जिस दिन लल्लू यादव मुख्य मंत्री बने, छोटका ननकिरबा “चार-महीना” का था; आज चचा-जान (नितीश कुमार) को शिकस्त देने को तैयार है  

बिहार के दो मुख्य मंत्री - लालू प्रसाद यादव, श्रीमती राबड़ी देवी। पूर्व उप-मुख्य मंत्री श्री तेजस्वी यादव (पिता के गोद  में) और पूर्व स्वास्थ मंत्री तेजप्रताप यादव (माता जी के गोद में)  - तस्वीर: इण्डियन एक्सप्रेस के सौजन्य से।
बिहार के दो मुख्य मंत्री - लालू प्रसाद यादव, श्रीमती राबड़ी देवी। पूर्व उप-मुख्य मंत्री श्री तेजस्वी यादव (पिता के गोद  में) और पूर्व स्वास्थ मंत्री तेजप्रताप यादव (माता जी के गोद में)  - तस्वीर: इण्डियन एक्सप्रेस के सौजन्य से।

जिस दिन (10 मार्च 1990) लल्लू यादव बिहार का मुख्य मंत्री का शपथ लिए, उस दिन छोटका ननकिरबा “चार-महीना” का था; आज चचा-जान (नितीश कुमार) को शिकस्त देने को तैयार है  – इसको कहते हैं समय का राजनीतिकरण ।  एगो बात और सुन लीजिये, छोटका ननकिरबा बाबू विश्वनाथ प्रताप सिंह-लालू यादव संवाद से पूरा वाकिफ हैं जिसमें बाबू विश्वनाथ प्रताप सिंह लालू यादव को हिदायत दिए थे :  “बस करो!! प्रदेश में कैसे आवाम को कहोगे परिवार नियोजन के बारे में, छोटा परिवार – सुखी परिवार के बारे में !!!”

खैर, तरीके से तो तेजस्वी यादव को पिछले विधान सभा चुनाव के बाद 2015 में बनने वाली सरकार में मुख्य मंत्री बन जाना चाहिए था। आखिर चुनवोपरांत राष्ट्रीय जनता दल 80 स्थानों पर जीत कर 80 विधायकों के साथ विधान सभा पहुंचे थे लालू प्रसाद यादव के बड़े-छोटे पुत्र तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव। लेकिन “चचा जान गेम खेल गए” और उन्हें अपने नीचे वाली कुर्सी पर बैठा दिए। 

अरे  भैय्या !!! वह लालू प्रसाद यादव (अब तक लल्लू प्रसाद लालू प्रसाद यादव हो गए थे) का बेटा है नितीश बाबू। जब वह “तुतलाकर बोलता था, आप उसे “चचा” बोलना भी सिखाए और “गेम भी खेल लिए” – लेकिन 2015 में कोरोना नहीं था नितीश बाबू, इस बार कोरोना की मार से आपके प्रदेश की जनता, जो रोजी-रोटी के लिए दूसरे प्रदेशों में सपरिवार पलायित की थी, आपको और सरकार की अन्य सहयोगी पार्टियों को, नेताओं को, अपने-अपने “तराजू पर तौल लिया है” और आपका पलड़ा “हल्का होने के कारण ऊपर उठा दिख रहा है नितीश बाबू।” 

नितीश बाबू आप 1 मार्च 1951 को जन्म लिए और पचास साल की आयु में 3 मार्च, 2000  को महज 7 दिनों के लिए प्रदेश के मुख्य मंत्री की कुर्सी पर बैठे। यह अलग बात है कि फिर 24 नबम्बर 2005 से अगले आठ साल+ समय के लिए उसी कुर्सी पर आसीन रहे जिस कुर्सी पर लालू यादव बैठे, फिर उनकी पत्नी जी श्रीमती राबड़ी देवीजी बैठीं .जब 2015 में लालू-राबड़ी के छोटका बेटा को उसी कुर्सी पर बैठने का समय आया, तो आप अपना “मुंह-बोला भतीजा को लंगड़ी मार दिए ताकि वह निचली कुर्सी पर बैठे।” आपने “समय के साथ गेम खेल गए, आज आने वाले समय में समय आपके साथ गेम खेलने वाला है।”

