एगो बात बताइए – जो नेता सात बार विधान सभा चुनाव लड़कर जीता हो, वह मुख्य मंत्री के लायक है या वह जो परिषद् के रास्ते मुख्य मंत्री बना हो और सन 1985 के बाद आज तक कभी विधान सभा के लिए चुनावी मैदान में लड़ा ही न हो। ई तो वही बात हो गया कि जो महिला कभी बच्चा जन्म ही नहीं दी, वह क्या जाने प्रसूति का दर्द !! क्या कहते हैं बिहार के विद्वान और विदुषीगण? मतदाता गणों की बात रहने दीजिये ।
वैसे नितीश बाबू 2000 में, 2005 में, 2010 में और 2015 में दो बार बिहार प्रदेश के राजा साहेब बन गए हैं। और 2020 में भी सज-धजकर तैयार हैं राजभवन में शपथ ग्रहण करने के लिए, बसर्ते । नितीश बाबू अंतिम बार बिहार विधान सभा के लिए 1985 में कमर कसे थे और जीते भी। उससे पहले 1977 में भी कुस्ती लड़े थे हरनौत से, लेकिन हार गए थे। जबकि लोक सभा के लिए छः बार चुनाव जीते। सन 2004 में वैसे वे बाढ़ में मुहें भर गिरे थे लोक सभा चुनाव में और बह भी गए; लेकिन नालन्दा में बाजी मार लिए थे।
खैर, बिहार में दूसरे चरण में तीन नवंबर को विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार सातवीं बार जबकि पूर्व शिक्षा मंत्री हरिनारायण सिंह आठवीं बार जीत का सेहरा बांधने के लिये चुनावी रण में उतरे हैं। विश्व के प्राचीनतम नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों को अपने आंचल में समेटे नालंदा जिले में होने वाले विधानसभा चुनाव में राजग, महागठबंधन और क्षेत्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार चरम पर है। वर्तमान राजनीतिक परिवेश में महागठबंधन और राजग के बीच रोचक मुकाबले की उम्मीद की जा रही है। हालांकि पिछले बार के मुकाबले इस बार का चुनावी समीकरण बदल गया है। जदयू और भाजपा एक बार फिर एक साथ खड़े हैं। राजग के घटक दलों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जनता दल यूनाईटेड (जदयू), हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) शामिल है। वहीं, महागबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और वामदल में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवाद (भाकपा-माले), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के उम्मीदवार मिलकर चुनाव लड़ेंगे। नालंदा जिले में वर्ष 2015 के सात विधानसभा सीटों में से पांच पर जदयू, एक पर भाजपा और एक सीट पर राजद ने चुनाव जीता था।