रुपये मिलते थे। 

मैं वर्षों तक लिफ्ट चलाया था। इस तारा भवन के तीसरे, चौथे, पांचवें तल्ले पर पटना विश्वविद्यालय के छात्र रहते थे। वे सभी मुझे बहुत स्नेह करते थे क्योंकि मैं यह कार्य कर के पढाई करता था। उन छात्रों में आज भी श्री थापाजी, श्री प्रताप जी, श्री नवल जी, श्री रघुवीर मिश्र जी, श्री परिमल साहेब याद हैं। यहाँ पटना विश्वविद्यालय के वरिष्ठ छात्रों का आना जाना होता था। उन दिनों शायद ही कोई दिन ऐसा होता था जब मुझे इन छात्रों से आठ आना, चार आना, एक रूपया मिलकर पांच-छः रूपया नहीं होता था। सभी किताब-कॉपी -पेन्सिल खरीदने के लिए मदद करते थे। महेश जी हमसे बड़े थे। बहुत मानते थे। जगना हम उम्र था। राज कुमार, दिलीप ये सभी हम उम्र थे – एक गजब का बचपन था। 

हमारे दिवंगत माता-पिता, परिवार और परिजनों के तरफ से नमन स्वीकार करें मालिक। आपकी दूकान का 75 वां वर्ष मंगलमय हो।  

{लेखक शिवनाथ झा इस नोवेल्टी एण्ड कम्पनी का बचपन में एक “टेनियाँ” थे। आज एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और आर्यावर्तइण्डियननेशन(डॉट)कॉम के प्रधान संपादक हैं। ये पटना की सडकों पर सन 1968 से 1975 तक आर्यावर्त (दस पैसे), इण्डियन नेशन (बारह पैसे), सर्चलाईट (आठ पैसे), प्रदीप और जनशक्ति (पांच पैसे) अख़बारों को बेचा करते थे। इसके साथ ही, स्कूली शिक्षा भी प्राप्त करते थे। सन 1975 के 18 मार्च को पटना से प्रकाशित आर्यावर्त-इण्डियन नेशन अखबार में पत्रकारिता की सबसे निचली सीढ़ी (कॉपी होल्डर) पर नौकरी की शुरुआत किये। साथ ही, माध्यमिक परीक्षा 1974 में उत्तीर्ण करने के बाद बी एन कालेज के तत्कालीन प्राचार्य डॉ एस के बोस (जो इनके अखबार के ग्राहक भी थे) के सहयोग से आई ए में प्रवेश लिए। ये लगातार सात वर्षों तक रात्रि-पाली में नौकरी करते रहे और बी ए (अर्थशास्त्र सम्मान) और एम ए अर्थशास्त्र परीक्षा पटना विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण किये। सन 1988 में कलकत्ता से प्रकाशित दी टेलीग्राफ अखबार के संपादक श्री एम जे अकबर के आदेश से टेलीग्राफ में दक्षिण बिहार (धनबाद) के संवाददाता बने। फिर दो साल सन्डे पत्रिका में कार्य किये। सन 1992 में दिल्ली तबादला हो गया जहाँ एक वर्ष बाद दिल्ली के इण्डियन एक्सप्रेस में संवाददाता बने। फिर दि स्टेट्समेन, तहलका, सहारा टाइम्स, दैनिक भास्कर, ए एन आई में भी कार्य किये । फिर ऑस्ट्रेलिआ से उद्घोषित स्पेशल ब्रॉडकास्टिंग सर्विस (हिन्दी सेवा) के लिए चार वर्ष तक भारत का प्रतिनिधित्व किये। सन 2004 से लेकर वर्तमान तक एक अलग तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं। ये 1857-1947 के स्वाधीनता आंदोलन के गुमनाम क्रान्तिकारियों और शहीदों के वंशजों को ढूंढ का किताबों के माध्यम से उन्हें नया जीवन दे रहे हैं। अब तक ये 75 वंशजों को ढूंढे हैं और छः किताब से छः वंशजों को नया जीवन दिए हैं। इनके इस अद्भुत कार्यों को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी, मस्लन बी बी सी, एस बी एस रेडियो (हिन्दी, पंजाबी, गुजराती सेवा), वॉइस ऑफ़ अमेरिका रेडियो बहुत तबज्जो के साथ श्रृंखलाबध्द कहानियाँ प्रसारित हुई हैं। आप इनके कार्यों को गुगुल सर्च में (Shivnath Jha+1857-1947) आंक सकते हैं। इन्हे लिख सकते हैं: jshivnath@gmail.com /  https://www.facebook.com/shivnath.jha/ 91-9810246536

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