लालू प्रसाद यादव, श्रीमती राबड़ी देवी का परिवार  +  

आप यह भलीभांति जानते हैं की भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता “किसी का नहीं हैं” – सिर्फ और सिर्फ “सत्ता” का ही हैं (कुछ नेताओं को अपवाद में रख दें) । लेकिन दुर्भाग्य यह है कि बिहार में कोई भी “चुस्त-दुरुस्त-चालाक-मेढ़क जैसा नेता नहीं हुआ जो जनता को बरगला कर सत्ता पर कब्ज़ा करता। और वर्तमान भाजपा नेता और उप-मुख्य मंत्री सम्मानित सुशील कुमार मोदी की तो क्षमता है ही नहीं इस “पुनीत कार्य को करने के लिए” – यह तो सन सत्तर से आज तक जो भी महामानव हुए हैं बिहार में, पत्रकारों सहित, वे बेहतर  तरीके से जानते हैं। यह आप भी स्वीकार करेंगे, नितीश बाबू।   लल्लू यादव (बाद में लालू प्रसाद यादव) सन 1977 में 29 वर्ष की आयु में भारतीय राजनीतिक मानचित्र पर अवतरित हुए और 42 वर्ष की आयु में पहली बार प्रदेश का मुख्य मंत्री बने। यानि आप जिस उम्र में मुख्य मंत्री बने, उस उम्र से आठ-साल पहले लालू यादव मुख्य मंत्री बने। यह तो आप जानते ही हैं। यह भी बेहतरीन तरीके से जानते हैं लालू कितने शातिर थे उन दिनों – जिस प्रधान मंत्री ने उन्हें मुख्य मंत्री कार्यालय का द्वारा खोले लालू के लिए; लालू यादव उसी प्रधान मंत्री को “लपेट” लिए – यानि विश्वनाथ प्रताप सिंह। तो चालाक हुए न। 

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वर्ष 1990 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 324 में से 122 सीटें लाकर जनता दल सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरा। विभिन्न पार्टियों को जोड़कर अक्टूबर 1988 में गठित जनता दल ने वर्ष 1990 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया और गठबंधन की सरकार बानी। लालू प्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री बने। विधायक दल का नेता कौन होगा, इसको लेकर लालू प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास के बीच कड़ी टक्कर हुई। र्वोंटग के जरिये लालू प्रसाद विधायक दल के नेता चुने गए। इस तरह दोबारा मुख्यमंत्री बनने से राम सुंदर दास चूक गए। 

राजनीतिक मानचित्र पर आज भी स्वर्णाक्षरों में उद्धृत है: “उस समय जैसा कि केंद्र में हुआ था, ठीक वैसी ही स्थिति बिहार में दसवें विधानसभा की थी। कांग्रेस पार्टी को 125 सीटों का नुकसान हुआ और पार्टी 71 सीटों पर सिमट गई।  जनता दल को 122 सीटों पर विजय हासिल हुई, बीजेपी को 23 सीटों का फायदा हुआ और अब पार्टी के 39 विधायक थे। और वाम मोर्चा के 42 विधायक चुने गए। तीन-सौ चौबीस सदस्यों वाली विधानसभा में जनता दल के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन था। पर अब सवाल था कि कौन बनेगा बिहार का मुख्यमंत्री? रामविलास पासवान के मुख्यमंत्री बनने पर सभी सहमत थे और पासवान का सपना था डॉ. भीमराव अम्बेडकर के बाद दलितों के सबसे बड़ा नेता बनने का। बिहार के मुख्यमंत्री का पद उस सपने को पूरा करने के लिए काफी छोटा रंगमंच था, लिहाजा उन्होंने विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने रहने का फैसला किया। बात अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा की भी चली पर विश्वनाथ प्रताप सिंह का सिन्हा के प्रति रुख नकारात्मक रहा। सिंह पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास के पक्ष में थे और चंद्रशेखर रघुनाथ झा को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। विवाद पंहुचा उप-प्रधानमंत्री देवीलाल के पास। देवीलाल ने दूसरी बार सांसद बने लालू प्रसाद यादव के नाम का प्रस्ताव रखा।  फिर विधायक दल का चुनाव हुआ और लालू प्रसाद यादव जीत कर मुख्यमंत्री बन गए। 

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लालू प्रसाद का सफ़र काफी रोमांचक रहा — 16 साल में पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष पद से बिहार के मुख्यमंत्री तक का। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कुछ दिनों तक वह पटना वेटनरी कॉलेज के चपरासी वाले स्टाफ क्वार्टर में रहते थे। लालू के बड़े भाई वेटनरी कॉलेज में चपरासी थे और लालू भी 1977 में सांसद बनने के पहले यहां क्लर्क थे। अपने देशी लुक, हावभाव और बोलचाल के तरीके के कारण लालू देशी-विदेशी मीडिया में छा गए। ऐसा लगने लता था कि बिहार की जनता को उनके बीच का ही कोई मुख्यमंत्री मिल गया है। यह ठेठ-पंथी आप 15-साल रहने के बाद भी नहीं जुटा पाए। अब यह नहीं कहियेगा की “मिडिया बिका हुआ था, बिका हुआ है।”

