10-जनपथ हावी हो गया 12-जनपथ पर, तभी तो चिराग लोजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, देश में ‘दलितों की किल्लत’ तो नहीं है

१२ - जनपथ (रामविलास पासवान का आवास) पर पिता-पुत्र और पार्टी

राम विलास पासवान अब नहीं रहे। उनके जाते ही सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है “तथाकथित” दलित नेता की “घरेलू” लोक जनशक्ति पार्टी में। वैसे 12-जनपथ शान्त है, लेकिन सुगबुगाहट अन्दर-ही-अन्दर प्रारम्भ हो गयी है। आखिर “भैया के बाद ”भाई” क्यों नहीं, ”भतीजा” क्यों नहीं? ”बेटा” ही क्यों ? फिर क्या अन्तर रहा सोनिया गाँधी वाला कांग्रेस और राहुल गाँधी वाला कांग्रेस में? क्या 10-जनपथ का हवा भारी हो गया है 12-जनपथ पर?” मामला बहुत पेंचीदा है।

लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक अब  नहीं रहे। गिरते स्वास्थ और बदलती राजनीतिक वातावरण के मद्दे नजर रामविलास पासवान स्वयं को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्षता से एक-हाथ की दूरी बना लिए थे, साथ ही, पार्टी का दारोमदार अपने एकलौते पुत्र चिराग पासवान को सौंप दिए थे। चिराग पासवान में पार्टी का सम्पूर्ण अधिकार भी निहित कर दिए थे, ताकि वर्तमान और आने वाले समय में राजनीतिक फैसले ले सकें। लेकिन “जब पार्टी घरेलू हो और पार्टी के जन्म से अब तक घर के और लोगों का योगदान हो, तो आला-कमान फैसला ‘काँग्रेसी फैसला’ जैसा महसूस कर रहे हैं लोगबाग। और यह भी महसूस कर रहे हैं कि आने वाले समय में वे ‘मेहफ़ूज’ भी नहीं रह पाएंगे।

राम विलास पासवान के अनुज सांसद रामचंद्र पासवान, जो 16 वीं और 17 वीं लोक सभा के सदस्य थे, का निधन पिछले वर्ष 21 जुलाई, 2019 राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हो गया था। लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि राम विलास पासवान की राजनीतिक छवि और लोगों के बीच उनकी बर्चस्वता के कारण ही रामचंद्र पासवान और पशुपति पारस चुनाव जीतते आये हैं और व्यक्तिगत रूप से चुनाव जीतने की क्षमता नहीं रखते हैं। फिर भी राजनीति तो राजनीति है। राम,दिवंगत रामचंद्र पासवान के पुत्र प्रिन्स राज भी राजनीति में ही हैं। पिता की मृत्यु के बाद समस्तीपुर लोक सभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने हैं।

अब चिराग पासवान और प्रिन्स राज में वही सम्बन्ध रह पायेगा जो दोनों के दिवंगत पिता का अपने भाइयों में था? बिहार के मामले में यह प्रश्न बहुत जटिल है। अगर ऐसा होता तो न तो घरों के टुकड़े होते और ना ही खेत- खलिहानों का ‘सब-डिवीजन और फ्रेगमेंटेशन” होता।

पशुपति नाथ पारस अपनी पत्नी के साथ

लेकिन सवाल यह है कि क्या जो सम्बन्ध रामविलास पासवान-रामचन्द्र पासवान और पशुपति पारस में रहा, क्या वही सम्बन्ध अगली पीढ़ी में रह पायेगा? पशुपति पारस भी अब उस पीढ़ी में अकेले रह गए।  12 -जनपथ के लोगों को माने तो चिन्ता की रेखाएं उनके कपाल पर भी दिखती है।

वैसे राम विलास पासवान को भारतीय राजनीतिक मौसम विभाग का थर्मामीटर माना  जाता था । सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी करते थे – कोई भी, किसी भी पार्टी का राजनीतिक विचारधारा बाधक नहीं बनता था । किसी पार्टी से हाथ मिलाते थे, किसी भी पार्टी से हाथ झटकते थे, अपने और अपने परिवार, परिजनों के लिए, “दलितों के कल्याणार्थ।”

