बिहार में किसान हैं क्या? दिल्ली में तो सड़कों पर सिर्फ हरियाणा और पंजाब के आंदोलनकारी किसान दीखते हैं 

आख़िर पुलिस भी तो किसान का ही बेटा है - दिल्ली की सड़कों पर ताजे समाचारों का अवलोकन करते दिल्ली पुलिस कर्मी और आंदोलनकारी किसान - फोटो: जी एन झा के फेसबुक पेज के सौजन्य से 
आख़िर पुलिस भी तो किसान का ही बेटा है - दिल्ली की सड़कों पर ताजे समाचारों का अवलोकन करते दिल्ली पुलिस कर्मी और आंदोलनकारी किसान - फोटो: जी एन झा के फेसबुक पेज के सौजन्य से 

आप विस्वास करें अथवा नहीं, लेकिन इस बात से इंकार भी नहीं कर सकते कि अगर प्रदेश के विधान सभा, विधान परिषद् में “स्थान रिक्त” होते ही सम्पूर्ण प्रदेश के रक्त-घमनियों में रक्त का बहाव बहुत तीब्र हो जाता है। चतुर्दिक चौराहों से लेकर मुख्य मंत्री के शयन कक्ष तक चर्चाएं होती हैं – किसे टिकट मिलेगा? अगर लोक सभा या राज्य सभा में स्थान रिक्त हो, फिर तो पूछिए ही नहीं। लेकिन जब देश के किसानों के हितों के बारे में दिल्ली में किसानों के द्वारा ही मंथन हो, आंदोलन हो तो बिहार के किसान किसी भी कोने में दिखाई नहीं देंगे। 

बिहार एक ऐसा प्रदेश है जहाँ के 70 से अधिक फीसदी लोगों का जीवन प्रातःकाल बिछावन छोड़ने से लेकर रात्रि में सोने तक के सभी क्रियाकलाप ‘कृषि से जुड़ा’ है। योजना आयोग, क्षमा कीजियेगा अब योजना आयोग नहीं बल्कि ‘नीति आयोग’ की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 90 से अधिक फीसदी किसानों के पास ‘एक हेक्टेयर’ यानि 10,000 मीटर भी खेत नहीं है।  यानि, सीमांत किसान है। 

आगे चलिए। बिहार के सरकारी वेब साईटों पर कृषि और किसानों के विकास के लिए सैकड़ों योजनाएं लाल-पीले-हरे-काले रंगों में लिखे हैं। लेकिन 90 फीसदी किसान ‘इन्टरनेट विद्या से अनभिज्ञ है। आकाशवाणी से कृषि समाचार भी प्रसारित होते हैं – लेकिन जब देश के किसान अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए, खेतों के अस्तित्व को बचाने के लिए, केन्द्र सरकार की किसान अथवा कृषि विरोधी नीतियों के लिए दिल्ली में आवाज उठाते हैं तो दिल्ली से बिहार तक – चाहे अखबार हों या टीवी, रेडियो हो या वेब साईट्स – बिहारी किसान कहीं भी दृष्टोगोचित नहीं होते। उनके बारे में, या आंदोलन में उनके योगदानों के बारे में “एक अक्षर” भी लिखा नहीं दीखता। अलबत्ता, बिहारी नेता-लोग दिल्ली की सड़कों पर रायसीना हिल के नेताओं का मूड देखकर भाषणवाजी खूब करते हैं। हमने ‘फलनमा’ किया – हमने ‘चिलनमा’ किया, हमने ‘ढिमकाना’ किया। 

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इन्कलाब – जिन्दावाद – हमारी मांगे पूरी हो।  तस्वीर फेसबुक पेज के सौजन्य से 