खैर,  विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी लालू यादव से कोई शिकायत नहीं थी, हां उन्होंने लालू को एक सुझाव ज़रूर दिया।  मीडिया में खबर ज़ोरों से चल रही थी कि बिहार के नये मुख्यमंत्री नौ बच्चों के बाप हैं। सबसे छोटा बेटा तेजश्वी 10 मार्च 1990 को, जिस दिन लालू ने शपथ की थी, पूरे चार महीने का हो गया था। लालू और उनकी पत्नी राबड़ी देवी को 7 बेटियों के बाद दो पुत्रों को जन्म देने का सौभाग्य मिला था। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लालू को कहा बस करो, और नहीं।  किस मुंह से आप जनता को परिवार-नियोजन की सलाह देंगे? लालू बात मान गए और वही पर पूर्ण विराम लगा कर अपने परिवार को नियोजित कर लिया।   विश्वनाथ प्रताप सिंह लालू प्रसाद यादव को कतई मुख्यमंत्री नहीं बनने देते अगर उन्हें इस बात का ज़रा सा भी आभास होता की ठीक 8 महीने बाद उन्हें लालू प्रसाद के कारण ही प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। विश्वनाथ प्रताप सिंह केंद्र में वित्त मंत्री थे जब राजीव गांधी ने अयोध्या के विवादास्पद बाबरी मस्जिद के मुख्य द्वार से 36 सालों से जंग खुला हुआ ताला तोड़ने का आदेश दिया। जनता दल की अल्पमत सरकार पूर्णतया बीजेपी के समर्थन पर चल रही थी।  बीजेपी को एक मौका मिला और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण अडवाणी निकल पड़े 1989 के अंत में सोमनाथ से अयोध्या के रथयात्रा पर।  कहने को तो यह रथयात्रा बाबरी मस्जिद के स्थान पर एक भव्य मंदिर बनाने के लिए जनता के सहयोग के लिए थी, पर बीजेपी का असली इरादा था मंदिर-मस्जिद की आड़ में पार्टी का विस्तार. विश्वनाथ प्रताप सिंह लाचार थे और अडवाणी की रथयात्रा चलती रही।  बिहार के समस्तीपुर में मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रथ को रोकने और अडवाणी की गिरफ्तारी का आदेश दिया, जो बीजेपी को मंज़ूर नहीं था। बीजेपी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सिंह को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा।  वैसे बीजेपी आतंरिक रूप से विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार के अगस्त 1990 में मंडल कमीशन रिपोर्ट, जिसके अंतर्गत OBC यानी पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान था, को लागू करने के निर्णय से भी खुश नहीं थी। 
 

तेजस्वी यादव: “का चचा !! लईकन के साथ गेम !!!  फोटो: डीएनए के सौजन्य से   

बहरहाल, विश्वनाथ प्रताप सिंह लालू प्रसाद यादव के पिछड़ी जातियों के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय के बड़े नेता बनने के सपने में कुर्बान हो गए। लालू को बिहार में बीजेपी के समर्थन की ज़रूरत थी भी नहीं, वाम मोर्चा और निर्दलियों का समर्थन पर्याप्त था लालू की सरकार को जिंदा रखने के लिए। जल्द ही लालू प्रसाद पिछड़ी जातियों के बड़े नेता के साथ-साथ भारतीय रणनीति सेक्युलर पॉलिटिक्स के पोस्टर बॉय भी बन गए।  शुरुआती दौर में लालू सरकार की काफी तारीफ हुई पर अपनी राजनीतिक स्थिति मजबूत करने के चक्कर में आने वाले दिनों में लालू प्रसाद ने बिहार को जाति के नाम पर टुकड़ों में बांट दिया।  अपनी राजनितिक और आर्थिक स्थिति मजबूत करके के लिए लालू को अपराधियों का भी सहारा लेना पड़ा. अगले लेख में देखेंगे कि कैसे 1995 विधानसभा चुनाव के बाद बिहार में जंगल राज और अपराधियों के राजनीतिकरण की शुरुआत हुई (श्री अजय झा के सौजन्य से)”.  

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अब सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जनता ऊबी है या फिर आपसे साथ गोंता लगाना चाहती है अगले पांच साल तक बिहार की राजनीति में, गंगा में, गंडक में, सोन में, बागमती में, कोशी में – यह तो आगामी 28  अक्टूबर से होने वाला प्रथम चरण के चुनाव से ही साफ़ हो जायेगा, लेकिन अगर “समय और हवा को माने तो कुछ अच्छा नहीं दिख रहा है नितीश बाबू आपके लिए। 
हाँ, एक बात और, दिवंगत रामविलास बाबू के सुपुत्र पर विस्वास नहीं करेंगे। उनमें भी पिता जैसा सभी गन हैं – सत्ता के नजदीक बने रहें का। कहीं ऐसा न हो की जैसे ही चुनाव परिणाम घोषित हुआ, चिराग बाबू अपने विजय विधायकों के साथ (जो भी जीते) लालू जी के पुत्र के साथ हाथ मिला लें।”

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