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पिछले वर्ष दिल के वाल्व में रिसाव हो गया था, लन्दन के ब्राम्पटन अस्पताल में सर्जरी कराये और एक साल बाद जिस पार्टी में साथ थे, उसी पार्टी को लपेटना शुरू कर दिए, बिहार की राजनीति को लेकर । अब देख ही लीजिये, जैसे ही चुनाव आया, नितीश कुमार को झटक दिए। चिराग पासवान एलान कर दिए की वे आगामी विधान सभा के चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ेंगे। लोक जनशक्ति पार्टी की केंद्रीय संसदीय बोर्ड की बैठक में प्रस्ताव पास हुआ कि लोजपा के सभी विधायक, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों को और मज़बूत करेंगे। यानि, संकेत बिलकुल साफ़ है। एलजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अब्दुल खालिक ने बैठक की जानकारी देते हुए कहा कि वैचारिक मतभेदों के कारण जनता दल (यूनाइटेड) के साथ गठबंधन में लोजपा आगामी बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लडे़गी। राष्ट्रीय स्तर व लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी का मजबूत गठबंधन है।

नजदीकी लोगों का मानना है कि राम विलास पासवान एक बार अपने प्रदेश में मुख्य मंत्री बनना चाहते थे क्योंकि उनका साथी-संगत के सभी नेता लोग, यहाँ तक की जीतन मांझी भी; एक बार नहीं, दो बार, तीन बार मुख्य मन्त्री बन चुके थे ।

देश की राजनीति की नब्ज और टेंटुआ दोनों पकड़ने में माहिर थे। चिराग पासवान बॉलीवुड में भी अपनी सुन्दरता को लेकर भविष्य आजमाए थे, लेकिन बहुत सफलता नहीं मिली। कहा जाता है कि हाजीपुर से दिल्ली के रास्ते बॉलीवुड ले जाने में बॉलीवुड के शीर्षस्थ निदेशक-अभिनेता प्रकाश झा की भूमिका अब्बल रहा। प्रकाश जा पासवान परिवार के बहुत नजदीकी माने जाते हैं।

सम्भतः राम विलास पासवान एक अकेला “दलित नेता” थे जो अपने साढ़े-चार दसक के राजनीतिक जीवन में छः प्रधान मंत्रियों के कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री के पद को शोभायमान बनाया थे । उन्होंने प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच डी देवगौडा, आई के गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और मोदी की कैबिनेट में काम किया है और कभी भी किसी राजनीतिक विचारधारा को अपनी राजनीतिक जीवन के राह में नहीं आने दिया।

नजदीकियों मानना है कि बिहार के तीन नेताओं – लालू यादव, सुशिल मोदी और नितीश कुमार – में राम विलास पासवान नितीश कुमार से अधिक करीब थे । नितीश-पासवान में वैचारिक भेदभाव के वावजूद, राज्य की भलाई, साम्प्रदायिक सद्भावना को लेकर एक मत थे। दोनों में कोई नहीं चाहते थे की राज्य में किसी भी प्रकार की अशांति हो। धर्म के नाम पर समाज में किसी भी तरह का कोई मतभेद नहीं हो।

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आठ बार लोक सभा संसद चुनाब जितने वाले राम विलास पासवान संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, लोकदल, जनता पार्टी, जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड) में रहे और फिर 2000 में अपनी पार्टी लोजपा का गठन किया। हाजीपुर सीट से 5 लाख से अधिक मतों से जीतकर उन्होंने गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्डस में अपना नाम दर्ज कराया।

भारत को स्वतन्त्र होने से एक वर्ष और एक माह पहले बिहार के खगरिया जिले के शहरबन्नी गाँव में 5 जुलाई,1946 को जन्मे दलित नेता राम विलास पासवान एम ए, एल एल बी हैं और मौंटब्लैंक कलम से लिखने में दिलचस्पी रखते थे। विश्वविद्यालय शिक्षा काल से ही राम विलास पासवान छात्र राजनीति में सक्रिय नेता के रूप में जाने जाते थे। सम्पूर्ण क्रांति के नायक जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन में ये अपना महत्वपूर्ण योगदान दिए थे।

1969 में पहली बार पासवान बिहार के विधानसभा चुनावों में संयुक्‍त सोशलिस्‍ट पार्टी के उम्‍मीदवार के रूप निर्वाचित हुए और फिर कभी मुरकर नहीं देखा। पहले अकेले थे, समयान्तराल ‘सापारिवार हो गए। सन १९७४ में जब लोक दल बना तो पासवान उससे जुड़ गए और महासचिव भी बने।

