फडणवीस साहेब को ‘कमजोर’ नहीं समझेंगे ‘नितीश बाबू’, उनकी मुस्कुराहट बहुत ‘खतरनाक’ है, कहीं ‘वोट’ में न बदल दें 

देवेंद्र फडणवीस अपनी पत्नी श्रीमती अम्रुता फडणवीस के साथ। फाईल फोटो: पीटीआई 
देवेंद्र फडणवीस अपनी पत्नी श्रीमती अम्रुता फडणवीस के साथ। फाईल फोटो: पीटीआई 

सोचिए ! अगर ‘शिवाजी’ की भूमि से आये फणडवीस साहेब ‘कुँवर सिंह की भूमि’ पर भाजपा का झण्डा गाड़ दिए तो नितीश कुमार कहाँ जायेंगे? लोग-बाग़ कहते हैं: “एक बिहारी सब पर भारी” – लेकिन क्या “एक मराठी” पर भी यह कहावत चरितार्थ हो सकता हैं ? अगर चरितार्थ हो गया, तो क्या नितीश कुमार, क्या लालू यादव, क्या चिराग पासवान, क्या उपेन्द्र कुशवाहा, सब के सब चारो-खाने चित हो जायेंगे और भाजपा का बल्ले-बल्ले हो जायेगा बिहार में।  

जानते हैं क्यों? महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री और प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर मोदीजी के एकदम “खासम-खास” आदमी सम्मानित देवेंद्र फडणवीस साहेब बिहार भारतीय जनता पार्टी के चुनाव प्रभारी हैं। कहते हैं – मुहब्बत में सब कुछ जायज़ है – अब अगर बिहार के चुनावी-मतदाताओं को वे लुभा सकें, वशीकरण में ला सके, उनकी उँगलियों को भाजपा की झोली में डलवा सके, तो – क्या होगा, पता है न ? नितीश जी बख्तियारपुर के रास्ते से मोकामा होते मिथिलांचल चले जायेंगे या फिर विक्रमशिला की ओर निकल पड़ेंगे।  क्योंकि नितीश जी की पार्टी जनता दल ‘यूनाइटेड’ है।  अगर जनता खुद ‘यूनाइटेड’ हो गयी तो भारतीय जनता कहलाएगी न। और हर आदमी चाहता है कि उसका नाम ‘राष्ट्रीय स्तर’ पर हो –  भले ही उसी प्रतिभा को, उसकी सोच को, उसकी क्षमता को ‘अण्डरइस्टीमेट’ करें राजनितिक पार्टियां !! 

नितीश बाबू कुछ मगज़ में ढूक रहा है ? सुशील मोदी कभी आपके नहीं होंगे। यह आप भी जानते हैं और मैं तो उन्हें सन 1972 से जानता हूँ। इसलिए कोई भी “दाँव” “ढ़ीला” नहीं रखेंगे। 

क्योंकि देवेंद्र फडणवीस साहेब का “ट्रेक-रिकार्ड” कमजोर नहीं है। यह अलग बात है कि वे थोड़ा “हिलते-डुलते” अधिक हैं। हाथ-पैर कम उठाते हैं “भाषण” के समय। इस बात पर भी मगज़-मारी नहीं करेंगे कि महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार नहीं बना सके (आप सभी विद्वान हैं, वहां की राजनीति से अवगत हैं) वे “एटीच्यूड” नहीं रखते। उनका होठ “लाल” है और अगर “पान खा लिए” तो बस “सोना में सुहागा” – आप तो खैनी, गुटका, पान, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, बीयर, रम, विस्की, ठर्रा सब “बंद करने का नाटक कर दिए और पुरे प्रदेश में रोज ट्रक-का-ट्रक शराब (देशज-विदेशज) पहुँच रहा है। फडणवीस साहेब मतदाताओं को मुस्कुराकर आकर्षित कर सकते हैं, और इस आकर्षण को वोट में तब्दील कर सकते हैं । 

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वजह यह है कि देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में भले ही भाजपा और सहयोगी दलों को मिलाकर सरकार बनाने  में असफल रहे हों, लेकिन 164 सीटों पर कुस्ती लड़कर, 105 स्थानों पर झण्डा गाड़ना, मजाक नहीं है भैय्या !! वह भी “डी-कम्पनी” और “भाई लोगों” के बीच। आप तो बिहार के सभी “भाईयों” को ही साथ ;ले लिए।  जो बचे वे लालूजी के लालटेन और पासवान जी का लाल-ब्लू-हरियर कपड़ा वाला झण्डा लेकर चुनाव में कुदुक गए हैं। यह बात कोई “चमचागिरी” के लिए नहीं लिख रहा हूँ, राजनीति के जो भी दर्शनशास्त्री होंगे, वे ऊपरी मन से भले “चिचियाएँ”; अन्तःमन से देवेंद्र  फडणवीस का “पीठ जरूर थपथपायेंगे।” क्योंकि “बिहार” और “महाराष्ट्र” में अन्तर है – चाहे प्रदेश की बात हो या राजनीति की। आप अपना देश में कहीं देखे हैं कि महाराष्ट्र का नागरिक बिहार में मजदूरी कर रहा हो? लेकिन बिहारी तो पैसा कमाने महाराष्ट्र जाता है न नितीश बाबू ट्रेन में भर-भर कर। क्या कहते हैं बिहारी बाबू लोग?

