“वह तोड़ती पथ्थर”!! पेट में 7-माह का बच्चा और 1066 किमी का पैदल सफर 

पटेल साहेब की यह प्रतिमा और सूरत-बाँदा 1066 किलोमीटर रास्ते पर एक महिला मजदुर के काम नहीं आया पेट  भरने के लिए। सूरत के उद्योगपति पैसा भी नहीं दिए मजदूरी का - थैंक यु कोरोना 
पटेल साहेब की यह प्रतिमा और सूरत-बाँदा 1066 किलोमीटर रास्ते पर एक महिला मजदुर के काम नहीं आया पेट  भरने के लिए। सूरत के उद्योगपति पैसा भी नहीं दिए मजदूरी का - थैंक यु कोरोना 

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जब स्वर्ग से सूरत-बांदा की 1066 किमी रास्ते पर इस महिला की पैर और हौसला को देखे होंगे तो उन्हें विस्वास हो गया होगा की उनकी कीर्ति – ​”वह तोड़ती पत्थर; देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर – वह  तोड़ती पत्थर” – भारतीय महिलाओं की शक्ति और विस्वास का एकमात्र जीवंत दृष्टान्त है। 

​सूरत (गुजरात​) से पेट में सात-माह का गर्भ धारण किये, ऊँगली से अपने दो-साल की बच्ची को जीने का सहारा देती उम्र से लम्भी सड़कों पर सभी सरकारी-सामाजिक भाषणों को – जिसमे दस्तावेजों पर हर-हाल में मदद की बात की जा रही है – ​ ​धज्जी उड़ाती एक महिला 1066 किलोमीटर पैदल चलकर सूरत से बाँदा – अपनी कर्मभूमि से जन्मभूमि – पहुँचती है; तो सच में लगता है कोरोना-त्रादसी वास्तव में देश के बंटवारा अथवा द्वितीय विश्वयुद्ध की त्रादसी से बढ़कर है। 

​इतना ही नहीं, इसकी यह यात्रा (बिना मजदूरी मिले) भी इस बात का गवाह है कि गुजरात के भी व्यापारी, उद्योगपति भले ही पाव रोटी और रात की बासी रोटी को सुन्दर रैपर में बाँध कर, वीडियो बनाकर सोसल मिडिया पर चिपकाते हों; सच तो यह है कि कोई भी व्यापारी/उद्योगपति शाशन/प्रशासन की बात नहीं मानी है। ​यह महिला अपने पति के साथ गुजरात के सूरत की एक निजी फैक्ट्री में मजदूरी करती थी, इसके दो साल का एक बच्चा भी है।

“कोरोना वायरस की वजह से 24 मार्च (मंगलवार) की शाम अचानक बुधवार से लॉकडाउन की घोषणा के बाद फैक्ट्री मालिक ने सभी मजदूरों को फैक्ट्री से बिना पगार दिए ही निकाल दिया था। कोई विकल्प न होने पर रेल पटरी के सहारे दो साल के बच्चे को गोद में लेकर हम पैदल ही चल दिये थे। रास्ते में भगवान के अलावा किसी ने मदद कोई नहीं की​,”​ ​

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बांदा जिले के कमासिन थाना क्षेत्र के भदावल गांव की रहने वाली महिला ने अपनी दास्तान ​सुनाती है।   

​पीटीआई/भाषा के अनुसार: “गांव तो बहुत मिले, जहां पीने के लिए पानी और खाने के लिए थोड़ा गुड़ गांव वाले दे देते रहे हैं।” उसने बताया कि “गुरुवार तड़के सूरत से चले थे और (मंगलवार) सुबह बांदा पहुंच पाए हैं। इतने दिन के सफर में कई बार एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन नहीं मिली।” बांदा जिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमएस) डॉ. संपूर्णानंद मिश्रा ने बताया कि “यह दंपत्ति मंगलवार बांदा आ पाया है, ट्रॉमा सेंटर में प्राथमिक जांच के बाद इन्हें एंबुलेंस से उनके गांव भदावल भेज दिया गया है। जहां ये अपने घर में 14 दिन तक एकांत में रहेंगे।”  

​​बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कोरोना वायरस को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए कहा है कि यह महामारी न केवल लोगों की जान ले रही है बल्कि आर्थिक मंदी की ओर भी ले जा रही है। उन्होंने कहा कि हालिया इतिहास में ऐसा भयानक संकट नहीं पैदा हुआ था।

