“बालक” पत्रिका का प्रकाशन लहेरियासराय से प्रारम्भ हुआ था और चन्द्रमामा मद्रास से

चंदामामा - मद्रास से प्रकाशन का प्रारम्भ। 

शायद भारत के लोग यह नहीं जानते होंगे कि स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद बच्चों के लिए प्रकाशित “चुन्नू-मुन्नू”, “अवन्तिका” मासिक पत्रिकाओं का जीवन-पर्यन्त निदेशक और कारकारिणी सदस्य थे। डॉ राजेन्द्र बाबू चाहते थे कि किताबों, पत्रिकाओं के माध्यम से छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियों के ह्रदय में अपने गाँव, जिले, प्रदेश, राष्ट्र, भाषा, विज्ञान, संस्कृति, कला इत्यादि के बारे में शब्दों, लेखों और चित्रांकनों के माध्यम से ज्ञान का बीज बोया जा सके। कल उनके जन्मदिन पर गोवा के अख़बारों में डी राजेन्द्र प्रसाद का नाम भी कहीं नहीं प्रकाशित हुआ। कल ही तो उनका जन्मदिन था। 

डॉ राजेन्द्र प्रसाद का मानना था की अगर छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियों को इस कदर की शिक्षा का माहौल उनके प्रारंभिक जीवा में, कच्चे उम्र में बनाया जाएगा, तो वयस्क होने पर, अधिक शिक्षित होने पर, वह ज्ञान उन्हें काम आएगा। यही कारण है कि बिहार के बच्चों के लिए सबसे पहले उत्तर बिहार के लहेरिया सराय से “बालक” पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। बालक पत्रिका का प्रकाशक ‘पुस्तक भंडार’ था। पुस्तक भण्डार का मुख्य कार्यालय पहले लहेरिया सराय था श्री रामलोचन शरण उसके मालिक था। १९५० के बाद पुस्तक भंडार ने गोविन्द मित्र रोड में अपना ब्रांच खोला था, जो अब बंद है। 

पटना के विख्यात प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता नोवेल्टी एंड कंपनी के संस्थापक दिवंगत ताराकांत झा के बड़े पुत्र श्री नरेन्द्र कुमार झा एक संवाद में लिखते हैं: “आज शुक्रवार 4 दिसम्बर है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्रद्धेय राजेन्द्र प्रसाद जन्मदिन (जयन्ती) का दूसरा दिन। विदित हो कि 20 वीं शताब्दी के अक्तूबर 1948 में हमारे कतिपय पारिवारिक सदस्यों और आमंत्रित 21 अतिथियों की एक बैठक में बच्चों व बड़ों के लिए एक-एक मासिक पत्रिका प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया। 

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20 वीं शताब्दी के जनवरी 1949 में ‌बच्चों के लिए ‘चुन्नू-मुन्नू’ व बड़ों के ‌लिए ‘अवन्तिका’ की शुरुआत की गई। श्रद्धेय राजेन्द्र प्रसाद वर्ष 1949 से ही उन पत्रिकाओं के आजीवन निदेशक/कार्यकारिणी सदस्य रहे हैं। 1949 -50 की कई बैठकों की अध्यक्षता डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद ने भी की है। 

हमारी पत्रिकाओं के निदेशक/कार्यकारिणी समिति के २१ आजीवन समाजसेवी सदस्यों को प्राय: देश-विदेश के समस्त विद्वान ही नहीं बल्कि भारतीय आम नागरिक भी कम से कम २०वीं शताब्दी में जानते ही थे। ‘चुन्नू-मुन्नू’ के मुख्य सम्पादक स्वर्गीय रामवृक्ष बेनीपुरी थे जबकि अवन्तिका के मुख्य सम्पादक स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण सुधांशु थे। दोनों पत्रिकाओं में निदेशक/कार्यकारिणी समिति में हिन्दुस्तान की 21 ऐसी हस्तियाॅ थीं जिन्हें विश्व के विद्वान आज भी बखूबी जानते हैं। 

हमारी पत्रिकाओं को देश-विदेश में सर्वश्रेष्ठ (प्रख्यात व प्रसिद्ध) माना गया। दो बिन्दुओं पर यानि 1 ) पत्रिकाओं के प्रकाशन व 2 २) निदेशक/कार्यकारिणी समिति के सदस्यों की बिन्दुओं पर हमारी पत्रिकाओं को सर्वोतम रूप की पहचान मिली। 

ज्ञातव्य है कि उस समय बच्चों की दो अन्य प्रसिद्ध पत्रिकाओं का नाम था: बिहार (लहेरियासराय बाद में पटना) से ‘बालक’ एवं मद्रास से ‘चंदामामा’ जबकि बड़ों के लिए बम्बई से प्रख्यात पत्रिका ‘दिनमान’ प्रकाशित होती थी। इन पत्रिकाओं की तुलना में ‘चुन्नू-मुन्नू’ व ‘अवन्तिका’ के आलेखों के लेखक, उनके शीर्षक व निदेशक भी सर्वोत्तम श्रेणी माने जाते थे।

21 वीं शताब्दी में हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ है कि ‘गोवा’ में/के किसी समाचार पत्र में (टाइम्स ऑफ़  इंडिया सहित) 3  दिसम्बर को आदरणीय राजेंद्र प्रसाद की जयन्ती तिथि (जन्मदिवस) पर उनका कहीं नाम भी प्रकाशित नहीं किया गया है। आज हम समझ रहे हैं कि 21 वीं शताब्दी में या तो भारत में ‘गोवा’ नहीं है अथवा वर्तमान शताब्दी में भी अंग्रेजों का गुलाम है ‘गोवा’ ? ‘Sir’ का अर्थ/व्याख्या भी यही है: Slave I Remain. 

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लगता है कि 3  दिसम्बर 2020  को ‘टाइम्स आॅफ इंडिया’ को केवल ‘संत फ्रांसिस जेवियर’ नामांकन ही भारत के प्रसिद्ध व्यक्ति लगते हैं देश के प्रथम स्वर्गीय समाजसेवी राष्ट्रपति डाॅक्टर राजेन्द्र प्रसाद नहीं? 

खबरों में यहाॅ के समाचार पत्र ‘संत फ्रांसिस जेवियर’ का जिक्र एक हप्ते से लगातार करते रहे हैं जबकि हमारे देश को गुलामी से मुक्त करनेवाले हिन्दुस्तान के प्रथम राष्ट्रपति आदरणीय डाॅक्टर राजेन्द्र प्रसाद की कहीं भी किसी दिन कोई चर्चा भी नहीं की है। विश्व ही नहीं हमारे देश के आम नागरिकों के लिए आज 4  दिसम्बर की दुखदाई खबर: यहाॅ (गोवा) आज भी ‘संत फ्रांसिस जेवियर’ की ही चर्चा है डाॅक्टर राजेंद्र प्रसाद की नहीं।

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