आपातकाल के दौरान राम विलास पासवान कांग्रेस के साथ साथ तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इन्दिरागांधी का जबरदस्त विरोध किया था, जेल भी गए। 1977 में छठी लोकसभा में पासवान जनता पार्टी के उम्‍मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए और फिर 1982 में हुए लोकसभा चुनाव में पासवान दूसरी बार सफलता प्राप्त किये। पंद्रहवी लोकसभा के चुनाव में पासवान हार गए और अगस्‍त 2010 में बिहार से राज्‍यसभा के सदस्‍य निर्वाचित हुए।

1983 में रामविलास पासवान ने दलितों के उत्‍थान के लिए दलित सेना का गठन किया. तथा 1989 में नवीं लोकसभा में तीसरी बार लोकसभा में चुने गए। सन १९९६ में दसवीं लोकसभा में वे निर्वाचित हुए। चार साल बाद 2000 में पासवान ने जनता दल यूनाइटेड से अलग होकर गृह-निर्मित लोकजनशक्‍ति पार्टी का गठन किया दलितों के कल्याणार्थ। बारहवीं, तेरहवीं और चौदहवीं लोकसभा में भी पासवान विजयी रहे और केंद्र की सरकारों में मंत्री बने।

बिहार के लोगों में ही नहीं, भारत के लोगों के बीच पासवान के बारे में कहा जाता है कि केंद्र में किसी भी दल की सरकार हो रामविलास पासवान मंत्री जरूर होंगे। यहीं कारण है कि रामविलास पासवान अटल बिहारी बाजपेयी की एनडीए सरकार में भी मंत्री थे तो यूपीए-1 की सरकार में मंत्री बने और नरेन्द्र मोदी की सरकार में भी।

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फरवरी 2014 में पासवान ने राजग से जुडने का फैसला किया और नरेन्द्र मोदी को लेकर उनके मन में जो भी विरोध था, उसे दरकिनार करते हुए उन्होंने देश की नब्ज समझी और राजग में शामिल हो गये। ये स्पष्ट संकेत था कि भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन सरकार में आने वाला है। ज्ञातब्य हो की पासवान ने गुजरात में 2002 में हुए दंगों को लेकर मोदी का विरोध करते हुए राजग का साथ छोड़ दिया था। 2014 के चुनाव में पासवान फिर नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए के साथ जुड़ गए और हाजीपुर से लोकसभा चुनाव जीते। उनकी पार्टी के 6 सांसद जीतकर आए।

पासवान बार-बार दलों और राजनीतिक खेमों को बदलने के लिए जाने जाते हैं. छात्र आंदोलन के समय से नीतीश कुमार और लालू यादव के साथ जुड़े रहने वाले रामविलास पासवान ने 2009 के लोकसभा चुनावों के लिए फिर लालू के साथ गठबंधन किया और यूपीए से जुड़ गए. लेकिन पासवान को सफलता नहीं मिली. पासवान खुद हाजीपुर से लोकसभा चुनाव हार गए।

कुछ दिन पूर्व गप – शप के दौरान पासवान कहते हैं: “हम तो हतास हो गए थे। तभी चिराग निर्णय लिया की मोदी जी के साथ होना चाहिए। पहले तो मैं असमंजस में था की चिराग अभी राजनीति में बच्चा है, परन्तु एक युवक की सोच पर विस्वास करते हुए मोदीजी के साथ हो गए। मेरे अच्छे-खासे (छः) सांसद भी जीते। हम हाजीपुर से जीते, चिराग पास्वॉन (पुत्र) जमुई से जीते, रामचन्द्र पासवान (भाई) समस्तीपुर से जीते। अन्य – श्रीमती वीणा देवी (मुंगेर), चौधरी मेहबूब अली केशर (खगरिया) और रमा किशोर सिंह (वैशाली) से जीते। हम मंत्री भी बने ।”

पासवान विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय में रेल मंत्री बने थे। केन्द्र में चाहे यूनाइटेड फ्रंट हो, राजग हो या संप्रग, पासवान को अधिकतर सभी गठबंधन का हिस्सा बनने का मौका मिला। संप्रग-2 सरकार में वह मंत्रिमंडल में शामिल नहीं रहे। वह विश्वनाथ प्रताप सिंह के समय 1989 में केन्द्रीय श्रम मंत्री बने। एच डी देवगौडा और गुजराल सरकार के समय वह जून 1996 से मार्च 1998 तक रेल मंत्री रहे। पासवान अक्टूबर 1999 से सितंबर 2001 के बीच संचार एवं आईटी मंत्री रहे। सितंबर 2001 से अप्रैल 2002 के बीच वह खान मंत्री रहे। 2004 से 2009 के बीच वह रसायन एवं उर्वरक तथा इस्पात मंत्री रहे।

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