बहनों और भाईयों!! ये मत पूछो की ‘पीएम-केयर्स फंड’ में कितनी राशियाँ आयीं, ‘यूनिसेफ’ ने आगाह किया है कि भारत में दिसंबर तक दो करोड़ से ज्यादा बच्चे जन्म लेंगे, यह एक गंभीर विषय है कि नहीं? 

लॉक डाउन में देश के लोग 
लॉक डाउन में देश के लोग 

संसद अथवा विभिन्न राज्यों के विधान सभाओं के सदस्यों के रूप में चुनाव जीतने के बाद माननीय 788 सांसदगण और देश के 4123 विधायकगण, भारत के 130 करोड़ आवाम, जिसमें 90 करोड़ मतदातागण भी सम्मिलित हैं, से “ऊपर” समझने लगते हैं। 

ये माननीय राजनेता भले ही अपना नाम भी ठीक से नहीं लिख पाने की क्षमता रखते हों (निर्वाचन आयोग, संसद और विधान सभाओं की कार्यवाहियां का रिकार्ड गवाह है), बोलने में शब्दों के चयन और शब्दों का विन्यास करने की क्षमता भले नहीं रखते हों; परन्तु ये देश के सभी नागरिकों के लिए “स्वयंभू भगवान्” “स्वयंभू निर्णयकर्ता” जरूर मान लेते हैं।     

भारत के कोरोना वायरस लॉक डाउन के 68 वें दिन तक लगभग 5000 लोग मौत के गिरफ़्त में आ गए हैं जबकि संक्रमित लोगों की संख्या पौने-दो लाख से भी अधिक हो गयी है। अब लॉक डाउन को धीरे-धीरे समाप्त करने की दिशा में चल पड़ी है सरकार यह कहकर की “भारत के लोगों को इस वायरस के बीच जीने के लिए खुद को तैयार रखना होगा। 

अब कौन पूछ सकता है उनसे की महाशय !!! अगर देश को और देशवासियों को, गरीब-गुरबा को अंततः भगवान् के भरोसे ही छोड़ना था तो उसकी कमर को इतना क्यों तोड़ दिए की न वह लेट सकता है, न बैठ सकता है और न ही चल सकता है।

क्योंकि जो 4911 लोगों स्वयंभू भारत के भाग्य विधाता बन गए हैं, उनकी संख्या देश की सम्पूर्ण जनसँख्या में नगण्य है और देश का क्रमबद्ध विकास देश के गरीब मजदुर, किसान, छोटे-छोटे उद्यमी, छोटे-छोटे शिक्षक, और अन्य श्रमजीवियों पर निर्भर करता है।  यह अलग बात है कि “समय आज इन नगण्य लोगों के लिए सापेक्ष है” । 

डिमॉनेटाइजेशन में भारत के लोग 

पिछले दिनों प्रधान मंत्री देश में लॉक डाउन की घोषणा कर दिए, अचानक। यह उसी तरह किया गया जिस तरह डिमॉनेटाइजेशन किया गया था – चुपके-चुपके, बिना राष्ट्र को बताये, बिना भारत के लोगों को, मतदाताओं को बताये !

वैसे भी, आज के परिपेक्ष में भारत में मतदाताओं की औकात ही क्या है ? यह बात, न तो पूछने की है और न ही बताने की। इसे तो दिल्ली के सरदार पटेल चौक के दाहिने कोने पर कड़ी -सुरक्षा के बीच लाल रंग का मकान, जिसे भारत का निर्वाचन आयोग कहा जाता है, भली-भांति जानता है, लेकिन वह भी लाचार है और यब बात आप सभी जानते भी हैं। 

लेकिन भारत का निर्वाचन आयोग और अधिकारियों की भी एक सीमा है। उसके सदस्यगण भी मनुष्य हैं, वे भी समाज में ही रहते हैं, उनकी भी जरूरतें होती हैं, उन्हें भी राजनेताओं के बीच रहना होता है ? वे भी नौकरी ही करते हैं और उन्हें भी यह बात बारम्बार चिंतित किये रहता है कि अवकाश के बाद उनकी शक्तियां क्षीण हो जाएँगी। इसलिए वे भी जानते हैं की भारत के मतदाताओं को तो सिर्फ वोट देना है – हंसकर दे, रोकर दे, पैसा लेकर दे, बन्दुक की गोली पर दे (विस्वास नहीं हो तो भारत के निर्वाचन आयोग और प्रदेश निर्वाचन आयोग की सांख्यिकी को देख सकते हैं)  

