बिहार में ‘अविवाहित’ महिला ‘विवाहित महिलाओं’ के ‘आँचल’ और ‘खोइँछा’ को राजनीतिक बाज़ार में बेच रही है

सुश्री पुष्पम प्रिया चौधरी का खोइँछा अभियान

बिहार के चुनावी मैदान के स्वयंभू-मुख्य मंत्री सुश्री पुष्पम प्रिया चौधरी प्रदेश के लाखों – करोड़ों महिलाओं के “आँचल” और “खोइँछा” को राजनीतिक बाज़ार में खुलेआम लाकर उसकी अस्मिता का मज़ाक उड़ा रही हैं। वे चाहती हैं की प्रदेश के 108 लाख महिलाएं उन्हें “खोइँछा” दे। जबकि लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पोलिटिकल साइंस के ज्ञाता इसे दूसरे तरीके से भी आंक रहे हैं। उनका मानना है कि 108 लाख खोइँछा का अर्थ – चावल, डूब, हल्दी इत्यादि को अगर हटा भी दें तो कुल 108 लाख सिक्के, यानि एक करोड़ आठ लाख इजाफ़ा।

गजब की पढाई पढ़कर आयी हैं बिहार विधान परिषद् के सदस्य सम्मानित श्री विनोद चौधरी जी की पुत्री लन्दन स्कूल ऑफ़ इकॉनोमिक्स एंड पॉलिटिकल साइन्स तथा ससेक्स विश्वविद्यालय से – बिहार की महिलाओं को उल्लू बनाइंग, डिफ़्फरेंटली।

आश्चर्य तो यह है कि ये प्रदेश की अशिक्षित, अनपढ़ महिलाओं को अपना निशाना बना रही हैं। वैसे भी बिहार में महिलाओं की साक्षरता दर 52 फीसदी है जबकि पुरुषों की साक्षरता 72 फीसदी, यानि 20 फीसदी पीछे हैं पुरुषों से । विद्वानों का मानना है कि वर्तमान मुख्य मंत्री नितीश कुमार इन्ही 20 फीसदी अशिक्षित-अनपढ़ महिलाओं के वोट से बारम्बार चुनाव जीतकर मुख्य मंत्री बन रहें हैं, जो सुश्री चौधरी को “अपच्य” है और इसी कारण वे महिलाओं की संवेदना को राजनीतिक बाजार में खींचकर ले आयीं।

कुछ लोग तक कह बैठे की “पैंट-शर्ट”, वह भी “काले रंग” का और इसपर “अविवाहित”, क्या समझेंगी “आँचल” और “खोइँछा” का महत्व। चुकी प्रदेश में अनपढ़-अशिक्षित महिलाओं की बाढ़ है, इसलिए उन्हें “टारगेट” करना अधिक आसान है। खैर।

पिछले दिनों फेसबुक के “आखर” पृष्ठ पर श्रीमती सरोज सिंह लिखित “खोइँछा” पढ़ा। मार्मिक चित्रण। कहते हैं ग्वाला जिस वर्तन में दूध दुहता है, उसे कभी फेंकता नहीं, चाहे गाय-भैंस दूध देना बंद क्यों न कर दे। वह विस्वास कभी नहीं समाप्त होने देता। अपनी संस्कृति पर कोई दाग, कोई आंच नहीं देता, चाहे गाय-भैंस-बकरी-ऊँट या अन्य मादा जीवों के दूध दुहने का तरीका कितना भी आधुनिक और वैज्ञानिक क्यों न हो जाय – वह बैठकर, अपने दोनों पैर के बीच उस वर्तन को रखकर आराम से, प्रेम से गीत गाते, गुनगुनाते दूध दुहता है।

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खोइँछा सिर्फ भोजपुरी संस्कृति में ,मिथिलाञ्चल की संस्कृति का एक अमूल्य हिस्सा है। आम तौर पर जब बेटी की शादी होती है तो विदाई समय, अथवा, बेटी जब ससुराल से नईहर आती है, तब माँ, सास, सुहागन ननद, भौजाई अथवा अन्य महिलाएं उस बहु-बेटी को उसके आँचल में “खोइँछा” देती है, जो वह अपने आँचल में बांधती है, क्योंकि एक महिला के लिए उसका आँचल उसका सम्पूर्ण अस्तित्व होता है, उसका सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड होता है। यह जीवन भर उस महिला के सुख-दुःख का एक मात्र चश्मदीद गवाह होता है। एक मात्र मित्र होता है। उस आँचल से ही वह अपनी गरिमा को, अपने सम्मान को, अपने अस्तित्व को ढँक कर रखती है।

इस “खोइँछा” में सफ़ेद अक्षत (चावल), धान, हल्दी दूब, सिक्का और सिन्दूर देती हैं समाज की महिलाएं जब उनकी बेटी अथवा बहु ससुराल अथवा नईहर आती-जाती हैं। इतना ही नहीं, माँ भगवती यानि दुर्गा पूजा में अष्टमी-नवमी के दिन महिलाएं माँ दुर्गा की भी आँचल में खोइँछा बांधती हैं। वे यह मानती हैं की माँ भगवती अब नईहर से ससुराल जाएँगी। अनेकानेक पारम्परिक गीतों में भी आँचल और खोईंछा का जिक्र आज से नहीं, बल्कि, मानव सभ्यता के समय से हैं।

