आख़िर बक्सर बाबा को “नेता बनने का बुखार क्यों चढ़ा?”

बाबू गुप्तेश्वर पांडेजी - चलो सुहाना भरम तो टूटा 
बाबू गुप्तेश्वर पांडेजी - चलो सुहाना भरम तो टूटा 

नब्बे के दसक तक बिहार में “पण्डितजी” लोगों का बहुत सामाजिक सम्मान था। सड़क के किनारे चाय बेचने वाला भी टेबुल पोछकर इन्हे बैठने को कहता था। गिलास को खँघाल कर, गरमपानी से धोकर, चाय में ‘मलाई-मारकर’ सम्मान के साथ चाय प्रस्तुत करता था। ताकि पण्डितजी को, यानि समाज के ऊँची जाति के लोगों को कोई ठेस नहीं लगे, सम्मान पर कोई आघात नहीं पहुंचे। और पंडितजी “झूठ्ठो-मुठ्ठो का लतीफ़ा सुनाकर निचली जाति के लोगों को बरगलाते थे, ठगते थे, और कोरोना-वायरस जैसा सोसल-डिस्टेन्सिंग” रखते थे, कहीं “चमड़ा छुआ” न जाय । लेकिन आज पण्डितजी लोग सोचते होंगे “सच्चे, समय बदल गया है।

और आधुनिक बिहार के इतिहास में बक्सर के बाबा जैसे पंडितजी को, जो कल तक खाकी के रौब में थे, गश में चलते थे; आज जिस तरह बख्तियारपुर के कुर्मी बाबू “लॉलीपॉप” दिखाकर “घर का रास्ता दिखा रहे हैं”, दिन दूर नहीं है कि महाशय उपेन्द्र कुशवाहा जैसे “एन्ने-ओन्ने” खड़ा होकर भाषण देने लगे, सत्ताधारी पार्टी को गलियाने लगें – सब कहेगा “विक्षिप्त” हो गए हैं पंडितजी । “टिकटवा” नहीं मिला तो शायद मगज का “स्क्रू” धूम गया।

खैर, जो भी हो, “बक्सर” में तो “बख्तियारपुर” के हाथों परास्त हो गए, अब “गोपालगंज” के तरफ “टिटही” जैसा ताकते दिन बिताएंगे। अगर महाभारत कालीन सम्राट राजा भूरी सर्वा के सल्तनत और बाद में, 13 वीं तथा 16 वीं शताब्दी के राजा सुल्तान गयासुद्दीन अब्बास और बाबर द्वारा शासित भूमि से गुप्तेसर बाबा को दिल्ली के छोटका लाल-मन्दिर (लोक सभा) में नहीं भेजा गया, कुस्ती-लड़ा कर तो समझ लीजिये कि बख्तियारपुर के बाबू का राजनीतिक इंजीनियरिंग कितना शक्तिशाली है। हो न हो, आधुनिक बिहार के इतिहास में यह स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा कि कैसे पण्डितजी राजनीतिक लोभ में आकर दलित नेता के हाथों मुँह के बल गिरे।

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और जहाँ तक “बड़का लाल कोठी” में कुर्सी पर बैठने का सवाल है, वह तो “बिना दान-दक्षिणा के बैठना” एकदम “चिरकुट सोच होगा। बिहार में गंगा नदी की सम्पूर्ण पानी में गर्दन डुबाकर भी कोई करोड़ों-करोड़ भगवान् का नाम लेकर किरया खाएंगे, तो भारत का आवाम कभी नहीं मानेगा की बड़का लाल कोठी (राज्य सभा) में बिना कमर ढ़ीला किये जगह आरक्षित किये हैं। अगर बक्सर बाबू कमर खोले, तो चतुर्दिक अधिकारीगण गिद्ध के तरह बैठ जायेंगे पूछताछ करने के लिए की महाशय इतनी लक्ष्मीजी कहाँ से? अभी तो अमिताभ बच्चन वाले शो “कौन बनेगा 7 करोड़पति में कोई जीता भी नहीं है।” सवाल बहुत गंभीर हैं।

अब अगर नितीश बाबू को हम पहचानने में गलती नहीं किये हैं जीवन के अस्सी-दसक में तो गाँठ बाँध लीजिये – वे बहुत दिनों तक, दसकों तक भूलते नहीं ‘उपकार चुकाना’, चाहे ‘इस पार का हो” या ‘उस पर का।”

आज तक पटना वाले, बिहार वाले, दरभंगा वाले कभी सोचे हैं कि आख़िर वे एगो झाजी को विधान परिषद् में काहे लाकर उन्हें विधायक पद से अलंकृत किये, मंत्री बनाये ? कैसे समझियेगा? डाकबंगला चौराहा पर दाँत में सिक्की ढुकाने से मगज में ज्ञान नहीं ढुकेगा न !!

आधुनिक बिहार के इतिहास में शायद गुप्तेश्वर बाबा (श्री गुप्तेश्वर पांडेय) पहिला पुलिस अधिकारी होंगे जो संस्कृत में स्नातक और स्नातकोत्तर हैं, वह भी विख्यात पटना विश्वविद्यालय से। और सबसे बड़ी बात यह है कि पंडितजी “गाय-गोरु का दूध दूहने में” तनिक भी हिचकी नहीं लेते। अंग्रेजी के विद्वान लोग कहते हैं “ओ … सीट”, यह बात हमारे गुप्तेश्वर बाबा नहीं कहते। गुप्तेश्वर बाबा हमारे विश्वविद्यालय से ही उच्च शिक्षा प्राप्त किये और सत्र में दो-साल पीछे। आम तौर पर सब बिहारी को UPSC देने का बुखार चढ़ता है, इनको भी चढ़ा। कोई चढ़ जाता है, कोई लुढ़क जाता है। लेकिन बाबा चढ़ गए, अपने उम्मीद से ऊपर। हठ योगी तो हैं ही।

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पटना के माथा के डाक्टर से लेकर दिल्ली के मेडिकल कॉउंसिल तक, सभी लोगबाग, बड़े-बड़े चिकित्सक इस बात को मानते हैं कि मनुष्य में, यदि शरीर से कमजोर नहीं हो, परिपक्कता से दू-चार महीना पहले जन्म नहीं ले लिया हो, तो ऐसे मानवों में 40 वर्ष की आयु आते-आते मगज का पूर्ण विस्तार, विकास और परिपक्कता आ जाता है। यानि उनका मगज लगभग 1274 क्युबिक सेंटीमीटर आकार-प्रकार का हो जाता है। यह पुरुषों के लिए हैं। महिलाओं में मगज का आकार – प्रकार कोई 1131 क्यूबिक सेंटीमीटर का होता है। लेकिन आश्चर्य तो यह है की 143 क्यूबिक सेंटीमीटर आकार-प्रकार में छोटा होने के बाद भी, महिलाएं पुरुइशों को कैसे जीवन पर्यन्त नाथ के रखती है।

वैसे नितीश बाबू कोई गलती नहीं किये हैं। कुछ न कुछ उनके मगज में जरूर है, चल रहा है, जिससे उन्हें बक्सर बाबा को बक्सर में मात दिए। लेकिन एक बात समझ में अभी तक नहीं आया की बक्सर बाबा को “नेता बनने का बुखार क्यों चढ़ा?”

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