बहरहाल, एक रिपोर्ट के अनुसार, किसान आंदोलन से दिल्ली की सियासी तपिश बढ़ती जा जा रही है। नए कृषि कानूनों को वापस लेने और फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग को लेकर किसान आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं। आनंदोलनकारी किसानों का कहना है कि हम पीछे हटने के लिए नहीं आए हैं। वैसे भारत एक कृषि-प्रधान देश है।  लेकिन दिल्ली की सड़कों पर किसानों को देखकर ऐसा लगता है कि खेती सिरद हरियाणा-पंजाब में ही होती है क्योंकि यहाँ पंजाब और हरियाणा के ही किसान दीखते हैं। वर्तमान आंदोलन 32 साल पहले वाला किसान आंदोलन की याद ताजा कर रहा है। किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करना चाहते हैं, लेकिन सरकार ने उन्हें बाहरी दिल्ली के बुराड़ी मैदान में रैली करने की अनुमित दी है। दिल्ली प्रवेश करने वाली अनेकानेक सड़कें किसानों के लिए बंद कर दी गयीं है और सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया है। 
 
बहरहाल, किसान संगठनों ने नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच चौथे दौर की वार्ता के लिए बृहस्पतिवार को तीन केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात की। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य एवं खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और पंजाब से सांसद एवं वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने राष्ट्रीय राजधानी स्थित विज्ञान भवन में 35 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत की। सरकार ने बताया कि वार्ता दोपहर को आरंभ हुई और सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत जारी है।

माँ कहती थी: भूख जब लगती है तो सडकों पर ही चूल्हा जल जाता है। खाने वाला चाहे किसान हो या पुलिस, या या अभिनेता। तस्वीर ‘इन’ के सहयोग से 

सरकार का कहना है कि सितंबर में लागू किए गए ये कानून बिचौलियों की भूमिका समाप्त करके और किसान को देश में कहीं भी फसल बेचने की अनुमति देकर कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार करेंगे, लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों को आशंका है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य और खरीदारी प्रणाली को समाप्त कर देंगे और मंडी प्रणाली को अप्रभावी बना देंगे प्रदर्शनकारी किसानों ने बुधवार को मांग की कि केंद्र संसद का विशेष सत्र बुलाकर नए कानूनों को रद्द करे।    

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इधर, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने केन्द्र सरकार के कृषि कानूनों के विरोध में बृहस्पतिवार को पद्म विभूषण पुरस्कार वापस कर दिया। शिरोमणि अकाली दल के नेता बादल ने कहा,‘‘ मैं जो हूं , वो जनता के कारण हूं ,खासतौर पर आम किसान के कारण। आज जब उसने अपने सम्मान से ज्यादा खोया है तो ऐसे में मुझे पद्म विभूषण पुरस्कार रखने का कोई औचित्य नहीं समझ आता।’’

पार्टी ने एक बयान में कहा,‘‘ प्रकाश बादल ने भारत सरकार द्वारा किसानों के साथ की गई धोखाधड़ी, बेरूखी और कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के चल रहे शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक आंदोलन पर सरकार के रुख के विरोध में पद्म विभूषण लौटा दिया है।’’ बादल ने कहा कि किसान जीने के अपने मूलभूत अधिकार की रक्षा के लिए कड़ाके की ठंड में कड़ा संघर्ष कर रहे हैं।उधर, पंजाब सरकार ने केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध के दौरान मारे गए दो किसानों के परिवारों को पांच-पांच लाख रुपए की वित्तीय सहायता मुहैया कराने की बृहस्पतिवार को घोषणा की। मानसा जिले के बछोआना गांव के निवासी गुरजंत सिंह (60) की विरोध के दौरान दिल्ली के टिकरी बार्डर पर मौत हो गई थी और मोगा जिले के भिंडर खुर्द गांव के निवासी गुरबचन सिंह (80) की बुधवार को मोगा में प्रदर्शन के दौरान दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने दोनों किसानों की मौत पर शोक व्यक्त किया है। यहां जारी एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, मुख्यमंत्री ने दोनों किसानों के परिवारों को पांच-पांच लाख रुपए की सहायता मुहैया कराने की घोषणा की।

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