कहा जाता है कि महाराष्ट्र के विधान सभा चुनाव परिणाम और विगत दिनों महाराष्ट्र में प्रवासित बिहारियों  के साथ जो “कोरोना” का “रोना” हुआ, के मद्दे नजर, इन्हे शिवाजी की भूमि से उठाकर बाबू कुँवर सिंह, चन्द्रगुप्त मौर्य, चाणक्य की धरती पर “तिलक-टीका” लेपकर चुनाव कराने, करवाने का जबाबदेही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इन्हे भेज दिए ।  कुछ तो बात है न ? महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री की कुर्सी पर पुनः भले नहीं बैठ पाए यह अलग बात है, लेकिन मुंबई के मन्त्रालय परिसर से, दिल्ली के कल्याणमार्ग होते, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग को लाँघते, रायसिना हिल तक इस बात की चर्चा खुलेआम है की फडणवीस साहेब प्रधान मन्त्री श्री नरेंद्र मोदी के “बहुत करीबी” हैं, “खासमखास” हैं, नड्डा जी से भी इन्च नजदीक ।

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अब जब “सैंया भईल कोतबाल अब डर काहे का” वाली बात है, प्रधान मंत्री का “ब्लू-आईड बॉय” हो, तो फिर किसकी मजाल है कि कागज पर से नाम काट दे। यह काम तो पटना विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण छात्र, तत्कालीन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के आला-कमान, पूर्व केंद्रीय मन्त्री और भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष महामहिम जय प्रकाश नड्डा के बुते के बाहर की चीज है। 

वैसे दिल्ली ही नहीं, पटना के सर्कुलर रोड से लेकर बेली रोड तक सभी काँग्रेस पार्टी को शुरू से आलोचना करते आये हैं कि कांग्रेस का स्थानीय अधिकारी अपने स्तर  से कोई निर्णय नहीं ले सकता जब तक “आला-कमान” का आदेश नहीं हो, यानि केंद्रीय पार्टी अध्यक्ष का आदेश नहीं हो। यहाँ तक लोगबाग “एक्सिडेंटल प्राईम मिनिस्टर” फिल्म भी बना दिए।  यह भी दिखा दिए की कैसे देश का प्रधान मंत्री पार्टी अध्यक्ष के हाथ कठपुतली होता है। यहाँ तक की देश हित में कोई निर्णय नहीं ले सकता। 

लेकिन आज भाजपा के गननचुम्बी इमारतों से, प्रदेश कार्यालयों से, अधिकारियों के मुख से, मंत्रालय से कोई भी सुगबुगाहट नहीं है कि कैसे भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रधान मंत्री अथवा गृह मंत्री के हाथों “कठपुतली” है। चाहे पार्टी के बारे में सोचना हो, सदस्यों के बारे में सोचना हो, पार्टी को अर्थ से, सामर्थ से मजबुत करना हो, इन तमाम कार्यों का संपादन  करने का अधिकार माननीय मोदीजी में, सम्मानित अमित शाहजी में निहित हैं, शेष सब “शून्य”, और नड्डा जी की भी गिनती उसी :शून्य” में होती है । आप चतुर्दिक “लाल, ब्लू, हरा फीता काटते रहें, ताली बजवाते रहें, सोसल मिडिया पर प्रेस रिलीज, फोटो चिपकते रहें, बांटते रहें – खुश रहें। 

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कल की ही तो बात है प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चुनाव प्रभारी देवेंद्र फडणवीस ने कहा माननीय प्रधान मंत्री बिहार आ रहे हैं। इस बात को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी तो कह सकते थे। इस बात को बिहार के भाजपा के वरिष्ठ नेतागण भी तो कह सकते थे – फिर फडणवीस साहेब ही क्यों? चुनाव प्रभारी हैं इसलिए? अरे भैय्या तनिक मुंबई के मेरिन ड्राईव पर बैठकर, समुंदर के तरफ मुंह करके, लम्बी सांस लेते म- सोच-विचार करें। फडणवीस साहेब कह दिए कि सम्पूर्ण प्रदेश में कुल 12 चुनावी रैलियों को सम्बोधित करेंगे। सभी रैली संयुक्त रूप से राजग की होगी। इन सभी रैली में श्री मोदी के साथ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा घटक हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के नेता भी मौजूद रहेंगे।

विगत चुनाव परिणाम में महाराष्ट्र में बीजेपी को 105 सीटों पर जीत मिली थी । जबकि उसकी सहयोगी पार्टी शिवसेना सीट जीतने के मामले में दूसरे नंबर पर थी । इसके बाद नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के खाते में 54 सीटें, कांग्रेस के खाते में 44 और निर्दलीय के खाते में 13 और बाकी सीटों अन्य स्थानीय दलों के खाते में गई । महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में इस बार 60.83 प्रतिशत वोटिंग दर्ज हुई थी । हालांकि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार वोट कम पड़े थे । 2014 की तुलना में इस बार के वोटिंग प्रतिशत में 2.67 फीसदी की कमी आई थी । साल 2014 में महाराष्ट्र विधानसभा की 288 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी 122 सीटें हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। भाजपा ने पहली बार महाराष्ट्र में इतनी सीटें हासिल की थीं। 

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