सफ़ेद अक्षत और धन को “शुभ” माना जाता है। ताकि वह अपने जीवन में सदा पूर्णता प्राप्त करे। धर्मशास्त्र में हल्दी को शुभ-निरोग और पवित्र मन जाता है। वैसे तो हल्दी खुद में ही शुद्ध है, जिसे जीवन ऊर्जा देने वाले सूर्य का प्रमाण माना जाता है, परन्तु पाँच गाँठ इसलिए ताकि वो जीवन ऊर्जा हमेशा सकरात्मक हो, नकरात्मक नहीं और गाँठों की तरह ही ये पूरे परिवार को एक साथ बांधे रहे। इसलिए खोइँछा में ही नहीं, छठ पर्व में भी लोग डाला पर हल्दी का पौधा रखते हैं। खोइँछा में हल्दी रखने का अर्थ वह हमेशा निरोग रहे। शास्त्र में दुब का महत्व तो सभी जानते हैं। प्राकृतिक दृष्टि से दूब जहाँ भी मिटटी से स्पर्शित होता है, जम जाता है, उसे नष्ट करना बहुत मुश्किल होता है। और एक सिक्का, यानि धन-धान्य रहे जीवन भर । इन सामग्रियों के साथ जब महिलाएं अपनी बहु-बेटियों के “आँचल में खोइँछा” बांधती हैं तो उनके विस्वास में एम् सम्पूर्णता होती है – एक स्त्रीत्व का, माँ की ममता का, प्रकृति के प्यार का, गुण का और अस्तित्व का। भारतीय संस्कृति में अलग-अलग प्रदेशों में अपनी बहु-बेटियों की मंगल कामना का अलग-अलग तरीका प्रचलन में हो सकता है, परन्तु बिहार जैसे प्रदेश में “आँचल और खोइँछा” का एक विशेष गरिमा हैं – महिलाओं के लिए।

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खोइँछा हमेशा “सूप” से दिया जाता है जिसे महिलाएं अपने आँचल में बांधती हैं। “सूप” के साथ सांस्कृतिक-बौद्धिक-आध्यात्मिक-तान्त्रिक गुण यह है कि “सूप सिर्फ और सिर्फ शुद्ध वस्तुओं को ही ग्रहण करता है।”

मॉम स्प्रेस्सो पर रोहिणी भारजद्वाज लिखती हैं: “जब भी माँ नानी के घर जाती, आने-जाने की तारीख लगभग तय ही रहती थी । यूँ कहें तो मम्मी जानती थी कि अमुक दिन, तय समय पर नानी की देहरी छोड़नी ही है। फिर भी जब आने के समय नानी जब उन्हें पूजा घर में ले जा कर, सूप में रखी चीजों को सीधा उनके आँचल में गिराती (खोइंछा), तो जैसे-जैसे चावल के दाने गिरते, दोनों की आँखों से आँसू भी बह निकलते थे। मुझे लगता कि क्यों रोती है माँ? क्या इन्हें हमारे साथ आना अच्छा नहीं लगता ! या हमसे ज्यादा कहीं ये नाना-नानी से तो प्यार नहीं करती? ईर्ष्या और दुःख दोनों साथ-साथ ही मेरे मन के अन्दर घर करते, और फिर उत्पत्ति होती इस दम्भ की, कि मैं तो नहीं रोऊँगी, जब मैं ससुराल जाऊँगी। शायद यही पहला छाप था मेरे बालमन में खोइंछा और ससुराल का।”

खोइंछा अगर चन्द शब्दों में कहा जाये तो – चावल या जीरे के चन्द दाने, हल्दी की पाँच गाँठ, दूब की कुछ पत्तियाँ और पैसे या चाँदी की मछली या सिक्के। लेकिन भावनाओं में इसका आकलन करना थोड़ा नहीं बल्कि बहुत मुश्किल है। इसमें होता था, माँ का दिया सम्बल, पिता का मान, भाई-बहनों का प्यार और परिवार का सम्मान। खोइंछा हमेशा बाँस के सूप से ही दिया जाता है, जो वंश वृद्धि का द्योतक है।

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लेकिन, काले पैंट-शर्ट में लिपटी क्या बिहार की स्वयंभू-मुख्य मन्त्री सुश्री पुषम प्रिया चौधरी आँचल और खोइँछा के इस सांस्कृतिक महत्व को जानती हैं या फिर चुनाव में बिहार की महिलाओं की संवेदना, उनकी संस्कृति के साथ मज़ाक कर रही हैं।

सुश्री चौधरी का कहना है कि अगर वह बिहार की सीएम बन जाती हैं तो वर्ष 2025 तक बिहार को देश का सबसे विकसित राज्‍य बना देंगी। यही नहीं वर्ष 2030 तक बिहार विकास के मामले में यूरोपीय देशों जैसा हो जाएगा। सुश्री चौधरी जेडीयू के पूर्व एमएलसी विनोद चौधरी की बेटी हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि श्री विनोद चौधरी का बिहार की राजनीति में कोई महत्व नहीं है अगर नितीश कुमार नहीं होते। लोग तो यहाँ तक कह रहे हैं कि वे चुनाव जीतकर विधान सभा में कभी नहीं पहुँच सकते तभी तो नितीश कुमार उन्हें परिषद् में जगह दिए। कुछ लोगों का कहना है कि वे अपनी राजनीतिक मन-मुटाव को बेटी के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं।

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