नितीश कुमार में एक करोड़ “अवगुण” है, ‘एटीच्यूड’ कपार पर बैठा है – लेकिन मुस्कुराते तो हैं, गलियाते तो नहीं

नीतीश तो सबके हैं, लेकिन सबकी निगाह मुख्य मंत्री की कुर्सी पर है। सब "फिराक" में हैं की समय मिलते ही लंगड़ी मार देना है

लालू प्रसाद यादव के दिन लद गए। साथ ही, राम विलास पासवान भी नहीं रहे। बेटा करेगा, भगवान् मालिक। जीतन राम मांझी कितना और किसके बदौलत कुदकेंगे ? उपेन्द्र कुशवाहा जब दिल्ली के केंद्रीय मंत्रिमंडल में थे तो उन्हें ऐसा लगने लगा (ऐसा होना भी स्वाभाविक है) की ‘एको हम दूजो नास्ति” – गजबे के गलतफैहमी के शिकार हो गए। “एटीच्यूड” कपार पर चढ़कर ताण्डव करने लगा। जोश में आ गए और पद से इस्तीफा देकर बिहार के भावी मुख्य मंत्री बनने का स्वप्न देखने लगे। मुख्य मंत्री बनने पर जो कपड़ा पहनेंगे, मने-मन सिलवाने लगे। अब उस पीढ़ी में बचा कौन?

ले लोट्टा: नितीश फिर मार बाजी!!!

भारतीय जनता पार्टी बिहार में अपना गढ़ नहीं बना सकती। उतनी ताकत नहीं है नेताओं में – चाहे प्रदेश के हों अथवा केंद्रीय। आप ही सोचिये न – महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री को अगर बिहार चुनाव को देख-रेख करने का दायित्व दी है पार्टी तो इसका क्या अर्थ है? बेचारे मराठी यहाँ क्या करेंगे ? बंगाली होते तो “माँछ-भात-दही-रसगुल्ला भी खाते ! अब लिट्टी-चोखा तो खाएंगे नहीं। अगर खाएंगे तो भाजपा का “वोट” और उम्मीदवारों की पराजय सुनिश्चित करेंगे।

फिर बचा वह जो मुख्य मंत्री है ही और आने वाले न्यूनतम तीन विधान सभा चुनाव तक कोई दिखाई भी नहीं देता जो महामहीम नितीश कुमार को पदच्युत कर सकें। इसका सीधा अर्थ यह हुआ की आगामी समय में नितीश कुमार देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को “कार्यालय में सेवा समय” के मामले में “टक्कर” देने वाले हैं। बात तो सिर्फ प्रदेश और केंद्र की होगी न।

चुनावी तारीखों की घोषणा, नामांकन पत्र दाखिल करने की अंतिम तारीख, वापस लेने की तारीख, चुनाव होने की तारीख, मतों की गिनती की तारीख, गंठबंधन की बातें, घटक दलों में खींचतानी, कौन चुनाव से पहले साथी बनेगा, कौन चुनाव के बाद लोभवश साथी बनेगा, कितना मंत्री किसको चाहिए, कितना पैसा किस विधायक को चाहिए, कौन परम्परागत रहेगा, कौन मुंह फुला लेगा इत्यादि-इत्यादि बातों पर चर्चा करने का काम टीवी वालों का है “टीआरपी” के लिए, या फिर “ठेंघुना और घुटने आकार- चुटकन नेताओं का जो पार्टी अध्यक्ष के लिए गिलास में पानी लेकर खड़े रहते हैं; शौचालय जायेंगे तो चप्पल तुरंत पैर के नीचे रखते हैं, खैनी खाये हैं तो थूकेंगे जिस पीकदान में वह लेकर खड़े हैं ।

ये भी पढ़े   चर्चाएं 'हॉट-स्पॉट' में है कि क्या बख्तियारपुर वाले नीतीश कुमार दिल्ली के 6-मौलाना आज़ाद रोड में 'लैंड' हो रहे हैं ?

महत्वपूर्ण बात यह है कि रामविलास पासवान की “मुख्य मंत्री बनने की अन्तिम ईक्षा पूरी नहीं हुई । भगवान् उन्हें  स्वर्ग की राजनीति से मोह-भंग करें,  शांति दें।    उपेन्द्र कुशवाहा और सुटुकने वाले हैं विधायकों की संख्या को लेकर। आने वाले समय में कोई पूछेगा भी नहीं उन्हें। मांझी बाबू के बारे में कुछ भी नहीं सोचें क्योंकि उनके सभी समर्थक नितीश के तरफ लुढ़क रहे हैं। बात रही लालू-राबड़ी यादव और उनके पुत्रद्वय की – तो बस यह मान लीजिये की “कृष्ण अब मथुरा से द्वारका निकल पड़े” – समय बदल रहा है।

हे नितीश जी !! आप तो हमारा देवर जैसा हैं न!! काहे ननकिरवा को सताते हैं? बच्चा है!!!!

बहरहाल, अगर श्रीकृष्ण सिंह, दीप नारायण सिंह, बिनोदानंद झा और कृष्णबल्लभ सहाय (पहला-दूसरा और तीसरा विधान सभा : पार्टी: कांग्रेस : साल – 2 अप्रैल 1946 से 5 मार्च 1967 तक) छोड़ दिया जाय; तो महामाया प्रसाद का आगमन तो पूर्ववर्ती मुख्य मन्त्रियों के कार्यों की तीब्र और कटु-आलोचना के बाद ही हुआ था। चौथे विधान सभा में, यानि 5 मार्च 1967 से 29 जून 1968 में महामाया प्रसाद सिंह, सतीश प्रसाद सिंह, बी पी मंडल और भोला पासवान शास्त्री जन क्रांति दाल, संयुक्त सोसलिस्ट पार्टी और इण्डियन नॅशनल कांग्रेस पार्टी के लोग मुख्य मंत्री बने। फिर राष्ट्रपति शाशन लागु हुआ और प्रदेश पांचवे विधान सभा के गठन के लिए चुनाब में झोक दिया गया। उस समय तो बिहार के लोगबाग कुछ नहीं बोले सिवाय मौके की तलास के लिए “खुद को तरासते” रहे – परन्तु वे भाग्यशाली रहे जो सत्ता में समा गए, कुछ “तरसते” रह गए।

पांचवां विधान सभा 26 फरबरी 1969 से 2 जून 1971 तक रहा और इन दो वर्षों में हरिहर प्रसाद सिंह, भोला पासवान शास्त्री (दो – बार), दारोगा प्रसाद राय, कर्पूरी ठाकुर मुख्य मंत्री बने; साथ ही, राष्ट्रपति शाशन भी लागु हुआ। फिर छठा विधान सभा (19 मार्च 1972 – 11 अप्रैल 1975) में तीन लोग मुख्य मंत्री बने – केदार पाण्डे, अब्दुल गफूर और डॉ जगन्नाथ मिश्रा। इसी तरह, सातवें विधान सभा (24 जून 1977 से 17 फरबरी 1980) दो मुख्य मंत्री आये – कर्पूरी ठाकुर और राम सुन्दर दास और फिर आठवें विधान सभा के गठन के पूर्व वाला राष्ट्रपति शासन।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here