जान्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अनुमानों के अनुसार, दुनिया में कोरोना वायरस के 8,50,500 पुष्ट मामले सामने आए हैं और 41,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अमेरिका में अब दुनिया के सर्वाधिक 1,84,183 मामले हैं और यहां मरने वालों का आंकड़ा चार हजार को पार कर गया है।

गुतारेस ने मंगलवार को ‘‘साझी जिम्मेदारी, वैश्विक एकजुटता: सामाजिक आर्थिक प्रतिक्रिया’’ विषय पर एक रिपोर्ट साझा करते हुए कहा, ‘‘ संयुक्त राष्ट्र के पिछले 75 सालों के इतिहास में ऐसा संकट पहले नहीं देखा गया। हम उसका सामना कर रहे हैं – ऐसा संकट जो लोगों की जान ले रहा है, इंसान को पीड़ा दे रहा है, लोगों की जिंदगी को दुरूह कर रहा है।’’

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गुतारेस ने इस रिपोर्ट को आनलाइन जारी करते हुए कहा कि मौजूदा महामारी स्वास्थ्य संकट से कहीं आगे की चीज है।

बाद में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘यह भीषण वैश्विक संकट है क्योंकि यह एक संयोजन है, एक ओर एक बीमारी है जो पूरी दुनिया में हर किसी के लिए खतरा है और दूसरी ओर इसके आर्थिक प्रभाव हैं जिससे मंदी आएगी और ऐसी मंदी आएगी कि हालिया इतिहास में उसकी कोई मिसाल नहीं देखी गई होगी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ इन दो तत्वों का मेल और यह तथ्य कि यह अस्थिरता, अशांति और संघर्षो को जन्म देगा … इनसे हमें यह मानने को मजबूर होना पड़ रहा है कि वास्तव में यह दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सबसे बड़ा संकट है। इसके लिए मजबूत और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है और इस प्रकार के कदम एकजुटता के साथ ही संभव हैं। यह तभी होगा जब हम सब एक साथ आएंगे, अपने राजनीतिक खेलों को भुलाकर एक साथ आएंगे और इस समझ के साथ एक साथ आएंगे कि आज मानवता दांव पर है।’’

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि इस मानवीय संकट से निपटने के लिए ‘‘विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की ओर से समन्वित, निर्णायक, समग्र और नवोन्मेषी नीतिगत कार्रवाई की जरूरत है। इसके लिए हमें गरीबों और अधिक संवेदनशील देशों के लोगों के लिए अधिकतम आर्थिक और तकनीकी समर्थन भी जुटाना होगा।’’​ 

उन्होंने इस दिशा में ‘‘त्वरित समन्वित स्वास्थ्य प्रतिक्रिया की जरूरत बतायी ताकि संक्रमण के प्रसार को काबू करने के साथ ही इस महामारी को खत्म किया जा सके ।’’​ गुतारेस ने कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मामलों की जांच क्षमता बढ़ाने, प्रभावितों का पता लगाने, उन्हें अलग थलग रखने और लोगों की आवाजाही को सीमित किए जाने की तत्काल जरूरत है।

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उन्होंने इस महामारी से निपटने के लिए एक नया बहु-साझेदारी वाला ‘‘ट्रस्ट फंड’’ बनाने की वकालत करते हुए कहा, ‘‘ जब हम इस संकट से उबर जाएंगे जो कि हम निश्चित ही उबरेंगे, उसके बाद हमारे सामने एक सवाल होगा। या तो हम अपनी दुनिया में लौट जाएं जो पहले के जैसी थी या फिर हम उन मुद्दों से निर्णायक तरीके से निपटें जो हमें संकटों के प्रति अनावश्यक रूप से कमजोर बनाते हैं ।’’

संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, इस महामारी के कारण 50 लाख से लेकर ढाई करोड़ नौकरियां खत्म हो जाएंगी और अमेरिका को श्रमिक आय के रूप में 960 अरब से लेकर 3.4 खरब रिपीट खरब डालर का नुकसान होगा।​ व्यापार और विकास संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन :अंकटाड : ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी से वैश्विक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश पर 30. 40 फीसदी का नकारात्मक दबाव पड़ेगा और विश्व पर्यटन संगठन के अनुसार अंतरराष्ट्रीय आगमन में 20.30 फीसदी की गिरावट आ जाएगी।

गुतारेस ने कहा , ‘‘ सही कदम उठाने से कोविड-19 महामारी एक नए किस्म के वैश्विक और सामाजिक सहयोग की शुरूआत में मील का पत्थर हो सकती है।’’

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