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इस बीच, प्रधान मन्त्री नरेंद्र मोदी भारत के लोगों से (लोगों की सूची में रिक्शावाला भी है, पैखाना उठाने वाला भंगी भी है, सड़क के किनारे बहती नालियों पर पथ्थर का टुकड़ा रखकर चाय बनाने वाला भी है, देश के लाल-बत्ती इलाके में अपने जिश्म को बेचकर भारत के समाज के पुरुषों का कमर के नीचले अंग की क्षुधा पूरा करने वाली महिलाएं भी हैं, देश के बड़े-बड़े कार्पोरेट घरानों के मालिक-मालकिन भी हैं) प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात राहत कोष (पीएम-केयर्स फंड) में अधिकाधिक राशि दान करने का अपील भी किया। 

आखिर अपील तो प्रधान मंत्री कार्यालय और 7-लोक कल्याण मार्ग से किया गया है तो भारत के लोग नरेंद्र मोदी नामक व्यक्ति का क़द्र करें अथवा नहीं, राजनीतिक अखाड़े में भले विभिन्न तरीकों से आलोचना करें – वे, यानि देश के लोग, चाहे बच्चा हो या बूढ़ा, महिला हों या पुरुष, मुंह में जुवान हो या फिर तुतलाकर बोलते हों; अपने प्रधानमन्त्री का, उनके कार्यालय का, उनके आदेश को खुद से अधिक सम्मान देते हैं। 

अगर ऐसा नहीं होता तो जिस तरह “चुपचाप” देश को लॉक डाउन में धकेल दिया गया बिना यह सोचे की इन 4911 सांसद और विधान सभा सदस्यों के अलावे देश में 130 करोड़ नित्य कमानेवाले – नित्य खानेवाले श्रमिक हैं – लॉक डाउन में क्या खाएंगे? उनके बच्चे कैसे जीवित रहेंगे ? उन्हें वृद्ध माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी कैसे जीवित रहेंगे ?

जैसे ही प्रधान मंत्री का अपील “हवा” में ट्वीट हुआ, उनके कोष में “पानी के तरह भारतीय रुपयों आने लगे। बहाव प्रतिबंधित था, इसलिए जो पैसे आये, वहीँ रुक गए। इतना ही नहीं, देश का कोई भी “सजीव” (मनुष्य) केंद्र सरकार से, प्रधान मन्त्री से यह पूछने की हिमाकत नहीं कर सकता है कि आख़िर  प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात राहत कोष (पीएम-केयर्स फंड) में लोगों ने कितना दान दिया, उसे कैसे-कहाँ इस्तेमाल किया जायेगा, इसे सार्वजानिक क्यों नहीं किया जा रहा है जबकि देश लॉक डाउन के गिरफ्त में उत्तरोत्तर किया जा रहा है। 

भारतीय समाचार पत्रों, टीवी चैनलों की बात छोड़ दें। उनकी आवाज और लेखनी से यह प्रतीत हो जाता है कि “वे किनके लिए लिख रहे हैं, किनके लिए चिचियाकर, ऊँचे आवाज में बोल रहे हैं, किन-किन लोगों को – किन-किन लोगों के पक्ष-विपक्ष में बोलने के लिए बुलाते हैं।” यह बात भले ही अख़बार/टीवी चैनलों के मालिक और संपादक जग-जाहिर नहीं करें, परन्तु प्रतिमाह रिचार्ज कराने वाले भारत के दर्शक और श्रोता अच्छी तरह से जानते हैं। यह अलग बात है कि वे “कुम्भकरण” जैसा ही है। 

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बहरहाल, बीबीसी के एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस संक्रमण से लड़ाई के लिए बनाए गए नए ट्रस्ट ‘पीएम-केयर’ पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। ये ट्रस्ट चंदा जुटाने के मक़सद से बनाया गया है। पूछा जा रहा है कि जब सालों से सरकारी पीएम रिलीफ़ फंड या प्रधानमंत्री राहत कोष मौजूद है तो फिर एक नए फंड कि ज़रूरत क्यों आन पड़ी?

कई लोग नए कोष यानी पीएम-केयर को ‘घोटाला’ क़रार दे रहे हैं तो कुछ जगहों पर कहा जा रहा है कि नया फंड इसलिए बनाया गया क्योंकि शायद ये नियंत्रक एंव महालेखा परीक्षक या कैग की परिधि से बाहर होगा जिसकी वजह से कोष से किए गए ख़र्च और उनके इस्तेमाल पर किसी की नज़र नहीं रहेगी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने या सरकारी तंत्र से जुड़े पब्लिसिटी विभाग ने इस संबंध में अब तक किसी तरह का कोई बयान नहीं दिया है। 

बीबीसी संवाददाता दिव्या आर्य जब नलिन कोहली से पूछती हैं तो कोहली साहेब का जबाब होता है: “इस मुद्दे पर राजनीति करने की कोई ज़रूरत नहीं है. सरकार अलग-अलग उद्देश्य से बहुत सारे फंड शुरू करती है और इसकी रिपोर्ट नियंत्रक और महालेखापरीक्षक को की जाती है. सब कुछ नियमों के तहत की होता है।”   

इस ट्रस्ट के बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट के ज़रिये अपील करके कहा कि कोविद-19 जैसी आपात स्थिति से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नागरिक सहायता और आपात राहत कोष (पीएम-केयर्स फंड) की स्थापना की जा रही है और लोग उसमें दान करें।  उन्होंने यह भी कहा की इस कोष का इस्तेमाल भविष्य में आनेवाली दिक्क़त की घड़ियों में भी किया जायेगा।  प्रधानमंत्री राहत कोष में अभी भी 3800 करोड़ रुपये मौजूद हैं और उन्होंने आरटीआई के ज़रिये प्रधानमंत्री कार्यालय से पीएम-केयर के संबंध में जानकारी मांगी है. 

अब कल ही की तो बात है प्रधान मंत्री कहते हैं:  20 लाख करोड़ रूपये के पैकेज को ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य की दिशा में एक ‘बड़ा कदम’ है। देश अपनी अर्थव्यवस्था को वर्तमान संकट से उबार कर कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ रही दुनिया के सामने एक मिसाल कायम करेगा। इन परिस्थितियों में, आज यह चर्चा भी बहुत व्यापक है कि भारत समेत तमाम देशों की अर्थव्यवस्थाएं कैसे उबरेंगी? लेकिन दूसरी ओर ये विश्वास भी है कि जैसे भारत ने अपनी एकजुटता से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया को अचंभित किया है, वैसे ही आर्थिक क्षेत्र में भी हम नई मिसाल कायम करेंगे। 130 करोड़ भारतीय, अपने सामर्थ्य से आर्थिक क्षेत्र में भी विश्व को चकित ही नहीं बल्कि प्रेरित भी कर सकते हैं।’’ उन्होंने कहा कि आज समय की मांग है कि हमें अपने पैरों पर खड़ा होना ही होगा। अपने बलबूते पर चलना ही होगा और इसके लिए एक ही मार्ग है – आत्मनिर्भर भारत।”

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लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वह यह की संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) का अनुमान है कि मार्च में कोविड-19 को वैश्विक महामारी घोषित किए जाने के बाद से नौ महीने के भीतर यानी दिसंबर तक भारत में रिकॉर्ड स्तर पर दो करोड़ से ज्यादा बच्चों का जन्म होने की संभावना है। कोरोना वायरस के कारण फैली बीमारी कोविड 19 को 11 मार्च को वैश्विक महामारी घोषित किया गया था और यूनिसेफ ने बच्चों के जन्म का यह आकलन 40 सप्ताह की अवधि का किया है।  

यूनिसेफ ने आगाह किया है कि दुनिया भर में वैश्विक महामारी के दौरान गर्भवती महिलाएं और इस दौरान पैदा हुए बच्चे प्रभावित स्वास्थ्य सेवाओं के संकट का सामना कर रहे हैं। यूनिसेफ ने एक आकलन में कहा है कि दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के साए में 11.6 करोड़ बच्चों का जन्म होगा। भारत में 11 मार्च से 16 दिसंबर के बीच 20.1 मिलियन यानी दो करोड़ से ज्यादा बच्चों के जन्म की संभावना है। 

यूनिसेफ के आकलन के मुताबिक, जनवरी से दिसंबर 2020 के बीच भारत के अलावा चीन, पाकिस्तान आदि देशों में भी बड़ी संख्या में बच्चों के जन्म की संभावना है।

यूनिसेफ ने आगाह किया है कि कोविड-19 पर नियंत्रण के लिए चल रहे प्रयासों की वजह से जीवन-रक्षक स्वास्थ्य सेवाएं जैसे बच्चे के जन्म के दौरान मिलने वाली चिकित्सा सेवा प्रभावित है। इन प्रयासों में लॉकडाउन प्रमुख है। लॉकडाउन की वजह से लाखों गर्भवती महिलाएं और बच्चे गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं। यूनिसेफ ने कहा कि यह विश्लेषण संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या संभाग के विश्व जनसंख्या अनुमान 2019 के आंकड़े के आधार पर है।

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